Q. ‘डायमंड डस्ट जियोइंजीनियरिंग’ जैसे महत्वाकांक्षी प्रस्तावों के बावजूद, अकेले तकनीकी समाधान जलवायु परिवर्तन को संबोधित क्यों नहीं कर सकते? ऐसे हस्तक्षेपों से जुड़ी नैतिक, पर्यावरणीय और आर्थिक चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • व्याख्या कीजिए कि डायमंड डस्ट जियोइंजीनियरिंग जैसे महत्त्वाकांक्षी प्रस्तावों के बावजूद अकेले तकनीकी समाधान, जलवायु परिवर्तन की समस्या का समाधान क्यों नहीं कर सकते हैं।
  • ऐसे हस्तक्षेपों से संबंधित नैतिक, पर्यावरणीय और आर्थिक चुनौतियों पर चर्चा कीजिए।

उत्तर

डायमंड डस्ट जियोइंजीनियरिंग एक प्रस्तावित जलवायु हस्तक्षेप तकनीक है, जिसमें सूर्य के प्रकाश को परावर्तित करने और वैश्विक तापमान को कम करने के लिए वायुमंडल में हीरे के अत्यंत छोटे कणों को फैलाया जाता है। जबकि ऐसे तकनीकी समाधान जलवायु परिवर्तन की समस्या का समाधान करने के लिए अभिनव तरीके प्रदान करते हैं, वे इस संकट का व्यापक रूप से समाधान करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) ने चेतावनी दी है, कि वैश्विक सहयोग और नीति समर्थन के बिना, तकनीकी समाधान गंभीर पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने में विफल हो सकते हैं।

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तकनीकी समाधान अकेले जलवायु परिवर्तन का समाधान क्यों नहीं कर सकते?

  • जलवायु प्रणालियों की जटिलता: जलवायु परिवर्तन की प्रक्रिया में कई परस्पर क्रियाशील प्रणालियाँ शामिल हैं जैसे समुद्री धाराएँ , जैव विविधता और वायुमंडलीय संरचना। तकनीकी समाधान अक्सर इनमें से किसी एक पहलू का ही समाधान कर पाते हैं और इन प्रणालियों की परस्पर जुड़ी प्रकृति को अनदेखा कर देते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: कार्बन कैप्चर प्रौद्योगिकियाँ, CO2 को कम कर सकती हैं परंतु महासागरीय अम्लीकरण और आवास ह्वास की समस्या को रोकने में विफल साबित हुई हैं।
  • व्यवहारिक और आर्थिक कारक: उत्सर्जन को कम करने के लिए उपभोक्ता व्यवहार और आर्थिक नीतियों में बदलाव की आवश्यकता  है। इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है, कि केवल तकनीक पर निर्भर रहने के बजाय संधारणीयता को प्रोत्साहित करने पर बेहतर परिणाम प्राप्त हो सकते हैं।  
    • उदाहरण के लिए: इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) में प्रगति के बावजूद, मौजूदा बुनियादी ढाँचे  और उपभोक्ता आदतों के कारण जीवाश्म ईंधन की खपत अधिक बनी हुई है।
  • अनपेक्षित पर्यावरणीय परिणाम: कुछ तकनीकी समाधान प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र पर अनपेक्षित दुष्प्रभाव डाल सकते हैं । उदाहरण के लिए, जियोइंजीनियरिंग अप्रत्याशित मौसम प्रतिरूपों का कारण बन सकती है  या क्षेत्रीय जलवायु को भी बदल सकती है। 
    • उदाहरण के लिए: डायमंड डस्ट जियोइंजीनियरिंग  के कारण पृथ्वी की सतह पर पहुंचने वाली सूर्य की किरणें कम हो सकती है, जिससे स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र में व्यवधान उत्पन्न हो सकता है।
  • संसाधन और ऊर्जा गहन: कई तकनीकी समाधानों को संचालित करने के लिए पर्याप्त ऊर्जा और संसाधनों की आवश्यकता होती है , जो कि अगर नवीकरणीय स्रोतों से संचालित न हों तो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को बढ़ा सकते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: कार्बन कैप्चर प्लांट, अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा की खपत करते हैं जो अक्सर जीवाश्म ईंधन से प्राप्त होती है, जिससे उत्सर्जन पर उनका शुद्ध प्रभाव कम हो जाता है।
  • वैश्विक नीति और समानता के मुद्दे: तकनीकी समाधान अक्सर अमीर देशों को लाभ पहुंचाते हैं और कम आय वाले देश जलवायु परिवर्तन के प्रति सुभेद्य हो जाते हैं। इस तरह से वे जलवायु प्रतिरोध के संबंध में असमानता उत्पन्न करते हैं। वैश्विक स्तर पर निष्पक्ष और प्रभावी समाधान सुनिश्चित करने के लिए व्यापक नीतियों की आवश्यकता है। 
    • उदाहरण के लिए: ग्लोबल साउथ में अक्सर उन्नत हरित प्रौद्योगिकियों तक पहुँच की कमी होती है, जिससे जलवायु अनुकूलन क्षमता के मामले में व्याप्त विभाजन और भी गहरा हो जाता है।

