प्रश्न की मुख्य माँग
- कृषि क्षेत्र को मजबूत करने के लिए हाल के बजट में शुरू की गई प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना और किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) ऋण सीमा में वृद्धि जैसी पहलों का उल्लेख कीजिए।
- इन उपायों के संभावित प्रभाव का विश्लेषण कीजिए।
- भारत के कृषि बाजारों में संरचनात्मक चुनौतियों से निपटने में उनकी प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिए।
- भारत के कृषि बाजारों में संरचनात्मक चुनौतियों से निपटने में उनकी अप्रभावीता का मूल्यांकन कीजिए।
- आगे की राह लिखिये।
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उत्तर
कृषि, जो भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, को विखंडित भूमि जोत, अपर्याप्त ऋण पहुँच और बाजार की अक्षमताओं जैसी संरचनात्मक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। हाल ही के बजट में प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना और किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) ऋण सीमा में वृद्धि जैसी पहलों की शुरुआत की गई है ताकि किसानों की वित्तीय प्रत्यास्थता को बढ़ावा दिया जा सके। उनकी सफलता कृषि बाजारों में अक्षमताओं पर काबू पाने में प्रगति निर्धारित करेगी।
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कृषि क्षेत्र को मजबूत करने के लिए हालिया बजट में शुरू की गई पहलें
- प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना: इस पहल का उद्देश्य कृषि उत्पादकता और जलवायु प्रत्यास्थता बढ़ाना और बेहतर कृषि पद्धतियों और संधारणीय तकनीकों के माध्यम से खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
- उदाहरण के लिए: इसी तरह की योजनाओं के तहत ड्रिप सिंचाई और AI-संचालित मृदा विश्लेषण जैसी परिशुद्ध कृषि तकनीकों ने महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों में उत्पादकता को बढ़ावा दिया है।
- किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) ऋण सीमा में वृद्धि: ऋण सीमा ₹3 लाख से बढ़ाकर ₹5 लाख कर दी गई है, जिससे किसानों को बीज, उर्वरक और आधुनिक कृषि उपकरणों में निवेश करने के लिए अधिक वित्तीय लचीलापन मिल गया है।
- उदाहरण के लिए: पंजाब और हरियाणा में, उच्च ऋण सीमा ने छोटे किसानों को मशीनी उपकरण अपनाने में सक्षम बनाया है, जिससे मैनुअल श्रम पर निर्भरता कम हुई और दक्षता में सुधार हुआ है।
- कम उत्पादकता वाले जिलों में लक्षित हस्तक्षेप: बजट में 100 कम उत्पादकता वाले जिलों पर ध्यान केंद्रित किया गया जिसमें बेहतर सिंचाई सुविधाएं, उच्च उपज वाले बीज और बेहतर भंडारण बुनियादी ढाँचे जैसे क्षेत्र-विशिष्ट समाधान प्रदान किए गए हैं, ताकि उपज और लाभप्रदता बढ़ाई जा सके।
- उदाहरण के लिए: गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में इसी तरह के जिला-केंद्रित दृष्टिकोण ने बेहतर सिंचाई और मृदा प्रबंधन के माध्यम से कपास की उपज में उल्लेखनीय वृद्धि की।
- उच्च उपज देने वाले बीजों पर जोर: उच्च उपज देने वाले बीजों पर एक राष्ट्रीय मिशन की शुरुआत की गई है, ताकि बीज की गुणवत्ता में सुधार हो और अप्रत्याशित मौसम पैटर्न व मृदा-निम्नीकरण के कारण फसल की विफलता को कम किया जा सके
