प्रश्न की मुख्य माँग
- UGC दिशानिर्देश 2024 के प्रारूप में प्रस्तावित प्रमुख सुधारों पर प्रकाश डालिये।
- भारत में उच्च शिक्षा संस्थानों की गुणवत्ता में बेहतरी लाने हेतु सुधारों की संभावनाओं का परीक्षण कीजिए।
- UGC दिशानिर्देश 2024 के प्रारूप में प्रस्तावित सुधारों की कमियों पर चर्चा कीजिए।
- आगे की राह लिखिये।
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उत्तर
UGC (स्नातक डिग्री और स्नातकोत्तर डिग्री प्रदान करने के लिए निर्देश के न्यूनतम मानक) विनियम, 2024 का उद्देश्य लचीले, समावेशी और अभिनव उपायों को लागू करके भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाना है। इन सुधारों को पाठ्यक्रम को आधुनिक बनाने , कठोर शैक्षणिक संरचनाओं को लचीली बनाने, पहुँच और गुणवत्ता में लंबे समय से चली आ रही चुनौतियों का समाधान करने के लिए डिजाइन किया गया है ।
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UGC दिशानिर्देश 2024 के प्रारूप में प्रस्तावित प्रमुख सुधार
- द्वि-वार्षिक प्रवेश: इस प्रारूप में प्रस्ताव है कि UG और PG पाठ्यक्रमों में द्वि-वार्षिक प्रवेश की सुविधा दी जाए, जिससे शिक्षा में लचीलापन और पहुँच बढ़े।
- उदाहरण के लिए: यह परिवर्तन छात्रों को जनवरी और जुलाई दोनों में शैक्षणिक कार्यक्रमों में शामिल होने की अनुमति दे सकता है, जिससे नए प्रवेश के लिए अधिक अवसर मिलेंगे, विशेषकर उन छात्रों के लिए जो प्रवेश लेने से चूक जाते हैं।
- अंत: विषयगत शिक्षण में लचीलापन: छात्र अपनी पिछली शैक्षणिक स्ट्रीम की परवाह किए बिना विभिन्न विषयों में पाठ्यक्रम चुन सकते हैं, जिससे उन्हें शैक्षिक विकल्पों में अधिक स्वतंत्रता मिलती है।
- उदाहरण के लिए: विज्ञान पृष्ठभूमि वाला छात्र एक प्रासंगिक राष्ट्रीय योग्यता परीक्षा उत्तीर्ण करके मानविकी पाठ्यक्रम चुन सकता है। इससे अंतःविषय शिक्षण को बढ़ावा मिलता है।
- पाठ्यक्रमों में तेजी और विस्तार: छात्रों के लिए अपनी शैक्षणिक अवधि को कम करने या बढ़ाने का विकल्प, जैसे कि दो वर्षों में एक कोर्स पूरा करना या इसे चार वर्षों तक बढ़ाना, व्यक्तिगत शिक्षण के मार्गों को प्रोत्साहित करता है।
- उदाहरण के लिए: छात्र ऑनलाइन और ऑफलाइन पढ़ाई को संतुलित करते हुए हाइब्रिड लर्निंग मॉडल चुन सकते हैं, जो उनकी आवश्यकताओं के आधार पर पाठ्यक्रमों को तीव्र से या धीमी गति से पूरा करने की सुविधा प्रदान करता है।
- मल्टीपल डिग्री: यह प्रारूप, छात्रों को एक साथ कई डिग्री हासिल करने की अनुमति देता है , बशर्ते कि वे भौतिक रूप से दो कार्यक्रमों में नामांकित न हों।
- उदाहरण के लिए: एक छात्र ग्राफिक डिजाइन में डिप्लोमा के साथ-साथ इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री हासिल कर सकता है , जिससे विविध योग्यताओं के साथ उनकी रोज़गार क्षमता बढ़ जाती है।
- संस्थानों के लिए स्वायत्तता: दिशा-निर्देश उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए अधिक स्वायत्तता का प्रस्ताव करते हैं, विशेष रूप से उपस्थिति आवश्यकताओं और शैक्षणिक कैलेंडर निर्धारित करने में।
- उदाहरण के लिए: दिल्ली विश्वविद्यालय जैसे विश्वविद्यालय अपने स्वयं के उपस्थिति मानदंड निर्धारित कर सकते हैं, जिससे छात्रों की आवश्यकताओं के अनुरूप शैक्षणिक कठोरता बनाए रखते हुए इस संदर्भ में लचीलापन भी प्रदान किया जा सके।
भारत में उच्च शिक्षा संस्थानों की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए सुधारों की संभावना
