Q. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वर्ष 2017 में बरकरार रखा गया निजता का अधिकार, गरिमा, स्वायत्तता और स्वतंत्रता का केंद्र है। हाल ही में UCC जैसे कानूनों एवं बढ़ती निगरानी उपायों के प्रकाश में चर्चा कीजिये। (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • किसी व्यक्ति की गरिमा, स्वायत्तता और स्वतंत्रता में गोपनीयता के अधिकार की भूमिका पर चर्चा कीजिए ।
  • UCC जैसे हालिया कानूनों और बढ़ती निगरानी उपायों के प्रकाश में गोपनीयता के अधिकार पर चर्चा कीजिए।

उत्तर

24 अगस्त 2017 को जस्टिस केएस पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ के ऐतिहासिक वाद में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया। इसे संविधान के अनुच्छेद-21 का अभिन्न अंग माना गया। इस निर्णय में पुष्टि की गई कि संवैधानिक लोकतंत्र में मानवीय गरिमा, स्वायत्तता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए निजता आवश्यक है ।

गरिमा, स्वायत्तता और स्वतंत्रता में गोपनीयता के अधिकार की भूमिका

  • व्यक्तिगत गरिमा की रक्षा करना: यह अधिकार व्यक्ति की पसंद, व्यक्तिगत स्थान और अनुचित हस्तक्षेप से स्वतंत्रता की रक्षा करता है। 
    • उदाहरण के लिए, पुट्टस्वामी निर्णय में कहा गया कि गोपनीयता “व्यक्ति की गरिमा की पवित्रता की अंतिम अभिव्यक्ति है।”
  • शारीरिक स्वायत्तता सुनिश्चित करना: यह अधिकार व्यक्तियों को अपने शरीर और स्वास्थ्य के बारे में निर्णय लेने का अधिकार देता है। 
    • उदाहरण के लिए, यही अधिकार नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ (वर्ष 2018) तथा जोसेफ शाइन बनाम भारत संघ (वर्ष 2018) जैसे ऐतिहासिक निर्णयों का आधार बना, जिनमें क्रमशः समलैंगिकता और व्यभिचार को अपराध की श्रेणी से बाहर किया गया।
  • विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का संरक्षण: यह अधिकार नागरिकों को बिना किसी दबाव या निगरानी के विश्वास और राय रखने में सक्षम बनाता है। 
    • उदाहरण के लिए, न्यायालय ने यह माना कि गोपनीयता अनुच्छेद 19 की स्वतंत्रता, विशेष रूप से वाक् स्वतंत्रता और विवेक का आधार बनती है।
  • सूचनात्मक स्वायत्तता को बनाए रखना: व्यक्तियों को अपने व्यक्तिगत डेटा तक पहुँच और उपयोग को नियंत्रित करने का अधिकार है। 
    • उदाहरण के लिए, इस निर्णय के परिणामस्वरूप डेटा हैंडलिंग को विनियमित करने के लिए डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 का निर्माण हुआ ।
  • एकांत के अधिकार की रक्षा करना: निजता व्यक्तियों को उनके घरों और अंतरंग स्थानों में सम्मान के साथ रहने की अनुमति देती है। 
    • उदाहरण के लिए, न्यायालय ने खड़क सिंह (वर्ष 1962) के मामले को पलट दिया और पुष्टि की कि निजता में भौतिक स्थान और आवागमन शामिल है।
  • अल्पसंख्यक और पहचान संबंधी  अधिकारों की सुरक्षा: यह अधिकार पहचान के आधार पर सामाजिक और संस्थागत भेदभाव के खिलाफ व्यक्तियों की रक्षा करता है।
  • राज्य की स्वच्छंद शक्ति को सीमित करना: राज्य गोपनीयता में तभी दखल दे सकता है जब वह वैधता, आवश्यकता और आनुपातिकता के मानदंडों को पूरा करता हो। 
    • उदाहरण के लिए, न्यायालय ने माना कि गोपनीयता के उल्लंघन को आनुपातिकता परीक्षण से गुजरना होगा, जिससे कार्यकारी शक्तियों पर सख्त सीमाएँ निर्धारित होती हैं।

गोपनीयता का अधिकार और हालिया कानूनी एवं निगरानी उपाय

  • लिव-इन पंजीकरण: उत्तराखंड UCC के तहत लिव-इन दंपतियों के लिए अनिवार्य पंजीकरण व्यक्तिगत स्वायत्तता पर आक्रमण करता है।
  • निजी इतिहास का खुलासा: दंपतियों को सरकार को पिछले रिश्तों सहित अपने व्यक्तिगत विवरण घोषित करना आवश्यक है। 
    • उदाहरण के लिए, उत्तराखंड में लागू इस प्रथा की अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत गोपनीयता का उल्लंघन करने के लिए आलोचना की गई है।
  • शराबबंदी कानून के तहत निगरानी: शराब पर प्रतिबंध के प्रवर्तन में व्यक्तिगत विकल्पों की निरंतर निगरानी शामिल है। 
    • उदाहरण: बिहार का मद्यनिषेध अधिनियम निजी घरों में भी तलाशी और जब्ती का अधिकार देता है, जो व्यक्तिगत गोपनीयता में दखल देता है।
  • आधार-आधारित ट्रैकिंग: कड़े सुरक्षा उपायों के बिना बायोमेट्रिक डेटा का संग्रहण और लिंकिंग गोपनीयता संबंधी चिंताएं उत्पन्न करता है।
  • नागरिक निगरानी को प्रोत्साहन: कुछ कानून ऐसे हैं जो पड़ोसियों और मकान मालिकों को निजी आचरण की सूचना देने के लिए प्रेरित या प्रोत्साहित करते हैं।
    • उदाहरण: उत्तराखंड की लिव-इन विनियम व्यवस्था के तहत नागरिकों से अपेक्षा की जाती है कि वे दूसरों के निजी संबंधों की जानकारी प्रशासन को दें।
  • अपर्याप्त डेटा संरक्षण कानून: हालाँकि डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 एक कदम आगे है, लेकिन इसमें मजबूत प्रवर्तन और उपयोगकर्ता नियंत्रण का अभाव है।
  • न्यायिक निगरानी का अभाव: कई निगरानी उपाय न्यायपालिका को दरकिनार कर देते हैं, जिससे गोपनीयता सुरक्षा उपायों का उल्लंघन होता है। 
    • उदाहरण के लिए, पुट्टस्वामी निर्णय ने राज्य द्वारा किसी भी गोपनीयता-उल्लंघन कार्रवाई के लिए पूर्व न्यायिक जाँच  को अनिवार्य कर दिया, जो आजकल अक्सर गायब है।

निजता का अधिकार प्रत्येक नागरिक की गरिमा, स्वतंत्रता और पहचान की रक्षा के लिए आवश्यक है। चूंकि भारत UCC जैसे नए कानून बना रहा है और डिजिटल निगरानी का विस्तार कर रहा है, इसलिए उसे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी राज्य क्रियाएं निजता का सम्मान करते हुए, आनुपातिक और संवैधानिक लोकतंत्र के आदर्शों को संरक्षित करने के लिए न्यायिक निगरानी के अधीन रहें ।

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