प्रश्न की मुख्य मांग
- प्रस्तावित “फैक्ट-चेक” यूनिट के इंटरनेट मध्यस्थों की परिचालन स्वायत्तता पर संभावित प्रभाव पर चर्चा कीजिए।
- इस पर टिप्पणी कीजिए कि यह भारत में व्यापक डिजिटल संचार वातावरण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को किस प्रकार प्रभावित कर सकती है।
- आगे की राह लिखिये।
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उत्तर:
बॉम्बे उच्च न्यायालय ने हाल ही में वर्ष 2021 के IT नियमों के उस प्रावधान को खारिज कर दिया , जिसके तहत सरकार को फैक्ट चेक यूनिट (FCU) के जरिए सोशल मीडिया पर ‘फर्जी खबरों’ की पहचान करने की अनुमति दी गई थी। भारत में प्रस्तावित FCU का उद्देश्य ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर झूठी या भ्रामक जानकारी के प्रसार को नियंत्रित करना है, हालाँकि इंटरनेट मध्यस्थों की परिचालन स्वायत्तता पर इसके प्रभाव और डिजिटल संचार तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए व्यापक निहितार्थों के संबंध में गंभीर चिंताएँ भी हैं।
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प्रस्तावित फैक्ट –चेक यूनिट का इंटरनेट मध्यस्थों की परिचालन स्वायत्तता पर संभावित प्रभाव
- स्वायत्तता पर प्रतिबंध: फैक्ट चेक यूनिट इंटरनेट मध्यस्थों की परिचालन स्वतंत्रता को प्रतिबंधित कर सकती है। उन्हें कुछ सामग्री को हटाने की आवश्यकता हो सकती है, जिससे उनकी स्वतंत्र रूप से सामग्री का प्रबंधन करने की क्षमता सीमित हो सकती है।
- अनुपालन बोझ में वृद्धि: यह इकाई मध्यस्थों पर अनुपालन बोझ बढ़ाएगी, क्योंकि उन्हें लगातार सामग्री की निगरानी करनी होगी और उसे हटाना होगा, जिससे परिचालन दक्षता प्रभावित होगी।
उदाहरण के लिए: प्लेटफॉर्म को नए फैक्ट चेकिंग नियमों का अनुपालन करने के लिए अतिरिक्त संसाधन नियुक्त करने होंगे ।
- ‘सेफ हार्बर’ सुरक्षा के लिए खतरा: यदि मध्यस्थ, फैक्ट चेक यूनिट के निर्देशों का पालन करने में विफल रहते हैं, तो वे अपनी ‘सेफ हार्बर’ सुरक्षा खोने का जोखिम उठाते हैं, जो उन्हें उपयोगकर्ता-जनित सामग्री के लिए उत्तरदायी बना सकता है। उदाहरण के लिए: IT अधिनियम की धारा 79 के तहत, यदि सामग्री को हटाया नहीं जाता है, तो प्लेटफॉर्म की सुरक्षा पर असर पड़ सकता है।
- नवाचार पर नकारात्मक प्रभाव: इस तरह के नियंत्रणों के लागू होने से नए प्रवेशकों और स्टार्टअप्स को डिजिटल बाजार में स्वतंत्र रूप से शामिल होने से हतोत्साहित करके नवाचार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
- सरकारी अतिक्रमण का जोखिम: फैक्ट चेकिंग यूनिट सरकार को यह तय करने का अधिकार देती है कि क्या “फेक” है, जिससे संभावित अतिक्रमण और पूर्वाग्रह पर चिंता बढ़ जाती है।
उदाहरण के लिए: सरकारी नीतियों की आलोचना करने वाले पोस्ट को ‘फेक’ माना जा सकता है, जिससे प्लेटफॉर्म राजनीतिक सामग्री को ‘सेंसर’ कर सकते हैं ।
यह भारत में व्यापक डिजिटल संचार वातावरण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कैसे प्रभावित कर सकता है
- सेंसरशिप संबंधित चिंताएँ: फैक्ट चेकिंग यूनिट ,सेंसरशिप के लिए एक उपकरण के रूप में कार्य कर सकती है ,असहमति को दबा सकती है और सरकार की वैध आलोचना को रोक सकती है।
