Q. महत्वपूर्ण पुरातात्विक खोजों के बाद भी सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि को समझा नहीं जा सका है। लिपि को समझने में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिए और इस क्षेत्र में सहयोगी अनुसंधान को बढ़ावा देने के उपाय भी सुझाएँ। (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • मूल्यांकन कीजिए कि किस प्रकार से महत्त्वपूर्ण पुरातात्विक खोजों के बावजूद सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि अब तक पढ़ी नहीं जा सकी है।
  • लिपि को डिकोड करने में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिए।
  • इस क्षेत्र में सहयोगात्मक अनुसंधान को बढ़ावा देने के उपाय सुझाइये।

उत्तर

सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि, जिसमें 4,000 से अधिक मुहरें और शिलालेख हैं, अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी है, जिससे इस उन्नत कांस्य युग की संस्कृति (2500-1900 ईसा पूर्व) को समझना मुश्किल हो गया है। UNESCO का अनुमान है, कि लिपि में 400-600 अद्वितीय चिन्ह प्रतीक हैं। द्विभाषी ग्रंथों की अनुपस्थिति, लघु शिलालेख और भाषाई वंशावली पर आम सहमति की कमी इसकी व्याख्या में बाधा डालती है।

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सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि अभी भी समझी नहीं जा सकी है

  • सीमित लिपि नमूने: शिलालेखों की संक्षिप्तता, जिसमें अक्सर केवल 4-5 प्रतीक होते हैं के कारण व्याकरण, वाक्यविन्यास या भाषा संरचना को समझना मुश्किल बनाता है। 
    • उदाहरण के लिए: अभी तक खोजी गई अधिकांश सिंधु मुहरें केवल 1-2 इंच की हैं, जिनमें संक्षिप्त प्रतीक हैं, रोसेटा स्टोन के विपरीत, जिसमें कुछ विस्तार से अंकित किया गया है।
  • द्विभाषी अभिलेखों का अभाव: रोसेटा स्टोन के विपरीत, सिंधु लिपि की तुलना और उसे डिकोड करने के लिए कोई द्विभाषी ग्रंथ नहीं मिला है। 
    • उदाहरण के लिए: मेसोपोटामिया के शिलालेखों में क्यूनिफॉर्म लिपि की तुलना मिलती है, परंतु अभी तक किसी ऐसी प्राचीन भाषा का पता नहीं चला है जो सिंधु मुहरों को समझने में सहायता कर सके। 
  • लिपि के कार्य की अस्पष्टता: विद्वान इस बात पर अभी सर्वसम्मति नहीं बना पाए हैं कि क्या लिपि एक लेखन प्रणाली है अथवा यह  प्रतीकात्मक/प्रशासनिक चिह्नों का प्रतिनिधित्व करती है जिसका कोई भाषाई आधार नहीं है। 
    • उदाहरण के लिए: पश्चिमी विद्वानों का तर्क है कि सिंधु के प्रतीक एक पूर्ण विकसित लेखन प्रणाली के बजाय प्रारंभिक व्यापार प्रणालियों में इस्तेमाल किए जाने वाले टोकन से मिलते जुलते हैं।
  • संदर्भ का अभाव: कई मुहरें और प्रतीक अपने मूल पुरातात्विक संदर्भ से अलग प्रतीत होती है जिसके परिणाम स्वरुप उनकी व्याख्या कर पाना मुश्किल हो जाता है। 
    • उदाहरण के लिए: मोहनजोदड़ो में खुदाई के दौरान अक्सर मुहरें मिलीं है, जिनका कलाकृतियों या शहरी कार्यों से कोई स्पष्ट संबंध नहीं था।
  • स्थलों का विनाश: शहरी विस्तार और उपेक्षा ने कई IVC स्थलों को नष्ट कर दिया है, जिससे समझने योग्य कलाकृतियों की संख्या कम हो गई है।
    उदाहरण के लिए: कालीबंगन जैसे स्थलों पर अतिक्रमण किया गया है, जिससे शिलालेखों और पुरातात्विक स्त्रोतों तक पहुँच सीमित हो गई है।