- उदाहरण के लिए: उत्तर प्रदेश में जलवायु प्रतिरोधी गेहूं की किस्मों की शुरूआत ने हाल के वर्षों में अत्यधिक तापमान में उतार-चढ़ाव के दौरान उपज के नुकसान को कम करने में मदद की है।
- व्यापक सब्सिडी से परिशुद्ध सहायता की ओर बदलाव: बजट में प्रत्यक्ष सब्सिडी के बजाय वित्तीय सहायता को प्राथमिकता दी गई है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि किसानों को सामान्य सब्सिडी के बजाय क्षेत्रीय और फसल-विशिष्ट आवश्यकताओं के आधार पर अनुकूलित सहायता मिले।
- उदाहरण के लिए: तेलंगाना में, मृदा गुणवत्ता निगरानी और डिजिटल सलाहकार सेवाओं के माध्यम से धान किसानों के लिए लक्षित सहायता के परिणामस्वरूप फसल की पैदावार में वृद्धि हुई है और बाजार में बेहतर कीमतें मिली हैं।
इन उपायों का संभावित प्रभाव
- उच्च उपज वाले बीजों के माध्यम से उत्पादकता में वृद्धि: उच्च उपज वाले बीजों और बेहतर सिंचाई पर ध्यान केंद्रित करने से प्रति एकड़ उत्पादन में वृद्धि होगी, जिससे किसानों की आय में वृद्धि होगी और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा में सुधार होगा।
- उदाहरण के लिए: इसी तरह के कार्यक्रम के तहत मध्य प्रदेश में संकर मक्का किस्मों को अपनाने से तीन वर्षों के भीतर उत्पादन में वृद्धि हुई।
- छोटे किसानों के लिए बेहतर वित्तीय पहुँच: बढ़ी हुई KCC ऋण सीमा, लघु और सीमांत किसानों को बड़ी ऋण राशि तक पहुँच प्रदान करती है जिससे अनौपचारिक साहूकारों पर निर्भरता कम हो जाती है जो अत्यधिक ब्याज दर वसूलते हैं।
- जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक प्रत्यास्थता: धन-धान्य कृषि योजना, संधारणीय कृषि को बढ़ावा देती है, जिससे किसान जल-कुशल और जलवायु-स्मार्ट खेती के तरीकों को अपनाते हैं जिससे अप्रत्याशित मानसून और जलवायु परिवर्तन से होने वाले जोखिम कम होते हैं।
- उदाहरण के लिए: राजस्थान में, सूखा-प्रतिरोधी बाजरा किस्मों को बढ़ावा देने से किसानों को बारिश में कमी होने के बावजूद उत्पादन बनाए रखने में मदद मिली है।
- किसानों की उच्च आय और ग्रामीण समृद्धि: ऋण तक बढ़ती पहुँच और बेहतर बुनियादी ढाँचे के साथ, किसान आधुनिक प्रौद्योगिकी में निवेश कर सकते हैं, जिससे फसल-पश्चात नुकसान कम हो सकता है और बेहतर बाजार मूल्य प्राप्त हो सकता है।
- कृषि संकट और ऋण जाल में कमी: संघर्षरत जिलों में ऋण वृद्धि और लक्षित हस्तक्षेप पर ध्यान केंद्रित करने से वित्तीय संकट को कम करने में मदद मिलेगी, जिससे ऋण के बोझ के कारण होने वाली किसानों की आत्महत्या की घटनाओं में कमी आएगी।
- उदाहरण के लिए: महाराष्ट्र के विदर्भ में, ऋण पुनर्गठन योजना ने किसानों की आय को स्थिर करने में मदद की, जिससे समय के साथ ऋण-संबंधी संकट के मामलों में कमी आई।
संरचनात्मक चुनौतियों से निपटने में प्रभावशीलता
- किसानों के लिए ऋण तक पहुँच में सुधार: KCC ऋण सीमा में वृद्धि से किसानों को अधिक वित्तीय लचीलापन मिलता है, जिससे अनौपचारिक साहूकारों पर उनकी निर्भरता कम होती है।
- उदाहरण के लिए: लघु और सीमांत किसान जो भारत के कृषि समुदाय का लगभग 86% हिस्सा हैं और वे अक्सर औपचारिक ऋण प्राप्त करने के लिए संघर्ष करते हैं। यह उपाय उन्हें गुणवत्ता वाले बीज और मशीनरी में निवेश करने में मदद कर सकता है।
