प्रश्न की मुख्य माँग
- विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 के प्रमुख प्रावधानों पर चर्चा कीजिए, जिनका उद्देश्य विकलांगता के सामाजिक और मानवाधिकार मॉडल को बढ़ावा देना है।
- यह बताइये कि ये प्रावधान विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के तहत भारत की प्रतिबद्धताओं के साथ कैसे संरेखित हैं
- आगे की राह लिखिये।
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उत्तर
विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016, विकलांगता के प्रति भारत के दृष्टिकोण में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है, जो पहले के चिकित्सा मॉडल की तुलना में सामाजिक और मानवाधिकार मॉडल पर जोर देता है। यह विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCRPD) के तहत भारत के दायित्वों के अनुरूप है, जो सम्मान, समानता और समावेशन की वकालत करता है। यह अधिनियम व्यापक कानूनी सुरक्षा और सुलभता व गैर-भेदभाव को बढ़ावा देने वाले उपायों के माध्यम से विकलांग व्यक्तियों को सशक्त बनाने का प्रयास करता है ।
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विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 के प्रमुख प्रावधान
- विकलांगता की विस्तारित परिभाषा: RPWD अधिनियम मानसिक बीमारी, ऑटिज्म (Autism) और कई विकलांगताओं सहित 21 विकलांगताओं को मान्यता देता है, और एक व्यापक व अधिक समावेशी परिभाषा अपनाता है।
- उदाहरण के लिए: मानसिक बीमारी को शामिल करने से यह सुनिश्चित होता है कि मनोरोग से पीड़ित लोग शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण जैसे लाभ उठा सकें।
- अधिकार-आधारित दृष्टिकोण: यह अधिनियम समानता, गैर-भेदभाव और अंतर्निहित गरिमा के सम्मान पर जोर देता है , जो कल्याण मॉडल से अधिकार-आधारित ढाँचे की ओर बढ़ता है।
- उदाहरण के लिए: सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे और परिवहन तक समान पहुंच अनिवार्य है, जो स्वतंत्र जीवन और सामाजिक भागीदारी को बढ़ावा देता है।
- शिक्षा और रोजगार: यह अधिनियम समावेशी शिक्षा और मानक विकलांगता वाले व्यक्तियों के लिए सरकारी नौकरियों में 4% आरक्षण सुनिश्चित करता है।
- उदाहरण के लिए: अधिनियम के तहत उच्च शिक्षा संस्थानों में आरक्षित सीटों ने विकलांग छात्रों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने में सक्षम बनाया है।
- सुगमता मानक:सुगमता सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक भवनों, परिवहन प्रणालियों और ICT को सुगमता मानदंडों का अनुपालन करना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: सरकारी कार्यालयों और रेलवे स्टेशनों पर व्हीलचेयर उपयोगकर्ताओं की सुविधा के लिए रैम्प की स्थापना की गई है।
- संस्थागत तंत्र: दिव्यांगजनों के लिए राज्य आयुक्तों के प्रावधान, शिकायतों के कार्यान्वयन और निवारण को सुनिश्चित करते हुए जवाबदेही को मजबूत करते हैं।
- उदाहरण के लिए: कर्नाटक में राज्य आयुक्त, ग्रामीण क्षेत्रों में शिकायतों के समाधान के लिए मोबाइल अदालतों का उपयोग करते हैं ।
विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के तहत भारत की प्रतिबद्धताओं के साथ इन प्रावधानों का संरेखण
- समानता और गैर-भेदभाव: यह अधिनियम समानता के सिद्धांतों को कायम रखता है और भेदभाव को रोकता है, जो UNCRPD के अनुच्छेद 5 और 6 के अनुरूप है ।
- उदाहरण के लिए: रोजगार में भेदभाव का निषेध यह सुनिश्चित करता है कि वास्तविक रूप से विकलांग व्यक्तियों को अवसरों से वंचित न किया जाए।
- सुगम्यता और गतिशीलता: RPWD अधिनियम सार्वजनिक स्थानों और परिवहन में सुगम्यता को अनिवार्य बनाकर UNCRPD के अनुच्छेद 9 के अनुरूप है।
