प्रश्न की मुख्य माँग
- महिला उत्पीड़न के विभिन्न कारणों पर प्रकाश डालिए।
- विश्लेषण कीजिए कि लिंग के आधार पर व्यवसायों का पृथक्करण, उत्पीड़न के अंतर्निहित मुद्दों को संबोधित करने के बजाय किस प्रकार रूढ़िवादिता को मजबूत करता है।
- आगे की राह लिखिये।
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उत्तर
लिंग के आधार पर व्यवसायों का पृथक्करण, हालाँकि अक्सर उत्पीड़न के खिलाफ निवारक उपाय के रूप में माना जाता है, लेकिन इससे रूढ़िवादिता और लिंग आधारित भूमिकाओं को मजबूत करने का जोखिम भी उत्पन्न होता है। हाल के नियम, जैसे कि टेलरिंग की दुकानों और यूनिसेक्स सैलून में लिंग-विशिष्ट स्टाफिंग, उत्पीड़न के मूल कारणों, जैसे कि सामाजिक दृष्टिकोण, असमानता और जागरूकता की कमी को संबोधित करने में विफल रहे हैं। लैंगिक समानता और सुरक्षा हासिल करने के लिए प्रणालीगत परिवर्तनों पर केंद्रित एक अधिक समग्र दृष्टिकोण आवश्यक है।
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उत्पीड़न के अंतर्निहित मुद्दे
- पितृसत्तात्मक मानदंड: सामाजिक मान्यताएँ अक्सर महिलाओं को भेद्य और पुरुषों को आक्रामक मानती हैं , जो असमान लैंगिक गतिशीलता को बढ़ावा देती हैं जो अंततः उत्पीड़न को जारी रखती हैं।
- उदाहरण के लिए: नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ द्वारा किए गए अध्ययनों से पता चलता है कि पितृसत्तात्मक मनोवृत्ति के कारण कार्यस्थल पर होने वाला उत्पीड़न, महिलाओं को असमान रूप से प्रभावित करता है।
- जागरूकता की कमी: नियोक्ताओं और कर्मचारियों सहित कई लोगों को कार्यस्थल में होने वाले उत्पीड़न से संबंधित कानूनों के बारे में जानकारी का अभाव है , जिसके कारण अनियंत्रित कदाचार होता है।
- उदाहरण के लिए: केवल 35% भारतीय महिला श्रमिकों को यौन उत्पीड़न निवारण अधिनियम, 2013 के बारे में जानकारी है।
- कमजोर प्रवर्तन तंत्र: कानूनों का अकुशल कार्यान्वयन और जवाबदेही की कमी उत्पीड़कों को बढ़ावा देती है।
- उदाहरण के लिए: खराब प्रशासन के कारण महिलाओं की सुरक्षा के लिए आवंटित निर्भया फंड (2013) का कम इस्तेमाल किया जाता है।
- कार्यबल में लैंगिक असंतुलन: कुछ व्यवसायों में महिलाओं का कम प्रतिनिधित्व, पुरुष-प्रधान वातावरण बनाता है जिससे सत्ता का दुरुपयोग होने की संभावना होती है।
- उदाहरण के लिए: आर्थिक सर्वेक्षण 2023-2024 के अनुसार, महिला श्रम बल भागीदारी दर ( LFPR ) में वृद्धि हुई है, लेकिन यह अभी भी लगभग 37% बनी हुई है।
- सांस्कृतिक कलंक: न्याय का डर, पीड़ित को दोषी ठहराना या उसके खिलाफ प्रतिशोध की भावना के बारे में सोचकर पीड़ित, उत्पीड़न की रिपोर्ट करने से हतोत्साहित होते हैं, जिससे वो चुप रहते हैं।
- उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, नतीजों के डर, अपर्याप्त जागरूकता और सामाजिक पूर्वाग्रहों के कारण यौन उत्पीड़न सहित महिलाओं के खिलाफ अन्य अपराध बहुत कम रिपोर्ट किए जाते हैं ।
उत्पीड़न को संबोधित करने के बजाय पृथक्करण, रूढ़िवादिता को मजबूत कर रहा है
- महिलाओं को असहाय मानने की रूढ़धारणा: लिंग पृथक्करण का तात्पर्य है, कि महिलाओं को निरंतर सुरक्षा की आवश्यकता होती है। यह महिलाओं के पेशेवर व्यवहार को अनदेखा करने के समान है।
- उदाहरण के लिए: पुरुष दर्जी को महिलाओं का माप लेने से रोकना, सुरक्षा के लिए महिलाओं की निर्भरता की धारणा को मजबूत करता है।
- पुरुषों को स्वाभाविक रूप से समाज के असुरक्षित सदस्य के रूप में चित्रित करना: ऐसी नीतियाँ पुरुषों की छवि को संभावित खतरे के रूप में प्रस्तुत करती हैं , अविश्वास उत्पन्न करती हैं और कार्यस्थल की गतिशीलता को नुकसान पहुँचाती हैं।
- उदाहरण के लिए: अध्ययनों से पता चलता है कि समावेशी कार्य वातावरण, लिंगों के बीच अधिक सम्मान और सहयोग को बढ़ावा देता है।
