Q. मणिपुर में कुकी और मैतेई समुदायों के बीच लम्बे समय से चला आ रहा जातीय संघर्ष राज्य की गहरी ऐतिहासिक और राजनीतिक विफलताओं को उजागर करता है। मणिपुर संकट के मूल कारणों का विश्लेषण कीजिए और इस संकट को दूर करने तथा क्षेत्र में स्थायी शांति बहाल करने के लिए आवश्यक प्रशासनिक और राजनीतिक उपायों पर चर्चा कीजिए। (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • मणिपुर संकट के मूल कारणों का विश्लेषण कीजिए।
  • इस संकट को दूर करने और क्षेत्र में स्थायी शांति बहाल करने के लिए आवश्यक प्रशासनिक और राजनीतिक उपायों पर चर्चा कीजिए।

उत्तर

मणिपुर की हालिया अव्यवस्था ने राष्ट्रपति शासन को छह महीने के लिए और बढ़ाने हेतु मजबूर कर दिया है, जो संवैधानिक पतन और गंभीर आंतरिक सुरक्षा चुनौती का संकेत है। उग्रवादी समूहों पर कार्रवाई, खुले तौर पर होने वाली हिंसा में कमी और कुछ विस्थापित परिवारों के लौटने के बावजूद, कुकी-जो-मैतेई नृजातीय और राजनीतिक मतभेद अभी भी जारी हैं, जहाँ बफर जोन समुदायों को सख्ती से अलग-थलग कर रहे हैं और ध्रुवीकृत माँगें बढ़ती जा रही हैं।

मणिपुर संकट के मूल कारण

  • गहन नृजातीय फूट और प्रतिस्पर्द्धी राजनीतिक परियोजनाएँ: मुख्य संघर्ष वैचारिक और क्षेत्रीय है, कुकी-जो समूह अलग प्रशासन की माँग करते हैं जबकि कट्टरपंथी मैतेई समूह इन नागरिकों को “बाहरी” कहते हैं।
  • उग्रवादी दंडमुक्ति और नृजातीय सैन्यीकरण: नृजातीय हितों के लिए काम करने वाले सशस्त्र समूहों को लंबे समय से दंड से छूट मिलती रही है, जिससे हिंसा को बढ़ावा मिला है।
  • बफर जोन के माध्यम से स्थानिक पृथक्करण: बफर जोन समुदायों के बीच कठोर पृथक्करण को बढ़ावा देते हैं, आपसी अविश्वास को संस्थागत रूप देते हैं, और रोजमर्रा के सामाजिक संवाद को बाधित करते हैं।
  • शासन में पूर्वाग्रह और उदारवादियों को चुप कराना: पक्षपातपूर्ण शासन ने अलगाव को और गहरा कर दिया, इसकी आलोचना करने वाले नागरिक समाज के लोगों को सताया गया, जिससे मेल-मिलाप के लिए अवसर कम हो गया।
  • निर्वाचित सरकार का पतन और विश्वास की कमी: सरकार के इस्तीफे के बाद, हिंसा में कमी आई और कुछ परिवार वापस लौट आए, लेकिन मतभेद अभी भी कायम है।
  • राष्ट्रपति शासन एक लक्षण है, उपचार नहीं: यद्यपि संकट के समय राष्ट्रपति शासन संवैधानिक रूप से वैध है, फिर भी यह सुलह और राजनीतिक समाधान का विकल्प नहीं हो सकता।
    • उदाहरण: राष्ट्रपति शासन का विस्तार संवैधानिक विफलता को दर्शाता है, लेकिन सफलता को “केवल हिंसा की अनुपस्थिति से नहीं मापा जाना चाहिए।”

संकट का समाधान करने और शांति बहाल करने के लिए प्रशासनिक तथा राजनीतिक उपाय

  • उग्रवादियों का सतत् निरस्त्रीकरण एवं शक्ति विमुक्ति: सशस्त्र क्षमताओं को निरंतर नष्ट करने से दंड मुक्ति का परिवेश समाप्त हो जाता है तथा उदारवादियों को बल मिलता है।
  • कानून के शासन का पुनर्निर्माण: आलोचनात्मक नागरिक समाज की आवाजों की सुनवाई के लिए प्रयास करने के परिणामस्वरूप सुलह के नतीजे में बेहतर परिणाम देखने को मिल सकता है।
  • संरचित राजनीतिक संवाद: एक पारदर्शी, केंद्र-सुविधायुक्त, बहु-हितधारक प्रक्रिया के माध्यम से कुकी-जो की पृथक प्रशासन की माँग और मैतेई असुरक्षाओं का समाधान करने का प्रयास करना चाहिए।
  • साझा राजनीतिक जिम्मेदारी: राष्ट्रीय दलों को सक्रिय रूप से नेतृत्व करना चाहिए तथा क्षेत्रीय दलों और नागरिक समाज को आम सहमति बनाने के लिए कट्टरपंथियों का विरोध करना चाहिए।
  • विश्वास निर्माण के माध्यम से बफर जोनों को पुनःसंयोजित करना: निगरानीयुक्त पुनर्वास के साथ बफर ज़ोन का क्रमिक विघटन या लचीला प्रबंधन, विभिन्न समुदायों के बीच संपर्क को सामान्य और स्वाभाविक बना सकता है।
    • उदाहरण: मई 2023 से कुछ विस्थापित परिवारों की वापसी से पता चलता है कि पुनएकीकरण संभव है।
  • राष्ट्रपति शासन के तहत समयबद्ध रोडमैप: राष्ट्रपति शासन की अवधि का उपयोग वार्ता, निरस्त्रीकरण, नागरिक समाज संरक्षण तथा प्रतिनिधि सरकार की बहाली जैसे महत्त्वपूर्ण लक्ष्य निर्धारित करने के लिए किया जाना चाहिए।

मणिपुर का संकट केवल कानून-व्यवस्था की विफलता ही नहीं, बल्कि गहन नृजातीय-राजनीतिक दरारों को भी दर्शाता है। स्थायी शांति के लिए केंद्र के नेतृत्व वाली एक समावेशी राजनीतिक प्रक्रिया की आवश्यकता है, जो नागरिक समाज की रक्षा करे, उग्रवाद पर अंकुश लगाए, अलगाववाद को समाप्त करे, और अस्थायी शांति के बजाय विश्वास बहाली के आधार पर सुलह को बढ़ावा दे।

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