Q. रसेल-आइंस्टीन घोषणापत्र और भारत का अवाडी संकल्प, परमाणु निरस्त्रीकरण के महत्त्व पर प्रकाश डालते हैं, लेकिन इनका प्रभाव काफी हद तक प्रतीकात्मक रहा है। आधुनिक परमाणु निरस्त्रीकरण प्रयासों के संदर्भ में इस कथन की जाँच कीजिए और वैश्विक शांति और हथियारों में कमी को बढ़ावा देने में भारत को नेतृत्वकारी भूमिका निभाने के तरीके सुझाएँ।(15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • चर्चा कीजिए कि रसेल-आइंस्टीन घोषणापत्र और भारत का अवाडी प्रस्ताव किस प्रकार परमाणु निरस्त्रीकरण के महत्त्व को प्रदर्शित करते हैं।
  • आधुनिक परमाणु निरस्त्रीकरण प्रयासों के संदर्भ में रसेल-आइंस्टीन घोषणापत्र और भारत के अवाडी प्रस्ताव का प्रभाव किस प्रकार प्रतीकात्मक बना हुआ है, इसका परीक्षण कीजिए।
  • वैश्विक शांति और हथियारों में कमी को बढ़ावा देने में भारत को नेतृत्वकारी भूमिका निभाने के लिए सुझाव दीजिये।

उत्तर

रसेल -आइंस्टीन घोषणापत्र (1955) ने वैश्विक नेतृत्त्वकर्त्ताओं से परमाणु संघर्ष की तुलना में शांति को प्राथमिकता देने का आग्रह किया, जबकि भारत के अवाडी प्रस्ताव (1955) ने वैश्विक नेतृत्त्वकर्त्ताओं से परमाणु संघर्ष की तुलना में शांति को प्राथमिकता देने का आग्रह किया। विश्व शांति सुनिश्चित करने के साधन के रूप में निरस्त्रीकरण पर बल दिया गया। SIPRI रिपोर्ट (2023) के अनुसार इन आदर्शों के बावजूद, आधुनिक परमाणु निरस्त्रीकरण प्रयासों को भू-राजनीतिक तनाव और परमाणु निरोध सिद्धांतों के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

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रसेल-आइंस्टीन घोषणापत्र और अवाडी संकल्प का महत्त्व

  • परमाणु खतरे के प्रति जागरूकता: घोषणापत्र और अवाडी संकल्प ने परमाणु हथियारों से उत्पन्न अस्तित्वगत खतरे पर बल दिया और निरस्त्रीकरण व मानवता के अस्तित्व को
    प्राथमिकता देने के लिए वैश्विक प्रयासों का आह्वान किया।

    • उदाहरण के लिए: रसेल-आइंस्टीन का वाक्यांश, “अपनी मानवता को याद रखें”, परमाणु विनाश को रोकने की सार्वभौमिक आवश्यकता को दर्शाता है।
  • नैतिक और नीतिपरक दृष्टिकोण: दोनों पहलों ने वैज्ञानिक प्रगति पर नैतिक जिम्मेदारी का समर्थन किया और नेताओं से विनाशकारी सैन्य क्षमताओं के बजाय शांति को प्राथमिकता देने का आग्रह किया। 
    • उदाहरण के लिए: मैनहट्टन प्रोजेक्ट से जोसेफ रोटब्लाट के इस्तीफे ने परमाणु हथियारीकरण के नैतिक विरोध को उजागर किया।
  • बहुपक्षीय कार्रवाई पर ध्यान केंद्रित करना: उन्होंने वैश्विक सहयोग पर बल दिया और राष्ट्रों से सामूहिक रूप से हथियारों की कमी और सामूहिक विनाश की रोकथाम में शामिल होने का आग्रह किया। 
    • उदाहरण के लिए: अवाडी प्रस्ताव में संयुक्त राष्ट्र निरस्त्रीकरण आयोग से ठोस कार्रवाई करने का आह्वान किया गया।
  • मानवीय महत्त्व: नागरिकों पर पड़ने वाले विनाशकारी प्रभाव को उजागर करके, उनका उद्देश्य निर्णयकर्ताओं के बीच मानवीय चिंताओं को जगाना था। 
    • उदाहरण के लिए: हिरोशिमा और नागासाकी पर बमबारी ने परमाणु हथियारों के विनाशकारी परिणामों को दर्शाया।
  • शांतिपूर्ण भविष्य के लिए विजन: दोनों दस्तावेजों में परमाणु युद्ध की छाया से मुक्त विश्व की कल्पना की गई है, तथा अहिंसक वैश्विक व्यवस्था का समर्थन किया गया है। 
    • उदाहरण के लिए: परमाणु-हथियार-मुक्त और अहिंसक विश्व व्यवस्था के लिए भारत की 1988 की कार्य योजना ने व्यावहारिक वैश्विक निरस्त्रीकरण प्रस्तावों के साथ इस विजन को आगे बढ़ाया।