लिपि को समझने में आने वाली चुनौतियाँ

  • दुर्गम डेटाबेस: अपूर्ण डिजिटलीकरण और प्रतिबंधात्मक नीतियों के कारण शोधकर्ताओं को अक्सर सिंधु शिलालेखों तक व्यापक पहुँच नहीं मिल पाती है। 
    • उदाहरण के लिए: कई मुहर डेटाबेस अप्रकाशित रहते हैं, जिससे विश्व भर के विद्वान व्यवस्थित भाषाई या कम्प्यूटेशनल विश्लेषण करने में असमर्थ हो जाते हैं।
  • राजनीतिक संवेदनशीलता: लिपि को विशिष्ट भाषाई या सांस्कृतिक समूहों से जोड़ने वाली व्याख्याओं को अक्सर राजनीतिक प्रतिरोध और विवाद का सामना करना पड़ता है। 
    • उदाहरण के लिए: “द्रविड़” संबंध के दावों को “आर्यन” व्याख्या का समर्थन करने वाले समूहों से विरोध का सामना करना पड़ता है, जिससे निष्पक्ष शोध जटिल हो जाता है।
  • खंडित क्षेत्रीय प्रयास: राजनीतिक और तार्किक मतभेदों के कारण दक्षिण एशियाई देशों ने संयुक्त अनुसंधान पर अच्छा समन्वय नहीं किया है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत और पाकिस्तान, जो IVC विरासत के प्रमुख हितधारक हैं, के पास न्यूनतम सहयोगी पुरातात्विक कार्यक्रम हैं।
  • तकनीकी सीमाएँ: कम्प्यूटेशनल भाषाविज्ञान और AI में प्रगति, लिपि में पैटर्न पहचान के लिए कम उपयोग की जाती है। 
    • उदाहरण के लिए: जबकि AI ने माया सभ्यता के प्रतीकों को डिकोड किया, सिंधु मुहरों में समान मशीन-लर्निंग अनुप्रयोगों के लिए पर्याप्त एनोटेटेड डेटा का अभाव है।
  • पर्यावरण क्षरण: बाढ़ और जलवायु परिवर्तन से मौजूदा स्थलों और शिलालेखों के और अधिक नष्ट होने का खतरा है। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2022 में मोहनजोदड़ो में बाढ़ के कारण भारी क्षति हुई जिससे इसकी अनूठी कलाकृतियों का नुकसान और भी बढ़ गया।

सहयोगात्मक अनुसंधान को बढ़ावा देने के उपाय

  • डेटाबेस तक खुली पहुँच: सभी मुहरों और कलाकृतियों के डेटा को केंद्रीकृत और डिजिटाइज़ करना चाहिए और उचित पुरातात्विक संदर्भ के साथ वैश्विक पहुँच सुनिश्चित करनी चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: यूरोपियाना मॉडल जैसे प्लेटफार्म, हेरिटेज डेटा के सफल डिजिटलीकरण का मॉडल बनाते हैं, जो सिंधु से संबंधित इसी तरह की पहल का मार्गदर्शन कर सकते हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय शोध कार्यक्रम: अंतःविषयक और राजनीतिक रूप से तटस्थ अध्ययनों के लिए दक्षिण एशियाई देशों और वैश्विक विश्वविद्यालयों के बीच साझेदारी को बढ़ावा देना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: मेसोपोटामिया की कलाकृतियों पर UNESCO द्वारा समन्वित परियोजनाएँ प्रभावी बहुराष्ट्रीय सहयोग को प्रदर्शित करती हैं।
  • उन्नत प्रौद्योगिकी अपनाना: स्क्रिप्ट पैटर्न और भाषाई संभावनाओं का विश्लेषण करने के लिए AI, मशीन लर्निंग और कम्प्यूटेशनल मॉडल का लाभ उठाना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: वॉयनिश पांडुलिपि की व्याख्या में ज्ञात मध्ययुगीन लिपियों पर प्रशिक्षित मशीन-लर्निंग एल्गोरिदम का उपयोग किया गया।
  • जन जागरूकता अभियान: प्राचीन इतिहास को समझने में सिंधु लिपि के महत्त्व को उजागर करके वित्तपोषण और रुचि को प्रोत्साहित करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: तमिलनाडु की पुरस्कार पहल दर्शाती है कि वित्तीय प्रोत्साहन कैसे सांस्कृतिक और भाषाई रहस्यों पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।
  • उत्खनन स्थलों को संरक्षित करना: शहरीकरण या प्राकृतिक आपदाओं के कारण होने वाले विनाश से पुरातात्विक स्थलों की रक्षा के लिए सख्त नियम लागू करने चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: मिस्र की किंग्स की घाटी का संरक्षण प्राचीन धरोहरों को मानव अतिक्रमण से बचाने के संबंध में सबक प्रदान करता है।

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लिपि को समझने के लिए भाषाविदों, AI शोधकर्ताओं और पुरातत्वविदों के बीच बहु-विषयक सहयोग की आवश्यकता है। UNESCO के डिजिटल संग्रह कार्यक्रम और AI-आधारित पैटर्न पहचान के लिए वैश्विक वित्त पोषण जैसी पहल, अंतराल को कम कर सकती है। इस दिशा में एक समर्पित अंतरराष्ट्रीय शोध संघ सफलताओं को बढ़ावा दे सकता है और इस रहस्यमय सभ्यता के सामाजिक-सांस्कृतिक और आर्थिक पहलुओं के पुनर्निर्माण में सहायता कर सकता है।

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