- शिक्षण में लचीलापन बढ़ाना: अंत: विषयगत शिक्षण में लचीलापन और मल्टीपल डिग्री का विकल्प प्रदान करने से छात्रों को अधिक व्यक्तिगत शिक्षा प्राप्त करने की सुविधा मिलती है ।
- उदाहरण के लिए: वणिज्य क्षेत्र का एक छात्र कंप्यूटर विज्ञान पाठ्यक्रम का विकल्प चुन सकता है , जो उन्हें वित्तीय प्रौद्योगिकी (फिनटेक) जैसे उभरते क्षेत्रों के लिए तैयार करता है।
- बेहतर कौशल विकास: पारंपरिक शैक्षणिक शिक्षा के साथ-साथ कौशल-आधारित शिक्षा पर जोर देना, कार्यबल का हिस्सा बनने के लिए तैयार स्नातकों की बढ़ती माँग के साथ संरेखित है।
- उदाहरण के लिए: नेशनल क्रेडिट फ्रेमवर्क (NCrF) व्यावसायिक और शैक्षणिक शिक्षा को एकीकृत करता है, जिससे छात्रों को आईटी डिग्री हासिल करने के साथ-साथ ग्राफिक डिजाइन जैसे कौशल हासिल करने की अनुमति मिलती है।
- हाइब्रिड लर्निंग मॉडल: हाइब्रिड लर्निंग की ओर बदलाव से देश भर के छात्रों के लिए
पहुँच और सामर्थ्य के संबंध में वृद्धि हो सकती है, विशेषकर दूरदराज के इलाकों में।
- उदाहरण के लिए: SWAYAM पोर्टल में उपलब्ध ऑनलाइन पाठ्यक्रम ग्रामीण भारत के छात्रों को दूर से ही प्रतिष्ठित संस्थानों में पढ़ने का मौका दे सकते हैं, जिससे शिक्षा के लिए भौगोलिक बाधाएँ खत्म हो सकती हैं।
- शिक्षा तक बेहतर पहुंच: द्वि-वार्षिक प्रवेश से छात्रों को उच्च शिक्षा में प्रवेश के लिए अधिक अवसर मिलते हैं, जिससे यह व्यापक जनसांख्यिकीय वर्ग के लिए सुलभ हो जाता है।
- वैश्विक मानकों का संरेखण: प्रस्तावित सुधारों का उद्देश्य भारत की शिक्षा प्रणाली को वैश्विक मानकों के साथ संरेखित करना, अधिक अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और छात्र गतिशीलता को बढ़ावा देना है।
- उदाहरण के लिए: अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिट पर अधिक ध्यान देने के साथ, छात्र अपने अर्जित क्रेडिट को वैश्विक स्तर पर संस्थानों के बीच स्थानांतरित कर सकते हैं, जिससे भारतीय उच्च शिक्षा की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ जाती है।
UGC दिशानिर्देश 2024 के प्रारूप में प्रस्तावित सुधारों की कमियाँ
- संसाधन की कमी: भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली अपर्याप्त संकाय, कम वित्तपोषित संस्थान और सुप्रशिक्षित शिक्षकों की कमी जैसी चुनौतियों का सामना कर रही है, जो सुधारों के कार्यान्वयन में बाधा बन सकती हैं।
- उदाहरण के लिए : भारत में कई सरकारी विश्वविद्यालयों में अभी भी उचित संसाधनों की कमी है, और यह हाइब्रिड लर्निंग व मल्टिपल डिग्री ऑफरिंग जैसे सुधारों की सफलता को कमजोर कर सकता है ।
- विनियामक विसंगतियाँ: कई संबद्ध कॉलेज नए नियमों को पूरा करने में संघर्ष कर सकते हैं, जिससे दी जाने वाली शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है।
- उदाहरण के लिए: छोटे निजी कॉलेजों के लिए सीमित बुनियादी ढाँचे और पुरानी शिक्षण पद्धतियों के कारण अंत:विषयगत शिक्षण में लचीलेपन जैसे बदलावों को लागू करना मुश्किल हो सकता है ।
- परिवर्तन का प्रतिरोध: सुस्थापित शैक्षणिक संस्थान अकादमिक बैंक ऑफ क्रेडिट्स (ABC) जैसे सुधारों का विरोध कर सकते हैं , जो पारंपरिक संरचनाओं को बाधित करते हैं।
- निवेश की कमी : इन सुधारों के कार्यान्वयन के लिए अपर्याप्त धन और वित्तीय सहायता ,इस दिशा में प्रगति को धीमा कर सकती है।
