Q. निकट भविष्य में वैश्विक तापमान में कमी लाने के लिए मीथेन में कमी बहुत ज़रूरी है।" भारत के मीथेन उत्सर्जन के प्रमुख स्रोतों और प्रत्येक क्षेत्र में कमी के संभावित उपायों के संदर्भ में कथन की जाँच कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारत के मीथेन उत्सर्जन के प्रमुख स्रोतों के संदर्भ में विश्लेषण कीजिए कि निकट भविष्य में ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए मीथेन में कमी लाना किस प्रकार से महत्वपूर्ण है।
  • मीथेन उत्सर्जन को कम करने में आने वाली प्रमुख चुनौतियों का उल्लेख कीजिए।
  • प्रत्येक क्षेत्र में मीथेन की कमी लाने के लिए संभावित उपाय सुझाइये।

उत्तर

मीथेन, एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है, जो 100 वर्षों की अवधि में कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में 25 गुना अधिक वार्मिंग क्षमता के साथ ग्लोबल वार्मिंग की समस्या में योगदान देती है। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के ग्लोबल मीथेन ट्रैकर 2024 के अनुसार , ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 °C तक सीमित करने के लिए  वर्ष 2030 तक जीवाश्म ईंधन से होने वाले मीथेन उत्सर्जन में 75% की कटौती करना अति महत्वपूर्ण है। भारत में, मीथेन उत्सर्जन के प्रमुख स्रोतों में कृषि, अपशिष्ट प्रबंधन और ऊर्जा क्षेत्र शामिल हैं, जिससे निकट भविष्य में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए लक्षित कमी लाने से संबंधित रणनीतियाँ आवश्यक हो जाती हैं।

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भारत में ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए मीथेन में कमी लाने का महत्व

  • कृषि उत्सर्जन: भारत में विशेष तौर पर जलमग्न खेतों में होने वाली धान की खेती, अवायवीय अपघटन (Anaerobic Decomposition) के कारण अधिक मात्रा में मीथेन उत्पन्न करती है। भारत के मीथेन फुटप्रिंट को कम करने के लिए धान के खेतों से होने वाले उत्सर्जन को कम करना आवश्यक है। 
    • उदाहरण के लिए: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) द्वारा किए गए एक शोध में बताया गया है कि अल्टरनेट वेटिंग और ड्राइंग (AWD) विधियों से चावल के खेतों से होने वाले मीथेन उत्सर्जन में 50% तक की कमी आ सकती है।
  • पशुधन प्रबंधन: मवेशियों में होने वाला आंत्र किण्वन (Enteric Fermentation ), मीथेन का एक प्राथमिक स्रोत है, जो भारत की बड़ी पशुधन आबादी से जुड़ा हुआ है। प्रभावी रूप से मीथेन में कमी‌ लाने के लिए पशुधन उत्सर्जन को संबोधित करना अति महत्वपूर्ण है। 
    • उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय पशुधन मिशन ऐसे फीड सप्लीमेंट को बढ़ावा देता है जो मवेशियों द्वारा किये जाने वाले मीथेन उत्सर्जन को कम करते हैं, जिससे कृषि आजीविका का समर्थन करते हुए जलवायु प्रभावों को कम करने में मदद मिलती है।
  • अपशिष्ट प्रबंधन: लैंडफिल में जैविक अपशिष्ट के विघटन से मीथेन गैस निकलती है। बेहतर अपशिष्ट पृथक्करण और पुनर्चक्रण प्रक्रिया से इस क्षेत्र से होने वाले उत्सर्जन में काफी कमी आ सकती है। 
    • उदाहरण के लिए: स्वच्छ भारत मिशन जैसी पहल अपशिष्ट प्रबंधन प्रथाओं को बढ़ावा देती है जो लैंडफिल अपशिष्ट को कम करती हैं, जिससे शहरी क्षेत्रों से मीथेन उत्सर्जन कम होता है।
  • तेल और गैस क्षेत्र: तेल और गैस के निष्कर्षण, प्रसंस्करण और परिवहन के दौरान होने वाला मीथेन रिसाव, मीथेन उत्सर्जन का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। इन उत्सर्जनों को नियंत्रित करना भारत के ऊर्जा संक्रमण लक्ष्यों के लिए महत्वपूर्ण है। 
    • उदाहरण के लिए: ONGC ने वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा के प्रति भारत की प्रतिबद्धता के अनुरूप, विभिन्न तेल क्षेत्रों में मीथेन कैप्चर प्रौद्योगिकी को क्रियान्वित किया है।
  • कोयला खनन: कोयला खनन गतिविधियों के दौरान अक्सर मीथेन उत्सर्जित होती है। कोयला खदानों में मीथेन कैप्चर तकनीकि को लागू करने से मीथेन उत्सर्जन कम हो सकता है और स्वच्छ ऊर्जा स्रोत के रूप में मीथेन का पुनः उपयोग किया जा सकता है।
    • उदाहरण के लिए: कोल इंडिया लिमिटेड प्रमुख खनन क्षेत्रों में मीथेन कैप्चर परियोजनाओं को लागू करने पर विचार कर रही है, जिसका उद्देश्य उत्सर्जन को कम करते हुए ऊर्जा दक्षता को बढ़ाना है।

