प्रश्न की मुख्य माँग
- स्नातकों के बीच रोजगार क्षमता में सुधार के लिए सरकार द्वारा की गई पहलों पर प्रकाश डालिए।
- शिक्षा को रोजगार, नवाचार एवं आर्थिक विकास के साथ जोड़ने में आने वाली बहुआयामी चुनौतियों का विश्लेषण कीजिए।
- आगे के लिए व्यापक सुधारों का सुझाव दीजिये।
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उत्तर
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 जैसे सुधारों के बावजूद, भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली स्नातक रोजगार क्षमता में सुधार करने के लिए संघर्ष करती है, जो वर्ष 2025 में 42.6% है (भारत स्नातक कौशल रिपोर्ट), जो बढ़ते राज्य हस्तक्षेपों के बावजूद शिक्षा परिणामों एवं श्रम बाजार की माँगों के बीच अंतर को दर्शाता है।
रोजगार क्षमता में सुधार के लिए सरकारी पहल
- कौशल भारत मिशन: इसका उद्देश्य विभिन्न क्षेत्रों में युवाओं को उद्योग-प्रासंगिक कौशल में प्रशिक्षित करना है।
- उदाहरण: कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय (वर्ष 2023) के अनुसार, इसके लॉन्च होने के बाद से 1.60 करोड़ से अधिक उम्मीदवारों को PMKVY के तहत प्रशिक्षित किया गया है।
- राष्ट्रीय शिक्षुता संवर्धन योजना (NAPS): प्रशिक्षु वजीफे पर सब्सिडी देकर कार्य-आधारित शिक्षा को बढ़ावा देती है।
- उदाहरण: अप्रेंटिसशिप इंडिया पोर्टल (वर्ष 2024) के अनुसार, योजना के लॉन्च होने के बाद से 9 लाख से अधिक प्रशिक्षुओं को नामांकित किया गया है।
- अटल इनोवेशन मिशन (AIM): टिंकरिंग लैब के माध्यम से रचनात्मकता एवं व्यावहारिक शिक्षा को प्रोत्साहित करता है।
- उदाहरण: नीति आयोग (वर्ष 2024) की रिपोर्ट है कि भारतीय विद्यालयों में 10,000 से अधिक अटल टिंकरिंग लैब स्थापित किए गए हैं।
- SWAYAM प्लेटफॉर्म: कौशल एवं ज्ञान के अंतर को कम करने के लिए मुफ्त ऑनलाइन पाठ्यक्रम प्रदान करता है।
- AICTE का रोजगार संवर्धन प्रशिक्षण कार्यक्रम (EETP): व्यावहारिक प्रशिक्षण के लिए तकनीकी फर्मों के साथ साझेदारी करता है।
शिक्षा को रोजगार के साथ जोड़ने में बहुआयामी चुनौतियाँ
- पाठ्यक्रम-उद्योग बेमेल: पुरानी पाठ्यक्रम सामग्री उद्योग की ज़रूरतों को प्रतिबिंबित करने में विफल रहती है।
- उदाहरण: भारत कौशल रिपोर्ट (वर्ष 2024) से पता चलता है कि केवल 11.72% स्नातक ज्ञान-गहन रोजगार में हैं।
- NEP के तहत गुणवत्ता कमजोर पड़ना: कई निकास विकल्पों ने अकादमिक गहराई एवं नौकरी की प्रासंगिकता को कम कर दिया है।
- कम अनुसंधान-उद्योग एकीकरण: शिक्षाविदों में लागू नवाचार प्रभाव की कमी है।
- उदाहरण: निवेश के बावजूद, भारत की GII रैंक 39 (WIPO ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स 2024) है, जो मलेशिया (33) एवं तुर्की (37) से पीछे है।
- पुरानी UGC रूपरेखा: केंद्रीकृत UGC नियंत्रण आधुनिक, प्रासंगिक सुधारों को बाधित करता है।
- सीमित इंटर्नशिप पहुँच: कुछ छात्रों को वास्तविक कार्यस्थल का अनुभव मिलता है।
व्यापक सुधार – आगे की राह
- पाठ्यक्रम डिजाइन का विकेंद्रीकरण: विश्वविद्यालयों को स्थानीय एवं क्षेत्रीय आवश्यकताओं के अनुसार पाठ्यक्रम तैयार करने के लिए सशक्त बनाया जाना चाहिए।
- उदाहरण: दिल्ली कौशल एवं उद्यमिता विश्वविद्यालय (वर्ष 2024) लॉजिस्टिक्स तथा फिनटेक में हाइब्रिड उद्योग-अकादमिक कार्यक्रम प्रदान करता है।
- UGC को परिणाम-आधारित नियामक से बदलना: रोजगार योग्यता मेट्रिक्स पर केंद्रित स्वतंत्र निकाय बनाना।
- उदाहरण: NEP के तहत प्रस्तावित राष्ट्रीय उच्च शिक्षा नियामक परिषद अभी तक लागू नहीं हुई है।
- डिग्री के भीतर मुख्यधारा की प्रशिक्षुता: अंतर्निहित व्यावसायिक शिक्षण मॉडल को अनिवार्य करना।
- उदाहरण: जर्मनी की दोहरी प्रणाली, यह सुनिश्चित करती है, कि छात्र प्रशिक्षु कक्षा एवं उद्योग के बीच समय विभाजित करें।
- स्वदेशी तकनीक-आधारित स्टार्ट-अप को प्रोत्साहित करना: शिक्षा के भीतर विज्ञान-आधारित उद्यमिता को बढ़ावा देंना।
- संस्थागत रोजगार योग्यता ऑडिट का संचालन करना: स्नातक परिणामों का नियमित सार्वजनिक मूल्यांकन करना।
- उदाहरण: तमिलनाडु सरकार का रैंकिंग फ्रेमवर्क (वर्ष 2024) वास्तविक प्लेसमेंट एवं इंटर्नशिप रिकॉर्ड के आधार पर कॉलेजों को रैंक करता है।
भारत में रोजगार की कमी गहरी संरचनात्मक खामियों से उपजी है – कठोर पाठ्यक्रम, विनियामक जड़ता एवं कम व्यावहारिक अनुभव। शिक्षा को नवाचार तथा रोजगार के वाहक के रूप में बदलने के लिए दीर्घकालिक राष्ट्रीय विकास के लिए तत्काल विकेंद्रीकरण, लेखा परीक्षा आधारित जवाबदेही एवं उद्योग से जुड़े शिक्षण पारिस्थितिकी तंत्र की आवश्यकता है।
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