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Q. न्यायिक कदाचार (Judicial Misconduct) की रिपोर्टिंग के लिए मौजूदा तंत्र की प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिये। जवाबदेही बढ़ाने के लिए इन तंत्रों को कैसे बेहतर बनाया जा सकता है? (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • न्यायिक कदाचार की रिपोर्ट करने के लिए मौजूदा तंत्र की प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिये।
  • जाँच करें कि जवाबदेही बढ़ाने के लिए इन तंत्रों को कैसे बेहतर बनाया जा सकता है।

 

उत्तर:

भारत में न्यायिक कदाचार का तात्पर्य अनैतिक व्यवहार या कार्यों से है जो न्यायाधीशों या न्यायालय के अधिकारियों द्वारा न्यायिक नैतिकता का उल्लंघन करते हैं। हालाँकि ऐसे कदाचार की रिपोर्ट करने के लिए तंत्र मौजूद हैं, जिनमें न्यायपालिका की आंतरिक प्रक्रिया एवं महाभियोग शामिल हैं, इन प्रणालियों की अक्सर पारदर्शिता तथा जवाबदेही की कमी के लिए आलोचना की जाती है। यह मुद्दा न्यायपालिका की अखंडता को बनाए रखने एवं कानूनी संस्थानों में जनता का विश्वास सुनिश्चित करने को लेकर चिंता उत्पन्न करता है।

न्यायिक कदाचार की रिपोर्ट करने के लिए मौजूदा तंत्र की प्रभावशीलता

  • न्यायपालिका की आंतरिक प्रक्रिया: न्यायपालिका के पास कदाचार के आरोपों को संबोधित करने के लिए एक आंतरिक तंत्र है। हालाँकि, इस प्रक्रिया में पारदर्शिता का अभाव है क्योंकि कार्यवाही अक्सर सार्वजनिक नहीं की जाती है। 
    • उदाहरण के लिए: कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सौमित्र सेन की जाँच उनके इस्तीफे से पहले इन-हाउस की गई थी।
  • महाभियोग प्रक्रिया: संविधान (अनुच्छेद 124) गंभीर कदाचार के मामलों में न्यायाधीशों पर महाभियोग चलाने का प्रावधान करता है, हालाँकि यह प्रक्रिया दुर्लभ है एवं इसके लिए साक्ष्य की उच्च सीमा की आवश्यकता होती है, जिसमें संसद के दोनों सदनों के माध्यम से बहु-चरणीय प्रक्रिया शामिल होती है। 
    • उदाहरण के लिए: न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव शुरू किया गया था लेकिन वर्ष 2018 में उपराष्ट्रपति ने इसे खारिज कर दिया।
  • बाहरी निरीक्षण: वर्तमान तंत्र महत्त्वपूर्ण बाहरी निरीक्षण की अनुमति नहीं देते हैं, जिससे कदाचार की निष्पक्ष जाँच सुनिश्चित करना मुश्किल हो जाता है।
    • उदाहरण के लिए: लोकपाल के विपरीत, जो सरकारी अधिकारियों की देखरेख करता है, न्यायिक निगरानी के लिए कोई समान स्वतंत्र निकाय नहीं है।
  • कॉलेजियम प्रणाली: कदाचार की रिपोर्ट करने की प्रक्रिया कॉलेजियम प्रणाली द्वारा बाधित होती है, जिसकी अपारदर्शी एवं स्व-विनियमन के लिए आलोचना की जाती है।
    • उदाहरण के लिए: कदाचार के आरोपों के बावजूद न्यायाधीशों की पदोन्नति कॉलेजियम प्रणाली के तहत सार्वजनिक प्रकटीकरण के बिना जारी रहती है।
  • बार एसोसिएशन: हालाँकि बार एसोसिएशन न्यायिक कदाचार की रिपोर्ट कर सकते हैं, लेकिन उनका प्रभाव अक्सर सीमित होता है, एवं उनकी शिकायतों से पर्याप्त जाँच नहीं हो पाती है।
    • उदाहरण के लिए: पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के खिलाफ शिकायतों पर बार एसोसिएशनों द्वारा सख्ती से कार्रवाई नहीं की गई।
  • जनता के लिए एक स्पष्ट रिपोर्टिंग तंत्र का अभाव: आम जनता के लिए न्यायिक कदाचार की रिपोर्ट करने के लिए कोई अच्छी तरह से परिभाषित तंत्र नहीं है, जिससे न्याय तक पहुँचने में बाधा उत्पन्न होती है।
    • उदाहरण के लिए: वादियों द्वारा रिपोर्ट किए गए न्यायिक पूर्वाग्रह या अनुचित व्यवहार के मामले औपचारिक प्रक्रिया के अभाव के कारण अक्सर अनसुने रह जाते हैं।

