Q. “भारत की ‘कूलिंग डिमांड’ एक महत्त्वपूर्ण जलवायु चुनौती और एक आर्थिक अवसर का प्रतिनिधित्व करती है।’ स्थायी शीतलन प्रौद्योगिकियों को लागू करने के भारत के प्रयासों के प्रकाश में इस कथन का विश्लेषण कीजिये। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • इस बात पर प्रकाश डालिए कि किस प्रकार भारत की कूलिंग डिमांड एक गंभीर जलवायु चुनौती बन गई है।
  • इस बात पर प्रकाश डालिए कि किस प्रकार भारत की कूलिंग डिमांड, भारत के लिए एक आर्थिक अवसर प्रस्तुत करती है।
  • जलवायु चुनौतियों और आर्थिक अवसरों के बीच संतुलन बनाते हुए संधारणीय कूलिंग प्रौद्योगिकियों को लागू करने के भारत के प्रयासों का विश्लेषण कीजिए।

उत्तर

भारत की तेजी से बढ़ती कूलिंग डिमांड शहरीकरण, आर्थिक विकास और बढ़ते तापमान जैसे कारकों से प्रेरित है। यह बढ़ती हुई माँग एक दोहरा परिदृश्य प्रस्तुत करती है: ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में संभावित वृद्धि के कारण एक गंभीर जलवायु चुनौती और संधारणीय कूलिंग प्रौद्योगिकियों को अपनाने का एक उपयुक्त आर्थिक अवसर

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भारत की कूलिंग डिमांड से उत्पन्न जलवायु चुनौतियाँ

  • ऊर्जा की बढ़ती खपत: एयर कंडीशनिंग यूनिट्स के प्रसार से विद्युत की खपत बढ़ रही है, जो मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन से प्राप्त होती है, जिससे कार्बन उत्सर्जन बढ़ रहा है। 
    • उदाहरण के लिए: अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) की रिपोर्ट के अनुसार उचित मध्यक्षेप के बिना, वर्ष 2050 तक भारत की कूलिंग एनर्जी डिमांड तीन गुना से अधिक हो सकती है, जिससे वैश्विक ऊर्जा खपत पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
  • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में वृद्धि: पारंपरिक कूलिंग सिस्टम में अक्सर हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFC) का उपयोग किया जाता है, जो जलवायु परिवर्तन में योगदान देने वाली शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैसें होती हैं। 
    • उदाहरण के लिए: पुराने एयर कंडीशनिंग सिस्टम में HFC-134a का उपयोग किया जाता है जो एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है, जिसका  ग्लोबल वार्मिंग पोटेंशियल कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में बहुत अधिक है।
  • ऊर्जा अवसंरचना पर दबाव: कूलिंग की बढ़ती माँग, मौजूदा विद्युत ग्रिडों पर अत्यधिक दबाव डाल सकती है, जिससे ब्लैकआउट हो सकता है और कोयले से चलने वाले विद्युत संयंत्रों पर निर्भरता बढ़ सकती है। 
    • उदाहरण के लिए: गर्मियों के महीनों के दौरान, कई भारतीय शहरों में एयर कंडीशनिंग के बढ़ते उपयोग के कारण विद्युत आपूर्ति संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
  • नगरी ऊष्मा द्वीप प्रभाव: एयर कंडीशनर के व्यापक उपयोग से पर्यावरण में ऊष्मा फैलती है, जिससे नगरी तापमान में वृद्धि होती है और परिणामस्वरूप स्वरुप कॉलिंग डिमांड बढ़ जाती है। 
    • उदाहरण के लिए: अध्ययनों से पता चलता है कि दिल्ली और मुंबई जैसे शहर आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक गर्म हैं। ऐसा अधिकांश रूप से एयर कंडीशनर के व्यापक उपयोग के कारण है।
  • संसाधनों की कमी: कूलिंग डिवाइस के निर्माण और संचालन के लिए पर्याप्त जल और ऊर्जा संसाधनों की आवश्यकता होती है, जिससे पर्यावरण निम्नीकरण होता है। 
    • उदाहरण के लिए: एयर कंडीशनिंग यूनिट्स के संचालन के दौरान जल का बहुत अधिक उपयोग होता है , जिससे जल-तनाव वाले क्षेत्रों में जल की कमी हो जाती है।

