प्रश्न की मुख्य माँग
- 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने की भारत की महत्वाकाँक्षा को साकार करने में भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश की क्षमता का उल्लेख कीजिए।
- युवा क्षमता का उपयोग करने में आने वाली चुनौतियों का परीक्षण कीजिए।
- चुनौतियों से निपटने के लिए एक व्यापक रणनीति सुझाइये।
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उत्तर
भारत की जनसांख्यिकी संरचना अद्वितीय है, 15-29 आयु वर्ग के 42 करोड़ से अधिक युवा, जनसंख्या का लगभग 29% हिस्सा हैं, जिससे भारत के पास विश्व का सबसे बड़ा युवा समूह है। यह जनसांख्यिकीय लाभांश आर्थिक परिवर्तन को गति देने और वर्ष 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनने के लक्ष्य को प्राप्त करने का एक ऐतिहासिक अवसर प्रस्तुत करता है। हालाँकि, यह अवसर कम होता जा रहा है और यदि समय पर, समावेशी एवं परिणाम-उन्मुख मध्यक्षेप न किये गये तो यह एक खोया हुआ अवसर बन सकता है।
2047 तक विकसित राष्ट्र का दर्जा प्राप्त करने में भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश की क्षमता
- वृहद कार्यशील आयु वर्ग: यदि युवा कार्यबल को उपयुक्त रूप से कौशल प्रदान किया जाए तो वह आर्थिक विकास, नवाचार और उत्पादकता को बढ़ावा दे सकता है।
- उदाहरण: अनुमान है कि वर्ष 2030 तक भारत की औसत आयु 31 वर्ष होगी, जो चीन (42) या यूरोप (45) से काफी कम है।
- शिक्षा का विस्तार और बढ़ती साक्षरता: शिक्षा तक पहुँच में हुई पर्याप्त वृद्धि ने बेहतर कार्यबल आधार तैयार किया है।
उदाहरण: मात्र 3% युवा निरक्षर हैं, तथा 30% से अधिक ने स्नातक या उच्च शिक्षा पूरी कर ली है।
- अवसर सृजन के लिए डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना: आधार, UPI और डिजीलॉकर जैसे प्लेटफॉर्म समावेशन, उद्यमशीलता और कौशल प्रदान करने में सक्षम बनाते हैं।
- उद्यमशीलता ऊर्जा और स्टार्टअप वृद्धि: युवा भारत स्टार्टअप, MSME और गिग अर्थव्यवस्था के माध्यम से नवाचार को बढ़ावा दे रहा है।
- उदाहरण: भारत 100 से अधिक यूनिकॉर्न के साथ वैश्विक स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम है।
- टियर 2 और टियर 3 शहरों के माध्यम से क्षेत्रीय विकास की संभावना: स्थानीय युवा प्रतिभा का उपयोग करके शहरी प्रवास को कम किया जा सकता है और हर जगह विकास को सक्षम बनाया जा सकता है।
- उदाहरण: इंदौर और कोयम्बटूर जैसे शहर IT और विनिर्माण केन्द्र के रूप में उभर रहे हैं।
- वैश्विक बाजारों में जनसांख्यिकीय बढ़त: युवा-प्रधान श्रमबल, वैश्विक विनिर्माण और सर्विस आउटसोर्सिंग को आकर्षित कर सकती है।
युवा क्षमता का दोहन करने में चुनौतियाँ
- अधिगम अभाव व कौशल की कमी: नामांकन में वृद्धि के बावजूद बेहतर अधिगम परिणाम सामने नहीं आए हैं।
- उदाहरण: कार्यबल का केवल 5% ही औपचारिक रूप से कुशल है और बच्चों का एक बड़ा हिस्सा 10 वर्ष की आयु तक बुनियादी पठन (Reading) या गणना कौशल हासिल नहीं कर पाता है।
- क्षेत्रीय शैक्षिक असमानताएँ: उन्नत और पिछड़े राज्यों के बीच शैक्षिक उपलब्धि में स्पष्ट अंतर मौजूद हैं।
- उदाहरण: केरल/तमिलनाडु में स्नातक दर 50% से अधिक है, जबकि बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान में यह लगभग 20-22% है।
- शिक्षा और नौकरियों के बीच असंगति: स्नातकों में प्रायः बाजार-प्रासंगिक कौशल का अभाव होता है, जिसके कारण अल्प-रोजगार की स्थिति उत्पन्न होती है।
- सरकारी नौकरियों पर अत्यधिक निर्भरता: स्थायी सरकारी नौकरियों की आकांक्षा उपलब्धता से कहीं अधिक है, जिससे निराशा उत्पन्न होती है।
- डिजिटल और आर्थिक अवसरों तक असमान पहुँच: ग्रामीण, गरीब और युवा महिलाएँ अक्सर डिजिटल अर्थव्यवस्था में पिछड़ जाती हैं।
- कार्यबल भागीदारी में लैंगिक अंतर: स्कूलों में महिलाओं का उच्च नामांकन, कार्यबल में आनुपातिक समावेशन में परिवर्तित नहीं होता है।
