प्रश्न की मुख्य माँग
- केरल के IAS अधिकारियों के हालिया निलंबन के आलोक में सिविल सेवाओं में सोशल मीडिया आचरण की उभरती चुनौतियों पर प्रकाश डालिये।
- डिजिटल युग में प्रशासनिक अनुशासन और सिविल सेवकों के व्यक्तिगत अधिकारों के बीच संतुलन की आवश्यकता के सकारात्मक पहलुओं पर चर्चा कीजिए।
- डिजिटल युग में प्रशासनिक अनुशासन और सिविल सेवकों के व्यक्तिगत अधिकारों के बीच संतुलन की आवश्यकता के नकारात्मक पहलुओं पर चर्चा कीजिए।
- डिजिटल युग में सिविल सेवकों के व्यक्तिगत अधिकारों के साथ प्रशासनिक अनुशासन के इस संतुलन को सुधारने के उपाय सुझाइये।
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उत्तर
केरल के IAS अधिकारियों के हाल ही में किये गये निलंबन ने सिविल सेवकों के बीच सोशल मीडिया आचरण से संबंधित चुनौतियों को उजागर किया है। अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियम, 1968 (AIS नियम) IAS, IPS और भारतीय वन सेवा अधिकारियों के आचरण को नियंत्रित करते हैं। यह घटना डिजिटल युग में व्यक्तिगत अधिकारों के साथ प्रशासनिक अनुशासन को संतुलित करने की आवश्यकता को रेखांकित करती है, क्योंकि सिविल सेवकों को सार्वजनिक विश्वास और पेशेवर अखंडता को बनाए रखते हुए नैतिक सीमाओं का भी ध्यान रखना होता है।
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सिविल सेवाओं में सोशल मीडिया आचरण से संबंधित चुनौतियाँ
- सार्वजनिक जाँच में वृद्धि: सोशल मीडिया सार्वजनिक दृश्यता को बढ़ाता है, जिससे अधिकारी का हर बयान सार्वजनिक मूल्यांकन के अंतर्गत आ जाता है, जिससे प्रशासन की
प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचने का जोखिम रहता है।
- उदाहरण के लिए: हाल ही में सोशल मीडिया पर कृषि के विशेष सचिव, 2024 (केरल) की टिप्पणियों की व्यापक आलोचना हुई, जिससे सार्वजनिक अधिकारियों द्वारा विवेकपूर्ण ऑनलाइन आचरण की आवश्यकता पर ध्यान आकर्षित हुआ।
- स्वीकार्य आचरण पर अस्पष्ट दिशा-निर्देश : ” सेवा के सदस्य के लिए अनुचित ” – इसकी व्याख्या अलग-अलग तरीके से की जा सकती है, जो उचित सोशल मीडिया व्यवहार के संबंध में अस्पष्टता उत्पन्न करता है।
- उदाहरण के लिए: उद्योग निदेशक, 2024 (केरल) द्वारा एक व्हाट्सएप ग्रुप का निर्माण एक विभाजनकारी कदम माना गया। इस संबंध में मौजूदा दिशा-निर्देश, निजी डिजिटल इंटरैक्शन की सीमाओं को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने में असमर्थ हैं।
- नियमों के दुरुपयोग की संभावना : व्यापक अनुशासनात्मक प्रावधानों को चुनिंदा रूप से लागू किया जा सकता है, जिससे पक्षपात होने और निशाना बनाए जाने की धारणाएँ उत्पन्न होती हैं।
- उदाहरण के लिए: आचरण नियमों के असमान प्रवर्तन के परिणामस्वरूप अक्सर जूनियर अधिकारियों को कड़ी निगरानी का सामना करना पड़ता है, जबकि वरिष्ठ अधिकारियों के साथ नरमी बरती जा सकती है।
