Q. मध्य पूर्व के साथ भारत के जुड़ाव और भारत के आर्थिक, ऊर्जा और सुरक्षा हितों के लिए इसके रणनीतिक महत्त्व का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • मध्य पूर्व के साथ भारत की भागीदारी तथा भारत के आर्थिक, ऊर्जा और सुरक्षा हितों के लिए इसके रणनीतिक महत्त्व का विश्लेषण कीजिए।
  • मध्य पूर्व के साथ अपने संबंधों में भारत के सम्मुख आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालिए।
  • आगे की‌ राह लिखिये।।

 

उत्तर:

मध्य पूर्व के साथ भारत की रणनीतिक भागीदारी उसके आर्थिक विकास , ऊर्जा सुरक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा हितों के लिए महत्त्वपूर्ण है । यह क्षेत्र अपने विशाल ऊर्जा संसाधनों, वृहत प्रवासी समुदाय और बढ़ते व्यापार संबंधों के कारण महत्त्वपूर्ण है। सऊदी अरब, ईरान और इजराइल जैसे देशों के साथ अपने संबंधों को सुलझाने की भारत की क्षमता, तेल तक पहुँच सुनिश्चित करने, क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने और अपने भू-राजनीतिक प्रभाव का विस्तार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

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भारत के लिए मध्य पूर्व का रणनीतिक महत्त्व 

  • ऊर्जा सुरक्षा: मध्य पूर्व क्षेत्र ,भारत के कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस आयात का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा आपूर्ति करता है, जो इसकी बढ़ती अर्थव्यवस्था को बनाए रखने के लिए आवश्यक है। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2023 में, भारत के कच्चे तेल के आयात का लगभग 50% मध्य पूर्वी देशों से आया, जिसमें सऊदी अरब और इराक सबसे बड़े आपूर्तिकर्ता हैं।
  • आर्थिक और व्यापारिक संबंध: मध्य पूर्व, विशेष रूप से खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) देशों के साथ भारत का व्यापार काफी बढ़ गया है, जिससे भारत उनका एक महत्त्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार बन गया है। 
    • उदाहरण के लिए: UAE के साथ भारत का द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2023 में लगभग 84 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया, जिससे यह भारत के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों में से एक बन गया।
  • प्रवासी और प्रेषण : मध्य पूर्व के भारतीय प्रवासी दोनों अर्थव्यवस्थाओं में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं, जबकि भारत को वापस भेजे गए प्रेषण इसकी अर्थव्यवस्था में एक आवश्यक भूमिका निभाते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2022 में, खाड़ी देशों में भारतीयों ने लगभग 50 बिलियन डॉलर के प्रेषण में योगदान दिया, जिससे  भारत का विदेशी भंडार मजबूत हुआ।
  • भू-राजनीतिक प्रभाव: भारत ईरान, इजरायल और सऊदी अरब जैसे प्रमुख देशों के साथ संतुलित संबंध बनाए रखना चाहता है, ताकि भारत इस  क्षेत्र में एक तटस्थ और प्रभावशाली भागीदार बना रहे।
  • सुरक्षा सहयोग: भारत आतंकवाद , साइबर सुरक्षा और समुद्री सुरक्षा से जुड़ी साझा चिंताओं को दूर करने के लिए मध्य पूर्वी देशों के साथ सहयोग करता है । 
    • उदाहरण के लिए: भारत ने संयुक्त सैन्य अभ्यास और आतंकवाद विरोधी प्रयासों पर खुफिया जानकारी साझा करने के माध्यम से सऊदी अरब और UAE के साथ सुरक्षा संबंधों को मजबूत किया है ।

