प्रश्न की मुख्य माँग
- भारत में ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ फ्रॉम वर्क के लिए कानून की आवश्यकता का परीक्षण कीजिए।
- कार्य संस्कृति पर ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ के संभावित प्रभाव का विश्लेषण कीजिए।
- ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ के अधिकार के कर्मचारी कल्याण पर संभावित प्रभाव का विश्लेषण कीजिए।
- ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ के अधिकार के आर्थिक उत्पादकता पर संभावित प्रभाव का विश्लेषण कीजिए।
- ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ से जुड़ी चुनौतियों पर प्रकाश डालिये।
- आगे की राह लिखिये।
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उत्तर
‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ एक उभरता हुआ वैश्विक मुद्दा है, जो यह सुनिश्चित करता है कि नियमित कार्य-अवधि के अतिरिक्त अन्य किसी दूसरे समय पर कर्मचारियों से काम न लिया जाए। हालाँकि फ्रांस और स्पेन जैसे देशों ने इसके संबंध में कानून लागू किए हैं परंतु भारत में इस मामले पर विशिष्ट कानून का अभाव है। रिमोट वर्क और निरंतर डिजिटल कनेक्टिविटी को देखते हुए , भारत के लिए कार्य-जीवन संतुलन को बनाए रखने और कर्मचारी कल्याण को बढ़ावा देने के लिए कानूनों को औपचारिक रूप देने की तत्काल आवश्यकता है ।
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भारत में ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ के संबंध में कानून बनाने की आवश्यकता
- बढ़ता कार्य-जीवन असंतुलन: 24/7 डिजिटल कनेक्टिविटी के साथ, कर्मचारियों से नियमित कार्य-अवधि (working hours) के अतिरिक्त अन्य समय पर भी उपलब्ध रहने की अपेक्षा की जाती है।
- उदाहरण के लिए : फ्रांस में, उच्चतम न्यायलय ने वर्ष 2001 में निर्णय दिया कि कर्मचारियों को घर से कार्य करने या कार्य को घर में ले जाकर करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
- मानसिक स्वास्थ्य और बर्नआउट संबंधी चिंताएँ: कार्य और निजी जीवन के बीच सीमाओं की कमी तनाव, चिंता और बर्नआउट का कारण बन जाती हैं।
- उदाहरण के लिए: पुर्तगाल ने ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ कानून लागू किया, जिसके अंतर्गत नियोक्ताओं के लिए कार्य अवध के अलावा अन्य किसी समय पर कर्मचारियों से संपर्क करना अवैध है, जब तक कि यह कोई आपातकालीन स्थिति न हो, जिससे काम से संबंधित तनाव को कम करने में मदद मिलती है।
- कर्मचारी संरक्षण में कानूनी खामियाँ: भारत में कर्मचारियों को सामान्य कार्य अवधि के अलावा अन्य समय पर दिये जाने वाले कार्य के बोझ से बचाने के लिए औपचारिक कानूनों का अभाव है, जबकि जर्मनी और स्पेन जैसे देशों में ऐसे कानून मौजूद हैं।
- उदाहरण के लिए: स्पेन का जैविक कानून 3/2018, अनुच्छेद 8, सार्वजनिक कर्मचारियों को ऑफिस की कार्य अवधि के बाद अपने डिवाइस को बंद करने के अधिकार की गारंटी देता है और व्यक्तिगत व पारिवारिक समय की गरिमा सुनिश्चित करता है, जो भारत के लिए एक मजबूत मॉडल प्रदान करता है।
- रिमोट कार्य से संबंधित चुनौतियाँ: महामारी के दौरान रिमोट कार्य के बढ़ने से कार्यालय समय और व्यक्तिगत समय के बीच की सीमा स्पष्ट नहीं रह गई है, जिससे कर्मचारियों का तनाव बढ़ गया है।
- वैश्विक रुझान और प्रतिस्पर्धात्मकता: जैसे-जैसे देश इस अधिकार को लागू करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, भारत के सामने निष्पक्ष, सतत कार्य वातावरण बनाने में पीछे रह जाने का खतरा है।
