Q. न्यायिक स्वतंत्रता का उपयोग सार्वजनिक जवाबदेही के विरुद्ध ढाल के रूप में नहीं किया जा सकता। न्यायपालिका के भीतर नैतिक शासन सुनिश्चित करने में न्यायिक स्वायत्तता और पारदर्शिता के बीच संतुलन पर चर्चा कीजिए। (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • चर्चा कीजिए कि न्यायिक स्वतंत्रता को सार्वजनिक जवाबदेही के विरुद्ध ढाल के रूप में किस प्रकार उपयोग किया जा सकता है।
  • न्यायपालिका के भीतर नैतिक शासन सुनिश्चित करने में न्यायिक स्वायत्तता और पारदर्शिता के बीच संतुलन पर चर्चा कीजिए।
  • इस संतुलन को मजबूत करने के उपाय सुझाइये।

उत्तर

भारत की न्यायपालिका संविधान की रक्षा करने और नियंत्रण व संतुलन बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हालाँकि, हाल की घटनाओं से पता चलता है कि न्यायिक स्वतंत्रता का इस्तेमाल कभी-कभी कदाचार को सार्वजनिक जवाबदेही से बचाने के लिए किया जाता है। नैतिक शासन सुनिश्चित करने और जनता का विश्वास बहाल करने के लिए एक पारदर्शी, संतुलित ढाँचे  की आवश्यकता है।

न्यायिक स्वतंत्रता का समर्थन करने वाले संवैधानिक और कानूनी प्रावधान

  • कार्यकाल की सुरक्षा: अनुच्छेद 124(4) और अनुच्छेद 217 में न्यायाधीशों को केवल सिद्ध कदाचार या अक्षमता के आधार पर संसदीय महाभियोग के माध्यम से हटाने का प्रावधान है।
  • वित्तीय स्वायत्तता: अनुच्छेद 112 और अनुच्छेद 202 यह सुनिश्चित करते हैं कि न्यायाधीशों के वेतन और पेंशन का भुगतान विधायी मत के दायरे से बाहर भारत की संचित निधि पर भारित किया जाएगा।
  • न्यायिक समीक्षा की शक्ति: अनुच्छेद 13 और अनुच्छेद 32 न्यायालयों को मूल संरचना सिद्धांत को कायम रखते हुए असंवैधानिक कानूनों और कार्यकारी कार्यों की समीक्षा करने और उन्हें रद्द करने की शक्ति प्रदान करते हैं।
  • अवमानना शक्तियाँ: अनुच्छेद 129 और अनुच्छेद 215 उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों को न्यायिक प्राधिकार और गरिमा को बनाए रखते हुए न्यायालय की अवमानना के लिए दंडित करने का अधिकार प्रदान करते हैं।

न्यायिक स्वतंत्रता का उपयोग जवाबदेही के विरुद्ध ढाल के रूप में किया जाता है

  • अपारदर्शी नियुक्ति प्रक्रिया: कॉलेजियम प्रणाली, बाह्य निगरानी या पारदर्शिता के बिना कार्य करती है।
    • उदाहरण के लिए, 2015 में सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायिक नियुक्तियों में संसदीय भूमिका का विरोध करते हुए NJAC अधिनियम को रद्द कर दिया था।
  • गुप्त कदाचार जाँच : आंतरिक जाँच  में पारदर्शिता और सार्वजनिक प्रकटीकरण का अभाव होता है।
    • उदाहरण के लिए, वर्ष 2024 में न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के आवास पर नकदी पाई गई , फिर भी जाँच  रिपोर्ट का खुलासा नहीं किया गया।
  • RTI परिहार: उच्च न्यायपालिका, संस्थागत स्वतंत्रता का हवाला देते हुए, सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत पहुँच  को सीमित करती है।
    • उदाहरण के लिए, वर्ष 2019 के दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद  सर्वोच्च न्यायालय ने RTI के तहत कॉलेजियम रिकॉर्ड जारी करने में संकोच किया।
  • बिना समीक्षा के आरोपों को खारिज करना: आरोपों को बिना किसी स्पष्टीकरण के खारिज कर दिया जाता है।
    • उदाहरण के लिए, वर्ष 2019 में CJI रंजन गोगोई के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायतों को अपारदर्शी तरीके से खारिज कर दिया गया था।
  • प्रदर्शन का कोई सार्वजनिक लेखा-परीक्षण नहीं: न्यायाधीशों का मूल्यांकन सार्वजनिक क्षेत्र में उनकी दक्षता या ईमानदारी के आधार पर नहीं किया जाता है।