उदाहरण के लिए: वर्ष 2023 में, जब नए कृषि सुधारों की आलोचना करने वाले कई राजनीतिक पोस्ट को फर्जी बताया गया तो चिंताएँ बढ़ गईं।
- उपयोगकर्ताओं द्वारा स्व-सेंसरशिप: सरकारी हस्तक्षेप के डर से उपयोगकर्ता स्व-सेंसरशिप अपना सकते हैं, तथा ऐसे विषयों से बच सकते हैं जिन्हें ‘फैक्ट-चेकिंग’ द्वारा चिह्नित किया जा सकता है।
- सार्वजनिक बहस का दमन: चिह्नित सामग्री को हटाने से महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर सार्वजनिक बहस रूक सकती है, जिससे ऑनलाइन उपलब्ध दृष्टिकोणों की विविधता कम हो सकती है।
- पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर प्रभाव: यदि मीडिया संस्थानों को सरकार की आलोचना करने वाली रिपोर्ट या सामग्री हटाने के लिए मजबूर किया जाता है तो पत्रकारिता की स्वतंत्रता से समझौता हो सकता है।
- प्लेटफॉर्मों में विश्वास का ह्रास: बार-बार सामग्री को हटाए जाने से स्वतंत्र अभिव्यक्ति और खुले संचार के माध्यम के रूप में डिजिटल प्लेटफॉर्मों में विश्वास की कमी हो सकती है ।
आगे की राह
- स्वतंत्र फैक्ट–चेकिंग निकाय: सरकार द्वारा नियंत्रित यूनिट के बजाय एक स्वतंत्र फैक्ट-चेकिंग निकाय की स्थापना से तटस्थता और पारदर्शिता सुनिश्चित हो सकती है।
उदाहरण के लिए: स्वतंत्र एजेंसियों के साथ सहयोग से संतुलित और गैर-पक्षपातपूर्ण ‘फैक्ट-चेकिंग’ हो सकती है।
- ‘फेक न्यूज’ की स्पष्ट परिभाषा: सरकार को स्पष्ट और वस्तुनिष्ठ परिभाषा प्रदान करनी चाहिए कि फर्जी या भ्रामक सामग्री क्या है, ताकि इससे संबंधित अस्पष्टता कम हो सके।
- न्यायिक निगरानी: सत्ता के दुरुपयोग को रोकने और संवैधानिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए फैक्ट-चेकिंग संबंधी निर्णयों की न्यायिक समीक्षा की जानी चाहिए।
- हितधारकों के साथ परामर्श: नागरिक समाज, मीडिया हाउस और इंटरनेट प्लेटफॉर्म के साथ नियमित परामर्श से यह सुनिश्चित होगा कि फैक्ट-चेकिंग प्रक्रिया सहयोगात्मक और समावेशी हो।
उदाहरण के लिए: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हितों और गलत सूचना से निपटने की आवश्यकता के बीच संतुलन बनाने के लिए MeitY, हितधारकों की बैठकें आयोजित कर सकती है।
- क्रमिक कार्यान्वयन: स्वैच्छिक अनुपालन से शुरू होने वाले ‘फैक्ट-चेकिंग’ तंत्र का चरणबद्ध कार्यान्वयन, प्लेटफॉर्म को अचानक बदलाव किए बिना अनुकूलन करने की सुविधा प्रदान कर सकता है।
उदाहरण के लिए: पूर्ण पैमाने पर प्रवर्तन करने से पहले एक परीक्षण चरण शुरू करने से प्रक्रिया का परीक्षण करने और आवश्यक समायोजन करने में मदद मिल सकती है।
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प्रस्तावित ‘फैक्ट-चेकिंग यूनिट’ इंटरनेट मध्यस्थों की स्वायत्तता की रक्षा करते हुए डिजिटल संचार में सत्यनिष्ठा बनाए रखने के लिए अवसर और चुनौतियाँ दोनों प्रदान करती है। एक संतुलित दृष्टिकोण, जिसमें स्पष्ट दिशा-निर्देश, न्यायिक निगरानी और बहु-हितधारक सहयोग शामिल हो, यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक होगा कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या ऑनलाइन विचारों के लोकतांत्रिक आदान-प्रदान से समझौता न करे ।
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