प्रश्न की मुख्य माँग
- जलवायु परिवर्तन को रोकने में आक्रामक प्रजातियों के लाभों पर चर्चा कीजिए।
- आक्रामक प्रजातियों के नकारात्मक प्रभावों की जाँच कीजिए।
- आगे की राह सुझाएँ।
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उत्तर:
आक्रामक प्रजातियों को अक्सर पारिस्थितिक तंत्र के हानिकारक विघटनकारी के रूप में देखा जाता है। हालाँकि, जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में, कुछ आक्रामक प्रजातियाँ पर्यावरणीय लाभ प्रदान कर सकती हैं। हालाँकि वे मूल जैव विविधता के लिए जोखिम उत्पन्न करते हैं, लेकिन नई परिस्थितियों में जल्दी से अनुकूलन करने की उनकी क्षमता कभी-कभी पारिस्थितिक तंत्र को स्थिर करने या कार्बन पृथक्करण को बढ़ाने में मदद कर सकती है।
जलवायु परिवर्तन को रोकने में आक्रामक प्रजातियों के लाभ
- कार्बन पृथक्करण: कुछ आक्रामक पौधों की प्रजातियों में महत्त्वपूर्ण मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने की क्षमता होती है, जिससे जलवायु परिवर्तन को कम करने में सहायता मिलती है।
- उदाहरण के लिए: प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा (Prosopis Juliflora), भारत में एक आक्रामक प्रजाति, CO₂ को अवशोषित करती है, जो निम्नीकृत भूमि में कार्बन भंडारण में योगदान करती है।
- मृदा का स्थिरीकरण: स्पार्टिना अल्टरनिफ़्लोरा (Spartina Alterniflora) जैसी आक्रामक प्रजातियाँ तटीय मिट्टी को स्थिर कर सकती हैं, कटाव को रोक सकती हैं एवं समुद्र के बढ़ते स्तर के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों की रक्षा कर सकती हैं।
- सूखे के प्रति लचीलापन: कुछ आक्रामक प्रजातियाँ, जैसे साइबेरियाई एल्म, अधिक सूखा-प्रतिरोधी हैं एवं जहाँ देशी प्रजातियाँ विफल हो जाती हैं, वहाँ वनस्पति आवरण प्रदान करती हैं, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को बनाए रखा जाता है।
- परागणकों के लिए सहायता: जलवायु परिवर्तन के कारण देशी पौधों की कमी होने पर आक्रामक पौधों की प्रजातियाँ परागणकों के लिए खाद्य संसाधन प्रदान कर सकती हैं।
- उदाहरण के लिए: पूर्वी अमेरिका में लोनीसेरा जैपोनिका (Lonicera Japonica) (जापानी हनीसकल) कुछ मौसमों के दौरान मधुमक्खियों के लिए एक महत्त्वपूर्ण स्रोत बन गया है।
- नष्ट हुए पारिस्थितिकी तंत्र में जैव विविधता: उन क्षेत्रों में जहाँ मूल जैव विविधता पहले ही नष्ट हो चुकी है, आक्रामक प्रजातियां पारिस्थितिक अंतराल को भर सकती हैं।
- उदाहरण के लिए: दक्षिण अफ्रीका में आक्रामक नीलगिरी के पेड़ ने स्थानीय प्रजातियों के लिए आवास की मुहैया करते हुए, वनों की कटाई वाले क्षेत्रों को पुनर्जीवित करने में मदद की है।
आक्रामक प्रजातियों के नकारात्मक प्रभाव
- जैव विविधता को हानि: आक्रामक प्रजातियाँ अक्सर देशी प्रजातियों से प्रतिस्पर्धा करती हैं, जिससे स्थानीय जैव विविधता में गिरावट आती है।
- उदाहरण के लिए: भारत में लैंटाना कैमरा (Lantana Camara) ने देशी पौधों की प्रजातियों को पीछे छोड़ दिया है, जिससे जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क जैसे स्थानों में पारिस्थितिकी तंत्र बाधित हो गया है।
- पारिस्थितिकी तंत्र में व्यवधान: कई आक्रामक प्रजातियाँ पारिस्थितिक तंत्र की संरचना एवं कार्यप्रणाली को बदल देती हैं, जिससे खाद्य श्रृंखलाओं तथा जल संसाधनों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- उदाहरण के लिए: ग्रेट लेक्स क्षेत्र में जेबरा मसल्स ने पानी को अत्यधिक फिल्टर करके एवं देशी प्रजातियों के लिए भोजन को कम करके जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित कर दिया है।
- आर्थिक क्षति: आक्रामक प्रजातियाँ कृषि, वानिकी एवं मत्स्य पालन को प्रभावित करके महत्त्वपूर्ण आर्थिक नुकसान पहुँचा सकती हैं।