- उदाहरण के लिए: सुगम्य बसें और रेलगाड़ियाँ गतिशीलता संबंधी विकलांगता वाले व्यक्तियों को स्वतंत्र रूप से आवागमन करने में सहायता करती हैं।
- शिक्षा का अधिकार: UNCRPD का अनुच्छेद 24, समावेशी शिक्षा पर बल देता है, जिसे RPWD अधिनियम शैक्षणिक संस्थानों के लिए विशेष प्रावधानों के माध्यम से सुनिश्चित करता है।
- उदाहरण के लिए: विद्यालयों को श्रवण बाधित विद्यार्थियों के लिए सांकेतिक भाषा दुभाषियों (Sign language interpreters) जैसी उचित सुविधाएँ उपलब्ध करानी चाहिए।
- सार्वजनिक जीवन में भागीदारी: यह अधिनियम, UNCRPD के अनुच्छेद 29 के अनुरूप राजनीतिक अधिकारों और भागीदारी की गारंटी देता है।
- उदाहरण के लिए: सुलभ मतदान केंद्र विकलांग व्यक्तियों को अपने मताधिकार का प्रयोग करने की सुविधा प्रदान करते हैं।
- निगरानी और जवाबदेही: राज्य आयुक्तों की स्थापना ,UNCRPD के अनुच्छेद 33 के अनुरूप है, जो स्वतंत्र निगरानी तंत्र सुनिश्चित करता है।
- उदाहरण के लिए: राज्य आयुक्तों को विकलांगता अधिकारों के उल्लंघन पर स्वप्रेरणा से कार्रवाई करने का अधिकार है।
आगे की राह
- संस्थागत ढाँचे को मजबूत करना: जवाबदेही और दक्षता में सुधार के लिए राज्य आयुक्तों की सही समय पर और योग्यता आधारित नियुक्तियाँ सुनिश्चित करना।
- उदाहरण के लिए: नागरिक समाज से नियुक्तियों को प्रोत्साहित करने से विविध दृष्टिकोण सामने आ सकते हैं और निष्पक्षता को बढ़ावा मिल सकता है।
- क्षमता निर्माण में वृद्धि: अधिनियम को प्रभावी ढंग से समझने और लागू करने के लिए अधिकारियों और हितधारकों के लिए नियमित प्रशिक्षण आयोजित करना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: कर्नाटक में देखा गया कि विधि विद्यालयों के साथ किया जाने वाला सहयोग, कानूनी विशेषज्ञता और सहायता प्रदान कर सकता है।
- जन जागरूकता अभियान: विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों के बारे में जागरूकता को बढ़ाना, कलंक से लड़ना और सामाजिक समावेश को बढ़ावा देना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: सुलभ मीडिया प्लेटफ़ॉर्मों पर चलाये जाने वाले राष्ट्रव्यापी अभियान, शहरी और ग्रामीण दोनों आबादी को शिक्षित कर सकते हैं।
- डेटा संग्रह को मजबूत करना: अधिनियम के कार्यान्वयन पर डेटा एकत्र करके उसका विश्लेषण करना चाहिए ताकि कमियों और सुधार के क्षेत्रों की पहचान की जा सके।
- उदाहरण के लिए: कर्नाटक में जिला विकलांगता प्रबंधन समीक्षा नीतिगत सुधारों के लिए कार्रवाई योग्य अंतर्दृष्टि प्रदान करती है।
- समावेशन के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: विकलांग व्यक्तियों के जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए सहायक प्रौद्योगिकी और डिजिटल समाधान विकसित करना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: सार्वजनिक स्थानों की रियलटाइम एसेसबिलिटी जानकारी प्रदान करने वाले मोबाइल एप्लिकेशन, विकलांग उपयोगकर्ताओं को सशक्त बना सकते हैं।
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RPWD अधिनियम, 2016 न केवल विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा के लिए भारत के कानूनी ढाँचे को मजबूत करता है, बल्कि UNCRPD द्वारा परिकल्पित समावेशी समाज का निर्माण करने के लिए राष्ट्र की प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है। सुलभता, समानता और सशक्तिकरण पर ध्यान केंद्रित करके, भारत एक ऐसे भविष्य की दिशा में काम कर सकता है, जहाँ जैसा कि हेलेन केलर द्वारा कहा गया था, ‘अकेले हम बहुत कम कर सकते हैं; साथ मिलकर हम बहुत कुछ कर सकते हैं” यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि अपने अधिकारों का आनंद उठाने के मामले में देश का कोई भी नागरिक पीछे न रहे।
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