प्रश्न की मुख्य मांग
- भारत में सामाजिक न्याय के व्यापक संदर्भ में, जेल सुधारों की भूमिका का आकलन कीजिए।
- भारत में समानता के व्यापक संदर्भ में, जेल सुधारों की भूमिका का विश्लेषण कीजिए ।
- परीक्षण कीजिए कि सर्वोच्च न्यायालय का हालिया निर्णय भारत में सामाजिक न्याय और समानता को आगे बढ़ाने में किस प्रकार योगदान देता है।
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उत्तर:
भीड़भाड़, कम कर्मचारियों और पुरानी प्रणालियों के कारण जेल सुधारों के संदर्भ में, चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। जेल श्रम में जाति-आधारित भेदभाव के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्णय ने जेल प्रशासन में संरचनात्मक परिवर्तनों की आवश्यकता को रेखांकित किया है जिससे सविधान के अनुच्छेद 14, 17, 21 और 23 का अनुपालन सुनिश्चित हो सके और सभी कैदियों की गरिमा एवं समानता को बढ़ावा दिया जाये।
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भारत में सामाजिक न्याय के संदर्भ में जेल सुधारों की भूमिका
- सजा के बजाय पुनर्वास को बढ़ावा देना: जेल सुधारों का उद्देश्य दंडात्मक माहौल के बजाय पुनर्वास माहौल बनाना है, जिसमें कैदियों को समाज में फिर से शामिल करने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
- उदाहरण के लिए: मॉडल जेल मैनुअल 2016 पुनर्वास के लिए महत्त्वपूर्ण उपकरण के रूप में शिक्षा, कौशल विकास और परामर्श पर जोर देता है।
- भीड़भाड़ और मानवीय दशाओं को संबोधित करना: जेल सुधारों का उद्देश्य भीड़भाड़ को कम करना तथा कैदियों के लिए मानवीय दशाओं को सुनिश्चित करना है, जो सामाजिक न्याय के लिए महत्त्वपूर्ण है।
- उदाहरण के लिए: शीर्षक ‘1382 जेलों में अमानवीय दशाओं’ वाली याचिका के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट नें जेलों में भीड़भाड़ कम करने और वहाँ की स्थिति में सुधार लाने का निर्देश दिया ।
- जाति-आधारित भेदभाव की समाप्ति: जेलों में जाति-आधारित प्रथायें जो सामाजिक पदानुक्रम और असमानता को बनाए रखती हैं, को खत्म करने के लिए सुधार आवश्यक हैं।
- उदाहरण के लिए: जेल श्रम आवंटन में जाति-आधारित भेदभाव पर सुप्रीम कोर्ट का हालिया निर्णय समान व्यवहार की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
- कानूनी सहायता तक पहुँच सुनिश्चित करना: जेल सुधार, वंचित कैदियों के लिए कानूनी सहायता तक पहुँच को बढ़ावा देते हैं, जो सामाजिक न्याय का एक महत्त्वपूर्ण घटक है।
- उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए निर्धन कैदियों को निःशुल्क कानूनी सेवाएँ प्रदान करता है।
- सुभेद्य समूहों की सहायता करना: जेल सुधारों में विशेष प्रावधान महिलाओं, किशोरों और विकलांग कैदियों की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं तथा समान व्यवहार और अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं।
- उदाहरण के लिए: वर्ष 2016 का किशोर न्याय अधिनियम परामर्श और शिक्षा के माध्यम से किशोर अपराधियों के पुनर्वास पर केंद्रित है।
भारत में समानता के संदर्भ में जेल सुधारों की भूमिका
- सभी कैदियों से समान व्यवहार: जेल सुधारों का उद्देश्य सभी कैदियों के साथ समान व्यवहार सुनिश्चित करना है, चाहे उनकी जाति, धर्म या आर्थिक स्थिति कुछ भी हो।
- उदाहरण के लिए: जाति-आधारित श्रम पर उच्चतम न्यायालय का निर्णय यह सुनिश्चित करता है कि कैदियों को जाति के आधार पर कार्य नहीं दिया जाएगा।
- जेलों में वर्ग-आधारित विशेषाधिकारों को समाप्त करना: सुधारों का लक्ष्य जेलों में वर्ग-आधारित विशेषाधिकारों को समाप्त करना है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अमीर या प्रभावशाली कैदियों से तरजीही व्यवहार न किया जाये।
- उदाहरण के लिए: अमर सिंह बनाम महाराष्ट्र राज्य वाद में, न्यायालय ने VIP कैदियों के साथ किए जाने वाले तरजीही व्यवहार के मुद्दे को संबोधित किया।
- स्वास्थ्य सेवा और बुनियादी सुविधाओं तक उचित पहुँच: स्वास्थ्य सेवा, भोजन और स्वच्छता तक समान पहुँच सुनिश्चित करना जेल सुधारों का एक मुख्य घटक है जो समानता को बढ़ाता है।
