Q. खेलों को राष्ट्रीय विकासात्मक प्राथमिकता के बजाय एक विवेकाधीन क्षेत्र के रूप में देखा जाता है। खेलों को प्राथमिकता वाले क्षेत्र में क्यों शामिल किया जाना चाहिए? इस परिवर्तन को संस्थागत बनाने के लिए किन नीतिगत सुधारों की आवश्यकता है? (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • खेलों को प्राथमिकता क्षेत्र का दर्जा देने की आवश्यकता।
  • इस परिवर्तन को संस्थागत बनाने के लिए नीतिगत सुधारों की आवश्यकता है।

उत्तर

भारत में खेलों को अभी भी मनोरंजन के रूप में देखा जाता है, न कि विकासात्मक निवेश के रूप में। हालाँकि, राष्ट्रीय खेल नीति 2025 खेल को स्वास्थ्य, रोजगार, सामाजिक एकता और आर्थिक विकास के उत्प्रेरक के रूप में पहचानती है। खेलों को प्राथमिकता क्षेत्र के रूप में उन्नत करना “विकसित भारत” के परिवर्तनकारी दृष्टिकोण को साकार करने के लिए आवश्यक है।

खेलों को प्राथमिकता क्षेत्र का दर्जा देने की आवश्यकता

  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य में सुधार और रोगभार में कमी:  खेल और शारीरिक गतिविधि एक स्वस्थ, कुशल और लचीली जनसंख्या का निर्माण करती है।
    • उदाहरण: भारत में गैर-संचारी रोग (NCDs) लगभग 60% मौतों का कारण हैं; विद्यालयों और कार्यस्थलों में दैनिक खेलों को बढ़ावा देकर वर्ष 2047 तक ₹15 लाख करोड़ की बचत की जा सकती है।
  • आर्थिक विकास और बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन: खेल इन्फ्रास्ट्रक्चर, स्पोर्ट्स टेक, विनिर्माण, एनालिटिक्स और मीडिया जैसे उद्योगों को विकसित करते हैं।
    • उदाहरण: वर्तमान में खेल क्षेत्र GDP का 0.1% और रोजगार का 0.5% योगदान देता है; इसे बढ़ाकर वर्ष 2047 तक GDP का 2% और रोजगार का 4% किया जा सकता है, जो वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं के अनुरूप होगा।
  • जनसांख्यिकीय लाभांश का उपयोग:  भारत की 65% आबादी 35 वर्ष से कम है; खेल युवा शक्ति को उत्पादक कार्य और मानसिक-शारीरिक लचीलापन की दिशा में प्रेरित कर सकते हैं।
  • सामाजिक एकता, लैंगिक समानता और आत्मविश्वास को बढ़ावा: खेल आत्मविश्वास, पहचान और समावेशन को बढ़ाते हैं, जिससे लिंग और सामाजिक समूहों के बीच एकता मजबूत होती है।
  • वैश्विक छवि और सॉफ्ट पॉवर को सुदृढ़ करना: अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजनों की मेजबानी से बुनियादी ढाँचे, दृश्यता और जनभागीदारी में वृद्धि होती है।
    • उदाहरण: अहमदाबाद को वर्ष 2030 राष्ट्रमंडल खेलों की संभावित मेजबानी के लिए अनुशंसित किया गया है, जो भारत की बढ़ती खेल क्षमता का वैश्विक प्रमाण है।

इस परिवर्तन को संस्थागत बनाने हेतु नीतिगत सुधार

  • शिक्षा में SAPA का संस्थानीकरण:  खेलों को अनिवार्य विषय बनाया जाए, न कि केवल सह-पाठ्यक्रमीय गतिविधि।
    • उदाहरण: NSP-2025 खेलों को शिक्षा, स्वास्थ्य, शहरी नियोजन और आर्थिक नीति में एकीकृत करता है।
  •  “स्पोर्ट्स और SAPA नेशनल इंडेक्स” की स्थापना:  राज्यों की रैंकिंग भागीदारी, इन्फ्रास्ट्रक्चर और शासन पर आधारित हो, जिससे प्रतिस्पर्द्धात्मक संघवाद को प्रोत्साहन मिले।
    • उदाहरण: स्वास्थ्य या शिक्षा सूचकांक की तरह SAPA इंडेक्स राज्यों जैसे ओडिशा को नवाचार के लिए प्रेरित करेगा।
  • सार्वजनिक–निजी भागीदारी (PPP) के माध्यम से खेल अवसंरचना निर्माण:  निजी अकादमियों, CSR, स्टार्ट-अप्स और परफॉर्मेंस सेंटर्स को शामिल कर टैलेंट पाइपलाइन और खेल पारिस्थितिकी तंत्र को सुदृढ़ किया जाए।
  • खेलों को प्राथमिकता क्षेत्र का दर्जा देना:  निवेश, ऋण, और कर प्रोत्साहन बढ़ाकर खेल उपकरण, टेक्नोलॉजी और नवाचार को बढ़ावा दिया जा सकता है।
    • उदाहरण: खेल “मेक इन इंडिया” को समर्थन दे सकते हैं — विशेष रूप से स्पोर्ट्स टेक, उपकरण और परिधान उद्योग में।
  • “योजना आधारित दृष्टिकोण” से “पारिस्थितिकी तंत्र मॉडल” की ओर परिवर्तन:  केंद्र–राज्य समन्वय से क्षमता निर्माण और उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले राज्यों को प्रोत्साहन दिया जाए।
    • उदाहरण: ओडिशा की खेल नीति एक मॉडल है, जिसने राज्य को खेल केंद्र के रूप में उभारा है।

निष्कर्ष

भारत को क्षणिक खेल सफलताओं से प्रणालीगत उत्कृष्टता की ओर बढ़ने के लिए, खेलों को राष्ट्रीय निवेश के रूप में मानना होगा।  राष्ट्रीय खेल नीति-2025 के प्रभावी कार्यान्वयन के साथ यदि केंद्र–राज्य समन्वय, निजी साझेदारी, SAPA एकीकरण और दीर्घकालिक खेल संस्कृति को बढ़ावा दिया जाए, तो भारत न केवल स्वास्थ्य और रोजगार में सुधार करेगा बल्कि एक वैश्विक खेल महाशक्ति के रूप में उभरेगा।

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