Q. भारत में कैदियों के लिए इलेक्ट्रॉनिक ट्रैकिंग के संभावित लाभ क्या हैं, विशेष रूप से जेलों में भीड़भाड़ को नियंत्रित करने में? इसके कार्यान्वयन से जुड़ी चुनौतियों पर भी चर्चा कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारत में कैदियों के लिए इलेक्ट्रॉनिक ट्रैकिंग के संभावित लाभों पर प्रकाश डालिये विशेष रूप से जेलों में भीड़भाड़ की समस्या से निपटने में।
  • इसके कार्यान्वयन से जुड़ी चुनौतियों पर चर्चा कीजिए।
  • आगे की राह लिखिये।

उत्तर

कैदियों के लिए इलेक्ट्रॉनिक ट्रैकिंग में जेल  के बाहर अपराधियों की निगरानी के लिए GPS-सक्षम ब्रेसलेट या इसी तरह के उपकरणों का उपयोग किया जा सकता है। इस तकनीक का उद्देश्य पैरोल, परिवीक्षा और घर में नजरबंदी की सुविधा देकर भारत की जेलों में कैदियों की अधिक संख्या होने की समस्या का समाधान करना है। हालाँकि, इसके कार्यान्वयन में गोपनीयता संबंधी चिंताएँ, तकनीकी विश्वसनीयता और प्रभावी कानूनी व परिचालन ढाँचे से संबंधित चुनौतियाँ हैं।

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भारत में कैदियों के लिए इलेक्ट्रॉनिक ट्रैकिंग के संभावित लाभ

  • जेल में भीड़भाड़ में कमी: इलेक्ट्रॉनिक ट्रैकिंग की सहायता से  अंडरट्रॉयल कैदियों (Undertrial prisoner ) की जेल के बाहर निगरानी की जा सकती है, जिससे कैदियों की अधिक संख्या वाली जेलों पर बोझ कम हो सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: दिसंबर 2022 तक 131.4% की अधिभोग दर (Occupancy Rate) के साथ, इलेक्ट्रॉनिक ट्रैकिंग कई अंडरट्रॉयल कैदियों के लिए भौतिक जेल स्थान की आवश्यकता को कम कर सकती है।
  • कारावास का किफ़ायती विकल्प:  इलेक्ट्रॉनिक ट्रैकिंग डिवाइस की लागत, कैदी को जेल में रखने की तुलना में काफ़ी कम है। 
    • उदाहरण के लिए: ओडिशा में प्रति  अंडरट्रॉयल  कैदी पर प्रति वर्ष लगभग ₹1 लाख खर्च किया जाता है, जबकि ट्रैकिंग डिवाइस की कीमत लगभग ₹10,000-₹15,000 होती है।
  • प्रशासनिक संसाधनों का कुशल उपयोग: जमानत पर रिहा किए गए कैदियों की निगरानी के लिए व्यापक जनशक्ति की आवश्यकता को कम करता है, जिससे कर्मचारियों को अधिक महत्त्वपूर्ण कार्यों पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती है। 
    • उदाहरण के लिए: संसदीय स्थायी समिति ने इस बात पर प्रकाश डाला कि इलेक्ट्रॉनिक ट्रैकर निगरानी के लिए मानव संसाधनों पर निर्भरता को कम कर सकते हैं।
  • पुनर्वास की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं:  अंडरट्रॉयल कैदी इलेक्ट्रॉनिक रूप से निगरानी के दौरान समाज के साथ फिर से जुड़ सकते हैं, जिससे उनके पुनर्वास की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं। 
    • उदाहरण के लिए: कैदी फिर से कार्य या शिक्षा शुरू कर सकते हैं, जिससे मुकदमे की प्रतीक्षा करते समय सामाजिक उत्पादकता में योगदान मिलता है।
  • बेहतर कानूनी अनुपालन और जवाबदेही: यह सुनिश्चित करता है कि कैदी न्यायलय द्वारा आदेशित प्रतिबंधों का पालन करें और यह उनके भागने के जोखिम को भी कम करता है। 
    • उदाहरण के लिए: न्यायालय और कानून प्रवर्तन एजेंसियाँ जमानत शर्तों का पालन सुनिश्चित करने के लिए ट्रैकिंग डेटा का उपयोग कर सकती हैं।

