Q. केरल सरकार ने हाल ही में वन्य जीव संरक्षण (केरल संशोधन) विधेयक 2025 प्रस्तुत किया है, जो एक ऐतिहासिक कदम है जिसका उद्देश्य वन्यजीव संरक्षण का महत्त्वपूर्ण अधिकार राज्य को हस्तांतरित करना है। भारत में पर्यावरणीय शासन पर ऐसी शक्तियों के हस्तांतरण के निहितार्थों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • शक्तियों के हस्तांतरण के सकारात्मक निहितार्थ
  • शक्तियों के हस्तांतरण के नकारात्मक निहितार्थ
  • आगे की राह।

उत्तर

केरल ने हाल ही में वन्य जीव संरक्षण (केरल संशोधन) विधेयक 2025 प्रस्तुत किया है ताकि बढ़ते मानव-वन्यजीव संघर्षों को संबोधित किया जा सके और राज्य को वन्यजीव प्रबंधन पर अधिक अधिकार प्रदान किए जा सकें। यह विधेयक संदर्भ-विशिष्ट कार्रवाई को सक्षम बनाने, अधिकारियों को त्वरित रूप से कार्य करने का अधिकार देने और स्थानीय स्तर पर संरक्षण संबंधी निर्णय लेने की क्षमता को बढ़ाने का उद्देश्य रखता है।

राज्यों को अधिकार सौंपने के सकारात्मक प्रभाव

  • संदर्भ-विशिष्ट प्रबंधन:  यह राज्यों को स्थानीय मानव-वन्यजीव संघर्षों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने में सक्षम बनाता है।
    • उदाहरण: केरल अब खेतों में जंगली सूअर के खतरे का प्रबंधन केंद्र की अनुमति की प्रतीक्षा किए बिना कर सकता है।
  • त्वरित निर्णय-निर्माण:  आपातकालीन स्थितियों में नौकरशाही विलंब को कम करता है।
    • उदाहरण: यदि कोई पशु मनुष्यों पर हमला करता है, तो मुख्य वन्यजीव वार्डन तुरंत कार्रवाई कर सकता है।
  • जवाबदेही में वृद्धि: राज्य-स्तरीय अधिकार स्थानीय संरक्षण परिणामों के लिए जिम्मेदारी को बढ़ाता है।
    • उदाहरण: जिला वन अधिकारी सीधे वन्यजीव क्षति को कम करने के लिए उत्तरदायी होंगे।
  • संरक्षण में नवाचार: यह सह-अस्तित्व के लिए स्थानीय रूप से अनुकूलित रणनीतियों को प्रोत्साहित करता है।
    • उदाहरण: केरल गैर-घातक उपाय जैसे विद्युत बाड़ या स्थानांतरण कार्यक्रम शुरू कर सकता है।
  • संघीय सहयोग में मजबूती: यह पारिस्थितिकी प्राथमिकताओं पर केंद्र-राज्य संवाद को बढ़ावा देता है।
    • उदाहरण: ‘हानिकारक’ घोषित किए गए जानवरों पर राज्य की रिपोर्टें राष्ट्रीय नीतियों में समायोजन को सूचित कर सकती हैं।

राज्यों को अधिकार सौंपने के नकारात्मक प्रभाव

  • मानकों में असंगति का जोखिम: विभिन्न राज्य अलग-अलग स्तर की सुरक्षा लागू कर सकते हैं।
    • उदाहरण: केरल में बोनट मकाक की सुरक्षा घटाना राष्ट्रीय दिशा-निर्देशों से टकरा सकता है।
  • संभावित अतिरेक: अधिकार का उपयोग पारिस्थितिकी आवश्यकता के बजाय राजनीतिक लाभ के लिए किया जा सकता है।
    • उदाहरण: कुछ प्रजातियों को चुनावी लाभ के लिए ‘हानिकारक’ घोषित करना दीर्घकालिक संरक्षण को कमजोर कर सकता है।
  • पारदर्शिता में कमी: स्थानीय स्तर पर लिए गए निर्णयों में स्पष्ट, डेटा-आधारित मानदंडों की कमी हो सकती है।
    • उदाहरण: जंगली सूअरों को मारने के निर्णय बिना सार्वजनिक परामर्श के लिए जा सकते हैं।
  • संरक्षण प्रयासों का विखंडन: अधिकारों का विकेंद्रीकरण राष्ट्रीय मानकों को कमजोर कर सकता है। राज्यीय संरक्षण प्रवासन करने वाली प्रजातियों को खतरे में डाल सकता है।
  • मानव-वन्यजीव संघर्ष में वृद्धि:  गैर-घातक विकल्पों की जाँच किए बिना तेज घातक उपाय अपनाने से सह-अस्तित्व के बजाय हिंसक प्रतिक्रिया को सामान्य बना सकता है।

आगे की राह 

  • राष्ट्रीय मानक बनाए रखना:  सुनिश्चित करना कि केंद्रीय अधिनियम के अंतर्गत न्यूनतम सुरक्षा स्तर कायम रहें।
  • डेटा-आधारित निर्णय: स्थानांतरण या अन्य हस्तक्षेपों का आधार वैज्ञानिक शोध और पारिस्थितिकी डेटा पर होना चाहिए।
  • गैर-घातक उपायों को बढ़ावा:  बाड़, पुनर्वास, प्रतिरोधक और आवास प्रबंधन के माध्यम से सह-अस्तित्व को प्रोत्साहित करना।
  • पारदर्शी प्रोटोकॉल: जवाबदेही बनाए रखने के लिए मानदंडों, प्रक्रियाओं और निर्णयों का सार्वजनिक रूप से संप्रेषण करना।
  • केंद्र-राज्य सहयोग: नियमित संवाद और संयुक्त योजना के माध्यम से राज्य पहलों को राष्ट्रीय संरक्षण लक्ष्यों के अनुरूप करना।

निष्कर्ष

वन्य जीवों पर अधिकारों का विकेंद्रीकरण पर्यावरणीय प्रशासन में उत्तरदायित्व, नवाचार और त्वरित प्रतिक्रिया को बढ़ा सकता है। लेकिन राष्ट्रीय संरक्षण मानकों की रक्षा, पारदर्शिता सुनिश्चित करना और गैर-घातक, डेटा-आधारित रणनीतियों को बढ़ावा देना आवश्यक है ताकि राज्य स्वायत्तता तथा भारत की पारिस्थितिकी प्रतिबद्धताओं के बीच संतुलन बनाए रखा जा सके एवं सतत् मानव-वन्यजीव सह-अस्तित्व को सुनिश्चित किया जा सके।

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