Q. निःशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009, स्कूली शिक्षा के महत्त्व के बारे में जागरूकता उत्पन्न किए बिना बच्चों की शिक्षा के लिए प्रोत्साहन-आधारित प्रणाली को बढ़ावा देने में अपर्याप्त है। विश्लेषण कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • बच्चों की शिक्षा के लिए प्रोत्साहन-आधारित प्रणाली बनाने में RTE अधिनियम की सीमाएँ
  • स्कूली शिक्षा पहल की प्रभावशीलता पर कम जागरूकता का प्रभाव

उत्तर

RTE अधिनियम, 2009 का उद्देश्य कानूनी गारंटी के माध्यम से शिक्षा तक सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करना था। तथापि, केवल कानूनी अधिकार ही निरंतर नामांकन को प्रोत्साहित नहीं कर सकता। सामाजिक जागरूकता और ठोस प्रोत्साहनों की अनुपस्थिति में, अनेक बच्चे—विशेषकर वंचित पृष्ठभूमि से आने वाले—अभी भी शिक्षा को जीविका या अस्तित्व की प्राथमिकताओं की तुलना में गौण मानते हैं।

बच्चों की शिक्षा के लिए प्रोत्साहन-आधारित प्रणाली बनाने में RTE अधिनियम की सीमाएँ

  • ठोस प्रोत्साहनों का अभाव: RTE अधिनियम में छात्रवृत्ति या सब्सिडी जैसी प्रत्यक्ष आर्थिक सहायता का प्रावधान नहीं है, जिसके कारण निर्धन परिवारों के लिए तात्कालिक आय की तुलना में शिक्षा को प्राथमिकता देना कठिन होता है।
    • उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान की रिपोर्ट के अनुसार, मध्याह्न भोजन की उपलब्धता से बच्चों के नामांकन, उपस्थिति और स्कूल में बने रहने की दर में सुधार होता है, जिससे स्कूल छोड़ने की दर कम होती है और शैक्षणिक उपलब्धि भी बढ़ती है।
  • अपर्याप्त शिक्षक प्रशिक्षण: अपर्याप्त प्रशिक्षित शिक्षक कक्षा में उपस्थिति और शिक्षण परिणामों को प्रभावित करते हैं, जिससे छात्रों की रुचि कम होती है और शिक्षा का अधिकार (RTE) ढाँचे की समग्र प्रभावशीलता कम होती है। 
    • उदाहरण के लिए: एक CAG रिपोर्ट में पाया गया कि झारखंड में 37% से अधिक शिक्षक अनुपस्थित रहते हैं और केवल 42% को ही उचित सेवाकालीन प्रशिक्षण प्राप्त हुआ है।
  • कमजोर मूल्यांकन प्रणाली: CCE (कंटीन्यूअस एंड कंप्रिहेंसिव इवेलुएशन) पद्धति को शिक्षण में सहायता के लिए शुरू किया गया था, लेकिन कई स्कूलों में इसका सही ढंग से प्रयोग नहीं किया गया।
  • अपर्याप्त स्कूल बुनियादी ढाँचा: कई स्कूलों में अभी भी शौचालय, पेयजल और उचित क्लासरूम जैसी
    बुनियादी सुविधाओं का अभाव है, जिससे वे कम आकर्षक बन जाते हैं, विशेषकर लड़कियों के लिए।

    •  उदाहरण के लिए: ASER 2023 ने बताया कि कुछ राज्यों में केवल 68% सरकारी स्कूलों में लड़कियों के लिए उपयोग योग्य शौचालय थे।
  • आर्थिक प्रासंगिकता का अभाव: RTE अधिनियम कौशल-निर्माण या आजीविका संबंधी पहलुओं को एकीकृत नहीं करता, जिससे शिक्षा भविष्य के रोजगार या आय से असंबद्ध प्रतीत होती है।
    • उदाहरण के लिए: PRATHAM के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि कक्षा 8 के 60% से अधिक छात्रों का मानना था कि स्कूली शिक्षा का कृषि या सेवा क्षेत्र में नौकरियों से कोई लेना-देना नहीं है।
  • एकरूपी दृष्टिकोण में समावेशिता का अभाव: शिक्षा का अधिकार अधिनियम का एक-रुपी दृष्टिकोण (One size fits all)  आदिवासी, विकलांग और प्रवासी बच्चों की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल रहता है, जिससे समावेशी शिक्षा का सिद्धांत कमजोर होता है। 
    • उदाहरण के लिए: TISS के एक अध्ययन से पता चला है कि वारली जैसे हाशिये के समुदायों के बच्चे अक्सर स्कूल के समय में बदलाव और प्रवास के कारण पढ़ाई छोड़ देते हैं।

