प्रश्न की मुख्य माँग
- भारत में बच्चों में बढ़ती मानसिक स्वास्थ्य चिंताओं के कारणों का विश्लेषण कीजिए।
- बच्चों में मूक मानसिक स्वास्थ्य महामारी की चुनौतियों का उल्लेख कीजिए।
- मुद्दे को समग्र रूप से हल करने के लिए नीति-स्तरीय और सामाजिक मध्यक्षेपों का उल्लेख कीजिये।
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उत्तर
भारत में बच्चों में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को “साइलेंट एपिडेमिक” (Silent Epidemic) के रूप में पहचाना जा रहा है जिसमें चिंता, अवसाद और व्यवहार संबंधी विकारों के मामले बढ़ रहे हैं। UNICEF स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स चिल्ड्रन रिपोर्ट (वर्ष 2021) के अनुमान के अनुसार सात में से एक भारतीय किशोर मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित है, जिसका अक्सर निदान नहीं हो पाता और उसका इलाज नहीं हो पाता। खेल की कमी, स्क्रीन के सामने बहुत समय बिताना, पढ़ाई का तनाव और सामाजिक अपेक्षाओं ने इस संकट को और अधिक गंभीर कर दिया है।
भारत में बच्चों में बढ़ती मानसिक स्वास्थ्य चिंताओं के कारण
- शैक्षणिक दबाव और प्रतिस्पर्धी माहौल: शिक्षा प्रणाली अक्सर भावनात्मक कल्याण के बजाय अंकों, रैंकिंग और प्रारंभिक कैरियर की सफलता पर जोर देती है।
- अत्यधिक स्क्रीन टाइम और सोशल मीडिया एक्सपोजर: डिजिटल उपभोग में वृद्धि से नींद में व्यवधान, कम आत्मसम्मान और साइबर फ्रॉड का खतरा बढ़ जाता है।
- माता-पिता का तनाव और अवास्तविक अपेक्षाएँ: माता-पिता अक्सर बच्चों पर अपनी आकांक्षाएँ थोपते हैं तथा उनकी भावनात्मक आवश्यकताओं और व्यक्तित्व को नजरअंदाज कर देते हैं।
- साथियों से तुलना और अलगाव: ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों ही तरह की सामाजिक तुलना से पहचान संबंधी समस्याएँ, असफलता का डर और आत्म-संदेह उत्पन्न होता है।
- स्कूलों में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा: अधिकांश स्कूलों में पूर्णकालिक परामर्शदाताओं या मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों तक पहुँच की कमी है।
- उदाहरण के लिए: भारत को 315 मिलियन छात्रों के लिए 15 लाख परामर्शदाताओं की आवश्यकता है।
- मानसिक स्वास्थ्य के संबंध में जागरूकता की कमी और कलंक: सांस्कृतिक वर्जनाएँ और गलत सूचनाएँ, बच्चों और अभिभावकों को समय पर मदद लेने से रोकती हैं।
- उदाहरण के लिए: UNICEF की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 15 से 24 वर्ष की आयु के केवल 41% युवा ही मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं के लिए मदद लेने को कारगर कदम मानते हैं।
बच्चों में मूक मानसिक स्वास्थ्य महामारी की चुनौतियाँ
- प्रारंभिक निदान और जांच तंत्र का अभाव: अधिकांश स्कूलों और स्वास्थ्य प्रणालियों में नियमित मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन नहीं होता है, जिसके कारण मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति का पता नहीं चल पाता है।
- प्रशिक्षित मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की कमी: भारत में बाल मनोवैज्ञानिकों की भारी कमी है, विशेषर ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में।
- उदाहरण के लिए: WHO, प्रति 10,000 लोगों पर 1 मनोचिकित्सक की सिफारिश करता है; भारत में प्रति 100,000 लोगों पर केवल 0.29 मनोचिकित्सक हैं (स्वास्थ्य मंत्रालय, 2022 के अनुसार), और बाल मनोविज्ञान में प्रशिक्षित लोगों की संख्या और भी कम है।
