प्रश्न की मुख्य माँग
- ट्रांसजेंडर अधिकारों के संबंध में बढ़ती जागरूकता के बावजूद, भारत में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के कानूनी और आर्थिक सशक्तिकरण में मौजूद पर्याप्त अंतरालों को उजागर कीजिए।
- उनकी कानूनी मान्यता बढ़ाने के लिए आवश्यक उपायों का परीक्षण कीजिए।
- उनके आर्थिक समावेशन को बढ़ाने के लिए आवश्यक उपायों पर चर्चा कीजिए।
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उत्तर
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में ट्रांसजेंडर समुदाय की अनुमानित संख्या 4.8 लाख से अधिक है, जो वर्ष 2019 में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम के लागू होने के बावजूद प्रणालीगत बहिष्कार का सामना कर रहा है। हालाँकि इस संबंध में जागरूकता बढ़ी है परंतु समाज में गहराई से व्याप्त सामाजिक पूर्वाग्रह अभी भी उनकी कानूनी मान्यता, रोजगार के अवसरों और आर्थिक सशक्तीकरण में बाधा डालते हैं।
भारत में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के कानूनी और आर्थिक सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण अंतराल
कानूनी सशक्तिकरण में अंतराल
- अकुशल प्रमाणन प्रक्रिया: ट्रांसजेंडर व्यक्ति अधिनियम के तहत पहचान प्रमाण पत्र प्राप्त करने में प्रशासनिक बाधाएँ आवश्यक कल्याणकारी योजनाओं में बाधा डालती हैं।
- उदाहरण के लिए: दिसंबर 2023 तक, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए राष्ट्रीय पोर्टल पर 3,200 से अधिक आवेदन अनिवार्य 30-दिवसीय अवधि से परे लंबित थे।
- पुलिस सुरक्षा का अभाव: कानून पुलिस उत्पीड़न को स्पष्ट रूप से संबोधित करने में विफल रहता है, जिसके कारण कई ट्रांसजेंडर व्यक्ति कानूनी सुरक्षा के बिना दुर्व्यवहार के प्रति सुभेद्य हो जाते हैं।
- उदाहरण के लिए: कार्यकर्ताओं द्वारा बार-बार शिकायत किए जाने के बावजूद, अधिनियम में पुलिस हिंसा या जबरन वसूली के मामलों के निवारण के लिए विशिष्ट प्रावधान शामिल नहीं हैं।
- सामाजिक बहिष्कार की उपेक्षा: कानून में पारिवारिक अस्वीकृति और सामाजिक बहिष्कार से निपटने के संबंध में स्पष्टता का अभाव है जो ट्रांसजेंडर लोगों में बेघर होने और मानसिक संकट के प्राथमिक कारण हैं।
- उदाहरण के लिए: दिल्ली में, हालांकि वर्ष 2011 की जनगणना में लगभग 4,200 ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की सूचना दी गई थी, लेकिन पारिवारिक और संस्थागत उपेक्षा के कारण अप्रैल 2022 तक केवल 23 पहचान पत्र जारी किए गए थे।
आर्थिक सशक्तिकरण में अंतराल
- उच्च बेरोजगारी दर: ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को नियुक्ति प्रक्रियाओं में गंभीर भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जिसके कारण राष्ट्रीय औसत की तुलना में उनकी बेरोजगारी दर बहुत अधिक है।
- उदाहरण के लिए: वर्ष 2022 के एक अध्ययन में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों में 48% बेरोजगारी दर की सूचना दी गई, जो भारत के औसत 7%-8% से कहीं अधिक है।
- नौकरी में व्यापक पूर्वाग्रह: यहाँ तक कि नौकरी में रहने के बावजूद, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को अक्सर कार्यस्थल पर शत्रुता, लिंग-तटस्थ सुविधाओं की कमी और सहकर्मियों से उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है।
- उदाहरण के लिए: टाटा स्टील द्वारा 100 से अधिक ट्रांसजेंडर कर्मचारियों को नियुक्त करने के बावजूद, अधिकांश उद्योगों ने समावेशी कार्यस्थल नीतियों को नहीं अपनाया है।
- उद्यमशीलता का बहिष्कार: ऋण और वित्तीय सहायता तक पहुंच सीमित बनी हुई है, जिससे ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के बीच उद्यमशीलता हतोत्साहित हो रही है।
- उदाहरण के लिए: जबकि वित्त मंत्रालय ने वर्ष 2024 में LGBTQ+ व्यक्तियों के लिए संयुक्त बैंक खाते खोलने की अनुमति दे दी है परंतु व्यापक वित्तीय पहुँच असमान और बहिष्कृत बनी हुई है।
कानूनी मान्यता के लिए उपाय
- प्रमाणन प्रक्रिया को सरल बनाना: विलम्ब और प्रशासनिक बाधाओं को कम करने के लिए ट्रांसजेंडर पहचान पत्र जारी करने की प्रक्रिया को सरल और विकेन्द्रीकृत करना चाहिए।