नियमित स्कूली शिक्षा के महत्व के संबंध में जागरूकता की कमी के कारण RTE अधिनियम की प्रभावशीलता और भी कम हो जाती है।

स्कूली शिक्षा पहल की प्रभावशीलता पर कम जागरूकता का प्रभाव

  • स्कूल समितियों की कमजोर भूमिका: अधिनियम ने स्कूल प्रबंधन समितियों (SMC) की शुरुआत की, लेकिन कई सदस्यों को यह नहीं पता कि इसमें कैसे योगदान दिया जाए। 
    • उदाहरण के लिए: लगभग 50% SMC के सदस्य अपनी भूमिकाओं से अनभिज्ञ थे।
  • अभिभावकों में जागरूकता अभियान का अभाव: अधिनियम में संरचित प्रयासों का अभाव है, जिनके माध्यम से अभिभावकों को शिक्षा के दीर्घकालिक महत्व के बारे में बताया जा सके, विशेषकर अल्प साक्षरता वाले क्षेत्रों में।
  • स्थानीय सरकार की कम भागीदारी: पंचायतों और स्थानीय नेताओं को जमीनी स्तर पर नामांकन और नियमित उपस्थिति को प्रोत्साहित करने के लिए प्रभावी ढंग से सक्रिय नहीं किया जाता है।
  •  सार्वजनिक संदेश का अभाव: यह अधिनियम स्कूली शिक्षा की अनिवार्यता के बारे में लोगों को समझाने के लिए जनसंचार माध्यमों या सामुदायिक पहुँच का उपयोग करने में विफल रहा है।
    • उदाहरण के लिए: “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” जैसे अभियान आंशिक रूप से व्यापक जन-सम्पर्क के कारण ही सफल हुए।
  • लैंगिक पूर्वाग्रह पर ध्यान नहीं दिया गया: पारंपरिक लैंगिक भूमिकाओं को चुनौती देने पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है, जिनके कारण परिवार अक्सर अपनी बेटियों को शिक्षा नहीं दिलाते।
  • भाषा और संस्कृति में अंतर: अधिनियम भाषा-संवेदनशील शिक्षण सुनिश्चित नहीं करता, जिससे जनजातीय और भाषाई अल्पसंख्यकों के बच्चों को अधिगम बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
    • उदाहरण के लिए: जनजातीय क्षेत्रों में शिक्षा मातृभाषा में न दिए जाने के कारण बच्चों की समझ और सीखने की प्रक्रिया प्रभावित होती है।

निष्कर्ष

RTE अधिनियम की सफलता के लिए लक्षित सुधार आवश्यक हैं जिनमें प्रोत्साहन, जागरूकता और सशक्त सामुदायिक भागीदारी का संयोजन हो। बेहतर अवसंरचना से लेकर संचार अभियानों और अभिभावक–शिक्षक सहभागिता तक, हर प्रयास शिक्षा को प्रासंगिक और समावेशी बनाए। तभी शिक्षा का अधिकार सभी बच्चों के लिए एक सार्थक और स्थायी वास्तविकता बन सकेगा।

To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

Need help preparing for UPSC or State PSCs?

Connect with our experts to get free counselling & start preparing

Aiming for UPSC?

Download Our App

      
Quick Revise Now !
AVAILABLE FOR DOWNLOAD SOON
UDAAN PRELIMS WALLAH
Comprehensive coverage with a concise format
Integration of PYQ within the booklet
Designed as per recent trends of Prelims questions
हिंदी में भी उपलब्ध
Quick Revise Now !
UDAAN PRELIMS WALLAH
Comprehensive coverage with a concise format
Integration of PYQ within the booklet
Designed as per recent trends of Prelims questions
हिंदी में भी उपलब्ध

<div class="new-fform">






    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.