प्रश्न की मुख्य माँग
- आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु जैसे राज्यों की प्रजनन दर में गिरावट के सामाजिक निहितार्थों का परीक्षण कीजिए।
- आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु जैसे राज्यों में प्रजनन दर में गिरावट के आर्थिक प्रभावों की व्याख्या कीजिए।
- निम्न प्रजनन क्षमता संबंधी चुनौतियों के प्रबंधन में यूरोपीय और पूर्वी एशियाई देशों के अनुभवों से ली जा सकने वाली सीख पर चर्चा कीजिए।
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उत्तर
हाल ही में आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु जैसे राज्यों में प्रजनन दर में गिरावट देखी गई है जहाँ कुल प्रजनन दर (TFR) 2.1 के प्रतिस्थापन स्तर से नीचे आ गई है। उदाहरण के लिए, आंध्र प्रदेश का TFR वर्तमान में 1.6 है , जो दक्षिणी राज्यों के एक बड़े रुझान को दर्शाता है जहाँ शहरीकरण और परिवार नियोजन जैसे कारकों ने जन्म दर को कम किया है। इस बदलाव के गंभीर सामाजिक और आर्थिक निहितार्थ हैं, जो संधारणीय जनसंख्या रणनीतियों पर चर्चा को बढ़ावा देते हैं ।
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प्रजनन दर में गिरावट के सामाजिक निहितार्थ
- वृद्ध होती जनसंख्या: कम प्रजनन दर, वृद्ध जनसंख्या की बढ़ोत्तरी में योगदान देती है जिससे वृद्ध जनसंख्या की युवा पीढ़ी पर निर्भरता का बोझ बढ़ता है और सामाजिक सहायता संरचनाओं को चुनौती मिलती है।
- उदाहरण के लिए: वर्ष 2036 तक, तमिलनाडु की वृद्ध जनसंख्या 21% तक पहुँच जाएगी, जिससे स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक सेवाओं की माँग बढ़ेगी।
- पारिवारिक गतिशीलता में बदलाव: लघु परिवार, पारंपरिक पारिवारिक भूमिकाओं में बदलाव ला रहे हैं, जिससे संभावित रूप से अंतर-पीढ़ीगत समर्थन कमजोर हो रहा है और सामाजिक सामंजस्य प्रभावित हो रहा है ।
- उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण ( NFHS-5), आंध्र प्रदेश में एकल परिवारों की संख्या में वृद्धि को उजागर करता है, जिससे विस्तारित परिवार-आधारित सहायता प्रणाली कम हो रही है।
- संतानोत्पत्ति संबंधी प्राथमिकताएँ: प्रजनन क्षमता में कमी से लैंगिक पूर्वाग्रह बढ़ सकते हैं , विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ बेटों के लिए सांस्कृतिक प्राथमिकताएँ बनी हुई हैं, जो समय के साथ
लिंग अनुपात को प्रभावित करती हैं।
- उदाहरण के लिए: आंध्र प्रदेश के शहरी क्षेत्रों में लिंगानुपात में असमानता देखी गई है, जो कम जन्म दर के बावजूद जारी सामाजिक प्राथमिकताओं को दर्शाती है।
- विलंबित विवाह और परिवार निर्माण: उच्च शिक्षा प्राप्ति और करियर पर ध्यान जैसे कारक व्यक्तियों को विवाह और बच्चे पैदा करने में देरी करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं, जिससे परिवार संरचना के मानदंडों पर असर पड़ रहा है।
- उदाहरण के लिए: कई डेटा ,तमिलनाडु में विवाह की आयु में वृद्धि दर्शाता है , जो शिक्षा और रोजगार के अवसरों में वृद्धि के साथ सहसंबंधित है।
- पुनः जनसंख्या वृद्धि रणनीति के रूप में आप्रवासन पर प्रभाव: घटती प्रजनन क्षमता का मुकाबला करने के लिए, राज्य स्थिर कार्यबल बनाए रखने और सामाजिक और आर्थिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए रणनीतिक आप्रवासन पर विचार कर सकते हैं।
- उदाहरण के लिए: केरल ने श्रमिकों की कमी को दूर करने के लिए प्रवासी श्रमिकों को आकर्षित करना शुरू कर दिया है।आगे चलकर यह रुझान आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में भी देखा जा सकता है।
घटती प्रजनन दर के आर्थिक निहितार्थ
- उपभोक्ता माँग में कमी: कम जन्म दर, युवा जनसांख्यिकी के लिए वस्तुओं और सेवाओं की माँग को कम करती है, जिससे आर्थिक विकास और श्रम बाजार की गतिशीलता प्रभावित होती है क्योंकि व्यवसाय पुराने उपभोक्ताओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं और तदनुसार अपनी रणनीतियों को अनुकूलित करते हैं।
- उदाहरण के लिए: जन्म दर में गिरावट से खिलौनों और बच्चों के उत्पादों से संबंधित बाजार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
