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Q. खादी, जो कभी भारत के गौरवशाली अतीत और आत्मनिर्भरता का प्रतीक थी, अब कई चुनौतियों का सामना कर रही है। खादी उद्योग को पुनर्जीवित करने के लिए आवश्यक कदमों पर चर्चा कीजिए। (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य मांग:

  • इस बात पर प्रकाश डालिये कि किस प्रकार खादी किस प्रकार से एक समय भारत के गौरवशाली अतीत और आत्मनिर्भरता का प्रतीक थी।
  • इस बात पर प्रकाश डालिये कि किस प्रकार खादी को अब अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
  • खादी उद्योग को पुनर्जीवित करने के लिए आवश्यक कदमों पर चर्चा कीजिए।

 

उत्तर:

हाथ से काता और बुना हुआ वस्त्र खादी, भारत के स्वतंत्रता आंदोलन और आत्मनिर्भरता का प्रतीक रहा है, जिसे  महात्मा गांधी ने बढ़ावा दिया था। इस गौरवशाली अतीत के बावजूद, खादी उद्योग अब गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है। खादी और ग्रामोद्योग आयोग ( केवीआईसी ) के अनुसार, भारत के सकल घरेलू उत्पाद में खादी का योगदान लगभग 0.5% है, जो आधुनिक अर्थव्यवस्था में इसके कम होते प्रभुत्व को दर्शाता है।

भारत के गौरवशाली अतीत और आत्मनिर्भरता के  प्रतीक के रूप में खादी :

  • गांधीवादी प्रतीकवाद: महात्मा गांधी के नेतृत्व में खादी, भारत के स्वतंत्रता संग्राम का अभिन्न हिस्सा बन गई जो आत्मनिर्भरता और ब्रिटिश शासन के खिलाफ
    प्रतिरोध का प्रतीक है। उदाहरण के लिए : गांधीजी द्वारा चरखे को बढ़ावा देने से लाखों लोगों को सशक्त बनाया गया, जिससे खादी राष्ट्रीय आंदोलन का एक प्रमुख तत्व बन गया।
  • आर्थिक सशक्तिकरण: खादी सिर्फ एक वस्त्र नहीं था अपितु यह आर्थिक सशक्तिकरण का एक साधन था, जो ग्रामीण कारीगरों को रोजगार प्रदान करता था
    उदाहरण के लिए : ग्रामीण उद्योगों को समर्थन देने और ग्रामीण गरीबों के लिए एक स्थिर आय सुनिश्चित करने के लिए 1953 में अखिल भारतीय खादी और ग्रामोद्योग बोर्ड की स्थापना की गई थी ।
  • राष्ट्रीय पहचान: स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान खादी , भारत की पहचान और गौरव के साथ जुड़ गई और यह आज भी राष्ट्रीय गौरव के प्रतीक के रूप में देश की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर  बनी हुई है।
  • संधारणीयता: पर्यावरण के अनुकूल और संधारणीय होने के कारण खादी वर्तमान समय के हरित आंदोलनों का अग्रदूत है। उदाहरण
    के लिए : खादी के उत्पादन हेतु बिजली की आवश्यकता नहीं होती है, जो गांधीजी के सतत विकास और न्यूनतम पर्यावरणीय प्रभाव के दृष्टिकोण के अनुरूप है।
  • वैश्विक मान्यता: खादी को कई दशकों से वैश्विक स्तर पर भारतीय धरोहर का प्रतीक माना जाता है
    उदाहरण के लिए : गांधीजी की 150वीं जयंती के दौरान 2019 में संयुक्त राष्ट्र में खादी का प्रदर्शन किया गया जहां इसकी  संधारणीय था  पर प्रकाश डाला गया।

खादी उद्योग के समक्ष चुनौतियाँ:

  • सिंथेटिक वस्त्रों से प्रतिस्पर्धा: पॉलिएस्टर जैसे मशीन से बने सिंथेटिक कपड़ों का चलन बढ़ गया है, जो अक्सर सस्ते होते हैं और बड़े पैमाने पर उत्पादित होते हैं , जिससे खादी का चलन कम हो गया है।
    उदाहरण के लिए : भारतीय ध्वज संहिता (2022 ) में पॉलिएस्टर झंडों को अनुमति देने से खादी के प्रतीकात्मक और व्यावसायिक मूल्य,दोनों में गिरावट आई है।
  • सरकारी खरीद में गिरावट: खादी की सरकारी खरीद कम हो गई है, कई विभाग सस्ते विकल्प अपना रहे हैं
    उदाहरण के लिए : सरकारी ऑर्डर में कमी के कारण कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग संयुक्त संघ को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा, जिसके कारण 2022 में विरोध प्रदर्शन हुए।
  • जीएसटी और आर्थिक दबाव: खादी उत्पादों पर जीएसटी लगाने से इनकी उत्पादन लागत बढ़ गई है , जिससे वे कम प्रतिस्पर्धी हो गए हैं।
    उदाहरण के लिए : मांगों के बावजूद, सरकार ने खादी को जीएसटी से छूट नहीं प्रदान की है, जिससे छोटे पैमाने के बुनकरों पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ रहा है।
  • बाजार पहुंच की कमी: खादी उत्पादों को अक्सर बाजार में टिके रहने के संदर्भ में संघर्ष करना पड़ता है विशेष रूप से शहरी और वैश्विक बाजारों में
    उदाहरण के लिए : बाजार पहुंच में कमी और विपणन समर्थन की कमी के कारण , केवीआईसी ने खादी की बिक्री में गिरावट दर्ज की है।
  • तकनीकी अंतर: खादी उद्योग आधुनिक तकनीक अपनाने के संबंध में पीछे रहा है, जिससे उत्पादकता और गुणवत्ता संबंधी समस्याएं कम हो रही हैं।
    उदाहरण के लिए : कई खादी इकाइयाँ अभी भी पारंपरिक हथकरघा विधियों पर निर्भर हैं , जो आधुनिक वस्त्र प्रौद्योगिकियों का मुकाबला नहीं कर सकते।

खादी उद्योग को पुनर्जीवित करने के लिए उठाये जा सकने वाले कदम:

  • सरकारी सहायता और नीतिगत सुधार: सार्वजनिक विभागों में खादी खरीद को प्राथमिकता देने के लिए सरकारी नीतियों को मजबूत करने से उद्योग को बढ़ावा मिल सकता है।
    उदाहरण के लिए : सरकारी वर्दी और आधिकारिक झंडे को विशेष रूप से खादी से बनाने को अनिवार्य करने से इसकी मांग में इजाफा हो सकता है।
  • कर छूट और सब्सिडी: खादी उत्पादन के लिए जीएसटी छूट और सब्सिडी प्रदान करने से लागत कम हो सकती है और प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ सकती है।
    उदाहरण के लिए : खादी उत्पादों पर शून्य जीएसटी नीति लागू करने से उन्हें उपभोक्ताओं के लिए अधिक किफायती और आकर्षक बनाया जा सकता है।
  • वैश्विक विपणन और ब्रांडिंग: अंतरराष्ट्रीय मेलों और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के माध्यम से खादी को वैश्विक ब्रांड के रूप में बढ़ावा देने से इसकी बाजार पहुंच का विस्तार हो सकता है।
    उदाहरण के लिए : अमेज़न और फ्लिपकार्ट जैसे प्लेटफॉर्म के साथ केवीआईसी के सहयोग ने पहले ही सकारात्मक परिणाम दिखाए हैं, जो इसके बेहतर भविष्य का संकेत देते हैं।
  • तकनीकी उन्नयन: खादी उत्पादन प्रक्रिया में
    आधुनिक तकनीक को शामिल करने से गुणवत्ता और दक्षता में सुधार लाया जा सकता है। उदाहरण के लिए : खादी इकाइयों में सौर ऊर्जा से संचालित चरखे और स्वचालित करघे लगाने से खादी की पारंपरिक विशेषता को बनाए रखते हुए उत्पादन को बढ़ावा मिल सकता है।
  • कौशल विकास और प्रशिक्षण: खादी कारीगरों को कौशल विकास कार्यक्रम प्रदान करने से उनकी शिल्पकला और उत्पादकता में वृद्धि हो सकती है
    उदाहरण के लिए : खादी बुनकरों और सूत कातने वालों के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षण कार्यक्रम तैयार करने हेतु सरकार की कौशल भारत पहल की मदद ली जा सकती है।

खादी उद्योग को पुनर्जीवित करने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिसमें सरकारी सहायता, तकनीकी उन्नति और बाजार विस्तार शामिल हो। भारत की धरोहर  के रूप में, खादी का पुनरुद्धार न केवल सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करने के लिए बल्कि ग्रामीण कारीगरों को सशक्त बनाने और सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए भी आवश्यक है। खादी का भविष्य नवाचार, सहयोग और वैश्विक उपलब्धता में निहित है जो यह सुनिश्चित करेगा कि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए गर्व और प्रगति का प्रतीक बना रहे ।

 

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