Q. यातना के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UNCAT) की पुष्टि करने और यातना विरोधी कानून बनाने में भारत की अनिच्छा मानवाधिकारों के संरक्षक के रूप में इसकी वैश्विक प्रतिष्ठा को कमजोर करती है। इस अभिसमय की पुष्टि करने और संबंधित घरेलू सुधारों को लागू करने में भारत के सामने आने वाली राजनीतिक, कानूनी और कूटनीतिक चुनौतियों का मूल्यांकन कीजिए।(15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • चर्चा कीजिए कि किस प्रकार भारत की यातना के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCAT) की पुष्टि करने तथा यातना-विरोधी कानून बनाने में अनिच्छा, मानव अधिकारों के रक्षक के रूप में उसकी वैश्विक प्रतिष्ठा को कमजोर करती है।
  • इस अभिसमय की पुष्टि करने तथा संबंधित घरेलू सुधारों को लागू करने में भारत के समक्ष आने वाली राजनीतिक, कानूनी और कूटनीतिक चुनौतियों का मूल्यांकन कीजिए।
  • आगे की राह लिखिये।

उत्तर

यातना के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCAT) के अनुसार यातना (Torture)  के अंतर्गत दंड, जबरदस्ती या भेदभाव के लिए गंभीर शारीरिक या मानसिक पीड़ा पहुँचाने वाला कोई भी कार्य शामिल है। वर्ष 1997 से हस्ताक्षरकर्ता होने के बावजूद भारत ने UNCAT की पुष्टि नहीं की है, जिससे वह अभी तक ऐसा करने वाले मुट्ठी भर देशों में से एक बन गया है। यह उसकी मानवाधिकार विश्वसनीयता को कमजोर करता है, विशेषकर हिरासत में होने वाली मौतों और पुलिस की बर्बरता पर बढ़ती चिंताओं के बीच।

भारत की वैश्विक स्थिति पर प्रभाव

  • मानवाधिकार विश्वसनीयता: गैर-अनुसमर्थन से मानवाधिकारों के लोकतांत्रिक रक्षक के रूप में भारत की स्थिति कमजोर होगी जिससे इसकी सॉफ्ट पावर और वैश्विक नैतिक अधिकार प्रभावित होगा।
    • उदाहरण के लिए: पश्चिमी देश, प्रत्यर्पण के मामलों में भारत द्वारा अनुमोदन न करने का हवाला देते हैं,जैसे कि संजय भंडारी के मामले में प्रत्यर्पण को अस्वीकार करते हुए किया गया था।
  • कूटनीतिक बाधा: यातना-विरोधी कानून लागू करने में विफलता से कूटनीतिक बाधाएँ उत्पन्न होती हैं, तथा मानवाधिकार-केंद्रित देशों के साथ रणनीतिक संबंध प्रभावित होते हैं।
    • उदाहरण के लिए: यूरोपीय संघ के व्यापार समझौतों के लिए अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानदंडों का अनुपालन आवश्यक है, जिसे पूरा करने में भारत को कठिनाई होती है।
  • न्यायिक प्रणाली की अखंडता: हिरासत में यातना की रिपोर्ट कानूनी विश्वसनीयता को कम करती है, जिससे भारत की न्याय प्रणाली में विश्वास कम होता है। 
    • उदाहरण के लिए: तहव्वुर राणा के कानूनी बचाव में हिरासत में यातना के जोखिम का हवाला दिया गया, जिससे उसके प्रत्यर्पण में देरी हुई।
  • अंतरराष्ट्रीय संधि दायित्व: भारत ने अन्य मानवाधिकार संधियों का अनुसमर्थन किया है, जिससे UNCAT का अनुसमर्थन करने से उसका इनकार असंगत हो गया है।
    • उदाहरण के लिए: UDHR और ICCPR के प्रति भारत का समर्थन, UNCAT का समर्थन न करने के निर्णय के  विपरीत है।
  • वैश्विक छवि को‌ बनाना: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद जैसे संगठनों में वैश्विक नेतृत्व की भारत की आकांक्षाएँ उसके मानवाधिकार संबंधी दृष्टिकोण के कारण कमजोर हो गई हैं।
    • उदाहरण के लिए: चीन और पाकिस्तान, वैश्विक नेतृत्व के भारत के दावों का मुकाबला करने के लिए उसके रिकॉर्ड पर प्रकाश डालते हैं।

