Q. '’आधुनिक खतरों के लिए एकीकृत नागरिक-सैन्य प्रतिक्रियाओं की आवश्यकता है, न कि अलग-अलग विभागीय रणनीतियों की।” इस कथन के संदर्भ में, हाइब्रिड खतरों से निपटने के लिए भारत की तैयारियों का आलोचनात्मक रूप से विश्लेषण कीजिए। (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • विकसित होते सुरक्षा परिदृश्य में हाइब्रिड खतरों का मुकाबला करने के लिए भारत की तैयारियों का विश्लेषण कीजिए।
  • भारत की हाइब्रिड खतरा प्रतिक्रिया क्षमताओं में कमियों को उजागर कीजिए।
  • उभरते आधुनिक खतरों के खिलाफ भारत की तैयारियों को और मजबूत करने के उपायों का विवरण दीजिये।

उत्तर

भारत साइबर हमलों, दुष्प्रचार अभियानों, छद्म युद्ध एवं आर्थिक नुकसान सहित आधुनिक खतरों के एक उभरते स्पेक्ट्रम का सामना कर रहा है। ये हाइब्रिड खतरे पारंपरिक एवं गैर-पारंपरिक रणनीतियों का मिश्रण हैं, जो पारंपरिक सुरक्षा ढाँचे को चुनौती देते हैं। इन बहुआयामी चुनौतियों का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने के लिए एक एकीकृत नागरिक-सैन्य प्रतिक्रिया आवश्यक है।

हाइब्रिड खतरों का मुकाबला करने की तैयारी

  • साइबर सुरक्षा संवर्द्धन: डिजिटल हाइब्रिड खतरों का मुकाबला करने के लिए बेहतर बुनियादी ढाँचे, क्षमता निर्माण एवं अंतरराष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से साइबर सुरक्षा ढाँचे को मजबूत किया गया।
    • उदाहरण: भारत ने ‘ग्लोबल साइबरसिक्योरिटी इंडेक्स’ (GCI) वर्ष 2024 में टियर 1 रैंकिंग हासिल की, जिसमें 98.49 स्कोर किया गया, जो मजबूत तैयारियों को दर्शाता है।
  • रक्षा एकीकरण: ‘चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ’ (CDS) की स्थापना बलों में संयुक्त सैन्य अभियानों को बढ़ावा देती है।
    • उदाहरण: हाइब्रिड खतरे की प्रतिक्रियाओं को कारगर बनाने के लिए एकीकृत थिएटर कमांड की स्थापना की जा रही है।
  • स्वदेशी रक्षा उत्पादन: ‘मेक इन इंडिया’ जैसी योजनाएँ रक्षा निर्माण में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देती हैं।
    • उदाहरण: धनुष तोपखाने एवं हल्के लड़ाकू विमान तेजस का स्वदेशी विकास रणनीतिक स्वायत्तता में सुधार करता है।
  • खुफिया बुनियादी ढाँचा: RAW, IB एवं NTRO जैसी एजेंसियाँ हाइब्रिड खतरों का पता लगाने तथा उन्हें रोकने के लिए सहयोग करती हैं।
    • उदाहरण: संयुक्त खुफिया अभ्यास वास्तविक समय के खतरे के विश्लेषण एवं समन्वित प्रतिक्रियाओं में मदद करते हैं।
  • अनुकूली रक्षा रणनीति: भारत अनुकूली रक्षा ढाँचे के तहत रणनीति विकसित करने पर जोर देता है।

हाइब्रिड थ्रेट रिस्पॉन्स में कमियाँ

  • साइबर थ्रेट डिटेक्शन गैप: प्रगति के बावजूद, रियल-टाइम डिटेक्शन एवं AI-संचालित प्रतिक्रियाएँ अपर्याप्त हैं।
    • उदाहरण: भारतीय कंपनियों पर रैनसमवेयर हमले रक्षा व्यवस्था में अंतराल को उजागर करते हैं।
  • समन्वय चुनौतियाँ: नौकरशाही साइलो के कारण बहु-एजेंसी संचालन में अक्सर देरी होती है।
  • संसाधन की कमी: बजट की सीमाएँ तकनीकी उन्नयन एवं कुशल जनशक्ति भर्ती को प्रतिबंधित करती हैं।
    • उदाहरण: भारत रक्षा पर सकल घरेलू उत्पाद का केवल 2% खर्च करता है, जिससे आधुनिकीकरण की गति सीमित हो जाती है।
  • सार्वजनिक जागरूकता की कमी: युवा एवं नागरिक प्रचार तथा फर्जी खबरों के प्रति संवेदनशील बने रहते हैं।
  • नीति कार्यान्वयन में देरी: प्रशासनिक व्यवधान सुरक्षा नीतियों के क्रियान्वयन को धीमा कर देते हैं।
    • उदाहरण: राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति के स्पष्ट न होने से विभिन्न कमजोरियों को अनदेखा कर दिया है।

बेहतर तैयारी के लिए प्रस्तावित उपाय

  • साइबर रक्षा आधुनिकीकरण: AI-आधारित साइबर निगरानी उपकरणों का विस्तार करना एवं कुशल साइबर पेशेवरों की भर्ती करना।
    • उदाहरण: CERT-In को 24×7 पूर्वानुमानित निगरानी एजेंसी के रूप में विकसित करना।
  • एकीकृत कमान संरचना: क्रॉस-डोमेन परिचालन सामंजस्य के लिए एक राष्ट्रीय हाइब्रिड खतरा कमान स्थापित करना।
    • उदाहरण: वास्तविक समय की खुफिया जानकारी एवं त्वरित प्रतिक्रिया समन्वय के लिए एक केंद्रीकृत नोड स्थापित करना।
  • सार्वजनिक जागरूकता अभियान: नागरिकों को गलत सूचना, फिशिंग एवं डिजिटल स्वच्छता के बारे में शिक्षित करना।
  • विधायी सुधार: साइबर कानूनों को अपडेट करें एवं मजबूत डेटा सुरक्षा नियम लागू करना।
    • उदाहरण: डिजिटल व्यक्तिगत डेटा सुरक्षा अधिनियम, 2023 के प्रावधानों को लागू करना।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग: खतरे की खुफिया जानकारी एवं प्रशिक्षण के लिए वैश्विक प्लेटफॉर्मों के साथ जुड़ना।
    • उदाहरण: क्वाड एवं इंटरपोल के साथ सहयोग संयुक्त अभ्यास के माध्यम से तैयारियों में सुधार करता है।

डिजिटल एवं रक्षा सुधारों को एकीकृत करते हुए हाइब्रिड खतरों के प्रति भारत की प्रतिक्रिया परिपक्व हो गई है। हालाँकि, समन्वय अंतराल तथा साइबर कमजोरियाँ बनी हुई हैं। उभरती हुई हाइब्रिड चुनौतियों के सामने भारत की संप्रभुता की रक्षा के लिए एकीकृत संरचनाओं, क्षमता निर्माण एवं नागरिक शिक्षा के माध्यम से इन समस्याओं को दूर करना महत्त्वपूर्ण है।

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