मीथेन उत्सर्जन को कम करने में प्रमुख चुनौतियाँ

  • आर्थिक बाधाएँ: मीथेन कम करने वाली तकनीकों  के लिए पर्याप्त निवेश की आवश्यकता होती है, जो पारंपरिक विधियों पर निर्भर क्षेत्रों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: छोटे पैमाने के किसानों को सीमित वित्तीय सहायता के कारण AWD जैसी तकनीकों को अपनाना मुश्किल हो सकता है, जिससे कृषि उत्सर्जन को कम करने के प्रयास प्रभावित हो सकते हैं।
  • तकनीकी कमियाँ: प्रभावी मीथेन कैप्चर और उपयोग के लिए उन्नत तकनीक की आवश्यकता होती है, जो अक्सर दूरदराज या संसाधन-सीमित क्षेत्रों में उपलब्ध नहीं होती है। 
    • उदाहरण के लिए: कोयला खनन क्षेत्रों में मीथेन कैप्चर को उच्च प्रारंभिक सेटअप लागत और भूमिगत संचालन में तकनीकी जटिलताओं के कारण बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
  • विनियामक अंतराल: मीथेन-विशिष्ट सख्त विनियमों की कमी से उद्योग जगत में मीथेन उत्सर्जन में कमी लाने का कार्य चुनौतीपूर्ण हो जाता है। 
    • उदाहरण के लिए: वर्तमान पर्यावरण नीतियाँ CO₂ पर अधिक ध्यान केंद्रित करती हैं जिनमें मीथेन उत्सर्जन को लक्षित करने वाले सीमित दिशा-निर्देश हैं, जिससे मीथेन शमन के लिए विनियामक दबाव कम हो जाता है।
  • जन जागरूकता: जलवायु परिवर्तन पर मीथेन के प्रभाव के बारे में कम जागरूकता, मीथेन उत्सर्जन को कम करने की प्रथाओं को व्यापक रूप से अपनाने में बाधा डालती है।
  • निगरानी और रिपोर्टिंग: मीथेन उत्सर्जन पर सटीक डेटा संग्रह करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है, जिससे इस संबंध में होने वाली प्रगति को ट्रैक करना और उत्सर्जन में कमी लाने के लक्ष्यों को लागू करना मुश्किल हो जाता है। 
    • उदाहरण के लिए: कई लघु और मध्यम उद्यमों में मीथेन उत्सर्जन की प्रभावी रूप से निगरानी करने की क्षमता का अभाव है, जिसके कारण मीथेन उत्सर्जन में कमी लाने से संबंधित सटीक  डाटा प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है।

