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Q. भारत ने खाद्यान्न पर्याप्तता हासिल कर ली है, फिर भी पोषण और प्रछन्न भुखमरी के क्षेत्र में प्रमुख चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। भारत के पोषण परिदृश्य के विरोधाभास का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए और इन मुद्दों को संबोधित करने में समुदाय के नेतृत्व वाले पोषण केंद्रों की क्षमता का मूल्यांकन कीजिए। खाद्य सुरक्षा और पोषण संबंधी परिणामों को बढ़ाने के लिए समाज के दृष्टिकोण के लिए उपाय सुझाएँ। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारत के पोषण परिदृश्य के विरोधाभास पर चर्चा कीजिए, कि भोजन पर्याप्तता हासिल करने के बावजूद, भारत अभी भी पोषण की उच्च दर एवं प्रच्छन्न भुखमरी का सामना कर रहा है।
  • भारत में पोषण एवं  प्रच्छन्न भुखमरी को संबोधित करने में चुनौतियों पर प्रकाश डालिए।
  • पोषण एवं प्रच्छन्न भुखमरी को संबोधित करने में समुदाय के नेतृत्व वाले पोषण केंद्रों की क्षमता का मूल्यांकन कीजिए।
  • खाद्य सुरक्षा एवं पोषण संबंधी परिणामों को बढ़ाने के लिए संपूर्ण समाज के दृष्टिकोण के लिए उपाय सुझाएं।

 

उत्तर:

भारत ने मुख्य रूप से हरित क्रांति के कारण खाद्य आत्मनिर्भरता हासिल करने में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है, फिर भी यह व्यापक कुपोषण एवं प्रच्छन्न भुखमरी से जूझ रहा है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2023 में भारत को 125 देशों में से 111वें स्थान पर रखा गया है, जो पर्याप्त भोजन की उपलब्धता लेकिन पर्याप्त पोषण की कमी के विरोधाभास को दर्शाता है। बच्चों का बौनापन, दुबलापन एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी जैसे मुद्दे देश के पोषण परिदृश्य में गहरी चुनौतियों को दर्शाते हैं।

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भारत के पोषण परिदृश्य का विरोधाभास

  • पौष्टिक खाद्य पदार्थों तक असमान पहुँच: खाद्य आत्मनिर्भरता हासिल करने के बावजूद, गरीबी एवं असमानता के कारण समाज के बड़े वर्गों के पास पोषक तत्वों से भरपूर भोजन तक पहुँच नहीं है।
    • उदाहरण के लिए: NFHS-5 के अनुसार, पांच साल से कम उम्र के 35.5% बच्चे अविकसित हैं, जिससे भोजन की उपलब्धता के बावजूद दीर्घकालिक अल्पपोषण का पता चलता है।
  • कैलोरी पर्याप्तता लेकिन पोषक तत्वों की कमी: चावल एवं गेहूं जैसे मुख्य खाद्य पदार्थों के माध्यम से कैलोरी सेवन पर भारत का ध्यान सूक्ष्म पोषक तत्वों की आवश्यकता को नजरअंदाज करता है।
    • उदाहरण के लिए: सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) मुख्य रूप से अनाज की आपूर्ति करती है, जिसमें आयरन एवं जिंक जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी होती है, जो कमी को रोकने के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
  • आहार विविधता का अभाव: भारतीय आहार में अक्सर विविधता का अभाव होता है, जिससे फलों, सब्जियों एवं प्रोटीन से आवश्यक विटामिन तथा खनिजों का सेवन सीमित हो जाता है।
    • उदाहरण के लिए: वैश्विक पोषण रिपोर्ट के अनुसार, 70% भारतीय आहार अनाज आधारित हैं, जिनमें प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ या ताजा उपज का न्यूनतम सेवन होता है।
  • अकुशल खाद्य वितरण प्रणालियाँ: चूँकि भारत में खाद्य पदार्थ का अधिशेष है, परन्तु लॉजिस्टिक चुनौतियाँ पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों के कुशल वितरण को रोकती हैं, विशेष रूप से ग्रामीण एवं हाशिए पर रहने वाली आबादी के लिए।
    • उदाहरण के लिए: NITI आयोग की रिपोर्टें आपूर्ति श्रृंखला में कमियों को उजागर करती हैं, जो दूरदराज के क्षेत्रों में पौष्टिक खाद्य पदार्थों तक समान पहुँच में बाधा उत्पन्न करती हैं।
  • शहरी बनाम ग्रामीण पोषण संबंधी विभाजन: शहरी आबादी को अक्सर विविध भोजन विकल्पों तक बेहतर पहुँच होती है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों को पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों की कमी का सामना करना पड़ता है।

