प्रश्न की मुख्य माँग
- भारत के बफर स्टॉक में महत्त्वपूर्ण योगदानकर्ता के रूप में पंजाब के सम्मुख आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिए, विशेष रूप से अधिशेष भंडारण और प्रबंधन के संदर्भ में।
- समस्याओं के समाधान के लिए उपाय सुझाइये।
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उत्तर
आपातकालीन स्थितियों के दौरान खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के माध्यम से स्थिर आपूर्ति बनाए रखने में भारत के बफर स्टॉक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। देश के वार्षिक धान और गेहूं उत्पादन में प्रमुख योगदानकर्ता पंजाब ने हाल ही में अपने उत्पादन को उपलब्ध भंडारण क्षमता से अधिक कर लिया है, जिससे स्थानीय और राष्ट्रीय आपूर्ति श्रृंखलाओं पर अतिरिक्त दबाव पड़ा है। खरीद प्रक्रिया में देरी, भंडारण स्थानों पर अत्यधिक बोझ और गुणवत्ता में कमी जैसे मुद्दे बफर स्टॉक की दक्षता को प्रभावित कर रहे हैं।
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भारत के बफर स्टॉक में महत्त्वपूर्ण योगदानकर्ता के रूप में पंजाब के सम्मुख आने वाली चुनौतियाँ
अधिशेष भंडारण
- अपर्याप्त भंडारण क्षमता: पंजाब का अन्न उत्पादन अक्सर सरकारी गोदामों की भंडारण क्षमता से अधिक हो जाता है, जिससे खरीद प्रक्रिया में देरी और अन्न की बर्बादी होती है ।
- उदाहरण के लिए: 124 लाख टन चावल का उत्पादन करने के बावजूद, सीमित भंडारण स्थल की समस्या का सामना कर रहे पंजाब में वर्ष 2024 में केवल 7 लाख टन चावल ही सरकारी गोदामों तक पहुँच पाया।
- सीमित भंडारण वाली निजी मिलों पर निर्भरता: सरकारी भंडारण बाधाओं के कारण निजी मिल मालिकों पर निर्भरता बढ़ जाती है जो स्वयं भंडारण संबंधी समस्याओं का सामना कर रहे होते हैं, जिससे आपूर्ति श्रृंखला में अड़चनें आती हैं।
- उदाहरण के लिए: वर्ष 2024 में, कुछ रिपोर्टों में सरकारी गोदामों में अपर्याप्त भंडारण के बारे में चिंताओं का हवाला देते हुए, धान का भंडारण करने में निजी मिल मालिकों की हिचकिचाहट पर प्रकाश डाला गया।
- धान की हाइब्रिड किस्में: हाइब्रिड किस्मों में मिलिंग आउटपुट अनुपात (OTR) कम होता है , जिससे उनके अतिरिक्त भंडारण की आवश्यकता होती है क्योंकि प्रति क्विंटल कम चावल की उपज के कारण मिल मालिकों को आय का नुकसान होता है।
- उदाहरण के लिए: 60-62% के बीच के OTR वाली हाइब्रिड किस्मों ( जो सरकारी डिलीवरी के लिए आवश्यक 67% से कम है) के कारण मिल मालिकों को प्रति क्विंटल ₹300 का नुकसान होता है।
- खरीद में विलम्ब: मजदूरों की हड़ताल और आढ़तियों द्वारा अधिक पैसे की माँग के कारण खरीद प्रक्रिया में देरी होती है, जिससे भंडारण पर दबाव बढ़ता है।
- उदाहरण के लिए: आढ़तियों के उच्च कमीशन और मज़दूरों की अधिक मजदूरी के लिए हुये विरोध प्रदर्शनों ने मंडियों में खरीद प्रक्रिया को बाधित किया, जिससे मंडियों में भंडारण क्षमता से अधिक सामान भर गया।
- गुणवत्ता में कमी: खरीद प्रक्रिया में देरी के दौरान खेतों में छोड़े गए धान की गुणवत्ता और वजन दोनों में कमी आती है , जिससे चावल की गुणवत्ता और बफर स्टॉक के बाजार मूल्य पर असर पड़ता है।
प्रबंधन संबंधी चुनौतियाँ
- रसद संबंधी देरी: मंडियों से भंडारण सुविधाओं तक सुव्यवस्थित परिवहन की कमी, समयानुसार प्रबंधन में बाधा उत्पन्न करती है, जिससे मंडियों में भीड़भाड़ हो जाती है और मिलिंग में देरी होती है ।
- उदाहरण के लिए: वर्ष 2024 में परिवहन में हुई देरी के कारण 90% कटा हुआ धान मंडियों में ही रखा रह गया जिससे रसद से संबंधित चुनौती का सामना करना पड़ा।
- धान की कटाई में देरी के कारण गेहूँ की खेती पर प्रभाव: धान की खरीद में देरी से गेहूँ की बुवाई के लिए समय सीमा कम हो जाती है, जिससे फसल चक्र और बफर स्टॉक की स्थिरता दोनों पर असर पड़ता है।
- उदाहरण के लिए: सार्वजनिक गोदामों में गेहूं का भंडार 23.78 मिलियन टन है, जो अपने रिकॉर्ड निम्न स्तर पर है, और यदि देरी जारी रही तो भंडार में कमी का खतरा आ सकता है।