नैतिक शासन के लिए स्वायत्तता और पारदर्शिता में संतुलन

  • संस्थागत स्वतंत्रता बनाम लोकतांत्रिक जाँच: न्यायिक स्वायत्तता राजनीतिक हस्तक्षेप से सुरक्षा प्रदान करती है, फिर भी अलगाव अस्पष्टता को जन्म देता है।
    • उदाहरण के लिए, कॉलेजियम की गोपनीयता स्वतंत्रता की रक्षा करती है, लेकिन इससे भाई-भतीजावाद के आरोप भी लगे हैं।
  • पूछताछ में गोपनीयता बनाम जानने का अधिकार: आंतरिक तंत्र सार्वजनिक जवाबदेही की तुलना में गोपनीयता को प्राथमिकता देता है।
    • उदाहरण के लिए, ‘इन-हाउस प्रक्रिया’ कदाचार रिपोर्ट को गुप्त रखती है, यहाँ तक कि न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा जैसे मामलों में भी।
  • बाह्य निगरानी से स्वतंत्रता बनाम सार्वजनिक विश्वास: न्यायिक स्वतंत्रता निष्पक्षता सुनिश्चित करती है, लेकिन अनियंत्रित शक्ति से मनमानी का खतरा होता है।
    • उदाहरण के लिए, न्यायमूर्ति सूर्यकांत के मामले में भ्रष्टाचार के दावों की जाँच नहीं की गई, तथा स्थिति का सार्वजनिक खुलासा भी नहीं किया गया।
  • संवैधानिक भूमिका बनाम पारदर्शिता मानदंड: न्यायपालिका की अद्वितीय संवैधानिक भूमिका, स्वायत्तता प्रदान करती है, लेकिन इसमें पारदर्शिता के लिए स्पष्ट मानकों का अभाव है।
    • उदाहरणार्थ, CAG या ECI जैसे संवैधानिक पदों के विपरीत, न्यायिक खुलासे असंगत और स्वैच्छिक होते हैं।
  • आंतरिक जवाबदेही बनाम बाह्य तंत्र: न्यायाधीशों का तर्क है कि सहकर्मी-आधारित जवाबदेही पर्याप्त है, लेकिन स्वतंत्र जाँच  का अभाव वैधता को कमजोर करता है।
    • उदाहरण के लिए, न्यायपालिका स्वतंत्रता के क्षरण के भय से न्यायिक आयोगों जैसे बाह्य निरीक्षण का विरोध करती है।

संतुलन को मजबूत करने के उपाय (अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं का उपयोग करके)

  • आंतरिक प्रक्रिया को संशोधित कर वैधानिक तंत्र बनाया जाएगा: कानून समर्थित शिकायत तंत्र की स्थापना की जाएगी।
    • उदाहरण के लिए, कनाडाई न्यायिक परिषद एक संरचित, सार्वजनिक प्रक्रिया के माध्यम से कदाचार की जाँच करती है।
  • न्यायिक लोकपाल मॉडल अपनाएँ: एक स्वतंत्र लोकपाल शिकायतें प्राप्त कर सकता है और उनकी समीक्षा कर सकता है।
    • उदाहरणार्थ. स्वीडन, न्यायपालिका सहित सभी शाखाओं की जाँच के लिए संसदीय लोकपाल का उपयोग करता है ।
  • न्यायाधीशों द्वारा वार्षिक संपत्ति प्रकटीकरण: अनिवार्य सार्वजनिक घोषणाओं के माध्यम से नैतिक अखंडता को बढ़ावा देना।
    • उदाहरण के लिए, केन्या में न्यायाधीशों को नैतिकता एवं भ्रष्टाचार निरोधक आयोग के समक्ष अपनी सम्पत्ति का वार्षिक विवरण देना होता है।
  • प्रदर्शन डैशबोर्ड प्रकाशित करना: मामले के निपटान पर न्यायाधीश-वार डेटा दिखाने वाले डिजिटल डैशबोर्ड बनाना।
    • उदाहरणार्थ सिंगापुर न्यायपालिका नियमित रूप से न्यायालय के प्रदर्शन के आंकड़े प्रकाशित करती है, जिससे पारदर्शिता और योजना में सुधार होता है।
  • निरीक्षण समितियों में सार्वजनिक भागीदारी: कदाचार समीक्षा पैनल में आम सदस्यों को शामिल करें।
    • उदाहरण के लिए, न्यूजीलैंड में न्यायिक आचरण आयुक्त प्रणाली में निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए गैर-न्यायिक सदस्यों को भी शामिल किया जाता है।

न्यायिक स्वतंत्रता को गोपनीयता का आश्रय नहीं बनना चाहिए। स्वायत्तता और पारदर्शिता दोनों में निहित एक संतुलित ढाँचा  लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने, जनता का विश्वास बहाल करने और यह सुनिश्चित करने के लिए महत्त्वपूर्ण है कि न्यायपालिका स्वतंत्रता और जिम्मेदारी दोनों के साथ काम करे। नैतिक शासन को मजबूत करना एक विकल्प नहीं है, यह एक आवश्यकता है।

To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

Need help preparing for UPSC or State PSCs?

Connect with our experts to get free counselling & start preparing

Aiming for UPSC?

Download Our App

      
Quick Revise Now !
AVAILABLE FOR DOWNLOAD SOON
UDAAN PRELIMS WALLAH
Comprehensive coverage with a concise format
Integration of PYQ within the booklet
Designed as per recent trends of Prelims questions
हिंदी में भी उपलब्ध
Quick Revise Now !
UDAAN PRELIMS WALLAH
Comprehensive coverage with a concise format
Integration of PYQ within the booklet
Designed as per recent trends of Prelims questions
हिंदी में भी उपलब्ध

<div class="new-fform">






    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.