- गोपनीयता का उल्लंघन: सोशल मीडिया पर संवेदनशील सरकारी डेटा या आंतरिक चर्चाओं को साझा करना, भले ही अनजाने में, गोपनीयता भंग कर सकता है और राष्ट्रीय सुरक्षा जोखिम उत्पन्न कर सकता है ।
- मनोबल पर प्रभाव: सोशल मीडिया गतिविधि के कारण अनुशासनात्मक कार्रवाई का डर अधिकारियों के मनोबल को प्रभावित कर सकता है, तथा खुले संवाद और नवाचार को बाधित कर सकता है ।
प्रशासनिक अनुशासन और व्यक्तिगत अधिकारों के बीच संतुलन के सकारात्मक पहलू
- जिम्मेदार आचरण को प्रोत्साहित करना: एक संतुलित दृष्टिकोण यह सुनिश्चित करता है कि अधिकारी अपने अधिकारों का सम्मान करते हुए जवाबदेह हों, तथा पेशेवर व्यवहार का प्रदर्शन करें।
- जनता के विश्वास में वृद्धि: पारदर्शी नियम, जनता का भरोसा मजबूत करते हैं, क्योंकि नागरिक इससे ये पाते हैं कि अधिकारी नैतिक और उचित दोनों प्रकार के मानकों का पालन कर रहे हैं।
- उदाहरण के लिए: यह निष्पक्ष प्रशासन के संबंध में जनता की धारणा को मजबूत करता है ।
- नवाचार और सहभागिता को बढ़ावा: स्पष्ट दिशा-निर्देशों के साथ, सिविल सेवक शासन के मामलों पर जनता से जुड़ने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग कर सकते हैं, जिससे पारदर्शिता बढ़ेगी।
- उदाहरण के लिए: IAS अधिकारियों द्वारा सार्वजनिक आउटरीच अभियान, सेवा वितरण और नागरिक भागीदारी में सुधार कर सकते हैं ।
- नैतिक मानकों पर स्पष्टता को बढ़ावा: परिभाषित नियम अस्पष्टता को कम करते हैं और डिजिटल क्षेत्र में अधिकारियों के लिए एक स्पष्ट नैतिक ढाँचा प्रदान करते हैं।
- उदाहरण के लिए: सोशल मीडिया के उपयोग के लिए एक उपयुक्त आचार संहिता, अधिकारियों का मार्गदर्शन कर सकती है, जिससे नियमों की गलत व्याख्या का जोखिम कम हो जाता है।
- अधिकारियों के अधिकारों की रक्षा: निष्पक्ष नियम, अधिकारियों को स्वच्छंद कार्रवाइयों से बचाते हैं , जिससे उन्हें अपनी पेशेवर जिम्मेदारियों को व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ संतुलित करने की सुविधा मिलती है ।
- उदाहरण के लिए: सुरक्षा को निर्दिष्ट करने वाले दिशानिर्देश, व्यक्तिगत शिकायतों के आधार पर अनुशासनात्मक कार्रवाई के दुरुपयोग को रोकने में मदद करते हैं।
प्रशासनिक अनुशासन और व्यक्तिगत अधिकारों के बीच संतुलन के नकारात्मक पहलू
- अत्यधिक विनियमन का जोखिम: अत्यधिक प्रतिबंध व्यक्तिगत अभिव्यक्ति में बाधा डाल सकते हैं, जिससे कठोर वातावरण का निर्माण हो सकता है जो खुलेपन को रोकता है ।
- उदाहरण के लिए: अधिकारी, अनुशासनात्मक कार्रवाई के डर से लाभकारी जानकारी साझा करने से बच सकते हैं, जिससे पारदर्शिता कम हो सकती है।
- सीमाओं को परिभाषित करने में चुनौतियाँ: सोशल मीडिया पर पेशेवर और व्यक्तिगत आचरण के बीच अंतर करना मुश्किल है, जिससे अक्सर भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है ।
- राजनीतिक प्रभाव की संभावना : नियमों को राजनीतिक एजेंडे से प्रभावित होकर
चुनिंदा तरीके से लागू किया जा सकता है, जिससे अधिकारी की स्वतंत्रता प्रभावित होती है।