इसके कार्यान्वयन से जुड़ी चुनौतियाँ

  • गोपनीयता संबंधी चिंताएँ: इलेक्ट्रॉनिक ट्रैकिंग संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निजता के अधिकार का उल्लंघन कर सकती है। 
    • उदाहरण के लिए: सुप्रीम कोर्ट ने GPS ट्रैकिंग से जुड़ी जमानत की शर्त को निजता का उल्लंघन मानते हुए खारिज कर दिया।
  • सामाजिक कलंक और मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव: दृश्यमान ट्रैकिंग डिवाइस पहनने से सामाजिक कलंक, चिंता और अवसाद हो सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन (ACLU) ने ऐसे मामलों की रिपोर्ट की है, जहाँ व्यक्तियों को ट्रैकिंग मॉनिटर के कारण अकेलेपन और अत्यधिक तनाव का सामना करना पड़ा।
  • दुरुपयोग और अतिक्रमण की संभावना: उचित विनियमन के बिना, इलेक्ट्रॉनिक निगरानी का अत्यधिक उपयोग किया जा सकता है या ऐसे मामलों में इसका उपयोग किया जा सकता है जहाँ इसकी आवश्यकता नहीं है। 
    • उदाहरण के लिए: अमेरिका में, इलेक्ट्रॉनिक निगरानी अक्सर ‘ई-कारावास’ की ओर ले जाती है, जिससे दंडात्मक नियंत्रण , भौतिक जेलों से परे हो जाते  हैं।
  • व्यक्तियों पर वित्तीय बोझ: यदि इलेक्ट्रॉनिक निगरानी वाले व्यक्तियों पर नजर डाली जाए तो यह हाशिए पर स्थित समुदायों को असंगत रूप से प्रभावित कर सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: अमेरिका में, निगरानी उपकरणों के लिए प्रतिदिन $3- $35 के शुल्क ने आरोपी पर वित्तीय दबाव डाला है।
  • तकनीकी और परिचालन संबंधी मुद्दे: प्रौद्योगिकी पर अधिक निर्भरता, डिवाइस की खराबी, डेटा उल्लंघन और बुनियादी ढाँचे की कमी के संबंध में चिंताएँ उत्पन्न करती है। 
    • उदाहरण के लिए: बिजली की कटौती या नेटवर्क विफलता इलेक्ट्रॉनिक निगरानी प्रणालियों की प्रभावशीलता से समझौता कर सकती है।

आगे की राह 

  • कैदी की सहमति से स्वैच्छिक भागीदारी: हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इलेक्ट्रॉनिक निगरानी केवल कैदी की सूचित सहमति से ही लागू की जाए। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2023 संसदीय स्थायी समिति ने मानवाधिकार उल्लंघन को रोकने के लिए इस संबंध में स्वैच्छिक भागीदारी की सिफारिश की।
  • गंभीर मामलों के लिए लक्षित कार्यान्वयन: सुरक्षा आवश्यकताओं और गोपनीयता को संतुलित करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक निगरानी को जघन्य अपराधों या बार-बार अपराध करने वालों तक सीमित रखा जाना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: 268 वें विधि आयोग की रिपोर्ट में केवल गंभीर अपराधों के लिए इलेक्ट्रॉनिक ट्रैकिंग का उपयोग करने की सलाह दी गई है।
  • मजबूत कानूनी ढाँचे की स्थापना करना: गोपनीयता की रक्षा, जवाबदेही सुनिश्चित करने और दुरुपयोग को रोकने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश और विनियमन प्रस्तुत किये जाने चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: इलेक्ट्रॉनिक निगरानी के लिए विशिष्ट परिस्थितियों और प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों को रेखांकित करने हेतु आपराधिक कानूनों में संशोधन करना चाहिए।
  • सरकार को लागत वहन करनी चाहिए: यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सरकार आर्थिक रूप से कमज़ोर कैदियों को वित्तीय बोझ से बचाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक ट्रैकिंग डिवाइस हेतु धन मुहैया कराए। 
    • उदाहरण के लिए: सुप्रीम कोर्ट की रिपोर्ट शोषण को रोकने के लिए राज्य द्वारा धन मुहैया कराने की सिफारिश करती है।
  • व्यापक जागरूकता और पुनर्वास कार्यक्रम: पुनर्वास सहायता को एकीकृत करते हुए इलेक्ट्रॉनिक निगरानी के लाभों के बारे में कैदियों और समाज को शिक्षित करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए:इससे जुड़े कलंक या स्टिग्मा को कम करने और इलेक्ट्रॉनिक निगरानी की स्वीकृति को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता अभियान और परामर्श सत्र आयोजित करने चाहिए।

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यद्यपि इलेक्ट्रॉनिक ट्रैकिंग भारत के जेलों में कैदियों की बढ़ रही संख्या की समस्या के लिए एक आशाजनक समाधान प्रदान करती है, फिर भी  इसकी सफलता मजबूत कानूनी ढाँचे, तकनीकी विश्वसनीयता और व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा पर निर्भर करती है। इन चुनौतियों का समाधान करके, यह प्रणाली प्रभावी पुनर्वास सुनिश्चित कर सकती है, आपराधिक कृत्यों की पुनरावृत्ति को कम कर सकती है और सार्वजनिक सुरक्षा को बढ़ावा देते हुए संवैधानिक मूल्यों के साथ संरेखित एक अधिक मानवीय और कुशल आपराधिक न्याय प्रणाली स्थापित कर सकती है।

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