मध्य पूर्व के साथ भारत की भागीदारी में चुनौतियाँ 

  • ईरान-अमेरिका तनाव: ईरान और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच चल रहे तनाव, ईरान के साथ स्थिर व्यापार संबंध बनाए रखने की भारत की क्षमता को प्रभावित करते हैं (विशेष रूप से विभिन्न प्रतिबंधों के कारण ) ।
  • ईरान और सऊदी अरब के बीच संतुलन: भारत को ईरान और सऊदी अरब, दोनों देशों के साथ अपने संबंधों को संतुलित करने में चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि इन दोनों क्षेत्रीय प्रतिद्वंदियों की राजनीतिक और धार्मिक विचारधारा अलग-अलग है। 
  • इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष: इजराइल के साथ भारत के बढ़ते संबंध चुनौतियाँ प्रस्तुत करते हैं क्योंकि भारत, फिलिस्तीनी मुद्दे का समर्थन करने वाले अपने अरब साझेदार देशों को भी नाराज नहीं करना चाहता।
  • क्षेत्र में अस्थिरता: मध्य पूर्वी देशों, विशेषकर यमन, सीरिया और लेबनान में राजनीतिक अस्थिरता भारत के निवेश और व्यापार संबंधों के लिए जोखिम उत्पन्न करती है।
  • प्रॉक्सी संघर्ष: ईरान द्वारा यमन में हूती और लेबनान में हिजबुल्लाह जैसे प्रॉक्सी समूहों का प्रयोग, खाड़ी अरब राज्यों के साथ भारत के संबंधों में जटिलता उत्पन्न करता है।
  • धार्मिक और सांप्रदायिक विभाजन: ईरान और खाड़ी अरब राज्यों के बीच शिया-सुन्नी विभाजन, तटस्थता बनाए रखते हुए दोनों पक्षों के साथ जुड़े रहने के भारत के प्रयासों के लिए चुनौतियाँ उत्पन्न कर सकता है।

आगे की राह 

  • आर्थिक कूटनीति को बढ़ावा देना: भारत को मध्य पूर्वी देशों के साथ व्यापार और निवेश साझेदारी को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, विशेष रूप से नवीकरणीय ऊर्जा और प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में। 
    • उदाहरण के लिए: खाड़ी देशों के साथ सौर ऊर्जा परियोजनाओं में साझेदारी करके भारत के स्वच्छ ऊर्जा और आर्थिक सहयोग के लक्ष्य को आगे बढ़ाया जा सकता है।
  • ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाना: मध्य पूर्व देशों के तेल पर निर्भरता कम करने के लिए भारत को वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों जैसे कि नवीकरणीय ऊर्जा की खोज जारी रखते हुए अन्य क्षेत्रों से आयात करने पर भी विचार करना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: मध्य पूर्व के देशों, विशेष रूप से UAE और सऊदी अरब की नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं में भारत का निवेश, तेल आयात पर निर्भरता को कम कर सकता है।
  • क्षेत्रीय संबंधों में संतुलन: भारत को अपने सामरिक हितों की रक्षा के लिए इस क्षेत्र में अपनी तटस्थ कूटनीति जारी रखनी चाहिए तथा ईरान, सऊदी अरब और इजरायल के साथ संबंधों में संतुलन बनाए रखना चाहिए।
  • स्थिरता और सुरक्षा को बढ़ावा देना: भारत को क्षेत्रीय वार्ता और शांति पहल में शामिल होकर क्षेत्र में शांति और स्थिरता को बढ़ावा देने वाले प्रयासों में योगदान देना चाहिए । 
    • उदाहरण के लिए: वेस्ट एशिया पीस प्रोसेस (West Asia Peace Process)  में भारत की भागीदारी, इसे संघर्ष समाधान की दिशा में कार्य करने वाले एक तटस्थ राष्ट्र के रूप में स्थापित कर सकती है।
  • सॉफ्ट पावर का लाभ उठाना: भारत को मध्य पूर्व देशों के साथ अपने सांस्कृतिक संबंधों और भारतीय प्रवासी समुदाय  का लाभ उठाना चाहिए ताकि पीपुल-टू-पीपुल संपर्क को बढ़ावा मिले और  राजनयिक संबंधों को भी मजबूत किया जा सके। 
    • उदाहरण के लिए:  भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के लिए खाड़ी देशों में सांस्कृतिक विनिमय कार्यक्रमों का आयोजन कर सकती है।

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मध्य पूर्व के साथ भारत का जुड़ाव अत्यधिक रणनीतिक महत्त्व रखता है, जिसमें ऊर्जा सुरक्षा, आर्थिक संबंध और क्षेत्रीय स्थिरता शामिल है। ईरान, इजराइल और अरब देशों के साथ अपने संबंधों को संतुलित करके, भारत अधिक क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देते हुए अपने हितों को बढ़ावा दे  सकता है। आगे बढ़ते हुए, भारत को इस क्षेत्र में एक प्रमुख राष्ट्र के रूप में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए शांति, ऊर्जा विविधीकरण और मजबूत राजनयिक संबंधों को प्राथमिकता देनी चाहिए।

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