- उदाहरण के लिए: ऐसे मामले जहाँ अधिकारियों को चुनिंदा तरीके से अनुशासित किया जाता है, प्रवर्तन तंत्र की तटस्थता में विश्वास को खत्म कर देता है ।
- गोपनीयता के उल्लंघन की चिंताएँ: सोशल मीडिया की निगरानी से अधिकारियों के व्यक्तिगत अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है, जिससे निगरानी के संबंध में नैतिक प्रश्न उठ सकते हैं।
- मनोबल में गिरावट की संभावना: अनुशासन पर अत्यधिक जोर देने से मनोबल प्रभावित हो सकता है, तथा अधिकारियों की जनता के साथ सक्रिय रूप से जुड़ने की इच्छा सीमित हो सकती है।
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सुधार के लिए सुझाए जा सकने वाले उपाय
- सोशल मीडिया दिशा-निर्देशों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना: IAS अधिकारियों के लिए सोशल मीडिया पर स्वीकार्य सामग्री और व्यवहार को रेखांकित करने वाले विशिष्ट नियम विकसित करने चाहिए।
- उदाहरण के लिए: AIS नियम, 1968 में बदलाव किए जाने चाहिए, जिसमें सोशल मीडिया आचरण के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देशों का अभाव है।
- अस्पष्टता दूर करना: किसी भी प्रकार की मनमानी कार्रवाई से बचने के लिए, 1968 के नियमों में “सेवा के सदस्य के लिए अनुचित” जैसे शब्दों को वस्तुनिष्ठ रूप से परिभाषित किया जाना चाहिए।
- निष्पक्ष और सुसंगत प्रवर्तन लागू करना: यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अनुशासनात्मक कार्रवाइयाँ, रैंक या स्थिति की परवाह किए बिना समान रूप से लागू की जायें।
- गोपनीयता सुरक्षा प्रदान करना : अधिकारियों के गोपनीयता अधिकारों की रक्षा के लिए व्यक्तिगत सोशल मीडिया खातों की निगरानी पर सीमाएँ लगानी चाहिए।
- उदाहरण के लिए: व्यक्तिगत और आधिकारिक खातों के बीच स्पष्ट सीमांकन, अनावश्यक गोपनीयता उल्लंघन से बचने में मदद कर सकता है ।
- जागरूकता कार्यक्रम चलाना: अधिकारियों को मार्गदर्शन देने के लिए सोशल मीडिया के
नैतिक और जिम्मेदार उपयोग पर नियमित प्रशिक्षण आयोजित करना चाहिए ।
- उदाहरण के लिए: सोशल मीडिया नैतिकता पर आधारित कार्यशालाओं से अधिकारियों को डिजिटल अंत:क्रिया के सर्वोत्तम तरीकों के बारे में शिक्षित किया जा सकता है।
- शिकायत निवारण तंत्र लागू करना: एक ऐसा मंच विकसित करना जहाँ अधिकारी, अनुशासनात्मक कार्रवाई के विरुद्ध अपील कर सकें तथा निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित हो सके।
मिशन कर्मयोगी के पारदर्शी और जवाबदेह सिविल सेवा के दृष्टिकोण जैसे क्षमता निर्माण पहलों के साथ तालमेल बिठाते हुए , भारत को “सिंगापुर के सार्वजनिक अधिकारियों के लिए आचार संहिता” जैसी वैश्विक प्रथाओं से प्रेरित होकर, सोशल मीडिया आचरण पर स्पष्ट दिशा-निर्देश अपनाने चाहिए। यह संतुलित दृष्टिकोण अनुशासन और व्यक्तिगत अधिकारों दोनों को मजबूत करेगा, डिजिटल युग के लिए एक प्रत्यास्थ सिविल सेवा का निर्माण करेगा और उन्हें भारत के स्टील फ्रेम के रूप में मजबूत करेगा ।
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