पोषण एवं  प्रच्छन्न भुखमरी को संबोधित करने में चुनौतियाँ

  • आय में असमानता: गरीबी के कारण पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों तक पहुँच सीमित हो जाती है, कई परिवार संतुलित आहार का खर्च उठाने में असमर्थ होते हैं।
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2019-2021 के NFHS-5 के अनुसार, सबसे गरीब घरों में बच्चों में स्टंटिंग की व्यापकता 42.54% थी, जबकि सबसे अमीर घरों में यह 29.54% थी।
  • पोषण संबंधी आवश्यकताओं के संबंध जागरूकता की कमी: कई लोग, यहाँ तक ​​कि उच्च आय वर्ग में भी, संतुलित आहार के महत्त्व से अनभिज्ञ हैं, जिससे पर्याप्त कैलोरी सेवन के बावजूद सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी हो जाती है।
    • उदाहरण के लिए: पोषण अभियान के तहत अभियानों का उद्देश्य जागरूकता बढ़ाना है, लेकिन सभी समुदायों को पौष्टिक आहार के बारे में शिक्षित करने में कमियाँ बनी हुई हैं।
  • पोषण पहुँच में लैंगिक असमानता: महिलाओं एवं लड़कियों को, विशेष रूप से कम आय वाले परिवारों में, अक्सर भोजन का कम हिस्सा प्राप्त होती है, जिससे महिलाओं में कुपोषण तथा  प्रच्छन्न भुखमरी बढ़ जाती है।
    • उदाहरण के लिए: NFHS-5 से पता चलता है कि प्रजनन आयु की 57% महिलाओं में एनीमिया व्यापक रूप से फैला हुआ है, जिसका मुख्य कारण पोषण संबंधी उपेक्षा है।
  • स्वास्थ्य देखभाल अवसंरचना: विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य देखभाल एवं पोषण सेवाओं तक खराब पहुँच, पोषक तत्वों की कमी का शीघ्र पता लगाने तथा उपचार को सीमित करती है।
    • उदाहरण के लिए: NFHS-5 के अनुसार, भारत में विटामिन A अनुपूरण (Vitamin A Supplementation- VAS) कवरेज कम है, जो 12-35 महीने की उम्र के केवल 25% बच्चों तक पहुँचता है, जो निवारक स्वास्थ्य सेवाओं में अंतराल को दर्शाता है।
  • अपर्याप्त सरकारी कार्यक्रम: PDS एवं ICDS जैसे सरकारी कार्यक्रम पोषण गुणवत्ता के बजाय मात्रा पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं, जिससे सूक्ष्म पोषक तत्वों की जरूरतों को पूरा करने में कमी रह जाती है।
    • उदाहरण के लिए: PDS अनाज वितरित करता है, लेकिन दालें, अंडे, या गरिष्ठ खाद्य पदार्थों जैसे पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों के एकीकरण का अभाव है जो कमियों को दूर कर सकते हैं।

समुदाय आधारित पोषण केन्द्रों की संभावनाएँ

  • स्थानीय ज्ञान का लाभ उठाना: समुदाय के नेतृत्व वाले केंद्र पौष्टिक खाद्य स्रोतों को बढ़ावा देने के लिए स्थानीय कृषि ज्ञान का उपयोग करते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि समाधान सतत एवं संदर्भ-विशिष्ट हैं।
    • उदाहरण के लिए: कुछ क्षेत्रों में, पोषण केंद्रों ने स्थानीय रूप से उगाई जाने वाली फलियाँ एवं पत्तेदार साग को बढ़ावा दिया है, जिससे आहार विविधता में वृद्धि के माध्यम से कुपोषण दर में कमी आई है।
  • संतुलित एवं विविध आहार को बढ़ावा देना: ये केंद्र संतुलित आहार के लिए महत्त्वपूर्ण सब्जियों, फलियाँ तथा पशु उत्पादों सहित विविध खाद्य पदार्थों की खपत को प्रोत्साहित करते हैं।
  • कमजोर समूहों का समर्थन करना: पोषण केंद्र गर्भवती महिलाओं एवं बच्चों जैसे कमजोर समूहों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, गरिष्ठ खाद्य पदार्थों तथा पूरक आहार के माध्यम से अनुरूप पोषण संबंधी सहायता प्रदान करते हैं।
    • उदाहरण के लिए: महिलाओं एवं बच्चों में एनीमिया को कम करने के लिए आयरन-फोर्टिफाइड गेहूं के आटे जैसे फोर्टिफाइड खाद्य पदार्थ सामुदायिक केंद्रों में वितरित किए जाते हैं।
  • बाहरी स्रोतों पर निर्भरता कम करना: स्थानीय खाद्य उत्पादन को बढ़ावा देकर, पोषण केंद्र बाहरी खाद्य आपूर्ति पर निर्भरता कम करते हैं एवं समुदायों के भीतर आत्मनिर्भरता को प्रोत्साहित करते हैं।
    • उदाहरण के लिए: आंगनवाड़ी केंद्रों द्वारा स्थापित रसोई उद्यानों से ताजी, पोषक तत्वों से भरपूर सब्जियों तक पहुँच में सुधार हुआ है।
  • शिक्षा के माध्यम से जागरूकता: सामुदायिक केंद्र लोगों को पोषण एवं संतुलित आहार के बारे में शिक्षित करते हैं, जिससे बेहतर ज्ञान तथा प्रथाओं के माध्यम से प्रच्छन्न भुखमरी को कम करने में मदद मिलती है।
    • उदाहरण के लिए: आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने माताओं को स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्रियों का उपयोग करके पोषक तत्वों से भरपूर भोजन तैयार करने में सफलतापूर्वक प्रशिक्षित किया है, जिससे बाल पोषण दर में सुधार हुआ है।