जलवायु परिवर्तन के तकनीकी समाधानों से संबंधित नैतिक चुनौतियाँ

  • समानता और न्याय संबंधी चिंताएँ: जियोइंजीनियरिंग और इसी तरह की अन्य तकनीकें अक्सर अमीर देशों को लाभ पहुँचाती हैं, जबकि सुभेद्य समुदायों को जोखिम का सामना करना पड़ता है। इससे जलवायु न्याय और समानता संबंधी चिंताएँ उत्पन्न होती हैं। 
    • उदाहरण के लिए: कार्बन कैप्चर तकनीकों की उच्च लागत निम्न-आय वाले देशों को इन समाधानों को लागू करने से रोकती है, जिससे वैश्विक असमानता और भी बढ़ती है।
  • मानवाधिकार उल्लंघन की संभावना: बड़े पैमाने पर किये जाने वाले पर्यावर हस्तक्षेप, समुदायों को विस्थापित कर सकते हैं या उनकी आजीविका को बाधित कर सकते हैं, जिससे जबरन पलायन और पारंपरिक भूमि के ह्वास से संबंधित नैतिक दुविधाएं उत्पन्न हो सकती हैं। 
    • उदाहरण के लिए: जलविद्युत के लिए नदियों पर बांध बनाने जैसी परियोजनाओं के कारण स्वदेशी समुदायों का विस्थापन हुआ है।
  • सूचित सहमति का अभाव: जियो-इंजीनियरिंग से संबंधित निर्णयों के मामले में कई समुदायों की आवाज अनसुनी रह जाती है जिसके कारण उनकी सहमति के बिना ऐसे कार्य किए जाते हैं जो उनके पर्यावरण और उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करने के कारण तटीय समुदायों से परामर्श किए बिना लागू की गई समुद्री उर्वरीकरण परियोजनाओं की आलोचना की गई है।
  • जिम्मेदारी कम होने का जोखिम: केवल तकनीकी समाधानों पर निर्भर रहने से सुरक्षा की झूठी भावना उत्पन्न हो सकती है, जिससे संधारणीय नीतियों और व्यक्तिगत जिम्मेदारी से संबंधित कार्रवाई में देरी हो सकती है। 
    • उदाहरण के लिए: भविष्य में कार्बन कैप्चर पर ध्यान केंद्रित करने से सख्त उत्सर्जन नीतियों को लागू करने में देरी हो सकती है और  उद्योगों द्वारा प्रदूषण में होने वाला योगदान जारी रहेगा।
  • अंतर-पीढ़ीगत जिम्मेदारी: आज के तकनीकी हस्तक्षेप  के परिणाम भावी पीढ़ियों को भुगतने पड़ सकते हैं। यह भी हो सकता है, कि इन परिणामों को पूरी तरह से नियंत्रित न किया जा सके। इससे पृथ्वी के भावी निवासियों के प्रति नैतिक जिम्मेदारी के बारे में सवाल उठते हैं।

जलवायु परिवर्तन के तकनीकी समाधानों से संबंधित पर्यावरणीय चुनौतियाँ

  • पारिस्थितिकी तंत्र में व्यवधान: कई तकनीकी समाधान स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित कर सकते हैं, जिससे जैव विविधता और प्राकृतिक चक्र अप्रत्याशित तरीके से प्रभावित हो सकते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: सल्फेट एरोसोल इंजेक्शन, एक जियो- इंजीनियरिंग तकनीक, वर्षा पैटर्न को बाधित कर सकती है जिससे कुछ क्षेत्रों में पानी की कमी हो सकती है।
  • अपरिवर्तनीय क्षति की संभावना: यदि इनकी सावधानीपूर्वक निगरानी और प्रबंधन न किया जाए तो बड़े पैमाने की जियो-इंजीनियरिंग परियोजनायें, अपरिवर्तनीय पर्यावरणीय क्षति का कारण बन सकती हैं।
    • उदाहरण के लिए: समुद्री उर्वरीकरण जिसका उद्देश्य कार्बन अवशोषण को बढ़ाना है, ऑक्सीजन के स्तर को कम करता है, जिससे समुद्री जीवन को नुकसान पहुँचता है।
  • प्रदूषण और अपशिष्ट में वृद्धि: कार्बन कैप्चर जैसी तकनीकें विषाक्त अपशिष्ट उत्पन्न कर सकती हैं या इनके निपटान के लिये ऐसे तरीकों की आवश्यकता हो सकती है, जो अतिरिक्त पर्यावरणीय जोखिम उत्पन्न करते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: कार्बन कैप्चर प्लांट, विषाक्त पदार्थ उत्पन्न करते हैं जिनके निपटान के लिए सुरक्षित और अधिक लागत वाले समाधानों की आवश्यकता होती है।
  • प्राकृतिक मौसम पैटर्न पर प्रभाव: ‘डायमंड डस्ट डिस्पर्सल’ जैसी कुछ जियो-इंजीनियरिंग तकनीकें प्राकृतिक मौसम प्रतिरूपों को बदल सकती हैं, जिससे  सूखा या बाढ़ की घटनाएं हो सकती हैं। 
    • उदाहरण के लिए: ‘डायमंड डस्ट के माध्यम से वातावरण का शीतलन करने से कुछ कृषि क्षेत्रों में वर्षा कम हो सकती है ।
  • गैर-नवीकरणीय संसाधनों पर निर्भरता: कई तकनीकी समाधान दुर्लभ या गैर-नवीकरणीय सामग्रियों पर निर्भर करते हैं, जिससे संसाधनों पर निर्भरता बढ़ती है और पारिस्थितिकी तंत्र का क्षरण होता है। 
    • उदाहरण के लिए: इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए लिथियम-आयन बैटरी के उत्पादन से बड़े पैमाने पर खनन होता है, जिससे संसाधन-समृद्ध क्षेत्रों में पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचता है।