- उदाहरण: महिला श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) लगभग 41.7% (PLFS 2023-24) है जबकि पुरुष LFPR लगभग 80% है।
- प्रवासन दबाव और शहरी भीड़भाड़: स्थानीय अवसरों की कमी युवाओं को प्रवासन के लिए प्रेरित करती है, जिससे शहरी बुनियादी ढाँचे पर दबाव पड़ता है और संसाधनों पर और अधिक दबाव पड़ता है।
- उदाहरण: NCR और मुंबई में आने वाले युवा प्रवासियों के कारण आवास और परिवहन पर अधिक दबाव पड़ रहा है।
जनसांख्यिकीय लाभांश का लाभ उठाने हेतु व्यापक रणनीति
- नामांकन से अधिगम परिणामों की ओर बदलाव: नामांकन संख्या से ध्यान हटाकर मापनीय अधिगम सुधारों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए व 10 वर्ष की आयु तक सार्वभौमिक आधारभूत साक्षरता और तकनीक-सक्षम शिक्षण सुनिश्चित करना चाहिए।
- उदाहरण: NEP 2020 की दक्षता-आधारित शिक्षा, शिक्षक प्रशिक्षण और AI-संचालित डिजिटल उपकरणों का उद्देश्य “अधिगम अभाव” को कम करना है।
- व्यावसायिक और तकनीकी शिक्षा का विस्तार: सशक्त उद्योग सम्बद्धताओं के माध्यम से स्थानीय उद्योग की आवश्यकताओं और उभरते क्षेत्रों के अनुरूप कौशल विकास कार्यक्रम का निर्माण करना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: PMKVY बाजार-उन्मुख प्रशिक्षण प्रदान करता है, जबकि स्किल इंडिया डिजिटल हब (SIDH) नवीकरणीय ऊर्जा और इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र की कंपनियों के साथ साझेदारी करता है।
- संतुलित क्षेत्रीय मानव पूँजी विकास: कौशल केंद्रों, व्यावसायिक केंद्रों और उद्योग-सम्बंधी प्रशिक्षण के माध्यम से पिछड़े राज्यों में शिक्षा-कौशल के अंतर को कम करना चाहिए ताकि प्रवासन पर अंकुश लगाया जा सके।
- उदाहरण: उत्तर प्रदेश और बिहार के “मेगा स्किल हब” का लक्ष्य सालाना लाखों लोगों को प्रशिक्षित करके उन्हें विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों से जोड़ना है।
- महानगरों से बाहर रोजगार को बढ़ावा देना: स्थानीय नौकरियों को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहन और बुनियादी ढाँचे के साथ टियर 2/3 शहरों में उद्योगों, MSME और स्टार्टअप को प्रोत्साहित करना चाहिए।
- समावेशी डिजिटल पहुँच और साक्षरता: ऑनलाइन सुरक्षा और साइबर-कौशल कार्यक्रमों के साथ-साथ किफायती इंटरनेट, उपकरण और ग्रामीण डिजिटल कौशल सुनिश्चित करना चाहिए।
- उदाहरण: भारतनेट 250,000 ग्राम पंचायतों को जोड़ता है, जबकि PMGDISHA ग्रामीण परिवारों को डिजिटल साक्षरता का प्रशिक्षण देता है।
- उद्यमिता और गिग इकोनॉमी सुरक्षा को सुदृढ़ करना: स्टार्टअप्स को ऋण और इनक्यूबेशन के जरिए सहायता प्रदान करनी चाहिए, गिग वर्कर्स को उचित वेतन, बीमा और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए।
- उदाहरण: ई-श्रम पोर्टल ने लक्षित लाभों और पोर्टेबिलिटी के लिए 30 करोड़ से ज़्यादा असंगठित श्रमिकों को पंजीकृत किया है।
- कार्यबल में लैंगिक समानता को मुख्यधारा में लाना: कौशल कार्यक्रमों, सुरक्षित कार्यस्थलों, लचीली नीतियों और बाल देखभाल सहायता के माध्यम से महिलाओं की कार्यबल भागीदारी को बढ़ावा देना चाहिए।
- उदाहरण: स्टैंड-अप इंडिया महिला उद्यमियों को ऋण प्रदान करता है, विस्तारित मातृत्व लाभ महिला कर्मचारियों को बनाए रखने में मदद करते हैं।
निष्कर्ष
भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनने की दिशा में भारत की यात्रा को गति देने की अपार क्षमता रखता है, लेकिन यह एक समयबद्ध अवसर है। चुनौतियों पर विजय पाने के लिए स्किल इंडिया, PMKVY, स्टार्टअप इंडिया और NEP 2020 जैसी पहलों के माध्यम से समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण, उद्यमिता संवर्धन और समावेशी श्रम नीतियों को एकीकृत करने वाला एक समग्र दृष्टिकोण यह सुनिश्चित कर सकता है कि भारत के युवा नवाचार, उत्पादकता और समान विकास के प्रेरक बनें और एक समृद्ध व सतत भविष्य का निर्माण हो।
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