Q. सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों को आकार देने में वैज्ञानिक अनुसंधान के महत्त्व पर विचार कीजिए। माइक्रोआरएनए (microRNA) से संबंधित निष्कर्ष भविष्य की स्वास्थ्य पहलों और विनियमों को कैसे सूचित कर सकते हैं? (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों को आकार देने में वैज्ञानिक अनुसंधान के महत्त्व पर चर्चा कीजिए।
  • विश्लेषण कीजिए कि माइक्रोआरएनए से संबंधित निष्कर्ष भविष्य की स्वास्थ्य पहलों और विनियमों को कैसे संदर्भित करते हैं।

 

उत्तर:

mRNA (मैसेंजर RNA), DNA से राइबोसोम (जहाँ प्रोटीन का संश्लेषण होता है) तक आनुवंशिक सूचना ले जाने की प्रक्रिया कोशिकीय जीव विज्ञान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह प्रक्रिया प्रोटीन के उत्पादन के लिए आवश्यक है जो शरीर में विभिन्न कार्यों को नियंत्रित करता है। mRNA तकनीक में हालिया सफलताओं, विशेष रूप से COVID-19 टीकों के विकास से संबंधित सफलता, ने न केवल प्रतिरक्षा विज्ञान में बल्कि कैंसर एवं आनुवंशिक विकारों जैसी कई बीमारियों के इलाज में भी इसकी संभावनाओं को उजागर किया है।

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सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों को आकार देने में वैज्ञानिक अनुसंधान का महत्त्व

  • साक्ष्य-आधारित निर्णय लेना: वैज्ञानिक अनुसंधान सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों के लिए प्रभावी डेटा प्रदान करता है और यह सुनिश्चित करता है कि वे तथ्यों पर आधारित हों न कि धारणाओं पर।
    उदाहरण के लिए: COVID-19 महामारी के दौरान , वायरस के संक्रमण पर शोध ने सामाजिक दूरी और मास्क अनिवार्यता संबंधी वैश्विक दिशानिर्देशों को प्रभावित किया।
  • महामारी का पूर्वानुमान लगाना: शोध से संभावित महामारी का पूर्वानुमान लगाने में और समय पर निवारक उपाय करने में मदद मिलती है।
    उदाहरण के लिए: मलेरिया संक्रमण पैटर्न पर अध्ययन मलेरिया-स्थानिक क्षेत्रों में निवारक सुविधाओं के वितरण संबंधी योजना में सहायक सिद्ध होते  हैं।
  • स्वास्थ्य जोखिमों की पहचान: वैज्ञानिक अध्ययन पर्यावरणीय और व्यवहारिक स्वास्थ्य जोखिमों की पहचान करते हैं, जिससे नुकसान को कम करने के लिए नीतिगत निर्णय लिए जाते हैं।
    उदाहरण के लिए: फेफड़ों के कैंसर एवं धूम्रपान के बीच संबंध का पता लगाने के उद्देश्य से किए गए  शोध के कारण धूम्रपान विरोधी अभियान और कानून बनाए गए।
  • टीकाकरण कार्यक्रमों का मार्गदर्शन: वैक्सीन की प्रभावकारिता एवं सुरक्षा पर शोध यह सुनिश्चित करता है कि टीकाकरण नीतियाँ, आबादी को प्रभावी ढंग से सुरक्षित रखें।
    उदाहरण के लिए: रोग अधिभार और वैक्सीन की  प्रभावशीलता पर शोध द्वारा भारत के सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम  को आकार दिया गया था।
  • उपचार संबंधी प्रोटोकॉल विकसित करना: शोध से बीमारियों के प्रबंधन के लिए मानकीकृत उपचार प्रोटोकॉल विकसित करने में मदद मिलती है, जिससे रोगी के लिए बेहतर परिणाम होते हैं।
    उदाहरण के लिए: HIV उपचार पर नैदानिक परीक्षणों से एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (Antiretroviral therapy) के लिए दिशा-निर्देश तैयार किये गए।
  • स्वास्थ्य समानता में सुधार: वैज्ञानिक शोध से स्वास्थ्य संबंधी असमानताओं का पता चलता है, जिससे सुभेद्य आबादी में लक्षित सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप संभव हो पाता है।
    उदाहरण के लिए: ग्रामीण भारत में मातृ मृत्यु दर पर प्रकाश डालने वाले अध्ययनों के कारण राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की शुरुआत की गई।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रवृत्तियों की निगरानी: शोध, समय के साथ रोग प्रवृत्तियों पर नजर रखने में सहायता करता है, जिससे स्वास्थ्य अधिकारी नीतियों को तदनुसार समायोजित कर सकते हैं।
    उदाहरण के लिए: भारत में मधुमेह के प्रसार पर किए गए अध्ययनों ने जीवनशैली में बदलाव और मधुमेह नियंत्रण पर राष्ट्रीय पहल को बढ़ावा दिया है।