- उत्पादकता और जलवायु प्रत्यास्थता बढ़ाना: धन -धान्य कृषि योजना उच्च उपज वाले बीजों और जलवायु-प्रत्यास्थ खेती को बढ़ावा देती है, जो जलवायु परिवर्तन के बीच खाद्य सुरक्षा को बनाए रखने के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
- उदाहरण के लिए: पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में, जहां अनियमित मानसून से पैदावार प्रभावित होती है, उच्च उपज वाले और सूखा प्रतिरोधी बीजों तक पहुँच से उत्पादन को स्थिर किया जा सकता है।
- सब्सिडी पर अत्यधिक निर्भरता कम करना: व्यापक सब्सिडी के बजाय लक्षित ऋण सहायता पर ध्यान केंद्रित करने का उद्देश्य अधिक कुशल संसाधन आवंटन को प्रोत्साहित करना और बेकार व्यय को कम करना है।
- उदाहरण के लिए: पीएम-किसान के अंतर्गत प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण ने अत्यधिक उर्वरक सब्सिडी की तरह इनपुट बाजार को विकृत किए बिना किसानों की आय सुरक्षा में सुधार किया है।
- कृषि मशीनीकरण और इनपुट उपयोग को मजबूत करना: ऋण की उपलब्धता बढ़ने से किसानों को आधुनिक उपकरणों, सिंचाई प्रणालियों और भंडारण सुविधाओं में निवेश करने का अवसर मिलता है, जिससे फसल-पश्चात नुकसान कम होता है और उत्पादकता में सुधार होता है।
- सीमांत और लघु किसानों को सहायता: बढ़ी हुई वित्तीय सहायता सीमांत किसानों को सशक्त बनाती है, जिससे वे बेहतर तकनीकें अपना सकते हैं और संधारणीय कृषि पद्धतियों को अपना सकते हैं।
- उदाहरण के लिए: ओडिशा का मिलेट मिशन, जो बाजरा उत्पादन में लघु किसानों को सहायता प्रदान करता है और यह दर्शाता है कि लक्षित ऋण किस प्रकार जलवायु-प्रतिरोधी फसलों के उत्पादन को बढ़ावा दे सकता है।
संरचनात्मक चुनौतियों से निपटने में अप्रभावीता
- मूल्य अस्थिरता को संबोधित करने में विफलता: जबकि ऋण की पहुँच में सुधार हुआ है, किसानों के पास अभी भी सुनिश्चित मूल्य निर्धारण तंत्र का अभाव है, जिससे वे बाजार में होने वाले उतार-चढ़ाव के प्रति असुरक्षित हैं।
- उदाहरण के लिए: कर्नाटक में टमाटर किसानों को 2023 में बम्पर पैदावार के बावजूद भारी नुकसान उठाना पड़ा, क्योंकि अधिक आपूर्ति के कारण कीमतें गिर गईं।
- कृषि बाजारों में कोई संरचनात्मक सुधार नहीं: केवल ऋण सहायता से कृषि विपणन और आपूर्ति श्रृंखलाओं में अक्षमताएँ ठीक नहीं होती हैं, जिसके परिणामस्वरूप किसानों को उनकी उपज के लिए कम कीमत मिलती है।
- उदाहरण के लिए: APMC बाजार प्रतिबंध किसानों को प्रतिस्पर्धी मूल्यों पर सीधे खरीदारों को बेचने से रोकते हैं।
- अल्पावधि ऋण पर निर्भरता: आय विविधीकरण में सुधार किए बिना ऋण सीमा बढ़ाने से किसानों के ऋण चक्र में फंसने का जोखिम है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जो जलवायु झटकों से ग्रस्त हैं ।
- उदाहरण के लिए: विदर्भ के किसान, कृषि उत्पादन हेतु अल्पावधि ऋण लेते हैं, लेकिन अप्रत्याशित मानसून के कारण उन्हें भुगतान में कठिनाई होती है, जिससे ऋणग्रस्तता बढ़ती है।
- कृषि निर्यात पर ध्यान न देना: ये उपाय भारत के कम कृषि निर्यात (विश्व कृषि व्यापार का 2-3%) को संबोधित नहीं करते हैं जिससे किसानों के लिए वैश्विक बाजारों और प्रीमियम मूल्य निर्धारण तक पहुँचने के अवसर सीमित हो जाते हैं।
