प्रश्न की मुख्य माँग
- ग्रामीण आजीविका को बनाए रखने में मनरेगा की भूमिका।
- व्यय सीमा लागू होने के बाद उभरती चुनौतियाँ, जो इसके माँग आधारित स्वरूप और समग्र प्रभावशीलता को प्रभावित करती हैं।
- आगे की राह।
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उत्तर
वर्ष 2005 में लागू, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) भारत का सबसे बड़ा माँग आधारित ग्रामीण रोजगार सुरक्षा तंत्र है, जो कानूनी रूप से प्रति परिवार वार्षिक 100 दिनों के कार्य की कानूनी गारंटी देता है। यह आजीविका के लिए एक महत्त्वपूर्ण सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करता है, ग्रामीण आय को स्थिर करता है, मुद्रास्फीति के प्रभाव को कम करता है और नौकरी छूटने के दौरान उपभोग को बनाए रखता है। जून 2025 तक, 27.59 मिलियन से अधिक परिवारों ने इस योजना के तहत काम की माँग की, जो बढ़ते ग्रामीण संकट और आर्थिक प्रत्यास्थता में इसकी सतत् भूमिका को दर्शाता है।
ग्रामीण आजीविका को बनाए रखने में मनरेगा की भूमिका
- संकट के समय आय का सहारा: अन्य स्रोतों के विफल होने पर वेतन आधारित रोजगार प्रदान करता है, जिससे उपभोग की निरंतरता सुनिश्चित होती है। उदाहरण: कोविड-19 महामारी के दौरान, मनरेगा ने बड़ी संख्या में वापस लौटे प्रवासी श्रमिकों को रोजगार उपलब्ध कराया और उन्हें आय के अवसर प्रदान किए।
- ग्रामीण उपभोग को स्थिर करना: मनरेगा से नियमित आय ग्रामीण मांग को बढ़ावा देती है और स्थानीय बाजारों को सहारा देती है।
- वंचित वर्गों को सहायता: दूरदराज के इलाकों में महिलाओं, अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों और भूमिहीन मजदूरों को रोजगार उपलब्ध करता है। उदाहरण के लिए: अधिनियम में कम से कम एक-तिहाई लाभार्थियों का होना अनिवार्य किया गया है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में लैंगिक समानता को बढ़ावा मिलता है और महिलाओं का सशक्तीकरण होता है।
- प्राकृतिक संसाधन आधार को मजबूत करता है: जल संरक्षण, वनीकरण और मृदा स्वास्थ्य से संबंधित कार्य, दीर्घकालिक ग्रामीण प्रत्यास्थता बढ़ाते हैं।
- संकटग्रस्त प्रवासन को कम करता है: स्थानीय रोजगार की उपलब्धता कम वेतन वाले, असुरक्षित कार्य के लिए होने वाले ग्रामीण-शहरी प्रवास को रोकती है।
व्यय सीमा लागू होने के बाद इसके माँग आधारित स्वरूप और समग्र प्रभावशीलता पर चुनौतियाँ
- वित्तपोषण सीमा: वित्तीय वर्ष 2025-26 की पहली छमाही के लिए 60% व्यय सीमा, योजना की वास्तविक माँग को पूरा करने की क्षमता को सीमित करती है, जिसके परिणामस्वरूप रोजगार की अपूर्ण माँग उत्पन्न हो सकती है।
- कानूनी चिंताएँ: यह सीमा मनरेगा के तहत कानूनी अधिकारों का उल्लंघन कर सकती है, क्योंकि यह सरकार को अपने वैधानिक दायित्वों को पूरा करने से रोक सकती है।
- विलंबित मजदूरी भुगतान: इस सीमा के कारण मजदूरी भुगतान में विलंब हो सकता है, जिससे श्रमिकों की आजीविका प्रभावित हो सकती है।
- कार्यान्वयन संबंधित चुनौतियाँ: राज्य सरकारों को वित्तपोषण संबंधी अनिश्चितताओं के कारण परियोजनाओं की योजना बनाने और उन्हें क्रियान्वित करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
- ग्रामीण रोजगार में कमी: यह सीमा उपलब्ध कार्य दिवसों की संख्या को सीमित कर सकती है, जिससे समग्र ग्रामीण रोजगार के अवसर कम हो सकते हैं।
- ग्रामीण संकट में वृद्धि: यह सीमा महत्त्वपूर्ण समय के दौरान रोजगार के अवसरों को सीमित करके ग्रामीण संकट को और बढ़ा देती है।
- राजनीतिक प्रतिरोध: इस निर्णय की राजनीतिक दलों और नागरिक समाज संगठनों द्वारा आलोचना की गई है तथा ऐसा माना गया है कि इससे ग्रामीण कल्याण को नुकसान पहुँचेगा।
उपयुक्त आगे की राह
- बजट आवंटन में वृद्धि: बढ़ती माँग को पूरा करने और समय पर मजदूरी भुगतान सुनिश्चित करने के लिए मनरेगा के वार्षिक बजट में वृद्धि करनी चाहिए।उदाहरण के लिए: विश्व बैंक रोजगार के स्तर को बनाए रखने और वैधानिक दायित्वों को पूरा करने के लिए मनरेगा को सकल घरेलू उत्पाद का 1.7% आवंटित करने की सिफारिश करता है।
- लचीला वित्तपोषण तंत्र: एक लचीला वित्तपोषण तंत्र लागू करना चाहिए, जो वास्तविक माँग के आधार पर व्यय की सुविधा प्रदान करे तथा योजना की माँग-संचालित प्रकृति को बनाए रखे।
- कानूनी सुरक्षा उपाय: यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी भी नीतिगत परिवर्तन में मनरेगा के कानूनी प्रावधानों का पालन हो तथा श्रमिकों के अधिकारों का उल्लंघन न हो।
- पारदर्शिता और जवाबदेही: दुरुपयोग को रोकने और प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए निधियों के उपयोग में पारदर्शिता और जवाबदेही के तंत्र को सुदृढ करना चाहिए। उदाहरण: परिसंपत्तियों की जियो-टैगिंग और जनमनरेगा मोबाइल ऐप जैसी डिजिटल पहलों ने निगरानी और नागरिक पर्यवेक्षण में सुधार किया है।
- हितधारक सहभागिता: राज्य सरकारों और नागरिक समाज संगठनों सहित हितधारकों से संवाद कर उनकी चिंताओं को दूर करना चाहिए और योजना की प्रभावशीलता बढ़ानी चाहिए।
निष्कर्ष
मनरेगा ग्रामीण रोजगार सुरक्षा का एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ बना हुआ है, हालाँकि इसकी 60% व्यय सीमा इसके माँग आधारित स्वरूप और प्रभावशीलता को कमजोर करने का जोखिम उत्पन्न करती है। पर्याप्त वित्तीय प्रावधान, समय पर वितरण और लचीले कार्यान्वयन को सुनिश्चित करना आजीविका की सुरक्षा तथा योजना के संवैधानिक एवं विकासात्मक उद्देश्यों को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
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