- उदाहरण के लिए: फॉल आर्मीवर्म (Fall Armyworm) के संक्रमण के कारण भारत में फसल को भारी नुकसान हुआ है, खासकर मक्के की खेती में।
- देशी प्रजातियों के लिए खतरा: कई आक्रामक प्रजातियाँ आक्रामक प्रतिस्पर्धी के रूप में जानी जाती हैं, जिससे देशी वनस्पतियों एवं जीवों के जीवित रहने की संभावना कम हो जाती है।
- उदाहरण के लिए: दक्षिणपूर्वी अमेरिका में कुडज़ू (Kudzu) देशी पेड़ों के ऊपर उग आया है, जिससे प्रभावी रूप से उनका दम घुट रहा है।
- अग्नि व्यवस्थाओं में परिवर्तन: कुछ आक्रामक पौधे अत्यधिक ज्वलनशील होते हैं, जिसके कारण अधिक बार एवं तीव्र वनाग्नि की घटनाये होती है जो देशी पारिस्थितिक तंत्र और मानवीय आवास दोनों को खतरे में डालती है।
- उदाहरण के लिए: ऑस्ट्रेलिया में गाम्बा घास (Gamba Grass) वनाग्नि की तीव्रता को बढ़ाती है, जिससे मूल निवासियों को खतरा होता है।
आगे की राह
- अनुकूल प्रबंधन: एक सूक्ष्म दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए जहां आक्रामक प्रजातियों का मूल्यांकन पारिस्थितिक तंत्र पर उनके सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों प्रभावों के आधार पर किया जाता है।
- उदाहरण के लिए: संरक्षण अधिकारी अपने पारिस्थितिक लाभों एवं खतरों को संतुलित करने के लिए भारत में प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा (Prosopis Juliflora) का चयनात्मक प्रबंधन कर सकते हैं।
- मूल आवासों की बहाली: देशी प्रजातियों को पुनर्प्राप्त करने एवं आक्रामक प्रजातियों के प्रभुत्व को कम करने में मदद करने के लिए आवास बहाली परियोजनाओं में निवेश।
- उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय हरित भारत मिशन बंजर क्षेत्रों में पुनर्वनीकरण पहल का समर्थन करता है।
- उन्नत निगरानी: समय पर हस्तक्षेप सुनिश्चित करते हुए आक्रामक प्रजातियों के प्रसार एवं प्रभाव को ट्रैक करने के लिए निरंतर निगरानी प्रणाली स्थापित करना।
- उदाहरण के लिए: भारत की आक्रामक विदेशी प्रजातियों पर राष्ट्रीय कार्य योजना (National Action Plan On Invasive Alien Species- NAPINVAS) विभिन्न राज्यों में फॉल आर्मीवर्म जैसी प्रजातियों की आवाजाही पर नजर रखती है।
- सार्वजनिक जागरूकता और शिक्षा: स्थानीय समुदायों को उनके संभावित प्रभावों के बारे में शिक्षित करते हुए आक्रामक प्रजातियों की निगरानी एवं नियंत्रण में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना।
- उदाहरण के लिए: केरल में पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्रों में जलकुंभी, एक आक्रामक जलीय पौधा, को हटाने में स्थानीय लोगों को शामिल किया जाता है।
- अंतरराष्ट्रीय सहयोग: विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन से प्रभावित क्षेत्रों में आक्रामक प्रजातियों के प्रबंधन के लिए जानकारी एवं रणनीतियों को साझा करने के लिए सीमा पार सहयोग को मजबूत करना।
- उदाहरण के लिए: जैविक विविधता पर कन्वेंशन (CBD) में भारत की भागीदारी आक्रामक प्रजातियों के प्रबंधन पर जोर देती है।
जबकि आक्रामक प्रजातियाँ महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ पेश करती हैं, कुछ जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में लाभ प्रदान कर सकती हैं, जैसे पारिस्थितिक तंत्र को स्थिर करना एवं कार्बन पृथक्करण को बढ़ाना। एक संतुलित दृष्टिकोण जो सकारात्मक तथा नकारात्मक दोनों प्रभावों पर विचार करता है, पारिस्थितिक लचीलापन एवं जैव विविधता संरक्षण को बढ़ावा देते हुए आक्रामक प्रजातियों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए आवश्यक है।
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