जवाबदेही बढ़ाने के लिए तंत्र में सुधार के उपाय

  • एक स्वतंत्र निरीक्षण निकाय की स्थापना: न्यायपालिका से स्वतंत्र एक तटस्थ निकाय, बिना पक्षपात के कदाचार के आरोपों की जाँच कर सकता है।
    • उदाहरण के लिए: निष्पक्ष जाँच के लिए केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) के अनुरूप एक राष्ट्रीय न्यायिक आयोग बनाया जा सकता है।
  • व्हिसलब्लोअर सुरक्षा तंत्र का परिचय: न्यायाधीशों एवं न्यायालय के कर्मचारियों को प्रतिशोध के डर के बिना कदाचार की रिपोर्ट करने के लिए व्हिसलब्लोअर नीति के तहत संरक्षित किया जाना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: न्यायिक कर्मचारियों को कवर करने एवं गलत कार्यों की रिपोर्ट करने में उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए व्हिसलब्लोअर प्रोटेक्शन एक्ट (2015) का विस्तार किया जा सकता है।
  • कॉलेजियम के निर्णयों में पारदर्शिता बढ़ाना: कॉलेजियम प्रणाली को न्यायाधीशों को ऊपर उठाने या हटाने के निर्णयों एवं तर्कों को प्रकाशित करना चाहिए, विशेषकर जब आरोप शामिल हों।
    • उदाहरण के लिए: किसी न्यायाधीश की नियुक्ति को अस्वीकार करने के कारणों का खुलासा करने से न्यायपालिका में जनता का विश्वास बढ़ेगा।
  • बार एसोसिएशनों को सशक्त बनाना: बार एसोसिएशनों को न्यायिक कदाचार के मामलों को बढ़ाने के लिए अधिक अधिकार एवं तंत्र दिए जाने चाहिए, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि शिकायतों का प्रभावी ढंग से समाधान किया जा सके।
    • उदाहरण के लिए: बार काउंसिल ऑफ इंडिया गहन जाँच सुनिश्चित करने के लिए न्यायिक निकायों के साथ सहयोग कर सकती है।
  • न्यायिक महाभियोग प्रक्रियाओं में तेजी लाना: न्यायाधीशों को समय पर जवाबदेह ठहराने के लिए महाभियोग प्रक्रिया को तेज एवं राजनीतिक रूप से कम प्रेरित किया जाना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: महाभियोग प्रस्तावों के लिए समयबद्ध जाँच स्थापित करने से देरी को रोका जा सकेगा, जैसा कि पिछले मामलों में देखा गया है।
  • सार्वजनिक शिकायत पोर्टल बनाना: एक पारदर्शी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म जहाँ नागरिक स्पष्ट दिशानिर्देशों एवं अनुवर्ती कार्रवाई के साथ न्यायिक कदाचार की रिपोर्ट कर सकते हैं, इस प्रक्रिया को और अधिक सुलभ बना देगा।
    • उदाहरण के लिए: पारदर्शिता एवं शिकायतों पर नजर रखने के लिए लोक शिकायत पोर्टल का एक न्यायिक संस्करण स्थापित किया जा सकता है।
  • न्यायिक जवाबदेही विधेयक को लागू करना: न्यायिक मानक एवं जवाबदेही विधेयक, 2010 को पारित करने से न्यायिक आचरण पर प्रभावी जाँच होगी तथा औपचारिक रिपोर्टिंग चैनल स्थापित होंगे।
    • उदाहरण के लिए: विधेयक में पारदर्शिता बढ़ाने, न्यायाधीशों की संपत्ति का अनिवार्य खुलासा करने का प्रस्ताव है।

भारत में न्यायिक कदाचार की रिपोर्ट करने के तंत्र में अधिक जवाबदेही एवं पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए तत्काल सुधार की आवश्यकता है। स्वतंत्र निरीक्षण निकायों की स्थापना करके, बार एसोसिएशनों की भूमिका बढ़ाकर तथा स्पष्ट सार्वजनिक रिपोर्टिंग प्रणाली लागू करके, न्यायपालिका अपनी अखंडता में सुधार कर सकती है। इससे न केवल जनता का विश्वास पुनर्स्थापित होगा बल्कि कानूनी ढाँचे के भीतर न्याय, निष्पक्षता एवं तटस्थता के मूल्यों को भी कायम रखा जा सकेगा।

 

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