Q. सिंधु जल समझौता को निलंबित करने के भारत के निर्णय के बहुआयामी निहितार्थ हैं। इस निर्णय के कानूनी, अवसंरचनात्मक, कूटनीतिक और क्षेत्रीय सुरक्षा आयामों की आलोचनात्मक जाँच कीजिए एवं साथ ही एक संतुलित दृष्टिकोण सुझाएँ जो भारत की संप्रभुता की रक्षा तथा क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा दे। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • सिंधु जल संधि को निलंबित करने के भारत के निर्णय के निहितार्थ पर चर्चा कीजिए।
  • इस निर्णय के कानूनी, अवसंरचनात्मक, कूटनीतिक और क्षेत्रीय सुरक्षा आयामों का परीक्षण कीजिए।
  • भारत की संप्रभुता की रक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण का सुझाव दीजिए।

उत्तर

सिंधु जल संधि (1960), दोनों देशों की शत्रुता के बावजूद लंबे समय से भारत और पाकिस्तान के बीच सहयोग का प्रतीक रही है। हालाँकि, सीमा पार आतंकवाद के जवाब में संधि को निलंबित करने के भारत के हालिया निर्णय ने इसके रणनीतिक, कानूनी और क्षेत्रीय निहितार्थों पर बहस को फिर से हवा दे दी है।

सिंधु जल संधि को निलंबित करने के भारत के निर्णय के बहुआयामी निहितार्थ

  • कानूनी निहितार्थ: विश्व बैंक द्वारा वर्ष 1960 से की जा रही सिंधु जल संधि (IWT) को भारत द्वारा निलंबित करना, अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन किए बिना पाकिस्तान पर रणनीतिक दबाव का संकेत है।
  • अवसंरचना संबंधी बाधाएँ: भारत के पास वर्तमान में पश्चिमी नदियों के जल को महत्त्वपूर्ण रूप से मोड़ने के लिए अवसंरचना का अभाव है, जिससे यह निलंबन तत्काल प्रभावकारी होने के बजाय प्रतीकात्मक अधिक हो गया है।
  • कूटनीतिक परिणाम: इस कदम से तनाव बढ़ गया है, पाकिस्तान ने राजनयिकों को निष्कासित कर दिया है और व्यापार को निलंबित कर दिया है, जबकि वैश्विक नेतृत्वकर्ताओं ने दोनों देशों से संयम बरतने का आग्रह किया है।
  • क्षेत्रीय सुरक्षा जोखिम: जल को संघर्ष से जोड़ने से भारत-पाकिस्तान संबंधों में अस्थिरता उत्पन्न होगी; पाकिस्तान इस कदम को युद्ध की कार्रवाई मानता है।
  • पाकिस्तान पर आर्थिक प्रभाव: चूँकि इसकी 80% कृषि भूमि सिंधु नदी के जल पर निर्भर है, इसलिए यदि प्रवाह में परिवर्तन होता है तो पाकिस्तान की कृषि और अर्थव्यवस्था में बड़ा व्यवधान उत्पन्न होने का खतरा है।

कानूनी, अवसंरचनात्मक, राजनयिक और क्षेत्रीय सुरक्षा आयाम

आयाम सकारात्मक पहलू / औचित्य महत्त्वपूर्ण चिंताएँ / चुनौतियाँ
कानूनी – भारत को अनुच्छेद-12 के अंतर्गत संधि की समीक्षा करने या उसे निलंबित करने का संप्रभु अधिकार प्राप्त है।

– निलंबन पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को दिए जा रहे समर्थन के विरुद्ध रणनीतिक दृढ़ता का संकेत है।

– इसे विश्व बैंक द्वारा की गई संधि का एकतरफा उल्लंघन माना जा सकता है।

– इससे नियमों का पालन करने वाली शक्ति के रूप में भारत की वैश्विक छवि को नुकसान पहुँचने का खतरा है।

अवसंरचनात्मक  – भारत इस अवसर का उपयोग पाकल दुल और रातले बाँध जैसी परियोजनाओं को तेजी से आगे बढ़ाने के लिए कर सकता है।

– यह कदम दीर्घकालिक जल सुरक्षा रणनीति को सुदृढ़ करता है।

– भारत में पश्चिमी नदियों के जल को तुरंत मोड़ने या संगृहीत करने के लिए पर्याप्त अवसंरचना का अभाव है।

– क्षमता वृद्धि के बिना वर्तमान कार्रवाई प्रतीकात्मक ही रह सकती है।

कूटनीतिक – आतंकवाद को द्विपक्षीय सहयोग से जोड़ने पर पाकिस्तान को कड़ा संदेश मिला।

– यह कदम भारत की रणनीतिक दृढ़ता को दर्शाता है।

– इससे राजनयिक संबंधों में और तनाव उत्पन्न हो सकता है तथा अंतरराष्ट्रीय आलोचना हो सकती है।

–  वैश्विक समर्थन खोने का जोखिम।

क्षेत्रीय सुरक्षा – जल को एक महत्त्वपूर्ण सुरक्षा मुद्दे के रूप में रेखांकित किया गया, जिस पर रणनीतिक विचार किया जाना आवश्यक है।

– इससे भारत के वार्ता रुख को बल मिलेगा।

– परमाणु क्षेत्र में जल को एक नए फ्लैशपॉइंट के रूप में पेश किया गया।

– पाकिस्तान ने चेतावनी दी है कि वह इस कदम को “युद्ध की कार्रवाई” मान सकता है।

संतुलित दृष्टिकोण जो भारत की संप्रभुता की रक्षा करता है और क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देता है

  • संधि पर रणनीतिक रूप से पुनःसमझौता करना: आतंकवाद और जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर पुराने प्रावधानों को संशोधित करने के लिए सिंधु जल संधि के अनुच्छेद 12 के तहत औपचारिक चर्चा शुरू करनी चाहिए।
  • घरेलू जल अवसंरचना को मजबूत करना: संधि मानदंडों का उल्लंघन किए बिना इस संधि में भारत के हिस्से को अधिकतम करने के लिए पाकल दुल और रातले जैसी जलविद्युत और भंडारण परियोजनाओं को शीघ्र पूरा करना चाहिए।
  • पाकिस्तान के साथ तकनीकी स्तर पर वार्ता जारी रखना: भारत को जल-संबंधी तकनीकी सहयोग के लिए संचार चैनल खुले रखने चाहिए, भले ही व्यापक राजनीतिक सहभागिता को निलंबित कर दिया जाए।
  • अंतरराष्ट्रीय कानूनी और कूटनीतिक मंचों का उपयोग करना: पाकिस्तान के आख्या का जवाब देने हेतु और अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को सुदृढ़ करने के लिए विश्व बैंक या संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर भारत को अपनी स्थिति को मजबूत करना चाहिए।
  • क्षेत्रीय जल सहयोग को बढ़ावा देना: बाढ़, हिमनद पिघलना और बेसिन प्रबंधन जैसी साझा चुनौतियों का संयुक्त रूप से समाधान करने के लिए दक्षिण एशिया में बहुपक्षीय जल कूटनीति को प्रोत्साहित करना चाहिए।

भारत द्वारा उठाया गया यह कदम, संप्रभुता और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच संबंध को रेखांकित करता है। हालाँकि, अनपेक्षित तनाव से बचने के लिए, भारत के हितों की रक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित करने हेतु क्षेत्रीय संवाद के साथ मुखर नीति को जोड़ने वाली एक संतुलित रणनीति आवश्यक है।

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