राजनीतिक, कानूनी और कूटनीतिक चुनौतियाँ

चुनौतियाँ UNCAT का अनुसमर्थन घरेलू सुधारों का क्रियान्वयन
राजनीतिक

 

  • बाधाओं का भय: सुरक्षा एजेंसियाँ आतंकवाद-रोधी अभियानों पर बाह्य निगरानी का विरोध करती हैं।
    उदाहरण के लिए: एजेंसियाँ कठोर पूछताछ पद्धति को उचित ठहराने के लिए नक्सलवाद और सीमापार आतंकवाद जैसे खतरों का हवाला देती हैं।
  • राजनीतिक आम सहमति का अभाव: विभिन्न दल यातना-विरोधी कानूनों को कानून-व्यवस्था बनाम मानवाधिकार के नजरिए से देखते हैं।
    उदाहरण के लिए:
    वर्ष 2010 का यातना निवारण विधेयक, संसदीय समर्थन के अभाव में समाप्त हो गया।
  • राज्य की स्वायत्तता की चिंता: राज्यों को केंद्रीय कानून के तहत कानून प्रवर्तन पर नियंत्रण खोने का भय है।
    उदाहरण के लिए: राज्यों द्वारा नियंत्रित पुलिस बल अनिवार्य संघीय निरीक्षण तंत्र का विरोध करते हैं।
  • प्रशासनिक जड़ता: कठोर पूछताछ की प्रथा के कारण पुलिस सुधार की प्रक्रिया धीमी बनी हुई है।
    उदाहरण के लिए: प्रकाश सिंह केस (2006) में पुलिस सुधारों का आदेश दिया गया था, फिर भी अधिकांश राज्यों में इनका कार्यान्वयन पिछड़ा हुआ है।
विधिक 

 

  • न्यायिक अनिच्छा: न्यायालय शक्तियों के पृथक्करण का हवाला देते हुए ऐसे कानून को अनिवार्य घोषित में हिचकिचाते हैं।
    उदाहरण के लिए: अश्विनी कुमार (2019) वाद में, उच्चतम न्यायालय ने संसद को यातना-विरोधी कानून बनाने का निर्देश देने से इनकार कर दिया।
  • कमजोर प्रवर्तन तंत्र: NHRC के पास गलती करने वाले अधिकारियों पर दंडात्मक कार्रवाई करने का अधिकार नहीं है।
    उदाहरण के लिए: NHRC केवल सिफारिशें जारी कर सकता है, जिससे हिरासत में हिंसा को रोकने में उसके फैसले अप्रभावी हो जाते हैं।
  • परस्पर विरोधी कानूनी प्रावधान: मौजूदा कानून, जैसे कि IPC की धारा 330 और 331, पहले से ही हिरासत में यातना के लिए दंड का प्रावधान करते हैं, लेकिन इनका प्रवर्तन नहीं हो पाता।
    उदाहरण के लिए: प्रक्रियागत खामियों के कारण हिरासत में मृत्यु के मामलों में दोषसिद्धि की दर बेहद कम है।
  • सबूतों के बोझ से संबंधित मुद्दे: पीड़ितों को हिरासत में यातना दिए जाने को साबित करना होगा, जिससे दोषसिद्धि कठिन हो जाती है।
कूटनीतिक

 

