प्रश्न की मुख्य माँग
- रूसी क्रांति में वैचारिक प्रतिबद्धता (Ideological Conviction) की भूमिका।
- रूसी क्रांति में सामाजिक-राजनीतिक अराजकता (Socio-Political Chaos) की भूमिका।
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उत्तर
रूसी क्रांति, मार्क्सवाद-लेनिनवाद के वैचारिक दृष्टिकोण (Ideological Vision of Marxism-Leninism) तथा युद्ध, दमन और आर्थिक संकट से उत्पन्न सामाजिक-राजनीतिक विघटन (Socio-Political Breakdown) दोनों से प्रेरित थी। समालोचनात्मक परीक्षण से यह स्पष्ट होता है कि किस प्रकार यह वैचारिक प्रतिबद्धता और व्यवस्थित अराजकता परस्पर मिलकर जारशाही शासन (Tsarist Regime) को ध्वस्त करने तथा सोवियत सत्ता (Soviet Rule) की स्थापना का कारण बनी। अंत: यह माना जा सकता है कि वैचारिक प्रतिबद्धता और व्यावहारिक असंतोष का संगम ही वह निर्णायक बिंदु बना जिसने रूस की सामाजिक–राजनीतिक संरचना को पूरी तरह बदल डाला।
रूसी क्रांति में वैचारिक प्रतिबद्धता की भूमिका
- मार्क्सवादी विचारधारा का प्रभाव: मार्क्सवाद पर आधारित क्रांतिकारी विचारों ने पूंजीवाद और राजतंत्र को ध्वस्त करने के लिए एक सैद्धांतिक ढाँचा प्रदान किया।
- उदाहरण के लिए: लेनिन की अप्रैल थीसिस ने क्रांति को एक स्पष्ट वैचारिक दिशा प्रदान की।
- लेनिन और बोल्शेविकों का नेतृत्त्व: बोल्शेविकों ने एक सुसंगत राजनीतिक दृष्टिकोण तथा संगठित वैनगार्ड पार्टी (Vanguard Party) का मॉडल प्रस्तुत किया।
- उदाहरण के लिए: लेनिन के नेतृत्व ने अक्टूबर 1917 की क्रांति में सत्ता को केंद्रीकृत करने में निर्णायक भूमिका निभाई।
- क्रांतिकारी नारों का प्रयोग: “शांति, जमीन और रोटी” जैसे क्रांतिकारी नारों ने मजदूरों, किसानों और सैनिकों को आकर्षित किया।
- उदाहरण: बोल्शेविकों ने सरल लेकिन प्रभावशाली संदेशों का प्रयोग करके व्यापक समर्थन हासिल किया।
- साम्राज्यवाद और पूँजीवाद विरोधी दृष्टिकोण: क्रांति का उद्देश्य पूंजीपति वर्ग के लोकतंत्र (Bourgeois Democracy) को समाप्त कर श्रमिक वर्ग का शासन (Proletarian Dictatorship) स्थापित करना था।
- उदाहरण के लिए: द सोवियत (श्रमिक परिषदें) समानांतर शक्ति केंद्रों के रूप में उभरी।
- वैचारिक अनुशासन और प्रचार: मार्क्सवादी सिद्धांत ने क्रांतिकारियों में उद्देश्य और एकता की भावना को बढ़ावा दिया।
- उदाहरण के लिए: जनसमर्थन जुटाने के लिए, प्रावदा (बोल्शेविक अखबार) का प्रभाव प्रभावी ढंग से किया गया।
- विश्व क्रांति का प्रसार: वैश्विक समाजवादी क्रांति की परिकल्पना ने क्रांतिकारी जोश को और प्रखर बनाया।
- उदाहरण के लिए: वर्ष 1919 में कॉमिन्टर्न की स्थापना।
रूसी क्रांति में सामाजिक-राजनीतिक अराजकता की भूमिका
- जारवादी निरंकुशता की विफलता: रूस में जारशाही शासन लंबे समय तक दमनकारी और निरंकुश बना रहा। राजनीतिक सुधारों का अभाव, जनता की आकांक्षाओं की उपेक्षा तथा नागरिक स्वतंत्रताओं का निरंतर हनन, शासन की वैधता (legitimacy) को धीरे-धीरे कमजोर करता गया।
