Q. प्रस्तावित 130वें संविधान संशोधन विधेयक में राजनीतिक अखंडता सुनिश्चित करने के लिए 30 दिनों की हिरासत के बाद मंत्री के इस्तीफे का प्रावधान है। आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए कि यह प्रावधान 'निर्दोषता की धारणा' (Presumption of innocence) और 'शक्तियों के पृथक्करण' के संवैधानिक सिद्धांतों को कैसे प्रभावित करता है। (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • संवैधानिक सिद्धांतों पर सकारात्मक प्रभाव लिखिए।
  • संवैधानिक सिद्धांतों पर नकारात्मक प्रभाव लिखिए।
  • आगे की राह लिखिए।

उत्तर

130वाँ संविधान संशोधन विधेयक यह प्रस्तावित करता है कि यदि कोई मंत्री 30 दिनों तक कारावास में (detained) रहता है, तो उसे पद से इस्तीफा देना होगा, जिससे राजनीतिक ईमानदारी और जवाबदेही सुनिश्चित हो सके। यद्यपि यह जवाबदेही को बढ़ावा देता है, किंतु यह निर्दोषता की धारणा (Presumption of Innocence) और शक्तियों के पृथक्करण (Separation of Powers) जैसे मूल संवैधानिक सिद्धांतों पर गंभीर प्रश्न उठाता है। इसलिए इसके प्रभाव का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन आवश्यक है।

संवैधानिक सिद्धांतों पर सकारात्मक प्रभाव

  • जवाबदेही और ईमानदारी में वृद्धि: यह उन मंत्रियों के प्रति शून्य सहिष्णुता का संकेत देता है, जो लंबे समय तक हिरासत में रहते हैं, जिससे शासन में जनविश्वास सुदृढ़ होता है।
  • मौजूदा सुरक्षा उपायों का पूरक: यह संशोधन जनप्रतिनिधित्व अधिनियम  के साथ मिलकर कार्य करता है, जिससे दोषसिद्धि से पहले ही एक अतिरिक्त जाँच तंत्र बनता है।
    • उदाहरण: राय साहब राम जावया कपूर बनाम पंजाब राज्य (वर्ष 1955) में सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धांत को मान्यता दी गई, जिससे मंत्रियों पर विधायी नियंत्रण सुनिश्चित हुआ।
  • “जेल से शासन” की रोकथाम: यह ऐसी स्थिति पर रोक लगाता है, जहाँ मंत्री जेल में रहते हुए शासन चलाने का प्रयास करते हैं, जिससे कार्यपालिका का सुचारु संचालन सुनिश्चित होता है।
  • सभी दलों के लिए समान नियम: यह नियम सभी मंत्रियों पर समान रूप से लागू होता है, जिससे चयनात्मक छूट (Selective Immunity) की धारणा घटती है।
    • उदाहरण: मनोज नारूला बनाम भारत संघ (वर्ष 2014) में यह सुनिश्चित किया गया कि अयोग्यता के नियम सभी मंत्रियों पर समान रूप से लागू हों।
  • संवैधानिक नैतिकता का संवर्द्धन: यह संशोधन कानून में नैतिक अपेक्षाएँ शामिल कर राजनीतिक पदों में शुचिता के उच्च मानक स्थापित करने का प्रयास करता है।

संवैधानिक सिद्धांतों पर नकारात्मक प्रभाव

  • निर्दोषता की धारणा का क्षरण: केवल हिरासत के आधार पर पद से हटाना, जबकि न तो मुकदमा चला हो और न दोष सिद्ध हुआ हो, आरोप को दोष के समान मानता है, जो न्याय के मूल सिद्धांत के विपरीत है।
  • राजनीतिक विवेक में अत्यधिक हस्तक्षेप: मंत्रियों को स्वचालित रूप से हटाने की यह व्यवस्था राजनीतिक विवेक को कानूनी बाध्यता में बदल देती है।
  • शक्तियों के पृथक्करण को खतरा: यह संशोधन जाँच एजेंसियों या कार्यपालिका को अप्रत्यक्ष रूप से मंत्रियों को हटाने की शक्ति दे देता है, जिससे वे न्यायाधीश, जूरी और कार्यपालिका  तीनों की भूमिका निभा सकती हैं।
    • उदाहरण: विनीत नारायण बनाम भारत संघ (वर्ष 1998) में सर्वोच्च न्यायालय ने जाँच एजेंसियों को राजनीतिक नियंत्रण से स्वतंत्र रखने की आवश्यकता पर बल दिया था।
  • दुरुपयोग और राजनीतिक प्रतिशोध का जोखिम: चूँकि पूर्व-ट्रायल निरुद्धता को राजनीतिक रूप से मोड़ा जा सकता है, यह संशोधन कानूनी आवरण में राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को निशाना बनाने का तंत्र बन सकता है।
    • उदाहरण: एस. आर. बोम्मई बनाम भारत संघ (वर्ष 1994) में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि बहुमत का परीक्षण विधानसभा के पटल पर ही होना चाहिए, जिससे राजनीतिक हेर-फेर को रोका जा सके।
  • संघीय स्वायत्तता पर अतिक्रमण: राज्यों के स्तर पर, यदि राष्ट्रीय जाँच एजेंसियाँ राज्य मंत्रियों को हटाने की शक्ति रखती हैं, तो यह राज्य सरकारों की स्वतंत्रता को कमजोर कर सकता है।
    • उदाहरण: एस. आर. बोम्मई बनाम भारत संघ (वर्ष 1994) ने संघवाद को संविधान की मूल संरचना का भाग घोषित किया था।

आगे का मार्ग

  • चार्जशीट दाखिल होने या न्यायिक समीक्षा के बाद ही हटाने की प्रक्रिया शुरू करना: इससे निर्दोषता की धारणा बनी रहेगी और जवाबदेही भी सुनिश्चित होगी।
  • परिधि सीमित करें: केवल गंभीर अपराधों तक लागू करें तथा राजनीतिक या निवारक हिरासत के मामलों को बाहर रखें।
  • मंत्रियों के लिए फास्ट-ट्रैक ट्रायल: ताकि निरुद्धता लंबी न खिंचे और अनुचित पदच्युतियाँ टाली जा सकें।
  • न्यायिक समीक्षा या अपील का प्रावधान: जिससे मंत्री हटाए जाने के निर्णय को न्यायालय में चुनौती दे सकें।
  • जाँच एजेंसियों पर संस्थागत नियंत्रण को मजबूत करें: ताकि वे राजनीतिक प्रभाव से मुक्त, पारदर्शी और जवाबदेह रहें।

निष्कर्ष

130वाँ संशोधन जवाबदेही को मजबूत करने का प्रयास करता है, किंतु यह निर्दोषता की धारणा और संघीय संतुलन को कमजोर करने का जोखिम रखता है। जैसा कि डॉ. अंबेडकर ने कहा  था कि “हर नैतिक अपेक्षा को संवैधानिक कानून नहीं बनाया जा सकता।” इसलिए, न्यायिक निगरानी और संतुलित सुरक्षा उपाय अनिवार्य हैं ताकि सुशासन की भावना बनी रहे और संवैधानिक मूल्यों से समझौता न हो।

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