Q. द्विपक्षीय संबंधों में एक महत्वपूर्ण क्षण के रूप में US-भारत असैन्य परमाणु समझौते के महत्त्व का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए तथा स्पष्ट कीजिए कि इसने दोनों देशों के मध्य रक्षा और रणनीतिक सहयोग को किस प्रकार आकार दिया है? (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • द्विपक्षीय संबंधों में एक महत्त्वपूर्ण क्षण के रूप में अमेरिका-भारत असैन्य परमाणु समझौते के महत्त्व का विश्लेषण कीजिए।
  • द्विपक्षीय संबंधों में अमेरिका-भारत असैन्य परमाणु समझौते की कमियों का विश्लेषण कीजिए।
  • उल्लेख कीजिए कि इसने दोनों देशों के बीच रक्षा और रणनीतिक सहयोग को किस प्रकार आकार दिया है।

उत्तर

वर्ष 2008 में हस्ताक्षरित अमेरिका-भारत असैन्य परमाणु समझौते ने द्विपक्षीय संबंधों में ऐतिहासिक परिवर्तन की शुरुआत की। इसने भारत को एक जिम्मेदार परमाणु राज्य के रूप में मान्यता दी, जिससे परमाणु प्रौद्योगिकी और ईंधन तक भारत की पहुँच आसान हो गई। इस सौदे ने न केवल ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत किया बल्कि हिंद – प्रशांत क्षेत्र में रक्षा सहयोग और गहन रणनीतिक सहयोग को बढ़ाने की नींव भी रखी।

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द्विपक्षीय संबंधों में एक महत्त्वपूर्ण क्षण के रूप में अमेरिका-भारत असैन्य परमाणु समझौते का महत्त्व

  • मजबूत रणनीतिक साझेदारी: इस सौदे ने अमेरिका-भारत संबंधों को रणनीतिक साझेदारी के स्तर तक बढ़ाया, दोनों देशों के बीच विश्वास बढ़ा। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2008 में इस सौदे पर हस्ताक्षर करने से सैन्य अभ्यास और हथियारों की खरीद सहित अन्य प्रकार से रक्षा सहयोग बढ़ाने के रास्ते खुले।
  • रक्षा और सुरक्षा सहयोग: इसने खुफिया जानकारी साझा करने और संयुक्त सैन्य अभियानों सहित गहन रक्षा सहयोग के लिए आधार तैयार किया। 
    • उदाहरण के लिए: अमेरिका ने सौदे के बाद भारत को अपाचे हेलीकॉप्टर और P-8I समुद्री गश्ती विमान जैसी उन्नत रक्षा प्रणालियाँ बेचीं।
  • परमाणु ऊर्जा विकास: इस समझौते ने भारत को अंतरराष्ट्रीय परमाणु प्रौद्योगिकी और ईंधन बाजारों तक पहुँच  बनाने में सक्षम बनाया, जिससे उसकी ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ावा मिला। 
    • उदाहरण के लिए: इस समझौते के बाद भारत ने परमाणु रिएक्टर विकास के लिए फ्रांस और रूस जैसे देशों के साथ समझौते किए।
  • व्यापार प्रतिबंधों को हटाना: U.S. एन्टिटी लिस्ट से भारतीय संस्थाओं को हटाने से अधिक तकनीकी और औद्योगिक सहयोग की अनुमति मिली। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2023 में, अमेरिका ने अतिरिक्त प्रतिबंध हटा दिए, जिससे परमाणु ऊर्जा और डुअलयूज प्रौद्योगिकियों में सहयोग की सुविधा मिली
  • भारत के परमाणु कार्यक्रम को वैश्विक मान्यता: परमाणु अप्रसार संधि (NPT) पर हस्ताक्षर न करने के बावजूद भारत के परमाणु कार्यक्रम को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिली। 
    • उदाहरण के लिए: भारत को परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG) से विशेष छूट मिली जिससे उसे वैश्विक स्तर पर परमाणु व्यापार तक पहुँच  प्राप्त हुई।

