प्रश्न की मुख्य माँग
- वन अधिकार अधिनियम, 2006 की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- वन अधिकार अधिनियम, 2006 के कार्यान्वयन से संबंधित प्रमुख मुद्दों का परीक्षण कीजिए।
- चर्चा कीजिए कि किस प्रकार ये चुनौतियाँ अधिक लोकतांत्रिक वन प्रशासन संरचना की आवश्यकता को उजागर करती हैं।
- आगे की राह लिखिये।
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उत्तर
वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006, भूमि और संसाधनों पर वन-निवासी समुदायों के अधिकारों को मान्यता देकर ऐतिहासिक अन्याय को दूर करने के लिए लागू किया गया था। लोकतांत्रिक वन शासन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बनाया गया यह अधिनियम, व्यक्तिगत और सामुदायिक दोनों प्रकार के अधिकारों को मान्यता देते हुए वन प्रबंधन में स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहित करता है। इसके प्रगतिशील ढांचे के बावजूद, कार्यान्वयन संबंधी चुनौतियाँ इसकी पूरी क्षमता का उपयोग करने में बाधा डालती हैं जिसके परिणामस्वरूप इससे संबंधित अधिक समावेशी दृष्टिकोण की आवश्यकता प्रतीत होती है।
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वन अधिकार अधिनियम, 2006 की मुख्य विशेषताएँ
- व्यक्तिगत अधिकारों की मान्यता: FRA, व्यक्तिगत वनवासियों के पैतृक भूमि पर खेती करने और निवास करने के अधिकार को मान्यता देता है, जिससे कानूनी सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
- उदाहरण के लिए: किसी भी सदस्य या समुदाय द्वारा वन अधिकारों का दावा किया जा सकता है जिसने 13 दिसंबर, 2005 से पहले कम से कम तीन पीढ़ियों (75 वर्ष) तक मुख्य रूप से वास्तविक आजीविका संबंधी आवश्यकताओं के लिए वन भूमि पर निवास किया हो।
- सामुदायिक वन अधिकार (CFR): यह अधिनियम समुदायों को पारंपरिक सीमाओं के भीतर
वन संसाधनों की रक्षा, प्रबंधन और उनका उपयोग करने का अधिकार देता है।
- उदाहरण के लिए: FRA वन-निवासी समुदायों को बेदखली से बचाता है और उन्हें कानूनी अधिकारों का आनंद लेते हुए अपनी पारंपरिक भूमि पर रहने की अनुमति देता है।
- अधिकारों के प्रकार: इस अधिनियम में चार प्रकार के अधिकार परिभाषित किये गये हैं- स्वामित्व अधिकार, उपयोग अधिकार, राहत एवं विकास अधिकार तथा वन प्रबंधन अधिकार।
- निर्णय लेने वाला प्राधिकारी: ग्राम सभा, वनवासियों को दिए जाने वाले व्यक्तिगत/सामुदायिक वन अधिकारों या दोनों की प्रकृति और सीमा निर्धारित करने की प्रक्रिया आरंभ करने वाला प्राधिकारी है।
- लोकतांत्रिक वन्यजीव संरक्षण: इस अधिनियम में वन भूमि को हस्तांतरित करने के लिए समुदाय की सहमति की आवश्यकता होती है, जिससे संरक्षण प्रयासों में लोकतांत्रिक भागीदारी को बढ़ावा मिलता है।
- उदाहरण के लिए: नियमगिरि वाद (2013) में, उच्चतम न्यायालय ने इस अधिकार को बरकरार रखा, जिससे स्थानीय जनजातियों को प्रस्तावित खनन परियोजना पर निर्णय लेने की अनुमति मिली।
वन अधिकार अधिनियम, 2006 के कार्यान्वयन से संबंधित प्रमुख मुद्दे
- प्रशासनिक उदासीनता: धीमी प्रक्रिया और अपारदर्शी अस्वीकृति के परिणामस्वरूप अधिकार संबंधी दावों को आंशिक या स्वच्छंद रूप से मान्यता दी जाती है, जिससे समुदाय निराश हो जाते हैं।
- उदाहरण के लिए: जनजातीय मामलों के मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, 30 नवंबर, 2022 तक वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006 के तहत भूमि पर किए गए सभी दावों में से 38% से अधिक दावे खारिज कर दिए गए ।
- वन विभाग का विरोध: वन प्रशासन अक्सर FRA को अपने नियंत्रण के लिए खतरा मानती है और सामुदायिक नेतृत्व वाले वन प्रबंधन का विरोध करती है।
- उदाहरण के लिए: इस अधिनियम ने प्रारंभ में स्थानीय समुदायों को अधिकार सौंपे, लेकिन वर्ष 2000 के दशक के मध्य में, भारत की राष्ट्रीय स्वदेशी नीति बॉटम-अप दृष्टिकोण से हटकर आदिवासी उप-योजना (TSP) जैसे टॉप-डाउन दृष्टिकोण में बदल गई।
- राजनीतिक हस्तक्षेप: राजनेताओं ने कभी-कभी ऐतिहासिक अन्याय का वास्तविक रूप से समाधान करने के बजाय अतिक्रमण को विनियमित करने हेतु FRA का उपयोग किया है ।
- लाभार्थियों में अपर्याप्त जागरूकता: कई पात्र व्यक्ति और समुदाय वन अधिकार अधिनियम के लाभों से अनभिज्ञ हैं, जिससे दावा प्रस्तुत करने और अधिकारों के बारे में जागरूकता सीमित हो जाती है।
- उदाहरण के लिए: वर्ष 2021 के एक अध्ययन के अनुसार ओडिशा के कंधमाल जिले में, 60% पात्र जनजातीय परिवार वन अधिकार अधिनियम के प्रावधानों से अनभिज्ञ थे।