- प्रमुख क्षेत्रों में श्रम की कमी: कार्यबल में कम युवा लोगों के प्रवेश से युवा श्रम पर निर्भर उद्योगों में श्रम की कमी हो सकती है, जिससे आर्थिक विकास प्रभावित हो सकता है ।
- उदाहरण के लिए: आंध्र प्रदेश में युवा कार्यबल में कमी के कारण विनिर्माण क्षेत्र को श्रम संबंधी बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है।
- बुजुर्गों की देखभाल पर सार्वजनिक व्यय में वृद्धि: बढ़ती उम्र वाली आबादी को अधिक स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक सुरक्षा की आवश्यकता पड़ती है, जिससे सार्वजनिक वित्त पर दबाव पड़ता है और नीतिगत सुधारों की आवश्यकता होती है।
- उदाहरण के लिए: तमिलनाडु सरकार अपनी वृद्ध होती जनसंख्या के प्रबंधन के लिए उन्नत पेंशन और स्वास्थ्य देखभाल नीतियों पर विचार कर रही है।
- उच्च मजदूरी: श्रम की कमी से मजदूरी बढ़ सकती है, जिससे परिचालन लागत प्रभावित हो सकती है और संभावित रूप से मुद्रास्फीति हो सकती है ।
- उदाहरण के लिए: तमिलनाडु के सेवा क्षेत्रों, जैसे आतिथ्य क्षेत्र में बढ़ती मजदूरी, कम होते युवा श्रम बल के दबाव को दर्शाती है।
- बचत दरों में गिरावट से निवेश पर असर: धनार्जन करन वाले युवाओं की संख्या कम होने से घरेलू बचत में कमी आ सकती है, जिससे पूंजी निर्माण और आर्थिक विकास प्रभावित हो सकता है ।
कम प्रजनन क्षमता के प्रबंधन पर यूरोपीय और पूर्वी एशियाई देशों से ली जा सकने वाली सीख
- फैमिली–फ्रेंडली कार्य नीतियाँ: यूरोपीय देश ऐसी नीतियाँ लागू करते हैं, जो करियर और पारिवारिक जीवन के बीच संतुलन को बढ़ावा देकर परिवार के विकास को बढ़ावा देती हैं , जैसे कि व्यापक मातृत्व और पितृत्व अवकाश कार्यक्रम।
- उदाहरण के लिए: स्वीडन की नीतियां, जिनमें किफायती बाल देखभाल भी शामिल है , लगभग 1.9 की उच्च TFR को बनाए रखने में सहायक हैं।
- कार्यबल भागीदारी में लैंगिक समानता: जापान और दक्षिण कोरिया द्वारा लागू की गई पहलें, कार्यस्थल पर लैंगिक समानता को बढ़ावा देती है, जिसका परिवार नियोजन निर्णयों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है ।
- उदाहरण के लिए: जापान के कार्यबल की प्रत्यास्थता में वृद्धि हुई है। इससे पारिवारिक विकास को प्रोत्साहन मिला है।
- कार्यबल अनुपूरक के रूप में आप्रवासन: कुछ यूरोपीय राष्ट्र अपने श्रम बलों को स्थिर करने, घटती प्रजनन क्षमता के प्रभावों का मुकाबला करने और कम जन्म दर के कारण उत्पन्न हुते आर्थिक दबाव को कम करने के लिए आप्रवासन का उपयोग करते हैं।
- उदाहरण के लिए: जर्मनी के आप्रवासन संबंधी सुधारों से उसकी श्रम शक्ति बनी हुई है , जिससे कम जन्म दर से उत्पन्न आर्थिक दबाव कम हो रहा है।
- सार्वजनिक शिक्षा और स्वास्थ्य में निवेश: पूर्वी एशियाई देशों ने परिवारों की सहायता करने और आर्थिक प्रत्यास्थता सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा में निवेश किया है ।
- उदाहरण के लिए: सिंगापुर शिक्षा सब्सिडी परिवारों को अपने बच्चों के लिए निवेश करने हेतु प्रोत्साहित करती है, जिससे परिवार के विकास और जीवन की गुणवत्ता में संतुलन बना रहता है।
- देर से सेवानिवृत्ति को प्रोत्साहित करना: राष्ट्र, वृद्ध होती आबादी के प्रभावों को संबोधित करते हुए
कार्यबल की कमी को कम करने के लिए देर से सेवानिवृत्ति लेने की प्रथा को प्रोत्साहित कर रहे हैं।
- उदाहरण के लिए: दक्षिण कोरिया के पुनर्नियोजन कार्यक्रमों में वृद्धों को शामिल किया जाता है तथा कार्यबल में उनके योगदान को बढ़ाया जाता है।
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आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में घटती प्रजनन दर, सामाजिक और आर्थिक दोनों तरह की चुनौतियाँ उत्पन्न कर रही है जिसके लिए व्यापक नीतिगत उपायों की आवश्यकता है । यूरोपीय और पूर्वी एशियाई मॉडलों से सीखते हुए, भारत परिवार-अनुकूल नीतियों को लागू कर सकता है, लैंगिक समानता को बढ़ावा दे सकता है और आप्रवासन नीतियों पर विचार कर सकता है । इन रणनीतियों को अपनाने से जनसांख्यिकीय रुझानों को स्थिर करने और दीर्घकालिक सामाजिक-आर्थिक प्रत्यास्थता सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है।
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