- लैंगिक समानता को कमज़ोर करना: पृथक्करण, असमान अवसरों को बनाए रखता है व एक लिंग के वर्चस्व वाले व्यवसायों में भागीदारी को प्रतिबंधित करता है।
- उदाहरण के लिए: भारत के सशस्त्र बलों ने ऐतिहासिक रूप से महिलाओं को लड़ाकू भूमिकाओं में कार्य करने से प्रतिबंधित किया है, जो पेशेवर अवसरों पर पृथक्करण के प्रभाव को दर्शाता है। NDA में महिलाओं को शामिल करने जैसे सुधार प्रगति को दर्शाते हैं, लेकिन पूर्वाग्रह अभी भी कायम हैं।
- व्यवस्थागत मुद्दों की अनदेखी: सामाजिक दृष्टिकोण को संबोधित करने के बजाय, पृथक्करण लक्षणों को लक्षित करता है जबकि शक्ति असंतुलन और खराब शिक्षा जैसे मूल कारणों का समाधान नहीं कर पाता है।
- उदाहरण के लिए: NCRB रिपोर्ट (2023) ने इस बात पर प्रकाश डाला कि IPC के तहत महिलाओं के खिलाफ होने वाले अधिकतर अपराध ‘पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा की गई क्रूरता’ से संबंधित है।
- आर्थिक असमानताएँ: पृथक्करण ,पुरुष पेशेवरों के ग्राहक आधार को कम करता है, जो निम्न आय वर्ग के लोगों को असमान रूप से प्रभावित करता है।
- उदाहरण के लिए: छोटे शहरों या गांवों में जहाँ यूनिसेक्स सैलून उपलब्ध नहीं हो सकते हैं, ऐसी प्रथाओं से पुरुष नाइयों के लिए नौकरी के अवसर कम हो सकते हैं।
आगे की राह
- व्यापक लैंगिक संवेदनशीलता: उत्पीड़न के मूल कारणों का समाधान करने के लिए सम्मान, सहमति और कार्यस्थल नैतिकता पर ध्यान केंद्रित करते हुए व्यापक जागरूकता अभियान चलायें जाने चाहिए।
- उदाहरण के लिए: PoSH अधिनियम, 2013 प्रशिक्षण सत्रों को अनिवार्य बनाता है, जिसे टेलरिंग और सैलून जैसे अनौपचारिक क्षेत्रों तक विस्तारित किया जाना चाहिए।
- समावेशी कार्यस्थलों को प्रोत्साहित करना: आपसी समझ विकसित करने और रूढ़िवादिता को कम करने के लिए व्यवसायों में मिश्रित-लिंग स्टाफिंग की प्रथा को बढ़ावा देना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: UN वुमेन्स ही फॉर शी अभियान जैसी पहल पुरुषों और महिलाओं को विविध परिस्थितयों में समान रूप से सहयोग करने के लिए प्रोत्साहित करती है।
- कानूनी ढाँचे को मजबूत करना: उत्पीड़न विरोधी कानूनों का सख्त क्रियान्वयन सुनिश्चित करना चाहिए और शिकायत समाधान के लिए मजबूत तंत्र बनाये जाने चाहिए।
- उदाहरण के लिए: अनौपचारिक क्षेत्रों में आंतरिक शिकायत समितियों (ICC) का विस्तार करके भेद्य श्रमिकों की रक्षा की जा सकती है।
- गोपनीयता और सुरक्षा को बढ़ावा देना: निगरानी के बजाय, सुरक्षित बुनियादी ढाँचे जैसे निजी फिटिंग रूम और ग्राहक-अनुकूल लेआउट को प्राथमिकता देनी चाहिए।
- आर्थिक समावेशिता का समर्थन करना: प्रतिबंधात्मक नियमों से प्रभावित पेशेवरों को वित्तीय और प्रशिक्षण सहायता प्रदान करनी चाहिए जिससे उनकी आजीविका सुरक्षित रहे।
- उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (NULM, 2013) के तहत सरकार द्वारा वित्तपोषित कौशल संवर्धन कार्यक्रम नाईयों और दर्जियों को अपने ग्राहकों में विविधता लाने में मदद कर सकते हैं।
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लिंग के आधार पर व्यवसायों का पृथक्करण, एक सतही प्रतिक्रिया है, जो रूढ़िवादिता को मजबूत करती है जबकि उत्पीड़न के प्रणालीगत मुद्दों को संबोधित करने में विफल रहती है। समावेशी कार्यस्थलों को बढ़ावा देकर , कानूनी सुरक्षा को मजबूत करके और व्यवहार परिवर्तन को बढ़ावा देकर, भारत समानता और सम्मान में निहित समाज का निर्माण कर सकता है । ही फॉर शी (He For She) अभियान जैसी वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं से प्रेरणा लेते हुए, भारत को ऐसे भविष्य के लिए प्रयास करना चाहिए जहाँ सुरक्षा और सम्मान अंतर्निहित हों, न कि बलपूर्वक लागू किए जाएँ।
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