प्रश्न की मुख्य माँग
- भारत के संदर्भ में वाशिंगटन सहमति की तुलना में बीजिंग सहमति के सकारात्मक पहलू।
- भारत के संदर्भ में वाशिंगटन सहमति की तुलना में बीजिंग सहमति की सीमाएँ।
- भारत के लिए आगे की राह।
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उत्तर
बीजिंग सहमति राज्य-नेतृत्व वाले पूँजीवाद और स्थिरता पर बल देती है, जबकि वाशिंगटन सहमति उदारीकरण और राज्य की न्यूनतम भूमिका को प्राथमिकता देती है। इसकी सफलता इसे भारत जैसे लोकतंत्रों के लिए भी आकर्षक बनाती है, परंतु इससे अधिनायकवादी झुकाव की आशंकाएँ भी उत्पन्न होती हैं।
भारत के संदर्भ में वाशिंगटन सहमति पर बीजिंग सहमति से मिलने वाले सकारात्मक पहलू
- राज्य-नेतृत्व वाला विकास मॉडल: बीजिंग सहमति आर्थिक विकास में राज्य के हस्तक्षेप को मान्यता देती है, जो भारत की मिश्रित अर्थव्यवस्था की नीति से सुमेलित है।
- संकट के समय लचीलापन: वाशिंगटन सहमति के कठोर राजकोषीय अनुशासन के विपरीत, बीजिंग दृष्टिकोण संकट के दौरान सार्वजनिक व्यय में लचीलापन देता है।
- उदाहरण: कोविड-19 महामारी के दौरान भारत ने राजकोषीय घाटे की सीमाओं का सख्ती से पालन किए बिना कल्याणकारी योजनाओं और प्रोत्साहन पैकेज का विस्तार किया।
- रणनीतिक औद्योगिक नीति: राज्य पूँजीवाद रक्षा और अवसंरचना जैसे रणनीतिक क्षेत्रों का समर्थन करता है, जो भारत के दीर्घकालिक लक्ष्यों के लिए महत्त्वपूर्ण है।
- ज्ञान-आधारित विकास: चीन का मॉडल मानव पूँजी और अनुसंधान–विकास में निवेश पर बल देता है, जिसे भारत भी सतत् विकास हेतु अपना सकता है।
- उदाहरण: डिजिटल इंडिया और AI मिशन पर भारत का ध्यान चीन की ज्ञान-आधारित वृद्धि के ढाँचे से सुमेलित है।
- वैश्विक दबावों का संतुलन: बीजिंग सहमति पश्चिम-प्रधान वित्तीय संस्थानों के विकल्प उपलब्ध कराती है, जिससे भारत को रणनीतिक स्वायत्तता मिलती है।
- उदाहरण: BRICS न्यू डेवलपमेंट बैंक में भारत की भागीदारी IMF–विश्व बैंक प्रभुत्व से परे जाने का संकेत देती है।
भारत के संदर्भ में वाशिंगटन सहमति की तुलना में बीजिंग सहमति की सीमाएँ
- लोकतांत्रिक स्वतंत्रताओं का क्षरण: अत्यधिक राज्य नियंत्रण अधिकारों और स्वतंत्रताओं को सीमित कर सकता है तथा निगरानी बढ़ाकर भारत के लोकतांत्रिक ढाँचे को कमजोर कर सकता है।
- उदाहरण: असहमति के विरुद्ध जाँच एजेंसियों के बढ़ते उपयोग को लेकर चिंताएँ।
- क्रोनी कैपिटलिज्म: राज्य-नेतृत्व मॉडल अक्सर कुछ चुनिंदा उद्योगपतियों को लाभ पहुँचाते हैं, जिससे आर्थिक असमानता और प्रतिस्पर्द्धा में कमी आती है।
- उदाहरण: भारत के अवसंरचना और ऊर्जा क्षेत्रों में कुछ चुनिंदा कारोबारी घरानों को प्राथमिकता दिए जाने के आरोप।
- अधिनायकवाद पर वैश्विक अविश्वास: अधिनायकवादी प्रवृत्तियों को अपनाने से भारत की लोकतांत्रिक साख वैश्विक स्तर पर प्रभावित हो सकती है।
- राज्य पर अति-निर्भरता: अति-केंद्रीकरण से बाजार की दक्षता और नवाचार कम हो सकते हैं, जिससे दीर्घकालिक वृद्धि धीमी हो सकती है।
- भूराजनीतिक जोखिम: बीजिंग शैली के राज्य पूँजीवाद से अत्यधिक समीपता, भारत के उन साझेदारों में संदेह उत्पन्न कर सकती है, जो अमेरिका के साथ गठजोड़ में हैं।
- उदाहरण: QUAD में भारत की भागीदारी से लोकतांत्रिक मूल्यों और आर्थिक व्यवहारवाद के बीच संतुलन आवश्यक है।
भारत के लिए आगे की राह
- शासन का हाइब्रिड मॉडल: बाजार की दक्षता और लक्षित राज्य समर्थन को मिलाकर संतुलित नीति अपनाना।
- उदाहरण: उदारीकरण को जारी रखते हुए रक्षा और ऊर्जा जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा क्षेत्रों की रक्षा।
- लोकतांत्रिक संस्थाओं की सुरक्षा: विकास लक्ष्यों का पीछा करते हुए संस्थागत स्वतंत्रता को सुरक्षित रखना, ताकि अधिनायकवादी प्रवृत्तियाँ रोकी जा सकें।
- समावेशी आर्थिक विकास: क्रोनी कैपिटलिज्म से बचाव हेतु पारदर्शी नीतियाँ और सभी उद्यमों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करना।
- मानव पूँजी पर फोकस: शिक्षा, स्वास्थ्य और कौशल विकास को प्राथमिकता देकर चीन जैसे ज्ञान-आधारित समाज का निर्माण करना, किंतु लोकतांत्रिक परिधि के भीतर।
- उदाहरण: स्किल इंडिया और नई शिक्षा नीति (NEP 2020) भारत की जनसांख्यिकीय क्षमता को मजबूत करते हैं।
- रणनीतिक वैश्विक स्थिति: बहु-संरेखित (multi-aligned) विदेश नीति अपनाना, जिससे बीजिंग और वाशिंगटन दोनों से सीख लेते हुए संप्रभुता पर समझौता न हो।
- उदाहरण: BRICS, QUAD और G20 के साथ भारत का एक साथ जुड़ाव इस संतुलित दृष्टिकोण को दर्शाता है।
निष्कर्ष
बीजिंग सहमति राज्य-नेतृत्व विकास, रणनीतिक औद्योगिक नीति और संकट-कालीन लचीलापन जैसे लाभ दर्शाती है, किंतु इसकी अधिनायकवादी प्रवृत्तियाँ लोकतंत्र, स्वतंत्रताओं और वैश्विक विश्वास को खतरे में डाल सकती हैं। भारत एक हाइब्रिड दृष्टिकोण अपनाकर—बाजार की दक्षता और लक्षित राज्य समर्थन का संयोजन करते हुए—संस्थाओं की रक्षा कर सतत् विकास और संप्रभुता सुनिश्चित कर सकता है।
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