प्रश्न की मुख्य माँग
- चर्चा कीजिए कि NTPC के ताप विद्युत उत्पादन से यह पता चलता है कि सबसे अधिक विद्युत उत्पादन करने वाले राज्य अपेक्षाकृत कम विद्युत खपत करते हैं, जिससे विद्युत उत्पादन करने वाले और उपभोग करने वाले राज्यों के बीच असंतुलन उजागर होता है।
- इस असंतुलन के परिणामों का परीक्षण कीजिए।
- समान संसाधन वितरण और संधारणीय विकास सुनिश्चित करने के लिए नीतिगत उपाय प्रस्तावित कीजिए।
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उत्तर
थर्मल पावर भारत के ऊर्जा क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण भाग बनी हुई है, जिसने वर्ष 2022-23 में विद्युत उत्पादन में 73% से अधिक का योगदान दिया। हालाँकि, छत्तीसगढ़, ओडिशा और झारखंड जैसे कोयला-समृद्ध राज्य पर्याप्त विद्युत का उत्पादन करते हैं, परंतु वे काफी कम खपत करते हैं, जिससे ऊर्जा वितरण में असंतुलन उत्पन्न होता है। यह असमानता पर्यावरणीय बोझ, आर्थिक समानता और संधारणीय ऊर्जा नीतियों के संबंध में चिंताएँ उत्पन्न करती है जिसके लिए तत्काल नीतिगत मध्यक्षेप की आवश्यकता होती है।
विद्युत उत्पादक और उपभोक्ता राज्यों के बीच असंतुलन
- उत्पादक राज्यों में कम खपत: NTPC के ताप विद्युत उत्पादन के आंकड़ों से पता चलता है कि उत्तर प्रदेश, ओडिशा और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य अपने द्वारा उत्पादित विद्युत का क्रमशः केवल 40%, 38.43% और 29.92% ही खपत करते हैं। यह उत्पादक और उपभोग करने वाले राज्यों के बीच ऊर्जा उपयोग में असमानता को उजागर करता है।
- उदाहरण के लिए: छत्तीसगढ़ ने NTPC की विद्युत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा उत्पादित किया, फिर भी यह भारत के सबसे कम प्रति व्यक्ति बिजली उपभोक्ताओं में से एक है, जो ऊर्जा लाभों के असमान वितरण को दर्शाता है।
- असंगत प्रदूषण भार: ताप विद्युत उत्पादक राज्य, कोयले के दहन और उत्सर्जन के कारण उच्च प्रदूषण स्तर का सामना करते हैं, जबकि उपभोक्ता राज्य पर्यावरण क्षरण का सामना किए बिना स्वच्छ बिजली का लाभ उठाते हैं।
- उदाहरण के लिए: झारखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ में NTPC के प्रमुख संयंत्र हैं और वे SO2 व पार्टिकुलेट उत्सर्जन के कारण उच्च वायु प्रदूषण की समस्या का सामना करते हैं, जबकि गुजरात और महाराष्ट्र, शुद्ध उपभोक्ता होने के कारण, न्यूनतम प्रदूषण परिणामों का सामना करते हैं।
- निम्न औद्योगिक वृद्धि वाले शुद्ध बिजली निर्यातक: कई विद्युत उत्पादक राज्य शुद्ध निर्यातक हैं, लेकिन उनकी औद्योगिक व आर्थिक वृद्धि कम है, क्योंकि उद्योग बेहतर बुनियादी ढाँचे और निवेश नीतियों वाले राज्यों को प्राथमिकता देते हैं।
- उदाहरण के लिए: छत्तीसगढ़ एक प्रमुख विद्युत उत्पादक है, जो 535.29 मेगावाट से अधिक विद्युत का निर्यात करता है परंतु इसमें महाराष्ट्र या गुजरात जैसा औद्योगिक आधार नहीं है, जो बिजली का आयात करते हैं, फिर भी उनकी आर्थिक वृद्धि मजबूत है।
- राजस्व असमानता और कर लाभों का अभाव: उत्पादक राज्यों को कर लाभ नहीं मिलता है, क्योंकि बिजली उत्पादन पर कर नहीं लगता है, जबकि उपभोक्ता राज्य उत्पादन लागत वहन किए बिना ही बिजली शुल्क राजस्व अर्जित करते हैं।
- उत्पादक राज्यों में सीमित विकास: विद्युत संयंत्रों के बावजूद, उत्पादक राज्य अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे और सामाजिक विकास की समस्या से जूझते हैं, क्योंकि अधिकांश आर्थिक लाभ उपभोक्ता राज्यों को मिलता है।
इस असंतुलन के परिणाम
- उत्पादक राज्यों में पर्यावरण निम्नीकरण: प्रदूषण के उच्च स्तर से स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ, मृदा निम्नीकरण और जैव विविधता ह्वास होता है, जिससे उत्पादक राज्यों में कृषि और जीवन की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
- उदाहरण के लिए: झारखंड के झरिया कोयला क्षेत्र में गंभीर वायु और जल प्रदूषण है, जिससे वहाँ के निवासियों के बीच श्वसन संबंधी बीमारियां बढ़ रही हैं, जबकि पंजाब या तमिलनाडु के उपभोक्ताओं को ऐसे किसी खतरे का सामना नहीं करना पड़ता है।