आधुनिक परमाणु निरस्त्रीकरण प्रयासों के संदर्भ में प्रस्तावों का सीमित प्रभाव

  • सीमित प्रवर्तन तंत्र: दोनों पहलों  ने प्रवर्तनीय ढाँचे को नहीं लागू किया, जिससे वास्तविक हथियार न्यूनीकरण संधियों पर सीमित प्रभाव पड़ा। 
    • उदाहरण के लिए: जागरूकता के बावजूद, अमेरिका और रूस जैसे देश पर्याप्त परमाणु भंडार बनाए हुए हैं।
  • निरंतर परमाणु हथियारों की दौड़: तकनीकी प्रगति ने एक नई हथियारों की दौड़ को बढ़ावा दिया है, जिससे इन प्रस्तावों का प्रतीकात्मक प्रभाव कम हो गया है। 
    • उदाहरण के लिए: हाइपरसोनिक हथियारों का विकास, निरस्त्रीकरण प्रयासों को कमजोर करता है।
  • कमजोर वैश्विक सहमति: अलग-अलग राष्ट्रीय हितों और भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता ने निरस्त्रीकरण पर सामूहिक कार्रवाई को बाधित किया है। 
    • उदाहरण के लिए: रूस-यूक्रेन युद्ध जैसे संघर्ष वैश्विक शांति पहल को पटरी से उतार देते हैं।
  • गैर-राज्यीय अभिकर्ताओं का प्रसार: गैर-राज्यीय अभिकर्ताओं के पास हथियारों की पहुँच बढ़ने से पिछले ढाँचे अपर्याप्त हो गए हैं तथा कार्यान्वयन में अंतराल उजागर हो गया है।
  • शस्त्र नियंत्रण समझौतों का क्षरण: अमेरिका और रूस के बीच इंटरमीडिएट-रेंज न्यूक्लियर फोर्सेज ( INF) और START समझौते जैसी हालिया संधियों में चुनौतियों आ रही हैं, जो बाध्यकारी प्रतिबद्धताओं के बिना पहले के प्रस्तावों की प्रतीकात्मक प्रकृति को दर्शाता है। 
    • उदाहरण के लिए:INF संधि से अमेरिका के हटने से निरस्त्रीकरण के प्रयास कमजोर हुए।

शांति को बढ़ावा देने और हथियारों में कमी लाने में भारत किस तरह अग्रणी भूमिका निभा सकता है

  • वैश्विक सम्मेलन का आयोजन: भारत परमाणु निरस्त्रीकरण पर एक शिखर सम्मेलन की मेजबानी कर सकता है जिसमें अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को मजबूत करने और युद्ध में AI जैसे उभरते खतरों से निपटने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
  • अप्रसार संधियों का समर्थन करना: भारत, NPT जैसी अप्रसार व्यवस्थाओं में सुधार का सक्रिय रूप से समर्थन कर सकता है, जिससे सभी देशों के लिए समान प्रतिनिधित्व और जवाबदेही सुनिश्चित हो सके।
  • क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देना: भारत दक्षिण-एशिया और पश्चिमी एशिया सहित अस्थिर क्षेत्रों में परमाणु जोखिम में कमी लाने में मध्यस्थता कर सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: रूस-यूक्रेन संघर्ष में भारत का तटस्थ रुख इसकी मध्यस्थता क्षमता को दर्शाता है।
  • AI विनियमन को मजबूत करना: भारत को परमाणु कमांड सिस्टम में AI-संचालित वृद्धि को रोकने के लिए वैश्विक मानदंडों पर बल देना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: G20 देशों के साथ सहयोग करके भारत रक्षा में नैतिक AI उपयोग का नेतृत्व कर सकता है।
  • जन जागरूकता बढ़ाना: भारत परमाणु हथियारों के मानवीय प्रभावों पर बल देने वाले वैश्विक अभियानों का नेतृत्व कर सकता है ताकि निरस्त्रीकरण के लिए सार्वजनिक और राजनीतिक इच्छाशक्ति को प्रेरित किया जा सके। 
    • उदाहरण के लिए: वृत्तचित्र या प्रदर्शनियों जैसी सांस्कृतिक पहल हिरोशिमा संकट को वैश्विक स्तर पर उजागर कर सकती हैं।

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भारत वैश्विक प्रयासों का नेतृत्व करने के लिए सार्वभौमिक परमाणु निरस्त्रीकरण (UNGA संकल्प 68/32) हेतु अपने गुटनिरपेक्ष रुख का लाभ उठा सकता है। ‘नो फर्स्ट यूज’ संधियों, विश्वास-निर्माण उपायों और शांतिपूर्ण उपयोगों के लिए प्रौद्योगिकी साझाकरण जैसे ढाँचे का प्रस्ताव करके इसकी स्थिति मजबूत हो सकती है। नैतिक अधिकार और कूटनीतिक पहलों को मिलाकर, भारत वैश्विक शांति में योगदान दे सकता है।

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