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खाद्य सुरक्षा एवं पोषण को बढ़ाने के लिए संपूर्ण समाज का दृष्टिकोण

  • खाद्य कार्यक्रम विविधता में सुधार: PDS जैसे सरकारी कार्यक्रमों में अधिक विविध, पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थ जैसे दालें, सब्जियाँ एवं फोर्टिफाइड स्टेपल शामिल होने चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: आयरन की कमी को दूर करने के लिए कई राज्यों में PDS में फोर्टिफाइड चावल को शामिल करना शुरू हो गया है।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी: निजी क्षेत्र खाद्य सुदृढ़ीकरण एवं किफायती पोषण उत्पादों में नवाचार में योगदान दे सकता है, जिससे समग्र पोषण परिदृश्य को बढ़ावा मिल सकता है।
    • उदाहरण के लिए: टाटा ट्रस्ट जैसी कंपनियां बड़े पैमाने पर आयोडीन एवं आयरन के साथ सोडियम को खाद्य पदार्थ में पोषक तत्व में वृद्धि पर कार्य  कर रही हैं।
  • सतही स्तर पर सामुदायिक भागीदारी: पोषण केंद्रों एवं रसोई उद्यानों के माध्यम से समुदायों को शामिल करने से स्थानीय रूप से प्राप्त, किफायती तथा पोषक तत्वों से भरपूर भोज्य पदार्थ की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सकती है।
    • उदाहरण के लिए: राज्यों में समुदाय-आधारित परियोजनाओं ने घरेलू सब्जियों को बढ़ावा देकर  प्रच्छन्न भुखमरी को कम किया है।
  • स्थानीय सरकारों की भागीदारी: स्थानीय सरकारों को पोषण केंद्रों को वित्त पोषित एवं समर्थन करना चाहिए, यह सुनिश्चित करते हुए कि वे सामुदायिक विकास तथा स्वास्थ्य सेवाओं के अभिन्न अंग बन जाएं।
    • उदाहरण के लिए: ओडिशा के समुदाय-प्रबंधित पोषण केंद्रों के मॉडल ने आदिवासी क्षेत्रों में पोषण संबंधी परिणामों में सफलतापूर्वक सुधार किया है।
  • युवा एवं लैंगिक समावेशन: पोषण प्रयासों में युवाओं की भागीदारी एवं लैंगिक समानता सुनिश्चित करने से खाद्य सुरक्षा पहलों में स्थायी परिवर्तन तथा अंतर-पीढ़ीगत निरंतरता उत्पन्न हो सकती है।
    • उदाहरण के लिए: राज्यों में युवा समूहों के साथ UNICEF के सहयोग ने युवाओं को अपने समुदायों में पोषण जागरूकता अभियान का नेतृत्व करने के लिए सशक्त बनाया है।

हालाँकि भारत ने खाद्य पर्याप्तता हासिल कर ली है, लेकिन प्रच्छन्न भुखमरी एवं पोषण की कमी की चुनौती महत्त्वपूर्ण बनी हुई है। समुदाय के नेतृत्व वाले पोषण केंद्र, संपूर्ण समाज के दृष्टिकोण से समर्थित, स्थानीय खाद्य प्रणालियों को बढ़ावा देकर, पोषण संबंधी कमियों को दूर करके तथा यह सुनिश्चित करके एक स्थायी समाधान प्रदान करते हैं कि पोषण सुरक्षा समाज के सभी वर्गों तक पहुँचे।

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