- मदद लेने में कलंक और सांस्कृतिक बाधाएँ: मानसिक स्वास्थ्य को अभी भी शर्मनाक माना जाता है, जिसके कारण परिवारों और समुदायों द्वारा इलाज से इनकार किया जाता है और इसमें देरी होती है।
- अपर्याप्त वित्त पोषित स्कूल मानसिक स्वास्थ्य अवसंरचना: अधिकांश स्कूलों में, विशेष रूप से सरकारी संस्थानों में, पूर्णकालिक परामर्शदाताओं या मानसिक स्वास्थ्य कक्षों का अभाव है।
- नीति कार्यान्वयन और निगरानी में उपेक्षा: यद्यपि मनोदर्पण और राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम जैसी योजनाएँ मौजूद हैं, लेकिन इनके कार्यान्वयन में तत्परता और उचित समीक्षा का अभाव है।
- बाल मानसिक स्वास्थ्य पर अपर्याप्त डेटा और अनुसंधान: पृथक डेटा की कमी साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण और लक्षित हस्तक्षेप को सीमित करती है।
बच्चों में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के समाधान के लिए नीति-स्तरीय और सामाजिक हस्तक्षेप
- स्कूल पाठ्यक्रम में मानसिक स्वास्थ्य का एकीकरण: पाठ्यपुस्तकों और सह-पाठ्यचर्या गतिविधियों में भावनात्मक कल्याण, जागरूकता और तनाव प्रबंधन को शामिल करना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: NCERT 2023 दिशानिर्देश अब सभी स्कूल स्तरों पर आयु-उपयुक्त मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा की सिफारिश करते हैं।
- राष्ट्रीय किशोर मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम: समर्पित निधियों, डिजिटल परामर्श प्लेटफार्मों और हेल्पलाइनों के साथ NEP 2020 के तहत मनोदर्पण पहल का विस्तार करना चाहिए।
- अभिभावक परामर्श और संवेदीकरण कार्यक्रम: अभिभावकों के लिए भावनात्मक आवश्यकताओं, स्क्रीन टाइम नियंत्रण और शैक्षणिक दबाव कम करने पर कार्यशालाएँ आयोजित करनी चाहिए।
- उदाहरण के लिए: दिल्ली सरकार के हैप्पीनेस पाठ्यक्रम में बाल सहानुभूति और मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता पर केंद्रित अभिभावक-शिक्षक कार्यशालाएं शामिल की गई हैं।
- खेल-आधारित शिक्षा और शारीरिक गतिविधि को बढ़ावा देना: NEP की सिफारिशों के अनुसार स्कूलों में दैनिक खेल गतिविधियों और शारीरिक शिक्षा को लागू करना चाहिए।
- परामर्श और शीघ्र पहचान के लिए डिजिटल उपकरणों का लाभ उठाना: गुमनाम रिपोर्टिंग और भावनात्मक सहायता के लिए AI-संचालित चैटबॉट, मोबाइल ऐप और वर्चुअल प्लेटफॉर्म विकसित करने चाहिए।
- उदाहरण के लिए: epsyclinic द्वारा तैयार किया गया “iWill” एक मोबाइल प्लेटफॉर्म है, जो शहरी भारत में किशोरों के बढ़ते यूजर बेस को मानसिक स्वास्थ्य परामर्श प्रदान करता है।
- मानसिक स्वास्थ्य को कलंक से मुक्त करने के लिए जन जागरूकता अभियान: प्रभावशाली व्यक्तियों, स्वास्थ्य पेशेवरों और युवा आइकन को शामिल करते हुए निरंतर मल्टीमीडिया अभियान चलाये जाने चाहिए।
- उदाहरण के लिए: UNICEF इंडिया के #ऑनमाईमाइंड अभियान (वर्ष 2022) ने देश भर में किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर चर्चाओं को बढ़ावा देने के लिए स्कूलों के साथ सहयोग किया।
मानसिक स्वास्थ्य, बच्चे के विकास और आजीवन उत्पादकता के लिए आधारभूत है। भारत को इस संकट से निपटने के लिए एक बहु-हितधारक, रोकथाम-उन्मुख और बाल-केंद्रित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए जो भावनात्मक कल्याण और खेल के साथ शिक्षा को संतुलित करता हो।
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