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जलवायु परिवर्तन के तकनीकी समाधानों से संबंधित आर्थिक चुनौतियाँ

  • उच्च कार्यान्वयन लागत: कार्बन कैप्चर जैसी उन्नत जलवायु प्रौद्योगिकियों के लिए पर्याप्त निवेश की आवश्यकता होती है, जो विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की प्रगति को रोक सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: एक कार्बन कैप्चर प्लांट बनाने में अरबों डॉलर तक खर्च हो सकते हैं, जिससे यह कम आय वाले देशों के लिए वहनीय विकल्प नहीं रह जाता।
  • संसाधनों तक असमान पहुँच: अमीर देश जलवायु प्रौद्योगिकियों में निवेश करने के लिए बेहतर स्थिति में होते हैं, जिससे उनके और अन्य  देशों के बीच जलवायु प्रतिरोध के संबंध में  असमानता उत्पन्न होती है। 
    • उदाहरण के लिए: यूरोपीय देश नवीकरणीय ऊर्जा में भारी निवेश कर रहे हैं, जबकि कम आय वाले देश बुनियादी ढाँचे  की आवश्यकताओं के लिए संघर्ष करते हुये  नजर आ रहे हैं।
  • बाजार में हेरफेर का जोखिम: कंपनियाँ जलवायु प्रौद्योगिकी बाज़ारों का दोहन कर सकती हैं। इसके परिणामस्वरूप संधारणीयता के बजाय आर्थिक लाभ को प्राथमिकता दिया जा सकता है जिससे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में एकाधिकार की समस्या या  अनुचित मूल्य निर्धारण  जैसी समस्याएं आ सकती हैं।
    • उदाहरण के लिए: हाल ही में कार्बन क्रेडिट बाजार में परिवर्तन के उदाहरण देखे गए हैं, जहाँ कंपनियाँ वास्तविक उत्सर्जन में कमी किए बिना कार्बन ऑफसेट के माध्यम से मुनाफा कमा रही हैं।
  • संसाधन आवंटन से संबंधित संघर्ष: बड़े पैमाने की जलवायु प्रौद्योगिकी परियोजनाओं के लिए धन का उपयोग करने से सामाजिक और आर्थिक विकास के संसाधनों पर दबाव पड़ सकता है, जिससे स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा जैसी आवश्यक सेवाएँ प्रभावित हो सकती हैं
    • उदाहरण के लिए: जियो-इंजीनियरिंग में निवेश करने से सामाजिक बुनियादी ढाँचे  के लिए उपलब्ध निधि पर असर पड़ सकता है, विशेष रूप से आर्थिक रूप से सुभेद्य देशों में।
  • उन्नत देशों पर आर्थिक निर्भरता: विकासशील देश जलवायु समाधानों के लिए तकनीकी रूप से उन्नत देशों पर आर्थिक रूप से निर्भर हो सकते हैं, जिससे दीर्घकालिक वित्तीय निर्भरता उत्पन्न हो सकती है। 
    • उदाहरण के लिए: बढ़ते समुद्र के स्तर से प्रभावित छोटे द्वीप राष्ट्र अक्सर नवीकरणीय ऊर्जा और बुनियादी ढाँचे के अनुकूलन के लिए बाह्य वित्तपोषण पर निर्भर रहते हैं ।

जबकि जियो- इंजीनियरिंग और नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकी जैसे तकनीकी समाधान जलवायु परिवर्तन की समस्या का समाधान करने के लिए अति महत्त्वपूर्ण हैं, वे अकेले इस संकट का समाधान नहीं कर सकते हैं। संधारणीय जलवायु कार्रवाई के लिए दीर्घकालिक प्रत्यास्थता सुनिश्चित करने हेतु नैतिक विचारों, पर्यावरण सुरक्षा उपायों और आर्थिक समावेशिता की आवश्यकता है । भविष्य की पीढ़ियों के लिए व्यापक और संधारणीय जलवायु समाधान प्रदान करने के लिए नीति, सार्वजनिक जुड़ाव और वैश्विक सहयोग के साथ प्रौद्योगिकी का संतुलन अति आवश्यक है।

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