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उत्तर:
दृष्टिकोण:
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परिचय:
यह कथन शरणार्थियों के मौलिक मानवाधिकारों की रक्षा के लिए राष्ट्रों के नैतिक दायित्व पर प्रकाश डालता है। जब कोई देश शरणार्थियों को ऐसे स्थान पर वापस भेजता है जहां उन्हें उत्पीड़न या मानवाधिकारों के उल्लंघन का सामना करना पड़ता है, तो यह न्याय, करुणा और मानवीय गरिमा के सम्मान के नैतिक सिद्धांतों का उल्लंघन है।
मुख्य विषयवस्तु:
खुले समाज के साथ लोकतांत्रिक होने का दावा करने वाले राष्ट्रों द्वारा नैतिक आयामों के उल्लंघन किए जाने के उदाहरण-
उदाहरण: ऑस्ट्रेलिया ने नाव से आए शरण चाहने वाले लोगों को वापस नाव से लौटा दिया, जिसके कारण उसे अपनी इस नीति के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा है। ऑस्ट्रेलिया पर शरणार्थियों के प्रति अपने दायित्वों को भूलकर अंतरराष्ट्रीय कानून के उल्लंघन का भी आरोप लगाया गया। गौरतलब है कि वर्ष 2013 में, ऑस्ट्रेलिया ने ऑपरेशन सॉवरेन बॉर्डर्स(Operation Sovereign Borders) लागू किया। इस ऑपरेशन के तहत ऑस्ट्रेलिया ने शरण चाहने वाली नावों को बीच रास्ते से ही वापस उसी दिशा में मोड़ने का काम किया था जहां से वे चली थी। विदित हो कि इन नौकाओं में अपने देश में उत्पीड़न का सामना करने वाले लोग भी शामिल थे।
उदाहरण: शरणार्थी संकट पर हंगरी की प्रतिक्रिया की करुणा और एकजुटता की कमी के कारण आलोचना की गई है। 2015 में, हंगरी ने शरणार्थियों के प्रवेश को रोकने के लिए अपनी सीमाओं पर बाड़ का निर्माण किया था।
निष्कर्ष:
यह जरूरी है कि राष्ट्र शरणार्थियों के अधिकारों की रक्षा करने के अपने नैतिक दायित्व को कायम रखें और उन्हें सम्मान और सुरक्षा का जीवन जीने के लिए आवश्यक समर्थन और सहायता प्रदान करें।
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