माइक्रोआरएनए से संबंधित निष्कर्ष भविष्य की स्वास्थ्य पहलों एवं विनियमों को कैसे सूचित करते हैं

  • नए चिकित्सीय दृष्टिकोण: माइक्रोआरएनए शोध कैंसर, हृदय रोग और अन्य समस्याओं के उपचार में नए चिकित्सीय विकल्प उपलब्ध करा रहें हैं।
    उदाहरण के लिए: विशिष्ट कैंसर कोशिकाओं को लक्षित करने के लिए माइक्रोआरएनए-आधारित उपचार विकसित किए जा रहे हैं, जिससे उपचार की सटीकता में सुधार हो रहा है।
  • व्यक्तिगत चिकित्सा: माइक्रोआरएनए निष्कर्ष किसी व्यक्ति की ‘जीन एक्सप्रेशन प्रोफाइल’ के आधार पर व्यक्तिगत उपचार योजनाओं के विकास को सक्षम बनाते हैं।
    उदाहरण के लिए: माइक्रोआरएनए पर शोध विशिष्ट प्रकार के ल्यूकेमिया के रोगियों के लिए उपचार तैयार करने में मदद कर सकता है।
  • जीन थेरेपी में उन्नति: माइक्रोआरएनए तंत्र की जानकारी जीन थेरेपी में उन्नति को बढ़ावा दे रही है, विशेष रूप से आनुवंशिक विकारों के लिए।
    उदाहरण के लिए: माइक्रोआरएनए शोध का उपयोग मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के लिए जीन थेरेपी विकसित करने के लिए किया जा रहा है।
  • रोग तंत्र को समझना: माइक्रोआरएनए प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं को विनियमित करने में भूमिका निभाते हैं, जिससे शोधकर्ताओं को ऑटोइम्यून विकारों एवं संक्रमणों को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलती है।
    उदाहरण के लिए: अध्ययनों से पता चला है कि माइक्रोआरएनए सूजन को नियंत्रित करते हैं, जिससे  रूमेटाईड आर्थराइटिस जैसी बीमारियों के बारे में जानकारी मिलती है।
  • रोग का पता लगाने के लिए बायोमार्कर: माइक्रोआरएनए का अध्ययन रोग का जल्दी पता लगाने के लिए संभावित बायोमार्कर के रूप में किया जा रहा है, जिससे समय पर हस्तक्षेप संभव हो सके।
    उदाहरण के लिए: फेफड़ों के कैंसर का जल्दी पता लगाने के लिए रक्त के नमूनों में माइक्रोआरएनए सिग्नेचर्स (MicroRNA Signatures) की खोज की जा रही है।
  • नई चिकित्सा पद्धतियों के लिए विनियामक ढाँचा: जैसे-जैसे माइक्रोआरएनए-आधारित चिकित्सा पद्धतियाँ आगे बढ़ रही हैं, विनियामक निकायों को इनकी सुरक्षा एवं प्रभावकारिता सुनिश्चित करने के लिए दिशानिर्देश स्थापित करने की आवश्यकता पड़ रही है।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप: माइक्रोआरएनए शोध, आनुवंशिक जोखिम कारकों की पहचान करके जीर्ण विकारों  के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेपों को निर्देशित करने में मदद कर सकता है।
    उदाहरण के लिए: हृदय रोग जोखिम कारकों पर माइक्रोआरएनए शोध, लक्षित रोकथाम कार्यक्रमों को सूचित कर सकता है।

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वैज्ञानिक अनुसंधान, विशेष रूप से माइक्रोआरएनए जैसे क्षेत्रों में, सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों को आगे बढ़ाने और भविष्य की स्वास्थ्य पहलों का मार्गदर्शन करने के लिए महत्त्वपूर्ण है। जीन रेगुलेशन में माइक्रोआरएनए की बढ़ती भूमिका रोगों के उपचार में परिवर्तन लाने, प्रारंभिक बीमारी का पता लगाने की प्रक्रिया में सुधार करने और चिकित्सा देखभाल में सुधार करने की क्षमता को संदर्भित करती है। जैसे-जैसे अनुसंधान जारी रहेगा, इसके निष्कर्ष न केवल चिकित्सा उपचारों को बल्कि सुरक्षित और प्रभावी स्वास्थ्य सेवा समाधान सुनिश्चित करने वाले नियामक ढाँचों को भी आकार देंगे।

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