  • अंतरराष्ट्रीय जाँच: भारत को अपने मानवाधिकार रिकॉर्ड को लेकर एमनेस्टी और UNHRC जैसी वैश्विक निगरानी संस्थाओं से दबाव का सामना करना पड़ रहा है।
    उदाहरण के लिए: ब्रिटेन के उच्च न्यायालय ने संजय भंडारी के प्रत्यर्पण को अस्वीकार करते हुए भारत द्वारा अनुमोदन न करने का हवाला दिया।
  • संप्रभुता के साथ वैश्विक प्रतिबद्धताओं को संतुलित करना: भारत को घरेलू कानून प्रवर्तन लचीलेपन से समझौता किए बिना UNCAT सिद्धांतों को एकीकृत करना चाहिए।
    उदाहरण के लिए: सरकार का तर्क है कि भारत की कानूनी प्रणाली पहले से ही यातना के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करती है।
  • आर्थिक परिणाम: गैर-अनुपालन से व्यापार संबंध और अधिकार-संवेदनशील बाजारों से निवेश प्रभावित होता है।
    उदाहरण के लिए: अमेरिका अधिमान्य व्यापार लाभों को किसी देश के मानवाधिकार रिकॉर्ड से जोड़ता है, जिससे भारत के समझौते प्रभावित होते हैं।
  • कानून प्रवर्तन एजेंसियों का प्रतिरोध: पुलिस और सुरक्षा एजेंसियाँ यातना-विरोधी कानूनों को प्रभावी पुलिसिंग में बाधा के रूप में देखती हैं।
    उदाहरण के लिए:
    अधिकारियों का तर्क है कि पूछताछ पर कानूनी प्रतिबंध अपराध रोकथाम के प्रयासों को कमजोर कर देंगे।

आगे की राह 

  • व्यापक कानून: UNCAT के साथ सामंजस्य स्थापित और मानवाधिकार संरक्षण को मजबूत करने के लिए एक सख्त यातना-विरोधी कानून बनाना चाहिये। 
    • उदाहरण के लिए: 273वें विधि आयोग की रिपोर्ट ने कार्यान्वयन के लिए यातना-विरोधी विधेयक का मसौदा प्रदान किया।
  • न्यायिक निगरानी: मानवाधिकार मानदंडों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए हिरासत प्रथाओं की न्यायिक निगरानी को मजबूत करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: डी. के. बसु गाइडलाइंस, गिरफ्तारी और हिरासत के लिए अनिवार्य प्रक्रियाएँ निर्धारित करती हैं।
  • प्रशिक्षण एवं संवेदनशीलता: हिरासत में दुर्व्यवहार को रोकने के लिए कानून प्रवर्तन के लिए
    मानवाधिकार प्रशिक्षण का आयोजन करना चाहिए। 

    • उदाहरण के लिए: NHRC कार्यशालाएँ पुलिस को नैतिक पूछताछ विधियों के संबंध में शिक्षित करने पर केंद्रित होती हैं।
  • कूटनीतिक आश्वासन: चिंताओं का मुकाबला करने के लिए सक्रिय कूटनीति में संलग्न होना चाहिए तथा धीरे-धीरे UNCAT के साथ सामंजस्य स्थापित करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में भारत की स्वैच्छिक प्रतिबद्धताएँ वृद्धिशील प्रगति को दर्शाती हैं।
  • जवाबदेही तंत्र: हिरासत में यातना की शिकायतों की निगरानी और जाँच के लिए स्वतंत्र निरीक्षण निकायों की स्थापना करना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: मानव अधिकार उल्लंघन के विरुद्ध बाध्यकारी कार्रवाई करने के लिए NHRC के अधिकार को मजबूत करना चाहिए।

व्यापक यातना-विरोधी कानून बनाकर अपने संवैधानिक नैतिकता और कानूनी ढाँचे के बीच के अंतर को कम करना चाहिए। पुलिस की जवाबदेही को मजबूत करना, न्यायिक सुधारों को तेजी से आगे बढ़ाना और मानवाधिकार प्रशिक्षण सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है। UNCAT का अनुमोदन न केवल भारत की वैश्विक विश्वसनीयता को बढ़ाएगा बल्कि गरिमा, लोकतंत्र और कानून के शासन के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को भी मजबूत करेगा।

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