प्रश्न की मुख्य माँग
- दक्षिण-दक्षिण एकजुटता को प्रतिबिंबित करते हुए ब्रिक्स में भारत की भूमिका का वर्णन कीजिए।
- ब्रिक्स में भारत की भूमिका में पश्चिम के साथ संतुलित संबंधों का परीक्षण कीजिए।
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उत्तर
हाल ही में रियो में हुए ब्रिक्स शिखर सम्मेलन 2025 में, ईरान, संयुक्त अरब अमीरात, मिस्र और इथियोपिया जैसे नए सदस्यों के साथ अब 11 सदस्य देशों की संख्या के साथ, रियो घोषणा–पत्र जारी किया गया, जिसमें वैश्विक संस्थाओं में सुधार और वित्तीय सहयोग बढ़ाने का आह्वान किया गया। भारत का दृष्टिकोण एक रणनीतिक संतुलनकारी कार्य का उदाहरण है, जो वैश्विक दक्षिण की एकता और सुधार को बढ़ावा देता है, साथ ही पश्चिम के साथ रचनात्मक संबंध बनाए रखता है।
ब्रिक्स 2025 में भारत की भूमिका
- ग्लोबल साउथ प्रतिनिधित्व का समर्थक: भारत उभरती अर्थव्यवस्थाओं के हितों को प्रतिबिंबित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी वैश्विक संस्थाओं में सुधार की वकालत करता है।
- आर्थिक बहुध्रुवीयता के लिए प्रयास: भारत स्थानीय मुद्राओं में व्यापार करने तथा ‘वि-डॉलरीकरण’ को बढ़ावा देने के लिए न्यू डेवलपमेंट बैंक को मजबूत करने जैसी पहलों का समर्थन करता है।
- समावेशी और सतत् विकास का समर्थन: भारत जलवायु न्याय, महिलाओं के डिजिटल समावेशन, तथा AI और हरित प्रौद्योगिकी सहयोग का समर्थन करता है जैसा कि ब्रिक्स रियो घोषणा 2025 में परिलक्षित होता है।
- ऊर्जा और खनिज सहयोग के लिए समर्थन: तेल और खनिज समृद्ध नए सदस्यों (जैसे ईरान, यूएई) को शामिल करने के साथ, भारत महत्त्वपूर्ण आपूर्ति शृंखलाओं के लिए विविध साझेदारियाँ चाहता है।
- डिजिटल और अवसंरचना नेतृत्व: भारत ब्रिक्स ढाँचे के अंतर्गत डिजिटल सार्वजनिक वस्तुओं, फिनटेक और अवसंरचना वित्त में साउथ-साउथ सहयोग को बढ़ावा देता है।
पश्चिम के साथ संबंधों में संतुलन
- रणनीतिक तकनीक और व्यापार सहभागिता: वर्ष 2024 में अमेरिका के साथ भारत का व्यापार ~130 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया तथा सेमीकंडक्टर और नवीकरणीय ऊर्जा में साझेदारी महत्त्वपूर्ण बनी हुई है।
- रक्षा एवं सुरक्षा सहयोग: अमेरिका, फ्राँस और क्वाड राष्ट्रों के साथ रक्षा समझौते ब्रिक्स के भीतर भारत की गतिविधियों को संतुलित करते हैं।
- चीन के प्रति सतर्क रुख: सीमा पर तनाव और चीन पर आर्थिक निर्भरता, ब्रिक्स को पश्चिम विरोधी या चीन के नेतृत्व में बनने से रोकने के भारत के प्रयासों को आकार देती है।
- ब्लॉक विस्तार में भू-राजनीतिक विवेक: भारत ईरान और सऊदी अरब जैसे देशों के प्रवेश को लेकर सतर्क है तथा यह सुनिश्चित करना चाहता है कि ब्रिक्स विस्तार उसकी संतुलित विदेश नीति के अनुरूप हो।
- वैश्विक शासन में व्यावहारिकता: भारत वैचारिक दिखावा किए बिना बहुध्रुवीयता को बढ़ावा देने के लिए ब्रिक्स का उपयोग करता है तथा विकासात्मक आवश्यकताओं को नियम आधारित वैश्विक व्यवस्था के साथ संरेखित करता है।
निष्कर्ष
ब्रिक्स 2025 में भारत की स्थिति एक नाजुक संतुलन को दर्शाती है, जो ग्लोबल साउथ के सशक्तीकरण और संस्थागत सुधारों की वकालत करते हुए, पश्चिमी लोकतंत्रों के साथ रणनीतिक साझेदारी को सक्रिय रूप से बनाए रखता है। वर्ष 2026 में अध्यक्ष के रूप में, नई दिल्ली की सफलता ब्रिक्स को विकास के एक व्यावहारिक इंजन के रूप में प्रभावी ढंग से कार्य करने में सक्षम बनाने पर निर्भर करेगी, न कि एक वैचारिक प्रतिद्वंद्वी के रूप में, जो भारत के बहुध्रुवीय किंतु वैश्विक रूप से एकीकृत विश्व के दृष्टिकोण को मजबूत करे।
PW OnlyIAS विशेष
ब्रिक्स रियो 2025 घोषणा-पत्र की मुख्य विशेषताएँ
- BRICS ने उभरती अर्थव्यवस्थाओं का बेहतर प्रतिनिधित्व करने के लिए संयुक्त राष्ट्र, IMF और विश्व बैंक जैसी वैश्विक संस्थाओं में सुधार का आह्वान किया।
- समावेशी विकास, सतत् विकास और डिजिटल सहयोग पर जोर दिया गया।
- नेताओं ने विकास, महिलाओं के डिजिटल समावेशन तथा AI, हरित तकनीक और महत्त्वपूर्ण खनिजों में सहयोग के साथ संतुलित जलवायु कार्रवाई का समर्थन किया।
- इस समूह ने वन संरक्षण के लिए स्थायी समर्थन सुनिश्चित करने हेतु ट्रॉपिकल फॉरेस्ट फॉरएवर फंड (TFFF) का समर्थन किया।
- पश्चिमी देशों पर निर्भरता कम करना महत्त्वपूर्ण है, स्थानीय मुद्राओं में व्यापार को बढ़ावा देने, भुगतान प्रणालियों को एकीकृत करने और न्यू डेवलपमेंट बैंक को मजबूत करने की योजना है।
- ब्रिक्स ने वित्तीय प्रत्यास्थता बढ़ाने के लिए सीमा पार भुगतान प्रणाली और आकस्मिक रिजर्व व्यवस्था का विस्तार करने का प्रस्ताव रखा।
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