- उदाहरण के लिए: मॉडल जेल मैनुअल, 2016 सभी कैदियों के लिए स्वास्थ्य सेवा तक समान पहुँच हेतु दिशा-निर्देशों की रूपरेखा तैयार करता है।
- हाशिए पर स्थित समुदायों के लिए समावेशी नीतियाँ: सुधारों का ध्यान दलितों और आदिवासियों सहित हाशिए पर स्थित अन्य समूहों के लिए समावेशी नीतियाँ बनाने पर है, जो जेल प्रणाली के भीतर भी प्रणालीगत भेदभाव का सामना करते हैं।
- उदाहरण के लिए: अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 का उपयोग हाशिए पर स्थित समुदायों को भेदभाव से बचाने के लिए किया जाता है, यहाँ तक कि जेल प्रणाली के भीतर भी।
- लैंगिक संवेदनशील दृष्टिकोण: जेल सुधार,लैंगिक समानता को संबोधित करते हैं, यह सुनिश्चित करके कि महिला कैदियों को पुरुष कैदियों के समान देखभाल, सुरक्षा और पुनर्वास का समान स्तर प्राप्त हो।
उदाहरण के लिए: महिला कैदियों पर सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश लिंग-संवेदनशील सुधारों पर बल देते हैं जिसमें अलग सुविधाएँ और मातृ स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच शामिल है।
सर्वोच्च न्यायालय का हालिया निर्णय, निम्नलिखित तरीकों से सामाजिक न्याय और समानता को आगे बढ़ाने में योगदान देगा
- श्रम प्रथाओं का उन्मूलन: सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय में जेलों में जाति-आधारित कार्य समाप्त करने का आदेश दिया गया है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि सभी कैदियों के साथ उनकी जाति के दृष्टिकोण के बिना समान व्यवहार किया जाये।
- उदाहरण के लिए: जाति-आधारित श्रम पर निर्णय यह सुनिश्चित करता है कि सफाई जैसे कार्य जाति के आधार पर नहीं सौंपे जायेंगें, जिससे निम्न जाति के कैदियों की गरिमा बनी रहती है।
- हाशिए पर स्थित समूहों के लिए सम्मान सुनिश्चित करना: न्यायालय का फैसला गरिमा के मौलिक अधिकार को मजबूत करता है विशेष रूप से निम्न जाति और आदिवासी कैदियों के लिए जिन्हें ऐतिहासिक रूप से भेदभाव का सामना करना पड़ा है।
- उदाहरण के लिए: इस निर्णय में अनुच्छेद 17 का इस्तेमाल किया गया, जो अस्पृश्यता को खत्म करता है, ताकि कैदियों को भेदभावपूर्ण प्रथाओं से बचाया जा सके।
- व्यवस्थागत बदलाव को अनिवार्य करना: इस निर्णय में राज्य सरकारों को तीन महीने के भीतर जेल मैनुअल में संशोधन करना होगा, ताकि जेलों में भेदभाव को खत्म करने वाले व्यवस्थागत बदलाव सुनिश्चित किए जा सकें।
- उदाहरण के लिए: उच्चतम न्यायालय के निर्देश के बाद मध्य प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों को अपने जेल नियमों में संशोधन करने का निर्देश दिया गया है।
- श्रम आवंटन में समानता को बढ़ावा देना: यह सुनिश्चित करके कि जेलों में श्रम आवंटन जाति के आधार पर न हो, यह निर्णय समानता को बढ़ावा देता है और गहरी जड़ जमाए हुए सामाजिक पदानुक्रमों को चुनौती देता है।
- उदाहरण के लिए: उच्चतम न्यायालय का निर्णय इस बात पर बल देता है कि जेल का कार्य जाति के आधार पर नहीं बल्कि कौशल के आधार पर दिया जाना चाहिए, जिससे समान अवसर बढ़ेंगे।
- व्यापक सुधारों के लिए मिसाल कायम करना: यह निर्णय जेल प्रणाली के भीतर अन्य भेदभावपूर्ण प्रथाओं को संबोधित करने के लिए एक कानूनी मिसाल कायम करता है, जिससे व्यापक सामाजिक न्याय लक्ष्यों को आगे बढ़ाया जा सके।
- उदाहरण के लिए: यह निर्णय जेलों में भीड़भाड़ और खराब स्वास्थ्य सेवा पहुँच जैसे मुद्दों को संबोधित करने वाले भविष्य के निर्णयों के लिए एक मॉडल के रूप में कार्य कर सकता है।
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उच्चतम न्यायालय का हालिया निर्णय, भारत की जेल प्रणाली के भीतर सामाजिक न्याय और समानता को आगे बढ़ाने में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। जाति-आधारित प्रथाओं को खत्म करके, यह निर्णय सभी कैदियों की गरिमा और अधिकारों को सुनिश्चित करने का प्रयास करता है। प्रभावी जेल सुधारों के माध्यम से, भारत सभी नागरिकों के लिए समानता के संवैधानिक सिद्धांत को कायम रखते हुए एक अधिक न्यायपूर्ण और समतापूर्ण समाज की ओर अग्रसर हो सकता है।
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