प्रश्न की मुख्य माँग
- H-1B वीजा वैश्विक आर्थिक गतिशीलता में बदलाव का प्रतिबिंब है।
- प्रवासी भारतीयों पर प्रभाव (सकारात्मक और नकारात्मक)।
- आत्मनिर्भर भारत के लिए ‘रिवर्स ब्रेन ड्रेन’ का लाभ उठाना।
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उत्तर
H-1B वीजा, जो कुशल विदेशी श्रमिकों के लिए अमेरिका जाने का प्रमुख आधार है, में भारतीयों का प्रभुत्त्व है, जो 70% से अधिक लाभार्थियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। हाल ही में अमेरिका द्वारा नए वीजा पर 100,000 डॉलर शुल्क लगाने के निर्णय ने अनिश्चितता उत्पन्न की है, जो संरक्षणवादी आर्थिक नीतियों को दर्शाता है और जिसका सीधा प्रभाव भारत के श्रमिकों तथा प्रवासी समुदाय पर पड़ता है।
वैश्विक आर्थिक गतिशीलता में परिवर्तन का प्रतिबिंब के रूप में H-1B वीजा
- संरक्षणवादी अमेरिकी नीति: 100,000 डॉलर शुल्क बढ़ते आर्थिक राष्ट्रवाद को दर्शाता है, जहाँ विकसित अर्थव्यवस्थाएँ धीमी वृद्धि के बीच घरेलू रोजगार की रक्षा करना चाहती हैं।
- उदाहरण: अमेरिका द्वारा भारत के साथ व्यापार पर 50% शुल्क लगाना।
- श्रम बाजार पर दबाव: विदेशी STEM प्रतिभा पर अत्यधिक निर्भरता अमेरिकी कार्यबल आपूर्ति और तकनीकी क्षेत्रों की माँग के बीच असंतुलन को उजागर करती है।
- उदाहरण: वर्ष 2000 से वर्ष 2019 के बीच विदेशी STEM श्रमिकों की संख्या दोगुनी हो गई, जबकि घरेलू STEM रोजगार केवल 44.5% बढ़ा।
- आप्रवासन का सामरिक उपयोग: वीजा प्रतिबंधों को टैरिफ से जोड़ना (जैसे रूस पर 25% दंड और भारत के साथ व्यापार वार्ता) दर्शाता है कि श्रम गतिशीलता व्यापक आर्थिक सौदेबाजी का हिस्सा है।
- वैश्विक प्रतिभा प्रतिस्पर्द्धा में बदलाव: कनाडा, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश कुशल प्रवास को उदार बना रहे हैं, जबकि अमेरिका प्रवेश संबंधी नियमों को कठोर कर रहा है, जो वैश्विक प्रतिभा केंद्रों के पुनर्संरेखन को दर्शाता है।
- राजस्व जुटाने का साधन: शुल्क में वृद्धि कर अमेरिका आप्रवासन का मुद्रीकरण कर रहा है, इसे केवल श्रम गतिशीलता नहीं बल्कि वित्तीय एकीकरण के रूप में भी प्रस्तुत कर रहा है।
भारतीय प्रवासी समुदाय पर प्रभाव
सकारात्मक प्रभाव |
नकारात्मक प्रभाव |
रिवर्स ब्रेन ड्रेन का लाभ: भारत लौटने वाले कुशल पेशेवर घरेलू स्टार्ट-अप, अनुसंधान एवं विकास तथा नवाचार को मजबूत कर सकते हैं। |
नौकरी की असुरक्षा: अचानक नीतिगत बदलाव भारतीय IT श्रमिकों (जो 72% H-1B धारक हैं) में रोजगार से वंचित होने का भय उत्पन्न करता है। |
अवसरों का विविधीकरण: यह पेशेवरों को अन्य गंतव्यों (कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया) में अवसर तलाशने हेतु प्रेरित करता है, जहाँ प्रवासन नीतियाँ अधिक उदार हैं। |
परिवार और सामाजिक व्यवधान: विदेशों में बसे परिवार अनिश्चितता का सामना करते हैं, आश्रितों के अमेरिका से बाहर फँसने का जोखिम बढ़ता है। |
आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा: लौटने वाले श्रमिक वैश्विक अनुभव, नेटवर्क और पूँजी लेकर आते हैं, जिससे भारत की विदेशी प्रौद्योगिकियों पर निर्भरता कम हो सकती है। |
प्रेषित धन की हानि: अमेरिका में भारतीय श्रमिकों की संख्या कम होने से प्रेषित धन में गिरावट आ सकती है, जो भारत के विदेशी मुद्रा भंडार को प्रभावित करेगी। |
आत्मनिर्भर भारत हेतु ‘रिवर्स ब्रेन ड्रेन’ का उपयोग
- घरेलू स्टार्ट-अप्स को बढ़ावा: लौटने वाले पेशेवर वैश्विक अनुभव और विशेषज्ञता लाकर भारत के स्टार्ट-अप एवं यूनिकॉर्न तंत्र को नई गति दे सकते हैं।
- उदाहरण: कई भारतीय यूनिकॉर्न संस्थापकों का सिलिकॉन वैली से अनुभव रहा है।
- R&D पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करना: लौटे हुए कुशल लोग कृत्रिम बुद्धिमत्ता, सेमीकंडक्टर और बायोटेक जैसे क्षेत्रों में अकादमिक-उद्योग सहयोग को सुदृढ़ कर सकते हैं।
- डिजिटल इंडिया और मेक इन इंडिया हेतु मानव पूँजी: लौटे हुए प्रतिभाशाली लोग उन्नत विनिर्माण और IT सेवाओं में कौशल अंतराल को भर सकते हैं।
- वैश्विक मूल्य शृंखला में एकीकरण: चीन के विकल्प के रूप में भारत को प्रस्तुत करने में उच्च-कुशल लौटे हुए पेशेवर डिजाइन, गुणवत्ता और नवाचार में वैश्विक मानकों को पूरा करने में सहायक हो सकते हैं।
- नीतिगत समर्थन: स्टार्टअप इंडिया, PLI प्रोत्साहन और रिसर्च पार्क जैसी सरकारी योजनाएँ लौटे हुए कुशल पेशेवरों को समाहित करने हेतु अनुकूलित की जा सकती हैं, जिससे अनिवार्य प्रवास को जनसांख्यिकीय लाभांश में बदला जा सके।
निष्कर्ष
H-1B मुद्दा बदलती वैश्विक श्रम गतिशीलता और भारतीय प्रवासी समुदाय की चुनौतियों को उजागर करता है। भारत के लिए यह अवसर भी प्रस्तुत करता है कि लौटे हुए प्रतिभाशाली व्यक्तियों का उपयोग नवाचार, स्टार्ट-अप और आत्मनिर्भर भारत को गति देने हेतु किया जाए, जिससे समस्या को अवसर में बदला जा सके।
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