प्रश्न की मुख्य माँग
- दिल्ली NCR क्षेत्र में पराली जलाने के पर्यावरणीय और स्वास्थ्य प्रभावों की जाँच कीजिए।
- इस समस्या को कम करने के लिए प्रभावी उपाय सुझाएँ।
|
उत्तर
भूमिका
पराली जलाना उत्तर भारत की सबसे गंभीर पर्यावरणीय समस्याओं में से एक है। यह न केवल दिल्ली–एनसीआर में वायु गुणवत्ता को प्रभावित करता है, बल्कि पड़ोसी राज्यों और वैश्विक जलवायु पर भी असर डालता है। इस समस्या से निपटने के लिए केवल नियम और दंड पर्याप्त नहीं हैं, बल्कि दीर्घकालिक तकनीकी और कृषि सुधार भी आवश्यक हैं।
मुख्य भाग
पराली जलाने के पर्यावरणीय प्रभाव
- वायु गुणवत्ता में गिरावट: अनियंत्रित पराली जलाने से विषैले कण (particulate matter) और गैसें निकलती हैं, जो स्मॉग को और बढ़ाती हैं।
- उदाहरण: दिल्ली–एनसीआर में अक्टूबर–नवंबर के दौरान प्रदूषण का स्तर तेजी से बढ़ता है जब पंजाब और हरियाणा के खेतो की पराली जलने के बाद सर्दियों की हवा के साथ मिलती है।
- सीमा पार प्रदूषण: पराली से निकला धुआँ राज्य सीमाओं से आगे फैलता है, जिससे सहयोगात्मक कार्यवाही आवश्यक होती है।
- जलवायु प्रभाव: मानसून के बाद बड़े पैमाने पर खेतों की आग भारी मात्रा में CO₂ और ब्लैक कार्बन उत्सर्जित करती है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग बढ़ती है।
- मृदा और भूमि क्षरण: पंजाब और हरियाणा में बार-बार पराली जलाने से मृदा की उर्वरता घटती है और गेहूँ–धान चक्र की स्थिरता कम होती है।
- जैव विविधता के लिए खतरा: पराली की आग कीटों, पक्षियों और छोटे स्तनधारियों के आवास नष्ट करती है। प्रवासी पक्षी और परागण करने वाले जीव घोंसले व भोजन स्थल खो देते हैं।
पराली जलाने के स्वास्थ्य प्रभाव
- श्वसन रोगों में वृद्धि: दिल्ली के अस्पतालों में प्रत्येक सर्दी के मौसम में अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और COPD के मामलों में वृद्धि देखी जाती है।
- संवेदनशील समूहों पर गंभीर असर: बच्चे, बुजुर्ग और बाहरी कार्य करने वाले श्रमिक सबसे अधिक प्रभावित होते हैं।
- उदाहरण: अक्टूबर–नवंबर के स्मॉग एपिसोड स्कूल जाने वाले बच्चों और झुग्गी बस्तियों की आबादी पर गंभीर प्रभाव डालते हैं।
- दीर्घकालिक स्वास्थ्य जोखिम: NCR में बार-बार होने वाली स्मॉग घटनाएँ कैंसर और हृदय रोग की घटनाओं में वृद्धि करती हैं।
- एलर्जिक प्रतिक्रियाएँ: धुएँ से एलर्जिक राइनाइटिस, त्वचा में जलन और साइनसाइटिस की समस्या और गंभीर हो जाती है।
पराली जलाने को कम करने के उपाय
- CAQM की स्वतंत्रता और पारदर्शिता: आयोग को राजनीतिक दबाव से मुक्त कर स्वतंत्र रूप से कार्य करने योग्य बनाना।
- उदाहरण: CAQM द्वारा वास्तविक अग्नि डेटा प्रकाशित करने में विफलता, स्वतंत्र कार्यप्रणाली की तत्काल आवश्यकता को दर्शाती है।
- फसल अवशेष प्रबंधन तकनीक को बढ़ावा: हैप्पी सीडर, रोटावेटर और बायो-डिकंपोजर जैसी मशीनों का प्रयोग।
- उदाहरण: पंजाब सरकार ने इस सीजन में 56,000 मशीनें वितरित कीं।
- जैव-ऊर्जा और औद्योगिक उपयोग का विकास: फसल अवशेष को बायोफ्यूल, पैलेट्स और बिजली में परिवर्तित कर कृषि अपशिष्ट का बाजार तैयार करना।
- कानून प्रवर्तन और निगरानी को मजबूत करना: उपग्रह इमेजिंग, ड्रोन और GIS तकनीक से पराली जलाने की निगरानी और उल्लंघन पर कठोर दंड।
- मौजूदा कानूनों का सख्त प्रवर्तन: बार-बार उल्लंघन करने वालों पर जवाबदेही सुनिश्चित करना।
- उदाहरण: पंजाब और हरियाणा में कमजोर प्रवर्तन कानूनी प्रतिबंधों के बावजूद बार-बार पराली जलाने की घटनाएँ देखी जाती है।
- दीर्घकालिक फसल विविधीकरण रणनीति: धान–गेहूँ चक्र पर निर्भरता कम कर वैकल्पिक फसलों को बढ़ावा देना।
निष्कर्ष
पराली जलाने की समस्या से निपटने के लिए केवल दंडात्मक कदम पर्याप्त नहीं हैं। स्वतंत्र CAQM प्रवर्तन, पारदर्शी निगरानी, किसानों को प्रोत्साहन, अवशेष प्रबंधन तकनीक और फसल विविधीकरण दीर्घकालिक समाधान हैं। अंतरराज्यीय सहयोग और किसानों के लिए व्यवहार्य विकल्पों के साथ ही NCR में स्वच्छ वायु और जनस्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Latest Comments