प्रश्न की मुख्य माँग
- इस बात पर प्रकाश डालिये कि किस प्रकार भारत का एक ड्रग–ट्रांजिट राष्ट्र से ड्रग उत्पादन केंद्र वाले राष्ट्र में परिवर्तित होना, हमारे जनसांख्यिकीय लाभांश के लिए खतरा बन रहा है।
- ड्रग्स के खतरे से उत्पन्न बहुआयामी चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये।
- इस संकट से निपटने के लिए एक व्यापक रूपरेखा सुझाइये।
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उत्तर
भारत का जनसांख्यिकी लाभांश जिसकी 68% आबादी कामकाजी आयु वर्ग (15-64 वर्ष) में है, भारत की एक महत्वपूर्ण आर्थिक संपत्ति है। हालाँकि, ड्रग उत्पादन केंद्र के रूप में इसकी बढ़ती भूमिका एक गंभीर खतरा उत्पन्न करती है। INCB की वार्षिक रिपोर्ट 2023 में भारत को अफीम के एक प्रमुख बाजार के रूप में दर्शाया गया है, जहाँ विश्व के लगभग 40% अफीम उपयोगकर्ता दक्षिण एशिया में हैं।
भारत का ड्रग ट्रांजिट राष्ट्र से ड्रग उत्पादन केंद्र में परिवर्तन, हमारे जनसांख्यिकीय लाभांश के लिए खतरा है
- घरेलू उपलब्धता में वृद्धि: स्थानीय स्तर पर ड्रग उत्पादन से ये अधिक सुलभ और सस्ते हो जाते हैं, जिससे युवाओं और कामकाजी आयु वर्ग के व्यक्तियों में इनकी लत की दर में वृद्धि होती है।
- उदाहरण के लिए: उत्तर प्रदेश में कसाना औद्योगिक क्षेत्र में मैक्सिकन कार्टेल द्वारा संचालित मेथ लैब ने भारत के मेथैम्फेटामाइन उत्पादन केंद्र में तब्दील होने का संकेत दिया, जिससे घरेलू नशीली दवाओं के दुरुपयोग में वृद्धि हुई।
- बढ़ती अपराध दरें: स्थानीय उत्पादन से ड्रग की उपलब्धता आसान हो जाती है और छोटी-मोटी चोरियाँ, संगठित अपराध और हिंसक अपराध बढ़ जाते हैं जिससे समुदाय अस्थिर हो जाते हैं और कार्यबल की उत्पादकता कम हो जाती है।
- स्वास्थ्य और कार्यबल पर प्रभाव: मादक द्रव्यों के सेवन से मानसिक स्वास्थ्य विकार, काम पर न जाना और उत्पादकता में कमी आती है, जिससे भारत की आर्थिक वृद्धि के लिए अपने
युवा कार्यबल का लाभ उठाने की क्षमता कम हो जाती है।
- उदाहरण के लिए: वर्ष 2022 की उच्चतम न्यायलय की रिपोर्ट में पाया गया कि 15.8 मिलियन भारतीय युवा (10-17 वर्ष की आयु) मादक पदार्थों की लत से जूझ रहे हैं, जिससे उनकी शिक्षा और भविष्य की रोजगार संभावनाएँ बाधित हो रही हैं।
- शैक्षिक संस्थानों के लिए खतरा: स्कूल और कॉलेज नशीली दवाओं के नेटवर्क द्वारा निशाना बनाए जा रहे हैं, जहाँ छात्र उपयोगकर्ता और विक्रेता दोनों की भूमिका निभा रहे हैं, जिससे शैक्षणिक प्रदर्शन और भविष्य में रोजगार पर असर पड़ रहा है।
- उदाहरण के लिए: बेंगलुरु में पुलिस ने नशीली दवाओं की तस्करी में संलिप्त कई कॉलेज छात्रों को गिरफ्तार किया, जिससे शैक्षणिक परिसरों में नशीले पदार्थ उपलब्ध कराने तथा युवाओं के भविष्य को नष्ट करने वाले एक व्यापक नेटवर्क का खुलासा हुआ।
- स्वास्थ्य सेवा और कानून प्रवर्तन पर आर्थिक दबाव: नशीली दवाओं से संबंधित बीमारियों और अपराधों का बोझ सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों पर भारी दबाव डालता है और अन्य महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों के लिए कानून प्रवर्तन संसाधनों की उपलब्धता को कम कर देता है।
नशीली दवाओं के खतरे से उत्पन्न बहुआयामी चुनौतियाँ
- अंतर्राष्ट्रीय कार्टेल घुसपैठ: विदेशी ड्रग सिंडिकेट भारत के रासायनिक और दवा उद्योगों का शोषण करते हैं, तथा देश को सिंथेटिक ड्रग हब में बदल देते हैं।
- उदाहरण के लिए: मेक्सिको के CJNG कार्टेल ने उत्तर प्रदेश के कसाना में एक औद्योगिक पैमाने पर मेथ लैब स्थापित की, जिससे कानून प्रवर्तन और सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौती उत्पन्न हो गई।
- सीमा और तटीय सुरक्षा में कमी: असुरक्षित सीमाओं के कारण अनियंत्रित मादक पदार्थों की तस्करी होती है, जिससे अवैध मादक पदार्थों के प्रसार को रोकना मुश्किल हो जाता है।
- उदाहरण के लिए: गुजरात में अडानी पोर्ट ड्रग बस्ट (वर्ष 2021) में 5,976 करोड़ रुपये मूल्य की 2,988 किलोग्राम हेरोइन बरामद हुई, जिसने ड्रग तस्करी के प्रति भारत की सुभेद्यता को उजागर किया।