- राज्यों के बीच आर्थिक असमानताएँ: उत्पादक राज्य आर्थिक रूप से कमज़ोर बने हुए हैं, जबकि उपभोक्ता राज्य कम परिचालन लागत और स्थिर बिजली आपूर्ति के कारण फल-फूल रहे हैं।
- उदाहरण के लिए: महाराष्ट्र और गुजरात, बिजली आयात करने के बावजूद, उच्च औद्योगिक उत्पादन करते हैं, जबकि बिहार और छत्तीसगढ़ जैसे उत्पादक राज्य आर्थिक विकास के साथ संघर्ष करते हैं।
- नए बिजली संयंत्रों के प्रति जनता का विरोध: उत्पादक राज्यों में स्थानीय समुदाय, विस्थापन, प्रदूषण और प्रत्यक्ष लाभ की कमी के कारण नई ताप विद्युत परियोजनाओं का विरोध करते हैं जिससे परियोजना में देरी होती है।
- उदाहरण के लिए: सिंगरौली (मध्य प्रदेश), जहाँ NTPC संयंत्र हैं, के निवासी अक्सर भूमि अधिग्रहण और वायु प्रदूषण के खिलाफ विरोध करते हैं, जिससे विस्तार परियोजनाओं में देरी होती है।
- संसाधन उपयोग में अकुशलता: उत्पादक राज्यों में अपनी स्वयं की बिजली के लिए पर्याप्त स्थानीय माँग का अभाव है, जिसके परिणामस्वरूप संसाधनों का कम उपयोग होता है जबकि उपभोक्ता राज्यों को अधिकतम माँग प्रबंधन के साथ संघर्ष करना पड़ता है ।
समान संसाधन वितरण और सतत विकास के लिए नीतिगत उपाय
- उत्पादक राज्यों के लिए मुआवज़ा: केंद्र सरकार को एक मुआवज़ा तंत्र स्थापित करना चाहिए, जहाँ उत्पादक राज्यों को पर्यावरण और बुनियादी ढाँचे से जुड़े बोझ के लिए वित्तीय लाभ मिले।
- उदाहरण के लिए: सोलहवां वित्त आयोग विद्युत राजस्व का एक निश्चित प्रतिशत उत्पादक राज्यों को हस्तांतरित करने के लिए प्रदूषण क्षतिपूर्ति कोष की शुरुआत कर सकता है।
- उत्पादक राज्यों में हरित ऊर्जा निवेश: सरकार को उत्पादक राज्यों में नवीकरणीय ऊर्जा निवेश को प्राथमिकता देनी चाहिए, ताकि कोयले से दूर जाने के साथ-साथ उनकी आर्थिक स्थिरता भी बनी रहे।
- उदाहरण के लिए: प्रमुख कोयला उत्पादक राज्यों झारखंड और ओडिशा को अपने विद्युत क्षेत्र में विविधता लाने के लिए राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन के अंतर्गत अधिक नवीकरणीय ऊर्जा आवंटन प्राप्त करना चाहिए।
- विद्युत शुल्क से राजस्व साझाकरण: विद्युत उत्पादन में राजकोषीय समानता सुनिश्चित करने के लिए उपभोक्ता राज्यों द्वारा एकत्रित विद्युत शुल्क को आंशिक रूप से उत्पादक राज्यों के साथ साझा किया जाना चाहिए।
- स्थानीय विकास पर अनिवार्य CSR व्यय: NTPC और अन्य बिजली उत्पादकों को उत्पादक राज्यों में स्वास्थ्य सेवा, बुनियादी ढाँचे और प्रदूषण नियंत्रण के लिए अपने CSR फंड का अधिक हिस्सा आवंटित करने के लिए अनिवार्य किया जाना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: NTPC सिंगरौली को वायु प्रदूषण नियंत्रण उपायों, स्थानीय अस्पतालों और प्रभावित समुदायों के लिए कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों में निवेश करना चाहिए, ताकि स्थानीय लोगों को सीधा लाभ मिल सके।
- विकेंद्रीकृत बिजली उपयोग: उत्पादक राज्यों में औद्योगिक प्रोत्साहनों के माध्यम से स्थानीय खपत को प्रोत्साहित करने से आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा और बाहरी खरीदारों पर निर्भरता कम होगी।
- उदाहरण के लिए: छत्तीसगढ़ और झारखंड को विशेष औद्योगिक सब्सिडी मिलनी चाहिए ताकि स्थानीय स्तर पर उत्पादित बिजली का उपयोग करने वाली विनिर्माण इकाइयों को आकर्षित किया जा सके और यह सुनिश्चित किया जा सके कि आर्थिक लाभ राज्य के भीतर ही रहे।
उत्पादन-उपभोग के अंतर को कम करने के लिए रणनीतिक नीतिगत सुधार, लक्षित बुनियादी ढाँचे में निवेश और मजबूत अक्षय ऊर्जा एकीकरण की आवश्यकता है। ऐसे उपाय समान संसाधन वितरण सुनिश्चित कर सकते हैं और क्षेत्रीय असमानताओं को कम कर सकते हैं। अंतर-राज्यीय सहयोग को बढ़ावा देने और प्रौद्योगिकी-आधारित समाधानों को बढ़ावा देने से, हम विद्युत-सशक्त भविष्य के लिए प्रत्यास्थ, समावेशी और सतत विकास की ओर मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं।
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