प्रश्न की मुख्य माँग
- परीक्षण कीजिए कि पश्चिम एशिया में लंबे समय से चल रहे संघर्ष, विशेषकर इजराइल-हमास युद्ध और संभावित रूप से इसके अधिक तीव्र होने से भारत की ऊर्जा सुरक्षा पर क्या प्रभाव पड़ सकता है।
- इन जोखिमों को कम करने के उपाय सुझाइये।
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उत्तर
पश्चिम एशिया भू-राजनीतिक अस्थिरता का एक पुराना केंद्र रहा है, जिसमें इजरायल-हमास युद्ध जैसे संघर्ष, क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए हमेशा से खतरा रहे हैं। भारत जो खाड़ी देशों से अपने तेल का लगभग 60% आयात करता है, इस क्षेत्र से होने वाले ऊर्जा आयात पर बहुत अधिक निर्भर करता है और इस वजह से ये लंबे समय तक चलने वाले संघर्ष भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए गंभीर जोखिम उत्पन्न करते हैं । व्यापार में व्यवधान, तेल की बढ़ती कीमतें और ऊर्जा अवसंरचना के लिए संभावित खतरे भारत की बढ़ती ऊर्जा माँग हेतु महत्वपूर्ण चिंताएँ हैं।
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भारत की ऊर्जा सुरक्षा पर इन दीर्घकालिक संघर्षों का प्रभाव
- तेल और गैस आपूर्ति शृंखलाओं में व्यवधान: पश्चिम एशिया में लंबे समय तक चलने वाले संघर्ष, वैश्विक तेल आपूर्ति विशेषकर सऊदी अरब और इराक जैसे खाड़ी देशों से होने वाली आपूर्ति को काफी हद तक बाधित कर सकते हैं।
- उदाहरण के लिए: गाजा संघर्ष ने पहले ही फारस की खाड़ी में शिपिंग लेन में व्यवधान उत्पन्न कर दिया है, जिससे तेल की कीमतें बढ़ गई हैं, जिसका असर भारत के ऊर्जा आयात पर पड़ रहा है।
- वैश्विक तेल कीमतों में वृद्धि: संघर्ष, विशेष रूप से इजराइल-हमास युद्ध, अक्सर वैश्विक बाजार में तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव का कारण बनते हैं, जिसका सीधा असर भारत जैसे आयातक देशों की ऊर्जा लागत पर पड़ता है।
- उदाहरण के लिए: अक्टूबर 2023 में गाजा संघर्ष शुरू होने के बाद, तेल की कीमतों में 5-6% की वृद्धि हुई, जिससे भारत के कच्चे तेल के आयात की लागत बढ़ गई और अर्थव्यवस्था पर और अधिक दबाव पड़ा।
- रणनीतिक तेल मार्गों के लिए खतरा: होर्मुज जलडमरूमध्य और बाब अल-मंडेब जैसे चोकपॉइंट, वैश्विक तेल व्यापार के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। पश्चिम एशिया में हो रहे संघर्ष इन रणनीतिक मार्गों के आसपास तनाव बढ़ा सकते हैं, जिससे भारत में तेल का प्रवाह बाधित हो सकता है।
- उदाहरण के लिए: सऊदी तेल संयंत्रों पर वर्ष 2019 के हमलों ने वैश्विक तेल आपूर्ति श्रृंखलाओं में अस्थायी व्यवधान उत्पन्न किया, जिससे भारत की भेद्यता बढ़ गई।
- मध्य पूर्व में भारतीय प्रवासियों पर प्रभाव: मध्य पूर्व में भारत के अधिकांश प्रवासी, विशेष रूप से लेबनान और फारस की खाड़ी जैसे संघर्ष क्षेत्रों में, दीर्घकालिक संघर्ष के दौरान जोखिम का सामना करते हैं जिससे संभावित रूप से प्रेषण प्रवाह बाधित होता है और अर्थव्यवस्था में तनाव उत्पन्न होता है।
- उदाहरण के लिए: वर्ष 2023 में, खाड़ी क्षेत्र ने भारत के $120 बिलियन के प्रेषण में लगभग 30% का योगदान दिया, जो विदेशी मुद्रा का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है।
- व्यापार मार्गों को प्रभावित कर रही क्षेत्रीय अस्थिरता: पश्चिम एशिया में हो रहे संघर्ष समुद्री, व्यापार मार्गों को बाधित कर सकते हैं, जिससे खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) देशों के साथ भारत के द्विपक्षीय व्यापार पर असर पड़ सकता है, जो ऊर्जा और गैर-ऊर्जा व्यापार दोनों के लिए महत्त्वपूर्ण है।
- उदाहरण के लिए: वर्ष 2023 में सऊदी तेल टैंकरों पर हुये हमलों ने शिपिंग लेन को बाधित कर दिया, जिससे खाड़ी देशों के साथ भारतीय व्यापार संबंधों के दीर्घकालिक आर्थिक नुकसान की संभावना उजागर हुई।
- ऊर्जा अवसंरचना के लिए सुरक्षा जोखिम में वृद्धि: संघर्ष के बढ़ने से मध्य पूर्व में भारत की ऊर्जा अवसंरचना, जैसे पाइपलाइन, रिफाइनरियाँ और बंदरगाहों के लिए सुरक्षा जोखिम बढ़ सकता है।
- वैश्विक ऊर्जा परिवर्तन पर प्रभाव: पश्चिम एशिया के भू-राजनीतिक तनाव, अक्षय ऊर्जा स्रोतों में संक्रमण में देरी कर सकते हैं, जिससे भारत जैसे देश जीवाश्म ईंधन पर निर्भर रह सकते हैं।