कार्य संस्कृति पर ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ का प्रभाव
- परिणामोन्मुखी कार्य संस्कृति की ओर बदलाव : ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ निरंतर समय-आधारित जुड़ाव की तुलना में आउटपुट-आधारित मूल्यांकन को प्रोत्साहित करता है।
- उदाहरण के लिए: जर्मनी की कार्य संस्कृति अधिक समय तक कार्य करने के बजाय कार्यकुशलता पर अधिक जोर देती है, और इस तरह से उत्पादकता बनाए रखते हुए स्वस्थ कार्य-जीवन संतुलन को बढ़ावा देती है।
- कार्य-अवधि के दौरान उत्पादकता में वृद्धि: ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ से कर्मचारियों को वापस से अपनी ऊर्जा को पुनर्प्राप्त करने में मदद मिलती है, जिससे कार्य अवधि के दौरान उनकी उत्पादकता बढ़ जाती है।
- कर्मचारियों का मनोबल और नौकरी की संतुष्टि में सुधार: कर्मचारियों को ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ का अधिकार प्रदान करने से विश्वास-आधारित और कर्मचारी-केंद्रित कार्य संस्कृति बनाने में मदद मिलती है।
- उदाहरण के लिए: Google ने लचीली कार्य–अवधि एवं टाइम ऑफ नीतियों को लागू किया है, जिससे कर्मचारियों का मनोबल बढ़ा है और कंपनी प्रतिभाशाली पेशेवरों की पसंदीदा विकल्प बन गई है।
- कार्य के बोझ और तनाव में कमी: कार्य -अवधि और व्यक्तिगत समय के बीच स्पष्ट अंतर, तनाव के स्तर को प्रबंधित करने और काम के बोझ को कम करने में मदद करता है ।
- उदाहरण के लिए: फ्रांस में, श्रमिक 35 घंटे के कार्य सप्ताह कानून के कारण बेहतर कार्य-जीवन संतुलन होने का दावा करते हैं।
- स्वस्थ संगठनात्मक संस्कृति को बढ़ावा देना: ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ को अपनाने से कंपनी की संस्कृति में बदलाव आ सकता है और कर्मचारी कल्याण तथा दीर्घकालिक उत्पादकता पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जा सकता है ।
कर्मचारी कल्याण पर डिस्कनेक्ट करने के अधिकार का प्रभाव
- बेहतर मानसिक स्वास्थ्य : ऑफिस के समय के बाद काम से दूर रहने से मानसिक थकान, तनाव और चिंता को रोकने में मदद मिलती है।
- उदाहरण के लिए : ADP रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार , 49% भारतीय कर्मचारी रिपोर्ट करते हैं कि कार्यस्थल पर होने वाला तनाव उनके मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालता है , जिससे काम से दूर रहने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।
- बेहतर कार्य-जीवन संतुलन : कर्मचारियों को कार्य से दूर रहने में सक्षम बनाने से उन्हें परिवार के साथ अधिक समय बिताने और व्यक्तिगत गतिविधियों को आगे बढ़ाने में मदद मिलती है, जिससे व्यक्तिगत और व्यावसायिक जिम्मेदारियों में संतुलन बनता है।
- बर्नआउट दरों में कमी: काम के बाद डिस्कनेक्ट होने वाले कर्मचारियों में बर्नआउट और थकान का अनुभव करने की संभावना कम होती है।
- उदाहरण के लिए : द हिंदू की एक रिपोर्ट से पता चला है कि ऑडिटिंग, आईटी और मीडिया क्षेत्र में संलग्न भारतीय महिलाएँ सप्ताह में 55 घंटे से अधिक काम करती हैं , जिससे उनमें बर्नआउट और थकान का जोखिम बढ़ जाता है, जिसे डिस्कनेक्ट करने के अधिकार से कम किया जा सकता है।
- शारीरिक स्वास्थ्य लाभ: कार्य-संबंधी तनाव से मिलने वाला टाइम-ऑफ, बेहतर शारीरिक स्वास्थ्य में योगदान दे सकता है, क्योंकि कर्मचारी फिटनेस और विश्राम गतिविधियों में संलग्न हो सकते हैं।