- राज्यों में असमान कार्यान्वयन: जबकि कुछ राज्यों ने इस संबंध में प्रगति दिखाई है, अन्य पिछड़े हुए हैं, जिससे सामुदायिक अधिकारों के प्रवर्तन में असंगतताएँ उत्पन्न हो रही हैं।
- उदाहरण के लिए: CFR मान्यता के मामले में महाराष्ट्र सबसे आगे है, लेकिन असम जैसे अन्य राज्यों की CFR उपलब्धियाँ न्यूनतम हैं।
अधिक लोकतांत्रिक वन प्रशासन संरचना की आवश्यकता
- सामुदायिक भागीदारी में वृद्धि: समुदायों को निर्णय लेने की अधिक शक्ति देने से जवाबदेही सुनिश्चित होती है और वन प्रबंधन स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप होता है।
- उदाहरण के लिए: नियमगिरि हिल्स वाद (2013) ने यह दर्शाया कि किस प्रकार सामुदायिक भागीदारी पारिस्थितिक और सांस्कृतिक हितों की रक्षा कर सकती है।
- स्थानीय संस्थाओं का सशक्तिकरण: लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था, ग्राम सभा जैसी स्थानीय संस्थाओं को सक्रिय भूमिका निभाने में सक्षम बनाती है, जिससे विकेंद्रीकृत वन प्रबंधन को मजबूती मिलती है।
- उदाहरण के लिए: महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में ग्राम सभाएं, CFR के तहत अपने वनों का प्रबंधन करती हैं, जो लोकतांत्रिक शासन का एक आदर्श स्थापित करता है।
- प्रशासनिक नियंत्रण में कमी: नियंत्रण को प्रशासनिक एजेंसियों से सामुदायिक हितधारकों के पास स्थानांतरित करने से प्रशासनिक बाधाएँ दूर होती हैं और दक्षता को बढ़ावा मिलता है।
- संरक्षण प्रयासों में अधिक जवाबदेही: सामुदायिक नेतृत्व वाले संरक्षण से यह सुनिश्चित होता है कि वन संसाधनों का संरक्षण जिम्मेदारी पूर्वक किया जाए तथा स्थानीय प्राथमिकताओं को ध्यान में रखा जाए।
- सतत विकास लक्ष्यों के साथ संरेखण: लोकतांत्रिक शासन,पर्यावरण न्याय के लिए भारत की सतत विकास लक्ष्य प्रतिबद्धताओं के साथ संरेखित होकर सतत वन प्रबंधन में सहायता करता है।
- उदाहरण के लिए: आदिवासी क्षेत्रों के सामुदायिक शासन में वृद्धि, भूमि पर जीवन के लिए सतत विकास लक्ष्य 15 को बढ़ावा देती है ।
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आगे की राह
- जागरूकता अभियान को मजबूत करना: उन्नत जागरूकता पहल, समुदायों को FRA अधिकारों के बारे में शिक्षित कर सकती है और दावों में व्यापक भागीदारी को प्रोत्साहित कर सकती है।
- उदाहरण के लिए: जनजातीय मामलों का मंत्रालय, FRA से संबंधित जागरूकता को बढ़ाने के लिए दूरदराज के क्षेत्रों में आउटरीच कार्यक्रमों को बढ़ा सकता है।
- स्थानीय संस्थाओं की क्षमता निर्माण: ग्राम सभाओं और अन्य स्थानीय निकायों को प्रशिक्षण देकर वनों का प्रबंधन और शासन करने की उनकी क्षमता में सुधार किया जा सकता है।
- पारदर्शी शिकायत तंत्र स्थापित करना: एक संरचित शिकायत प्रणाली सामुदायिक शिकायतों का समाधान कर सकती है और दावा प्रक्रिया को सुव्यवस्थित कर सकती है।
- उदाहरण के लिए: मध्य प्रदेश ने FRA दावों को संभालने के लिए एक ऑनलाइन पोर्टल (वन मित्र) शुरू किया है, जिससे दावा समाधान में पारदर्शिता सुनिश्चित होगी।
- वन विभाग के सहयोग को प्रोत्साहित करना: वन विभाग और समुदायों के बीच सहयोगात्मक प्रयासों से विश्वास उत्पन्न हो सकता है और प्रशासन में सुधार हो सकता है ।
- उदाहरण के लिए: संयुक्त वन प्रबंधन पहल से सहयोग और संरक्षण को विकसित करने में मदद मिल सकती है।
- कार्यान्वयन की निगरानी और मूल्यांकन: नियमित मूल्यांकन से कार्यान्वयन संबंधी अंतराल कम किये जा सकते हैं, जिससे अधिक प्रभावी शासन हेतु समय पर सुधारात्मक कार्रवाई सुनिश्चित हो सकती है।
- उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT), रियलटाइम मुद्दों को संबोधित करने के लिए FRA प्रवर्तन की निगरानी कर सकता है।
वन अधिकार अधिनियम, 2006 वन समुदायों को सशक्त बनाने और न्यायसंगत वन प्रशासन को बढ़ावा देने के लिए एक परिवर्तनकारी माध्यम है। हालाँकि, प्रशासनिक प्रतिरोध और राजनीतिक दुरुपयोग जैसी चुनौतियों ने इसकी प्रभावशीलता में बाधा उत्पन्न की है। स्थानीय भागीदारी, जवाबदेही और जागरूकता को बढ़ाने वाले लोकतांत्रिक वन प्रशासन को बढ़ावा देकर, भारत यह सुनिश्चित कर सकता है कि FRA ऐतिहासिक अन्याय को सुधारने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करे व सामुदायिक कल्याण और सतत वन प्रबंधन दोनों में सहायता करे।
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