प्रमुख क्षेत्रों द्वारा होने वाले मीथेन उत्सर्जन में कमी  लाने के संभावित उपाय

  • कृषि : AWD को लागू करने और कम मीथेन वाली चावल की किस्मों को बढ़ावा देने से चावल के खेतों से होने वाले मीथेन उत्सर्जन को काफी हद तक कम किया जा सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: सतत कृषि के लिए राष्ट्रीय मिशन, AWD को प्रोत्साहित करने वाली पहलों का समर्थन करता है, जिससे किसानों को मीथेन उत्सर्जन को कम करने वाली सतत प्रथाओं को अपनाने में मदद मिलती है।
  • पशुधन: आंत्र किण्वन को कम करने वाले फीड एडिटिव्स का उपयोग और बेहतर खाद प्रबंधन प्रथाओं को बढ़ावा देने से पशुधन क्षेत्र द्वारा किये जाने वाले मीथेन उत्सर्जन पर अंकुश लगाया जा सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय पशुधन मिशन के अंतर्गत उपलब्ध कराए गए रूमेन मॉडिफॉयर्स (Rumen Modifiers)  और पूरक आहार ने मवेशियों द्वारा किये जाने वाले मीथेन उत्सर्जन को कम करने कि दिशा  में आशाजनक परिणाम दिखाए हैं।
  • अपशिष्ट प्रबंधन: अपशिष्ट पृथक्करण, कम्पोस्टिंग और बायोमेथेनेशन तकनीकों को उन्नत करके जैविक अपशिष्ट से होने वाले मीथेन उत्सर्जन को कम किया जा सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: स्वच्छ भारत मिशन, शहरों में कम्पोस्टिंग संयंत्र स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिससे लैंडफिल में भेजे जाने वाले जैविक कचरे की मात्रा कम हो जाती है और मीथेन उत्सर्जन कम हो जाता है।
  • तेल और गैस: तेल और गैस परिचालन में ‘लीक डिटेक्शन एंड रिपेयर’ (LDAR) तकनीक का उपयोग करने से मीथेन रिसाव को रोकने में मदद मिल सकती है। 
    • उदाहरण के लिए: ONGC, तेल क्षेत्रों में मीथेन रिसाव की निगरानी और नियंत्रण के लिए LDAR प्रणाली का उपयोग करता है, जो वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा के तहत भारत के लक्ष्यों में योगदान देता है
  • कोयला खनन: कोयला खनन कार्यों में मीथेन कैप्चर और भंडारण तकनीक का उपयोग करके मीथेन को उपयोगी ऊर्जा स्रोत में परिवर्तित किया जा सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: कोल इंडिया झारखंड में मीथेन कैप्चर परियोजनाओं का संचालन कर रही है, जहाँ कैप्चर की गई मीथेन का उपयोग विद्युत उत्पादन के लिए किया जाता है, जो मीथेन उत्सर्जन के संधारणीय उपयोग को दर्शाता है।

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भारत के लिए निकट भविष्य के जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने और ग्लोबल वार्मिंग को कम करने हेतु मीथेन में कमी लाना महत्वपूर्ण है। हालाँकि कृषि, पशुधन प्रबंधन, अपशिष्ट, तेल और गैस, और कोयला खनन जैसे क्षेत्रों में चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं, विनियमन, प्रौद्योगिकी और जागरूकता के माध्यम से प्रभावी रणनीतियों को लागू करने से मीथेन शमन प्रयासों को अधिक उन्नत किया  जा सकता है क्योंकि भारत अपनी जलवायु प्रतिबद्धताओं को पूरा करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है अतः सतत विकास और पर्यावरणीय प्रत्यास्थता के लिए भारत के सभी क्षेत्रों के मीथेन उत्सर्जन में कमी लाने हेतु एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

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