- नौकरी से संतुष्टि में वृद्धि: व्यक्तिगत समय का सम्मान करने से नौकरी में संतुष्टि बढ़ती है, कर्मचारी स्वयं के कार्य को मूल्यवान महसूस करते हैं।
- उदाहरण के लिए: माइक्रोसॉफ्ट जापान ने 4-दिवसीय कार्य सप्ताह लागू किया , जिससे कर्मचारी संतुष्टि में सुधार हुआ और कर्मचारियों की अनुपस्थिति कम हुई।
आर्थिक उत्पादकता पर ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ के अधिकार का प्रभाव
- केंद्रित उत्पादकता में वृद्धि : जो कर्मचारी कार्यालय के घंटों के अलावा दिए जाने वाले काम से डिस्कनेक्ट हो जाते हैं, वे ऑफिस कार्य -अवधि में बेहतर प्रदर्शन करते हैं।
- उदाहरण के लिए: स्वीडन में, 6 घंटे के कार्यदिवस के परीक्षण से प्रत्येक कर्मचारी की उत्पादकता में वृद्धि हुई, जिससे पता चला कि ब्रेक से प्रदर्शन में सुधार हो सकता है।
- अनुपस्थिति में कमी: राइट-टू-डिसकनेक्ट सुनिश्चित करने से स्वास्थ्य में सुधार होता है और तनाव से संबंधित समस्याओं के कारण होने वाली कर्मचारियों की अनुपस्थिति कम होती है।
- उदाहरण के लिए: फ्रांस के 35 घंटे के कार्य सप्ताह कानून के परिणामस्वरूप सिक लीव्स (Sick leaves) कम हो गई और उत्पादकता भी बढ़ गई, क्योंकि कर्मचारियों ने बेहतर स्वास्थ्य और कार्य से संबंधित तनाव में कमी का अनुभव किया।
- कम टर्नओवर दरें: डिस्कनेक्ट करने के अधिकार के माध्यम से कार्य-जीवन संतुलन को बढ़ावा देने वाले संगठन कम कर्मचारी टर्नओवर का अनुभव करते हैं।
- उदाहरण के लिए: सेल्सफोर्स अपनी कर्मचारी-अनुकूल नीतियों के कारण कम एट्रिशन दरों की रिपोर्ट करता है , जो अप्रत्यक्ष रूप से दीर्घकालिक उत्पादकता में सुधार करता है।
- प्रतिभा को आकर्षित करना: जो कंपनियाँ अवकाश और लचीलापन प्रदान करती हैं, वे शीर्ष प्रतिभा को आकर्षित करती हैं, जिससे उच्च नवाचार और आर्थिक उत्पादकता में योगदान मिलता है ।
- बेहतर संसाधन प्रबंधन: कर्मचारियों की डिस्कनेक्ट करने की आवश्यकता का सम्मान करके, कंपनियाँ कार्य–अवधि को अनुकूलित कर सकती हैं और समग्र परिचालन दक्षता में सुधार कर सकती हैं।
‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ से संबंधित चुनौतियाँ
- नियोक्ताओं का विरोध: नियोक्ता उत्पादकता और प्रतिस्पर्धात्मकता पर कथित प्रभावों के कारण डिस्कनेक्ट करने के अधिकार को लागू करने का विरोध कर सकते हैं।
- उदाहरण के लिए: जर्मनी में, कुछ कंपनियों ने शुरू में ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ कानून का विरोध किया, उन्हें डर था कि इससे परिचालन दक्षता कम हो जाएगी और बाजार में होने वाले परिवर्तनों पर तुरंत प्रतिक्रिया देने की उनकी क्षमता सीमित हो जाएगी।
- प्रवर्तन संबंधी मुद्दे: डिस्कनेक्ट करने के अधिकार को लागू करना मुश्किल हो सकता है, खासकर उन दूरदराज के कर्मचारियों के लिए जो हमेशा डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से उपलब्ध रहते हैं।
- उदाहरण के लिए : ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ को लागू करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि कर्मचारी फिर भी कार्यस्थल संस्कृति के कारण काम के घंटों के बाद भी ईमेल और संदेशों का जवाब देने के लिए बाध्य महसूस करते हैं।
- सांस्कृतिक प्रतिरोध: कुछ क्षेत्रों में गहरी जड़ें जमाए हुए कार्य संस्कृतियाँ और अपेक्षाएँ कार्य के घंटों के बाद डिस्कनेक्ट करने की स्वीकृति में बाधा डाल सकती हैं।