- स्व-पहचान अपनाना: चिकित्सा और प्रशासनिक गेटकीपिंग को अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं
के अनुरूप स्व-पहचान मॉडल से प्रतिस्थापित करना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: अर्जेंटीना का लैंगिक पहचान कानून, व्यक्तियों को चिकित्सीय या मनोवैज्ञानिक अनुमोदन के बिना कानूनी रूप से अपना लिंग परिवर्तन करने की अनुमति देता है।
- कानूनी सहायता और जागरूकता: कानूनी सहायता तक पहुंच सुनिश्चित करना और कानून प्रवर्तन व न्यायपालिका के बीच ट्रांसजेंडर अधिकारों के बारे में जागरूकता पैदा करनी चाहिए।
- उदाहरण के लिए: भारत में राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण कानूनी सहायता प्रदान करता है, लेकिन ट्रांसजेंडर लोगों के बीच इसकी पहुँच और जागरूकता सीमित है।
- उत्पीड़न-विरोधी प्रावधान: ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के साथ होने वाले पुलिस उत्पीड़न और संस्थागत हिंसा से सुरक्षा को स्पष्ट रूप से शामिल करने के लिए मौजूदा कानूनों में संशोधन किया जाएगा।
- उदाहरण के लिए: संगमा जैसे कार्यकर्ता समूह लंबे समय से ट्रांसजेंडर व्यक्ति अधिनियम में पुलिस जवाबदेही खंड को शामिल करने की माँग कर रहे हैं ।
- चुने हुए परिवार की मान्यता: सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य लाभ और कल्याण अधिकारों के लिए ट्रांसजेंडर व्यक्तियों द्वारा चुने गए परिवार के ढांचे को कानूनी रूप से मान्यता देना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: मद्रास उच्च न्यायालय ने वर्ष 2021 में LGBTQ+ अधिकारों के लिए एक ऐतिहासिक फैसले में आत्म-सम्मान विवाह और चुने हुए परिवारों को मान्यता दी।
आर्थिक समावेशन के उपाय
- समावेशी नियुक्ति नीतियाँ: कार्यस्थल पर समानता को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में विविधतापूर्ण नियुक्ति लक्ष्य को अनिवार्य बनाया जाना चाहिए तथा ट्रांसजेंडर रोजगार प्रकोष्ठों का निर्माण किया जाए।
- उदाहरण के लिए: टाटा स्टील की विविधता और समावेशन नीति के कारण 100 से अधिक ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को रोजगार मिला जिससे उद्योग में एक मानक स्थापित हुआ।
- उद्यमिता योजनाएँ: ट्रांसजेंडर-नेतृत्व वाले स्टार्टअप और लघु व्यवसायों के लिए कम ब्याज दर पर ऋण, मार्गदर्शन और प्रशिक्षण प्रदान करने वाली लक्षित योजनाएँ शुरू करनी चाहिए।
- उदाहरण के लिए: हैदराबाद ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को कौशल प्रशिक्षण और व्यवसाय सहायता प्रदान करने के लिए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के माध्यम से एक ट्रांसजेंडर उद्यमिता केंद्र की स्थापना की।
- वित्तीय सेवाओं तक पहुँच: KYC मानदंडों को सरल बनाया जाएगा तथा ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए बैंकिंग और बीमा सेवाओं तक पहुंच का विस्तार किया जाएगा।
- कौशल विकास कार्यक्रम: गैर सरकारी संगठनों और कॉर्पोरेट्स के सहयोग से ट्रांसजेंडर युवाओं की आवश्यकताओं के अनुरूप व्यावसायिक प्रशिक्षण लागू करना चाहिए।
- कार्यस्थल पर संवेदनशीलता अभियान: समावेशी कार्य वातावरण बनाने और पूर्वाग्रह को कम करने के लिए नियमित रूप से लैंगिक संवेदनशीलता कार्यशालाओं का आयोजन करना चाहिये।
- उदाहरण के लिए: हमसफर ट्रस्ट द्वारा ‘आई एम आल्सो ह्यूमन’ अभियान, कार्यस्थलों पर ट्रांसजेंडर की स्वीकृति को बढ़ावा देने के लिए कॉर्पोरेट संवेदनशीलता सत्र आयोजित करता है।
जैसे-जैसे जागरूकता बढ़ती है, दिखावे से हटकर परिवर्तनकारी समावेशन पर बल देना चाहिए। मजबूत कानूनी सुरक्षा उपाय, सकारात्मक कार्रवाई और लैंगिक-संवेदनशील कौशल कार्यक्रम सुनिश्चित करके मौजूदा अंतर को कम किया जा सकता है। जैसा कि डॉ. बीआर अंबेडकर ने कहा था, “राजनीतिक लोकतंत्र तब तक नहीं टिक सकता जब तक कि उसके आधार में सामाजिक लोकतंत्र न हो।” इसके बिना सच्चा सशक्तिकरण संभव नहीं हो पाता।
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