- पराली जलाने में वृद्धि: धान की कटाई और गेहूं की बुवाई के बीच सीमित समय और कम अंतराल के कारण पराली जलाने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है, जिससे वायु प्रदूषण और मृदा गुणवत्ता संबंधी समस्याएँ बढ़ जाती हैं ।
- बढ़ती लागत: अपर्याप्त भंडारण अवसंरचना के कारण ऐसे अस्थायी समाधानों की आवश्यकता पड़ जाती है, जिनसे लागत बढ़ती है और परिणामस्वरूप पंजाब की कृषि अर्थव्यवस्था और सरकारी वित्त पर दबाव पड़ता है।
- उदाहरण के लिए: अस्थायी भंडारण को किराए पर लेने से वर्ष 2024 में लागत में काफी वृद्धि हुई, जिससे स्थानीय बजट पर बोझ पड़ा और संसाधनों की उपलब्धता सीमित हो गई।
- MSP पर निर्भरता: MSP द्वारा प्रोत्साहित धान और गेहूं जैसी फसल किस्मों पर निर्भरता फसल विविधीकरण को रोकती है , जिससे अधिशेष प्रबंधन संबंधी समस्याएं और पर्यावरणीय तनाव पैदा होता है।
- उदाहरण के लिए: धान और गेहूं जैसी MSP समर्थित फसलों पर पंजाब की निर्भरता ने भंडारण आवश्यकताओं को बढ़ा दिया है, जिससे संधारणीय विविधीकरण के प्रयास सीमित हो गए हैं।
भंडारण और प्रबंधन मुद्दों के समाधान के लिए सुझाए गए उपाय
- सरकारी भंडारण क्षमता का विस्तार और बुनियादी ढाँचे का आधुनिकीकरण: साइलो (Silo) और कोल्ड स्टोरेज सहित अन्य आधुनिक भंडारण संयंत्रों में निवेश करने से पंजाब के अधिशेष भंडारण में आने वाली अड़चनें कम होंगी।
- उदाहरण के लिए: भारतीय खाद्य निगम (FCI) ने गोदामों के आधुनिकीकरण तथा अधिशेष धान और गेहूं के सुरक्षित भंडारण को सुनिश्चित करने के लिए कई पहलों की शुरुआत की है।
- MSP सुधार के माध्यम से फसल विविधीकरण को बढ़ावा देना: दलहन और तिलहन जैसी वैकल्पिक फसलों के लिए MSP प्रदान करने के साथ फसल पैटर्न में विविधता लाने से धान और गेहूं पर अत्यधिक निर्भरता कम हो सकती है।
- उदाहरण के लिए: मक्का जैसी जल की कम खपत वाली फसलों के लिए MSP की शुरुआत करने से पंजाब के किसानों को फसल विविधीकरण हेतु प्रोत्साहित किया जा सकता है, जिससे बफर स्टॉक तनाव कम हो सकता है।
- कुशल कटाई और खरीद प्रक्रियाओं को लागू करना: परिवहन और खरीद समय-सीमा को सुव्यवस्थित करने से देरी कम होगी और मंडियों में अधिशेष संचय के जोखिम को कम किया जा सकेगा।
- उदाहरण के लिए: पंजाब में भुगतान को सरल बनाने तथा मंडी निपटान में तेजी लाने के लिए डिजिटल खरीद पोर्टल का परीक्षण किया जा रहा है।
- हाइब्रिड फसलों के कारण होने वाले नुकसान को कम करने के लिए मिल मालिकों को सब्सिडी प्रदान करना: हाइब्रिड फसलों के कम OTR के कारण होने वाले नुकसान के लिए मिल मालिकों को सब्सिडी प्रदान करने से भंडारण प्रक्रिया को सुचारू रूप से बनाए रखा जा सकता है और सुचारू खरीद प्रक्रियाओं को भी प्रोत्साहित किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिए: पंजाब सरकार ने मिलिंग संचालन का समर्थन करते हुए हाइब्रिड फसलों के कम OTR के कारण होने वाले नुकसान के लिए सब्सिडी का प्रस्ताव दिया है।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी को मजबूत करना: निजी भंडारण प्रदाताओं के साथ सहयोग करने से अधिशेष प्रबंधन आसान हो सकता है और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के लिए बफर स्टॉक क्षमताओं को बढ़ाया जा सकता है ।
- उदाहरण के लिए: भंडारण की कमी को दूर करने के लिए अस्थायी भंडारण हेतु चावल मिलों का उपयोग करने जैसी सार्वजनिक-निजी पहल पर विचार किया जा रहा है।
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गेहूं और चावल का भंडारण करने में पंजाब द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियाँ, बफर स्टॉक दक्षता को बढ़ाने हेतु व्यापक दृष्टिकोण की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डालती हैं । भंडारण क्षमता का विस्तार करने, फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने और खरीद समयसीमा में सुधार करके भारत की खाद्य सुरक्षा में पंजाब की भूमिका को बढ़ाया जा सकता है। बुनियादी ढाँचे का आधुनिकीकरण और संसाधनों को प्रभावी ढंग से आवंटित करके, पंजाब सतत रूप से कृषि उत्पादन का प्रबंधन कर सकता है और विभिन्न बाधाओं का समाधान करते हुए दीर्घकालिक स्थिरता प्राप्त कर सकता है।
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