- उदाहरण के लिए: भारत, मिलेट उत्पादन में अग्रणी है, लेकिन मजबूत निर्यात नीतियों के बिना, किसान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी कीमतों पर बेचने के लिए संघर्ष करते हैं।
- फसल-उपरान्त बुनियादी ढाँचे की भूमिका की अनदेखी: ऋण में वृद्धि से किसानों को अधिक उत्पादन करने में मदद मिल सकती है, लेकिन भंडारण और प्रसंस्करण सुविधाओं के बिना, उन्हें फसल-उपरान्त नुकसान उठाना पड़ता है।
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आगे की राह
- बाजार संबंधों और मूल्य स्थिरता को मजबूत करना: सरकार को किसानों के लिए बेहतर मूल्य प्राप्ति सुनिश्चित करने के लिए MSP कवरेज का विस्तार करना चाहिए और अनुबंध खेती को बढ़ावा देना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: गुजरात में अमूल के डेयरी मॉडल की सफलता दर्शाती है कि सहकारी खेती और सुनिश्चित मूल्य निर्धारण से किसानों की आय में किस प्रकार सुधार हो सकता है।
- फसल कटाई के बाद मजबूत बुनियादी ढाँचे का विकास: कोल्ड स्टोरेज, वेयरहाउसिंग और खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों में निवेश से फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है और कीमतों को स्थिर किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिए: आमों के लिए महाराष्ट्र के कोल्ड स्टोरेज नेटवर्क ने किसानों को उपज की शेल्फ लाइफ बढ़ाने और निर्यात बाजारों में बेहतर मूल्य प्राप्त करने में मदद की है।
- फसल विविधीकरण और संधारणीय खेती को प्रोत्साहित करना: किसानों को अधिक पानी की खपत वाली फसलों पर निर्भर रहने के बजाय उच्च मूल्य वाली और जलवायु-अनुकूल फसलें उगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: तेलंगाना में तिलहन की खेती को बढ़ावा देने से किसानों को अधिक जल-गहन धान की खेती से हटकर अधिक संधारणीय विकल्पों की ओर रुख करने में मदद मिली है।
- कृषि निर्यात वृद्धि को सुविधाजनक बनाना: नीतियों को गुणवत्ता मानकों और बाजार पहुँच में सुधार करके कृषि निर्यात को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
- डिजिटल कृषि सुधारों को लागू करना: AI-संचालित परिशुद्ध कृषि, डिजिटल भूमि रिकॉर्ड और रियल-टाइम प्राइम डिस्कवरी प्लेटफ़ॉर्म को अपनाने से कृषि मूल्य श्रृंखला में अक्षमताएँ कम हो सकती हैं।
- उदाहरण के लिए: E-NAM (इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय कृषि बाजार) ने किसानों को भारत भर के खरीदारों से सीधे जोड़कर बेहतर मूल्य प्राप्त करने में मदद की है।
कृषि क्षेत्र को मजबूत बनाने के लिए वित्तीय समावेशन, बाजार पहुँच और प्रौद्योगिकी एकीकरण पर केंद्रित प्रयासों की आवश्यकता है। प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना और बढ़ी हुई KCC सीमा जैसे उपायों से तत्काल राहत मिल सकती है, लेकिन संरचनात्मक बाजार चुनौतियों का समाधान करने के लिए अधिक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता होगी, जिसमें संधारणीय कृषि पद्धतियां और बेहतर बुनियादी ढाँचा शामिल है ।
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