द्विपक्षीय संबंधों में अमेरिका-भारत असैन्य परमाणु समझौते की कमियां

  • उत्तरदायित्व के अनसुलझे मुद्दे: वर्ष 2010 के सिविल लायबिलिटी फॉर न्यूक्लियर डैमेज एक्ट  ने आपूर्तिकर्ताओं पर उत्तरदायित्व डाल दिया, जिसने अमेरिकी कंपनियों को असैन्य परमाणु उपयोग की दिशा में भारत का सहयोग करने से रोका।
    • उदाहरण के लिए: अमेरिकी फर्म वेस्टिंगहाउस और GE ने भारत में परमाणु परियोजनाओं से परहेज किया है जबकि रुस ने कुडनकुलम परमाणु संयंत्र  की परियोजना में भारत का सहयोग किया।
  • सीमित वाणिज्यिक प्रगति: बड़ी उम्मीदों के बावजूद, इस सौदे से बड़े पैमाने पर परमाणु रिएक्टर निर्माण या ऊर्जा उत्पादन में कोई प्रगति नहीं हुई है। 
    • उदाहरण के लिए: देयता और लागत संबंधी चिंताओं के कारण  2016 में वेस्टिंगहाउस द्वारा प्रस्तावित छह परमाणु रिएक्टर, अभी तक नहीं बन पाए हैं।
  • उच्च प्रौद्योगिकी और लागत बाधाएँ: अमेरिकी परमाणु प्रौद्योगिकी और उपकरण अक्सर महंगे होते हैं, जिससे भारतीय ऊर्जा परियोजनाओं की व्यवहार्यता प्रभावित होती है। 
    • उदाहरण के लिए: जॉर्जिया में वोगटल रिएक्टर जैसी अमेरिकी असैन्य परमाणु परियोजनाओं को भारी लागत वृद्धि का सामना करना पड़ा, जिससे भारत की  चिंताएँ बढ़ गईं।
  • जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता बनी हुई है: परमाणु ऊर्जा का विस्तार करने में विफलता के कारण भारत जीवाश्म ईंधन पर निर्भर है, जिससे जलवायु परिवर्तन प्रतिबद्धताओं को प्राप्त करने में देरी हो रही है। 
    • उदाहरण के लिए: परमाणु ऊर्जा की आकांक्षाओं के बावजूद भारत का कोयला आधारित बिजली उत्पादन अभी भी इसके ऊर्जा सम्मिश्रण के 70% से अधिक है।
  • भू-राजनीतिक और विनियामक चुनौतियाँ: डुअलयूज टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और भू-राजनीतिक तनावों से संबंधित चिंताएँ इस सौदे की पूरी क्षमता  को कम कर देती  हैं। 
    • उदाहरण के लिए: रूस जैसे विरोधियों को प्रौद्योगिकी लीक होने की आशंका के कारण अमेरिका ने कुछ भारतीय परमाणु अनुसंधान संस्थाओं पर प्रतिबंध लगा दिया।

अमेरिका-भारत असैन्य परमाणु समझौते ने रक्षा और सामरिक सहयोग को किस प्रकार आकार दिया

  • सैन्य संबंधों में वृद्धि: इस सौदे के माध्यम से निर्मित विश्वास ने संयुक्त अभ्यास और उन्नत रक्षा प्रणालियों के आदान-प्रदान सहित गहन सैन्य सहयोग को सक्षम किया। 
    • उदाहरण के लिए: अमेरिका, भारत और जापान की भागीदारी वाले वार्षिक मालाबार नौसैनिक अभ्यास ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा को मजबूत किया।
  • रक्षा खरीद में वृद्धि: भारत, अमेरिकी रक्षा उपकरणों का एक प्रमुख खरीदार बनकर उभरा है, जिससे अमेरिकी सेनाओं के साथ उसकी सैन्य क्षमता और अंतरक्रियाशीलता बढ़ी है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत ने अपनी वायु और नौसैनिक शक्ति को बढ़ाने के लिए C-17 ग्लोबमास्टर विमान और P-8I पोसिडॉन विमान खरीदे हैं।
  • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और सह-विकास: इस समझौते ने रक्षा प्रौद्योगिकी और व्यापार पहल (DTTI) जैसी पहलों के तहत रक्षा प्रौद्योगिकी साझा करने और सह-उत्पादन का मार्ग प्रशस्त किया। 
    • उदाहरण के लिए: अमेरिका और भारत ने विमान वाहक प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और मानव रहित हवाई व्हीकल (UAV) के विकास जैसी परियोजनाओं पर सहयोग किया।
  • इंडो-पैसिफिक में रणनीतिक संरेखण: अमेरिका और भारत की साझेदारी ने साझा रणनीतिक लक्ष्यों को आगे बढ़ाया और विशेष रूप से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीनी प्रभाव का मुकाबला किया। 
    • उदाहरण के लिए: QUAD (भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) के गठन ने क्षेत्रीय सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता के लिए संयुक्त प्रयासों को मजबूत किया।
  • खुफिया जानकारी साझा करना और आतंकवाद का मुकाबला: आतंकवाद का मुकाबला करने और क्षेत्रीय खतरों से निपटने के लिए खुफिया जानकारी साझा करने के समझौतों में दोनों देशों के बीच विश्वास बढ़ा है। 
    • उदाहरण के लिए: संचार संगतता और सुरक्षा समझौते (COMCASA) ने सुरक्षित डेटा एक्सचेंज की सुविधा प्रदान की, जिससे संयुक्त संचालन और निगरानी में वृद्धि हुई।
  • द्विपक्षीय रक्षा समझौते: रक्षा सहयोग और प्रौद्योगिकी साझाकरण बढ़ाने के लिए कई अन्य प्रमुख समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए हैं।
    • उदाहरण के लिए: BECA (बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट), जिस पर 2020 में हस्ताक्षर किए गए, ने भारत को सटीक लक्ष्यीकरण के लिए भू-स्थानिक खुफिया जानकारी तक पहुँच  की सुविधा प्रदान की।

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अमेरिकाभारत असैन्य परमाणु समझौते ने द्विपक्षीय संबंधों को पुनः परिभाषित किया है और रक्षा एवं रणनीतिक सहयोग को बढ़ावा दिया है। इस गति को बनाए रखने के लिए, दोनों देशों को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, स्वच्छ ऊर्जा सहयोग और क्षेत्रीय सुरक्षा पहलों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। आपसी विश्वास को मजबूत करने और महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों में साझेदारी का विस्तार करने से दोनों देशों के बीच वैश्विक स्थिरता के लिए एक मजबूत, भविष्योन्मुखी गठबंधन का निर्माण होगा।

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