- सामाजिक एवं पारिवारिक विघटन: नशीली दवाओं की लत से पारिवारिक झगड़े, घरेलू हिंसा और वित्तीय बर्बादी होती है, जिससे सामाजिक सामंजस्य और स्थिरता नष्ट होती है।
- उदाहरण के लिए: पंजाब में अफीम की लत ने पूरे गांवों को तबाह कर दिया है, जहाँ युवा बेरोजगारी और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहे हैं जिससे सामाजिक ताना-बाना बिगड़ रहा है।
- कानूनी और विनियामक अंतराल: वर्तमान नशीली दवाओं के विरोधी कानूनों में कठोर प्रवर्तन का अभाव है, भ्रष्टाचार और धीमी न्यायिक प्रक्रियाओं के कारण बार-बार अपराध करने वाले और संगठित सिंडिकेट फल-फूल रहे हैं।
- उदाहरण के लिए: नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (NDPS) अधिनियम के बावजूद, कानूनी खामियों के कारण कई गिरफ्तार तस्कर जमानत पाने में सफल हो जाते हैं, और अपना कारोबार जारी रखते हैं।
- मनोवैज्ञानिक और पुनर्वास संबंधी कमियां: भारत में पर्याप्त पुनर्वास केंद्रों और जागरूकता कार्यक्रमों का अभाव है, जिससे नशे की लत वाले लोगों के पास सुधार के लिए बहुत कम अवसर बचते हैं।
- उदाहरण के लिए: भारत में नशीली दवाओं के उपयोगकर्ताओं का केवल एक छोटा हिस्सा ही उचित नशामुक्ति उपचार प्राप्त कर पाता है। कई पुनर्वास केन्द्रों के पास या तो पर्याप्त धन नहीं है या फिर उनमें कुशल पेशेवरों की कमी है।
संकट से निपटने के लिए व्यापक रूपरेखा
- कानून प्रवर्तन को मजबूत करना: नशीली दवाओं की तस्करी के नेटवर्क को बाधित करने के लिए AI-संचालित सीमा निगरानी में निवेश करना चाहिए, मादक पदार्थों की खुफिया जानकारी साझा करनी चाहिए और तटवर्ती गश्ती को बढ़ाना चाहिए।
- लक्षित युवा जागरूकता कार्यक्रम: स्कूलों और कॉलेजों में नशीली दवाओं के खिलाफ शिक्षा अभियान लागू करना चाहिए और शीघ्र हस्तक्षेप व साथियों के नेतृत्व में जागरूकता पहल को बढ़ावा देना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: पंजाब का Buddy कार्यक्रम छात्रों को सहकर्मी शिक्षक के रूप में प्रशिक्षित करता है, जिससे किशोरों में नशीली दवाओं के प्रयोग में कमी आती है तथा जिम्मेदार व्यवहार को प्रोत्साहन मिलता है।
- समुदाय-आधारित पुनर्वास केंद्र: परामर्श, व्यावसायिक प्रशिक्षण और मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करने वाले सुलभ, सरकारी वित्तपोषित नशामुक्ति केंद्र स्थापित करने चाहिए।
- उदाहरण के लिए: मुंबई के मुक्तांगन पुनर्वास केंद्र ने व्यक्तिगत चिकित्सा और कौशल विकास कार्यक्रमों का उपयोग करके हजारों नशे के लत वाले लोगों का सफलतापूर्वक पुनर्वास किया है।
- सख्त औषधि विनियमन: सिंथेटिक औषधि उत्पादन में प्रयुक्त अग्रगामी रसायनों की निगरानी करनी चाहिए और सख्त लाइसेंसिंग व ट्रैकिंग तंत्र सुनिश्चित करना चाहिए।
- बहु-एजेंसी समन्वय: पुलिस, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और गैर सरकारी संगठनों को शामिल करते हुए एक एकीकृत कार्य बल की स्थापना करनी चाहिए, जिससे समग्र नीति कार्यान्वयन और डेटा-संचालित दवा नियंत्रण उपायों को सुनिश्चित किया जा सके।
- उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय औषधि निर्भरता उपचार केंद्र (AIIMS), नीतिगत निर्णयों और मध्यक्षेप रणनीतियों को बेहतर बनाने के लिए वैज्ञानिक अध्ययनों का उपयोग करते हुए कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ सहयोग करता है।
किसी भी देश का भविष्य उसके युवाओं के हाथों में होता है, इसलिए उन्हें नशे की लत से बचाना बहुत आवश्यक है। सख्त कानून प्रवर्तन, पुनर्वास, जागरूकता अभियान और वैश्विक सहयोग को मिलाकर एक व्यापक रणनीति इस संकट को कम कर सकती है। शिक्षा, रोज़गार के अवसरों और सामाजिक प्रत्यास्थता को बढ़ावा देकर भारत अपने जनसांख्यिकीय लाभांश को सुरक्षित कर सकता है और सतत विकास को आगे बढ़ा सकता है।
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