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Q. "शरणार्थियों को उस देश में वापस नहीं भेजा जाना चाहिए जहां उन्हें उत्पीड़न या मानवाधिकार उल्लंघन का सामना करना पड़ेगा।" खुले समाज के साथ लोकतांत्रिक होने का दावा करने वाले राष्ट्र द्वारा उल्लंघन किए जा रहे नैतिक आयाम के संदर्भ में इस कथन का परीक्षण करें। (150 शब्द, 10 अंक)

उत्तर:

दृष्टिकोण:

  • परिचय: प्रासंगिक परिचय या मुद्दे से जुड़ी वर्तमान घटना जोड़ें।
  • मुख्य विषयवस्तु:
    • ऐसे कई उदाहरणों का उल्लेख करें जहां कई देशों ने इस नैतिक दायित्व का उल्लंघन किया है।
    • अपनी बातों को पुष्ट करने के लिए उदाहरण जोड़ें।
  • निष्कर्ष: प्रासंगिक कथनों या आगे की राह में जोड़ते हुए निष्कर्ष निकालें।

परिचय:

यह कथन शरणार्थियों के मौलिक मानवाधिकारों की रक्षा के लिए राष्ट्रों के नैतिक दायित्व पर प्रकाश डालता है। जब कोई देश शरणार्थियों को ऐसे स्थान पर वापस भेजता है जहां उन्हें उत्पीड़न या मानवाधिकारों के उल्लंघन का सामना करना पड़ता है, तो यह न्याय, करुणा और मानवीय गरिमा के सम्मान के नैतिक सिद्धांतों का उल्लंघन है।

मुख्य विषयवस्तु:

खुले समाज के साथ लोकतांत्रिक होने का दावा करने वाले राष्ट्रों द्वारा नैतिक आयामों के उल्लंघन किए जाने के उदाहरण-

  •  गैर-वापसी सिद्धांत का उल्लंघन:

 उदाहरण: ऑस्ट्रेलिया ने नाव से आए शरण चाहने वाले लोगों को वापस नाव से लौटा दिया, जिसके कारण उसे अपनी इस नीति के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा है। ऑस्ट्रेलिया पर शरणार्थियों के प्रति अपने दायित्वों को भूलकर अंतरराष्ट्रीय कानून के उल्लंघन का भी आरोप लगाया गया गौरतलब है कि वर्ष 2013 में, ऑस्ट्रेलिया ने ऑपरेशन सॉवरेन बॉर्डर्स(Operation Sovereign Borders) लागू किया। इस ऑपरेशन के तहत ऑस्ट्रेलिया ने शरण चाहने वाली नावों को बीच रास्ते से ही वापस उसी दिशा में मोड़ने का काम किया था जहां से वे चली थी। विदित हो कि इन नौकाओं में अपने देश में उत्पीड़न का सामना करने वाले लोग भी शामिल थे।

  • करुणा और एकजुटता का अभाव:

   उदाहरण: शरणार्थी संकट पर हंगरी की प्रतिक्रिया की करुणा और एकजुटता की कमी के कारण आलोचना की गई है। 2015 में, हंगरी ने शरणार्थियों के प्रवेश को रोकने के लिए अपनी सीमाओं पर बाड़ का निर्माण किया था।

  • अन्य उदाहरण:
    • रोहिंग्या संकट: 2017 में, म्यांमार में मुस्लिम अल्पसंख्यक रोहिंग्या लोगों पर हिंसक सैन्य कार्रवाई की गई। 700,000 से अधिक रोहिंग्या शरण की तलाश में पड़ोसी बांग्लादेश में भाग गए। हालाँकि, सीमित संसाधनों वाला एक गरीब देश होने के कारण बांग्लादेश इतनी बड़ी संख्या में शरणार्थियों को समायोजित करने में असमर्थ था। परिणामस्वरूप कई रोहिंग्याओं को वापस म्यांमार भेज दिया गया जहां उन्हें उत्पीड़न और मानवाधिकारों के उल्लंघन का सामना करना पड़ा।
    • सीरियाई शरणार्थी संकट: सीरियाई शरणार्थी संकट दुनिया के सबसे बड़े शरणार्थी संकटों में से एक है। 2011 में सीरियाई गृह युद्ध शुरू होने के बाद से लाखों सीरियाई पड़ोसी देशों और यूरोप में शरण लेने के लिए अपना देश छोड़कर भाग गए हैं। हालाँकि कई देशों ने राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक बोझ की चिंताओं का हवाला देते हुए सीरियाई शरणार्थियों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है। 
    • यूएस-मेक्सिको सीमा संकट: हाल के वर्षों में मध्य अमेरिका से हजारों प्रवासी अपने गृह देशों में हिंसा और गरीबी से भाग रहे हैं और संयुक्त राज्य अमेरिका में शरण मांग रहे हैं। हालाँकि, अमेरिकी सरकार ने शरण चाहने वालों को प्रतिबंधित करने के लिए कई नीतियां लागू की हैं, जिसमें शरण चाहने वालों को मैक्सिको वापस भेजना भी शामिल है, जहां उन्हें हिंसा और मानवाधिकारों के हनन का सामना करना पड़ता है। 
    • इनमें से प्रत्येक उदाहरण में, कई देशों ने शरणार्थियों के मौलिक मानवाधिकारों की रक्षा के नैतिक दायित्व का उल्लंघन किया। शरणार्थियों को ऐसी जगह वापस भेजकर जहां उन्हें उत्पीड़न या मानवाधिकारों के उल्लंघन का सामना करना पड़ता है, इन देशों ने न्याय, करुणा और मानवीय गरिमा के सम्मान के सिद्धांतों का उल्लंघन किया है।

 निष्कर्ष:

यह जरूरी है कि राष्ट्र शरणार्थियों के अधिकारों की रक्षा करने के अपने नैतिक दायित्व को कायम रखें और उन्हें सम्मान और सुरक्षा का जीवन जीने के लिए आवश्यक समर्थन और सहायता प्रदान करें।

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