प्रश्न की मुख्य माँग
- परिवर्तित होता सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य: स्वतंत्रता-पश्चात बनाम 21वीं सदी।
- सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में समानताएँ।
- वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था में युवाओं के समक्ष आने वाली चुनौतियाँ।
- राष्ट्र-निर्माण के लिए युवा क्षमता को दिशा देने के उपाय।
|
उत्तर
हाल ही में यूरोप में युवाओं के विरोध प्रदर्शन तथा भारत में रोजगार घोटालों और पेपर लीक को लेकर अशांति अविश्वास और निराशा के वातावरण को दर्शाती है। स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात् आशावाद के युग के विपरीत आज के युवा असुरक्षा और तीव्र प्रतिस्पर्द्धा का सामना कर रहे हैं। यह परिवर्तन उनके सामाजिक-राजनीतिक चुनौतियों पर गंभीर दृष्टि डालने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में परिवर्तन: स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद बनाम 21वीं सदी
- त्याग का भाव बनाम संचय की संस्कृति: स्वतंत्रता के प्रारंभिक नेताओं ने ईमानदारी और सेवा को अपनाया परंतु आज की राजनीति प्रायः भौतिकवाद, भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार से जोड़ी जाती है।
- उदाहरण: लाल बहादुर शास्त्री ने सादगी का जीवन जिया, जबकि हाल ही में इलेक्टोरल बॉण्ड्स की अपारदर्शिता धन और राजनीति के गठजोड़ को उजागर करती है।
- संस्थागत विश्वास बनाम अविश्वास: पहले भर्ती निकायों और सार्वजनिक संस्थाओं पर विश्वास था, किंतु अब पेपर लीक और रोजगार के बदले उपकार जैसे घोटाले निष्पक्षता पर विश्वास को कमजोर करते हैं।
- नैतिकता-आधारित युवा आंदोलन बनाम मोहभंग: जयप्रकाश नारायण आंदोलन और असम आंदोलन ने युवा आदर्शवाद को संगठित किया किंतु आज कई युवा नेतृत्व को अवसरवादी मानते हैं।
- अवसर बनाम निर्मम प्रतिस्पर्द्धा: 1950–60 के दशक में रोजगार प्रचुर मात्रा में और योग्यता आधारित थे, परंतु अब संरचनात्मक बेरोजगारी और कोचिंग-आधारित परीक्षाएँ तनाव, असमानता और निराशा को जन्म देती हैं।
- वैश्वीकरण और प्रवासन की चुनौतियाँ: स्वतंत्रता-प्राप्ति के वर्षों की आशा के विपरीत आज के युवाओं को जनसांख्यिकीय दबावों, प्रवासन-संबंधी तनावों और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ता है।
सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में समानताएँ
- परिवर्तन के एजेंट: दोनों कालों में युवाओं ने सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों का नेतृत्व किया। 1970 के दशक में जेपी आंदोलन और आज बेरोजगारी व जलवायु मुद्दों पर विरोध।
- यथास्थिति से असंतोष: तब और अब, युवाओं ने भ्रष्टाचार, असमानता और गैर-जवाबदेह शासन के प्रति अधीरता दिखाई।
- राष्ट्र-निर्माण में केंद्रीयता: दोनों युगों में नीति-निर्माताओं ने युवाओं को विकास की रीढ़ माना।
- वैश्विक प्रवृत्तियों का प्रभाव: स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद छात्र वैश्विक स्वतंत्रता आंदोलनों से प्रेरित थे, परंतु आज के युवा वैश्वीकरण और डिजिटल कनेक्टिविटी से प्रभावित हैं।
वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था में युवाओं की चुनौतियाँ
- बेरोजगारी और नौकरी की असुरक्षा: शिक्षित बेरोजगारी बढ़ने से अशांति, गिग-इकोनॉमी की अस्थिरता और प्रवासन का दबाव बढ़ता है।
- उदाहरण: CMIE के अनुसार 20–24 आयु वर्ग के 44.5% भारतीय बेरोजगार हैं।
- नैतिक-राजनीतिक नेतृत्व का क्षरण: मूल्य-आधारित नेतृत्व में गिरावट युवाओं में अविश्वास और उदासीनता उत्पन्न करती है।
- संस्थागत अक्षमताएँ: पेपर लीक, भर्ती में देरी और भ्रष्टाचार शासन के प्रति मोहभंग को जन्म देते हैं।
- उदाहरण: NEET-UG 2024 पेपर लीक विवाद ने लाखों अभ्यर्थियों के विश्वास को कमजोर किया।
- सामाजिक विखंडन और पहचान की राजनीति: ध्रुवीकरण, सांप्रदायिक बयानबाजी और जनसांख्यिकीय चिंताएँ सामाजिक एकता को कमजोर करती हैं।
- मानसिक स्वास्थ्य और अनिश्चितता: निर्मम प्रतिस्पर्द्धा, भविष्य की अनिश्चितता और सहयोगी मंचों की कमी युवाओं में मानसिक तनाव को बढ़ाती है।
राष्ट्र-निर्माण हेतु युवाओं की क्षमता को दिशा देने के उपाय
- नैतिक नेतृत्व का पुनरुद्धार: पारदर्शी फंडिंग, कठोर भ्रष्टाचार-रोधी कानून और मूल्य-आधारित परामर्श मॉडल से नैतिक राजनीति को बढ़ावा देना।
- संस्थानों और भर्ती प्रणालियों को मजबूत करना: तकनीक-आधारित पारदर्शी, लीक-रोधी परीक्षा प्रणाली सुनिश्चित कर योग्यता-आधारित प्रणाली में विश्वास बहाल करना।
- उदाहरण: SSC/RRB की CBT-आधारित परीक्षाएँ और DigiLocker पारदर्शिता को बढ़ावा देती हैं।
- कौशल विकास और उद्यमिता के माध्यम से अवसरों का विस्तार: आजीवन सीखने, NEP 2020, अटल इनोवेशन मिशन और स्टार्ट-अप इकोसिस्टम पर ध्यान केंद्रित करना।
- उदाहरण: भारत वर्ष 2023 में विश्व का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्ट-अप इकोसिस्टम बना।
- युवा सहभागिता के मंच: युवा संसद, स्थानीय शासन और नागरिक मंचों का संस्थानीकरण कर युवाओं की ऊर्जा को लोकतांत्रिक संवाद में प्रवाहित करना।
- समग्र विकास को बढ़ावा: मानसिक स्वास्थ्य सहयोग, खेल, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और ‘वन-हेल्थ’ जैसी एकीकृत दृष्टियों को प्राथमिकता देना।
- उदाहरण: खेलो इंडिया और फिट इंडिया मूवमेंट ने खेल संस्कृति को प्रोत्साहित किया।
निष्कर्ष
युवाओं की क्षमता को स्वच्छ संस्थानों, निष्पक्ष अवसरों और नागरिक सशक्तीकरण के माध्यम से दिशा दी जा सकती है। नीतियों में नवाचार और लोकतांत्रिक सहभागिता को मार्गदर्शक बनाना चाहिए। इन सुधारों के साथ युवा समावेशी और लचीले राष्ट्र-निर्माण की दिशा में प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Latest Comments