- उदाहरण के लिए: भारत में, IT और कंसल्टिंग जैसे उद्योगों में अक्सर लंबे समय तक कार्य करने की संस्कृति होती है, जिससे कर्मचारियों के लिए डिस्कनेक्ट करने के अधिकार को पूरी तरह से अपनाना मुश्किल हो जाता है।
- वैश्विक परिचालन पर प्रभाव: वैश्विक परिचालन वाली कंपनियों को अलग-अलग टाइम जोन में सहयोग करने की आवश्यकता के कारण डिस्कनेक्ट करने के अधिकार को लागू करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
- उदाहरण के लिए: गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अलग-अलग टाइम जोन में कार्य करने वाली वैश्विक टीमों के साथ स्थानीय कानूनों को संतुलित करना पड़ता है, जिससे डिस्कनेक्ट प्रक्रिया जटिल हो जाती है।
- जागरूकता और समझ का अभाव: कई कर्मचारी अपने डिस्कनेक्ट होने के अधिकार को पूरी तरह से नहीं समझ पाते हैं या नियमों के बावजूद काम करने के लिए दबाव महसूस करते हैं।
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आगे की राह
- स्पष्ट कानून और दिशा-निर्देश: भारत को डिस्कनेक्ट करने के अधिकार को रेखांकित करने वाले स्पष्ट कानून बनाने चाहिए, साथ ही नियोक्ताओं और कर्मचारियों दोनों के लिए दिशा-निर्देश भी बनाने चाहिए।
- उदाहरण के लिए: फ्रांस का कानून, श्रमिकों और नियोक्ताओं दोनों के लिए स्पष्ट नियम प्रदान करता है, यह सुनिश्चित करता है कि श्रमिकों से बिना किसी मुआवजे के आधिकारिक घंटों से अधिक कार्य करने की उम्मीद न की जाये।
- जागरूकता और प्रशिक्षण को बढ़ावा देना: नियोक्ताओं और कर्मचारियों दोनों के लिए जागरूकता बढ़ाना और प्रशिक्षण आयोजित करना, डिस्कनेक्ट करने के अधिकार को समझने और उसका सम्मान करने में मदद कर सकता है।
- लचीले कार्य व्यवहार को प्रोत्साहित करना: सीमाओं को बनाए रखते हुए लचीली कार्य–अवधि और दूरस्थ कार्य विकल्पों को प्रोत्साहित करना, डिस्कनेक्ट करने के अधिकार को लागू करने में मदद कर सकता है।
- उदाहरण के लिए: ऑस्ट्रेलिया का फेयर वर्क संशोधन 2023,लचीलेपन और डिस्कनेक्शन के बीच संतुलन को बढ़ावा देता है, जिससे कर्मचारियों को काम से संबंधित संचार को रोकने के लिए सीमाएँ निर्धारित करने की अनुमति मिलती है।
- कर्मचारी कल्याण को प्रोत्साहित करना: नियोक्ताओं को मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण संबंधी पहलों को प्रोत्साहित करना चाहिए जो कर्मचारियों के डिस्कनेक्ट होने के अधिकार का समर्थन करते हैं, तथा सकारात्मक कार्य संस्कृति को बढ़ावा देते हैं।
- वैश्विक सर्वोत्तम अभ्यास और अनुकूलन: भारत कार्य-जीवन संतुलन और कर्मचारी अधिकारों के सफल अंतरराष्ट्रीय मॉडलों को स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप ढालते हुए उन्हें अपना सकता है।
- उदाहरण के लिए: आयरलैंड ने कर्मचारियों के लिए डिस्कनेक्ट होने के अधिकार को मान्यता दी , जिसमें यह अनिवार्य किया गया कि जब कर्मचारी कार्यालय में न हों तो उन्हें ऑफिस से संबंधित कार्यों से अलग होने की स्वतंत्रता हो।
‘राइट टू डिस्कनेक्ट’, भारत में कार्य संस्कृति को नया आकार दे सकता है, जो फ्रांस और स्वीडन की नीतियों जैसी वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं के साथ संरेखित है। यह एक स्वस्थ कार्य वातावरण को बढ़ावा देता है, कर्मचारी कल्याण में सुधार करता है और आर्थिक उत्पादकता को बढ़ाता है। भारत में इस तरह के कानून को लागू करना, जैसा कि अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की रिपोर्टों में बताया गया है, कार्य-जीवन संतुलन और आर्थिक विकास में काफी सुधार कर सकता है।
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