- उदाहरण के लिए: वर्ष 1905 की खूनी रविवार नरसंहार की घटना, जिसमें शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर गोलियाँ चलाई गईं, ने जनता के बीच जारवादी शासन के प्रति शेष विश्वास को भी समाप्त कर दिया।
- आर्थिक संकट और युद्ध का प्रभाव: प्रथम विश्व युद्ध ने रूसी समाज और अर्थव्यवस्था को गहरी तरह से प्रभावित किया। युद्ध व्यय के कारण मुद्रास्फीति में अत्यधिक वृद्धि हुई, खाद्यान्न की गंभीर कमी हो गई और बलात् सैनिक भर्ती ने ग्रामीण और शहरी समाज दोनों को प्रभावित किया।
- उदाहरण के लिए: पेट्रोग्राद के मजदूर रोटी की कमी के कारण बार-बार हड़ताल पर चले जाते थे, जिससे जनता का असंतोष निरंतर बढ़ता गया।
- किसान असंतोष और भूमि संबंधी मुद्दे: रूस के किसान तब भी अधिकांशतः भूमिहीन थे और सामंती व्यवस्था (feudal order) से गहरा असंतोष रखते थे। भूमि सुधार न होने की वजह से उनका आक्रोश बढ़ता गया और वे विद्रोह के लिए तैयार हो गए।
- उदाहरण के लिए: बोल्शेविक सत्ता में आने से पहले ही कई क्षेत्रों में किसानों ने स्वतःस्फूर्त रूप से जमींदारों की जमीनों पर अधिकार करना शुरू कर दिया था।
- शहरी विरोध प्रदर्शन और श्रमिक हड़तालें: कारखानों में काम करने वाले मजदूर, कठिन परिस्थितियों, कम मजदूरी और खाद्य संकट से त्रस्त होकर बार-बार हड़तालें और प्रदर्शन करते रहे। ये विरोध-प्रदर्शन संगठित होते-होते धीरे-धीरे बड़े जनांदोलनों का रूप लेने लगे।
- उदाहरण के लिए: फरवरी क्रांति की शुरुआत भी पेट्रोग्राद में महिलाओं द्वारा चलाई गई ‘रोटी’ दंगों (Bread Riot) से हुई थी।
- सेना अनुशासन का पतन: युद्ध के लंबे दबाव और आर्थिक-सामाजिक संकट ने रूसी सेना में भी असंतोष को जन्म दिया। सैनिकों ने अपने अधिकारियों के आदेश मानने से इनकार करना शुरू कर दिया और कई बार क्रांतिकारी आंदोलनों का हिस्सा बन गए।
- उदाहरण के लिए: फरवरी 1917 में पेट्रोग्राद के सैनिकों का विद्रोह और उनका प्रदर्शनकारियों से जुड़ जाना, जारवादी शासन के पतन का निर्णायक क्षण सिद्ध हुआ।
- अंतरिम सरकार की कमजोरियाँ: जार के त्यागपत्र के बाद गठित अंतरिम सरकार से जनता को उम्मीद थी कि वह युद्ध समाप्त करेगी और ठोस सुधार लागू करेगी। लेकिन उसकी अस्थिरता, अस्पष्ट नीतियाँ और आंतरिक विभाजन जनता को निराश करते रहे।
- उदाहरण के लिए: एलेक्जेंडर केरेंस्की का प्रथम विश्व युद्ध जारी रखने का निर्णय जनता के गहरे असंतोष का कारण बना और अंतरिम शासन की विश्वसनीयता को समाप्त कर दिया।
निष्कर्ष
रूसी क्रांति केवल विचारधारा या अव्यवस्था का परिणाम नहीं थी, बल्कि दोनों का सम्मिश्रण थी। जहाँ मार्क्सवादी दृष्टिकोण और बोल्शेविक नेतृत्व ने क्रांति को दीर्घकालिक वैचारिक दिशा प्रदान की, वहीं सामाजिक-राजनीतिक अराजकता ने तत्कालिकता और अवसर उपलब्ध कराया। यदि इनमें से कोई एक भी घटक अनुपस्थित होता, तो संभवतः क्रांति उस रूप में सफल न होती।
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