- उदाहरण के लिए: वर्ष 2024-25 के केंद्रीय बजट में उच्च शिक्षा के लिए बजट आवंटन में 17% की कमी की गई , जिससे सुधारों के लिए आवश्यक बुनियादी ढाँचे के विकास में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
- राज्य सरकार का अनुपालन: शिक्षा का समवर्ती सूची में होने का अर्थ है, कि राज्य सरकारों को इन सुधारों को अपनाना होगा, लेकिन कुछ राज्य केंद्रीय दिशानिर्देशों का पूरी तरह से अनुपालन करने से पीछे हट सकते हैं।
आगे की राह
- वित्त पोषण और संसाधनों को सुव्यवस्थित करना: इन सुधारों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए विश्वविद्यालयों और व्यावसायिक शिक्षा संस्थानों के लिए वित्त पोषण में वृद्धि होना आवश्यक है।
- उदाहरण के लिए: सरकार को कम वित्त पोषित संस्थानों को नए हाइब्रिड लर्निंग मॉडल में बदलने और अंत: विषयगत शिक्षण कार्यक्रम लागू करने में मदद करने के लिए लक्षित वित्तीय सहायता पर विचार करना चाहिए।
- बेहतर संकाय प्रशिक्षण: नवीन शिक्षण पद्धतियों और तकनीकी प्रगति के साथ तालमेल बनाए रखने के लिए संकाय को बेहतर बनाने और निरंतर पेशेवर विकास प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: IGNOU जैसे संस्थानों को संकाय प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रदान करने के लिए समर्थन दिया जाना चाहिए ताकि शिक्षक आधुनिक शिक्षण तकनीकों को प्रभावी ढंग से अपना सकें।
- राज्यों को इन सुधारों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना: राज्यों को स्थानीय स्तर पर सुधारों को अपनाने और लागू करने के लिए प्रोत्साहन प्रदान किया जाना चाहिए, जिससे पूरे भारत में इनके कार्यान्वयन में एकरूपता सुनिश्चित हो सके।
- उदाहरण के लिए: दिशानिर्देशों के तेजी से अनुपालन के लिए राज्य-विशिष्ट प्रोत्साहन की पेशकश राज्यों को सुधारों को सक्रिय रूप से लागू करने के लिए प्रेरित कर सकती है।
- जन जागरूकता अभियान: अकादमिक बैंक ऑफ क्रेडिट और बहु डिग्री जैसे सुधारों के लाभों के बारे में जागरूकता उत्पन्न करने से छात्रों और शैक्षणिक संस्थानों द्वारा होने वाला प्रतिरोध कम हो सकता है।
- उद्योग-अकादमिक भागीदारी को मजबूत करना: निजी क्षेत्र के साथ सहयोग, पाठ्यक्रम डिजाइन में नवाचार को बढ़ावा दे सकता है और यह सुनिश्चित कर सकता है कि ये शैक्षिक सुधार उद्योग की आवश्यकताओं से मेल खाते हों।
- उदाहरण के लिए: इन्फोसिस और टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS) को कौशल-आधारित पाठ्यक्रम प्रदान करने के लिए विश्वविद्यालयों के साथ साझेदारी करनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि छात्र स्नातक होने पर नौकरी के लिए तैयार हों।
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UGC दिशा-निर्देश 2024 के प्रारूप का सफल क्रियान्वयन भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली को वैश्विक मानकों के अनुरूप ढालने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 में शिक्षा के लिए जीडीपी का 6% आवंटन करने का लक्ष्य रखा गया है, जिससे भारत एक अधिक प्रत्यास्थ और भविष्य के लिए तैयार शिक्षा पारिस्थितिकी तंत्र बनाने की राह पर है। चुनौतियों पर काबू पाकर और स्थायी सुधारों पर ध्यान केंद्रित करके, भारत अपनी शैक्षिक आकांक्षाओं को प्राप्त कर सकता है और आने वाले दशकों में राष्ट्रीय विकास को गति दे सकता है।
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