भारत की कूलिंग डिमांड से उत्पन्न होने वाले आर्थिक अवसर

  • कूलिंग उपकरणों के लिए बाजार का विस्तार: कूलिंग डिवाइस की बढ़ती माँग HAVC (हीटिंग, वेंटिलेशन और एयर कंडीशनिंग) क्षेत्र में घरेलू विनिर्माण और रोजगार सृजन के लिए रास्ते खोलती है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत सरकार की ‘मेक इन इंडिया’ पहल ऊर्जा-कुशल कूलिंग उपकरणों के स्थानीय उत्पादन को प्रोत्साहित करती है, जिससे अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है।
  • हरित प्रौद्योगिकियों में निवेश: संधारणीय कूलिंग प्रौद्योगिकियों का विकास और उपयोग निवेश को आकर्षित करता है तथा नवाचार और आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है। 
    • उदाहरण के लिए: विश्व बैंक का अनुमान है कि हरित शीतलन समाधान अपनाने से वर्ष 2040 तक भारत में 1.6 ट्रिलियन डॉलर का निवेश अवसर उत्पन्न हो सकता है ।
  • ऊर्जा दक्षता बचत: ऊर्जा-दक्ष शीतलन प्रणालियों को लागू करने से विद्युत की खपत कम होती है, जिससे उपभोक्ताओं और उद्योगों की लागत बचत होगी 
    • उदाहरण के लिए: ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE), स्टार -रेटेड उपकरणों को बढ़ावा देता है, जो कम विद्युत की खपत करते हैं और विद्युत का बिल कम करते हैं।
  • निर्यात क्षमता: संधारणीय कूलिंग प्रौद्योगिकियों का केंद्र बनकर, भारत इन समाधानों को समान जलवायु चुनौतियों का सामना कर रहे अन्य देशों को निर्यात कर सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: भारतीय कंपनियाँ उष्णकटिबंधीय जलवायु के लिए उपयुक्त सौर चालित  कूलिंग सिस्टम विकसित कर रही हैं, जिनके संभावित निर्यात बाजार दक्षिण-पूर्व एशिया और अफ्रीका में हैं
  • हरित क्षेत्रों में रोजगार सृजन: संधारणीय शीतलन प्रौद्योगिकियों के लिए कुशल कार्यबल की आवश्यकता होती है, जिससे अनुसंधान, विनिर्माण और रखरखाव में रोजगार के अवसर उत्पन्न होते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: कौशल भारत पहल के तहत आयोजित किये जाने वाले प्रशिक्षण कार्यक्रम, ऊर्जा-कुशल शीतलन प्रणालियों को स्थापित करने और उन्हें सर्विस करने में लोगों को विशेषज्ञता प्रदान करने पर केंद्रित करते  हैं।

जलवायु चुनौतियों और आर्थिक अवसरों में संतुलन बनाए रखते हुए संधारणीय कूलिंग प्रौद्योगिकियों को लागू करने के लिए भारत के प्रयास

  • अक्षय ऊर्जा का विस्तार: भारत, कूलिंग के लिए सौर और पवन ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा दे सकता है, जिससे जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम हो सकती है। 
    • उदाहरण के लिए: गुजरात में सोलर रूफटॉप योजना, स्वच्छ ऊर्जा समाधानों को बढ़ावा देती है।
  • ऊर्जा-दक्ष शीतलन प्रणालियाँ: ऊर्जा-दक्ष शीतलन प्रौद्योगिकियों के उपयोग को प्रोत्साहित करने से ऊर्जा का उपयोग कम होगा। 
    • उदाहरण के लिए: BEE का स्टार लेबलिंग कार्यक्रम, उच्च दक्षता वाले कूलिंग उपकरणों के उपयोग को प्रोत्साहित करता है, जिससे ऊर्जा की खपत कम होती है।
  • डिस्ट्रिक्ट कूलिंग साल्यूशन: शहरों में सेन्ट्रलाइज्ड कूलिंग सिस्टम का उपयोग करने से समग्र ऊर्जा खपत कम हो सकती है। 
    • उदाहरण के लिए: गुजरात में GIFT सिटी कई इमारतों को ऊर्जा दक्ष कूलिंग प्रदान करने हेतु डिस्ट्रिक्ट कूलिंग सिस्टम का उपयोग करता है।
  • वैकल्पिक रेफ्रिजरेंट का विकास:  HAFC को प्रतिस्थापित करने हेतु लो-ग्लोबल-वार्मिंग-पोटेंशियल (GWP) रेफ्रिजरेंट की पहचान करने और उन्हें अपनाने के लिए कई अनुसंधान पहलों की शुरुआत की गई है। 
    • उदाहरण के लिए: ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (CEEW), जलवायु के अनुकूल रेफ्रिजरेंट विकसित करने हेतु उद्योगों के साथ सहयोग करती है।
  • जलवायु-प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचा: ऊष्मा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे और परावर्तक सामग्री विकसित करने से कूलिंग डिमांड कम हो सकती हैं और आर्थिक अवसर उत्पन्न हो सकते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: चेन्नई में, तमिलनाडु सरकार ने ‘कूल रूफ’ कार्यक्रम शुरू किया, जिसके तहत घर के अंदर के तापमान को कम करने के लिए छतों पर परावर्तक सामग्री का उपयोग किया जाता है।
  • पैसिव कूलिंग तकनीकों का एकीकरण: प्राकृतिक वेंटिलेशन और शेडिंग को बढ़ाने वाले वास्तुशिल्प डिजाइनों का उपयोग करने से मेकैनिकल कूलिंग पर निर्भरता कम हो जाती है। 
    • उदाहरण के लिए: ऊर्जा संरक्षण भवन संहिता (ECBC), नए निर्माण कार्यों में पैसिव डिजाइन रणनीतियों को बढ़ावा देती है और IGBC (भारतीय हरित भवन परिषद) पर्यावरण के अनुकूल निर्माकार्य को प्रोत्साहित करते हुए, उन इमारतों को प्रमाणित करती है जो संधारणीय डिजाइन मानकों को पूरा करती हैं।
  • हरित क्षेत्रों में रोजगार सृजन: संधारणीय कूलिंग प्रौद्योगिकियों  के लिए कुशल कार्यबल की आवश्यकता होती है, जिससे अनुसंधान, विनिर्माण और रखरखाव क्षेत्र में रोजगार का सृजन होता है।

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भारत की बढ़ती कूलिंग डिमांड एक गंभीर जलवायु चुनौती और एक बड़ा आर्थिक अवसर दोनों प्रस्तुत करती है। संधारणीय कूलिंग प्रौद्योगिकियों और नीतियों को सक्रिय रूप से लागू करके, भारत आर्थिक लाभों का लाभ उठाते हुए पर्यावरणीय प्रभावों को कम कर सकता है, जिससे सतत विकास की दिशा में मार्ग प्रशस्त होगा।

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