- उदाहरण के लिए: क्षेत्र में लंबे समय तक चलने वाले संघर्ष, ऊर्जा विविधीकरण प्रयासों में देरी ला सकते हैं और विशेषकर भारत के अक्षय ऊर्जा लक्ष्यों को प्रभावित कर सकते हैं क्योंकि भारत आयातित तेल और गैस पर निर्भर है।
भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए जोखिम कम करने के उपाय
- ऊर्जा स्रोतों में विविधता: पश्चिम एशिया पर निर्भरता कम करने के लिए भारत को अपने ऊर्जा स्रोतों में विविधता लानी चाहिए। इसमें अन्य तेल उत्पादक क्षेत्रों के साथ संबंधों का विस्तार करना और नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी बढ़ाना शामिल है।
- उदाहरण के लिए: भारत ने पहले ही तेल आयात बढ़ाने और खाड़ी पर निर्भरता कम करने के लिए रूस और अमेरिका जैसे देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी शुरू कर दी है।
- सामरिक पेट्रोलियम भंडार (SPR): भारत के सामरिक पेट्रोलियम भंडार (SPR) का विस्तार और सुदृढ़ीकरण यह सुनिश्चित करेगा कि वैश्विक तेल आपूर्ति में व्यवधान की अवधि के दौरान देश के पास बफर हो।
- उदाहरण के लिए: अल्पकालिक आपूर्ति व्यवधानों से अर्थव्यवस्था की रक्षा करने के लिए भारत के SPR, जिसमें वर्तमान में 5.3 मिलियन टन कच्चा तेल है, को बढ़ाया जा सकता है।
- नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश: जीवाश्म ईंधन पर दीर्घकालिक निर्भरता को कम करने के लिए, भारत को सौर, पवन और जल विद्युत ऊर्जा में निवेश बढ़ाना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा स्थापित क्षमता हासिल करना है , जिससे ऊर्जा सुरक्षा बढ़ेगी तथा जीवाश्म ईंधन के आयात में कमी आएगी।
- मजबूत राजनयिक संबंध बनाना: पश्चिम एशिया के बाहर अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे तेल उत्पादक देशों के साथ राजनयिक संबंधों को मजबूत करने से भारत को वैकल्पिक ऊर्जा आपूर्तिकर्ता मिल सकता है।
- उदाहरण के लिए: भारत ने नाइजीरिया और अंगोला जैसे अफ्रीकी देशों के साथ ऊर्जा सहयोग बढ़ाया है, जिससे वैकल्पिक कच्चे तेल स्रोतों तक उसकी पहुँच सुनिश्चित हुई है।
- समुद्री सुरक्षा में वृद्धि: अन्य देशों के साथ सहयोग के माध्यम से समुद्री सुरक्षा को मजबूत करने से फारस की खाड़ी और होर्मुज जलडमरूमध्य में महत्वपूर्ण व्यापार मार्गों की रक्षा की जा सकती है।
- उदाहरण के लिए: संयुक्त समुद्री बलों में भारत की भागीदारी ने अरब सागर में सुरक्षा को बेहतर बनाने में मदद की है, जिससे तेल आयात के लिए अति महत्त्वपूर्ण शिपिंग लेन की सुरक्षा हुई है।
- क्षेत्रीय सुरक्षा सहयोग: खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) देशों के साथ सुरक्षा सहयोग बढ़ाने से क्षेत्रीय संघर्षों के कारण ऊर्जा क्षेत्र में व्यवधानों के जोखिम को कम करने में मदद मिलेगी।
- उदाहरण के लिए: भारत की भारत-खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) वार्ता का उद्देश्य सुरक्षा सहयोग को मजबूत करना, व्यापार और ऊर्जा आपूर्ति में व्यवधानों के जोखिम को कम करना है।
- घरेलू ऊर्जा बाजार का विकास: तेल अन्वेषण और प्राकृतिक गैस विकास में निवेश के माध्यम से भारत के अपने घरेलू ऊर्जा उत्पादन का विस्तार करने से आयात पर निर्भरता कम होगी।
- उदाहरण के लिए: बंगाल की खाड़ी में अपतटीय तेल अन्वेषण पर भारत का ध्यान, घरेलू ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है जिससे क्षेत्रीय संघर्षों की भेद्यता कम हो सकती है।
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भारत की ऊर्जा सुरक्षा, पश्चिम एशियाई क्षेत्र की स्थिरता से अभिन्न रूप से जुड़ी हुई है। जबकि हाल ही में हुये इजरायल-हमास संघर्ष में हुई वृद्धि ने गंभीर चुनौतियाँ प्रस्तुत की हैं। भारत अपने ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाकर, अपने रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार को मजबूत करके, ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देकर और सक्रिय कूटनीति में शामिल होकर इन जोखिमों को कम कर सकता है। बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाकर, भारत अपनी विकास कर रही अर्थव्यवस्था के लिए एक विश्वसनीय और सस्ती ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित कर सकता है।
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