Q. शहरी गतिशीलता की सफलता अक्सर "अंतिम मील कनेक्टिविटी" चुनौती से बाधित होती है। भारतीय शहरों में अंतिम मील कनेक्टिविटी को संबोधित करने में विफलताओं की जाँच कीजिए और अभिनव समाधानों की सिफारिश कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • शहरी गतिशीलता प्रणालियों में लास्ट माइल   कनेक्टिविटी के महत्त्व को समझाइए।
  • भारतीय शहरों में  लास्ट माइल कनेक्टिविटी को संबोधित करने में विफलताओं का परीक्षण कीजिए।
  • लास्ट-माइल कनेक्टिविटी चुनौतियों पर काबू पाने के लिए नवीन और संधारणीय समाधान सुझाइये।

उत्तर

भारत का शहरी संक्रमण जिसमें वर्ष 2060 तक 60% से अधिक आबादी शहरों में होने की उम्मीद है, ने कुशल गतिशीलता की माँग को तीव्र कर दिया है। हालाँकि, लास्ट माइल कनेक्टिविटी समावेशी और संधारणीय परिवहन के लिए एक बड़ी बाधा बनी हुई है। इस अंतर को समाप्त किए बिना, सार्वजनिक परिवहन प्रणालियों का कम उपयोग और शहरी भीड़भाड़ बढ़ने का जोखिम है।

शहरी गतिशीलता में लास्टमाइल कनेक्टिविटी का महत्त्व

  • सार्वजनिक परिवहन के उपयोग को बढ़ावा: निर्बाध लास्ट-माइल लिंक, पहुँच और यात्री सुविधा में सुधार करके मेट्रो और बस सवारियों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि करता है।
  • कार पर निर्भरता कम होती है: किफायती और एकीकृत लास्ट-माइल विकल्प निजी वाहनों पर निर्भरता को कम करते हैं, जिससे शहरी भीड़भाड़ कम होती है। 
    • उदाहरण के लिए, जैसे-जैसे मौजूदा मेट्रो का विस्तार होता है, अनियोजित लास्टमाइल पहुँच यातायात की भीड़ को बढ़ाती है  जो पहले से ही स्मार्ट शहरों में खराब एकीकरण के कारण बदतर हो गई है।
  • महिलाओं और हाशिए पर पड़े यात्रियों को सहायता: सुरक्षित, विश्वसनीय लास्ट-माइल परिवहन सुभेद्य समूहों के लिए समान पहुँच को प्रोत्साहित करता है।
  • सतत गतिशीलता लक्ष्यों को मजबूत करता है: गैर-मोटर चालित और इलेक्ट्रिक लास्ट-माइल मोड कार्बन उत्सर्जन को कम करते हैं और पर्यावरण के अनुकूल पारगमन विकल्पों को बढ़ावा देते हैं।
  • यात्रा का समय कम करता है और उत्पादकता बढ़ाता है: कुशल लास्ट-माइल पहुँच से डोर-टू-डोर यात्रा कम हो जाती है। 
    • उदाहरणार्थ: बजट 2025 के शहरी बस अभियान का उद्देश्य मेट्रो शहरों की कनेक्टिविटी में सुधार करना है जिससे औसत यात्रा में 20-25 मिनट से अधिक की कमी आ सकती है

भारतीय शहरों में लास्टमाइल कनेक्टिविटी को संबोधित करने में विफलता

  • बस घाटा और आपूर्ति अंतराल: भारत को 2 लाख शहरी बसों की आवश्यकता है  लेकिन केवल 35,000 ही चालू हैं  जिससे जन परिवहन कवरेज पर दबाव पड़ता है। 
    • उदाहरण के लिए, जबकि भारत पीएम ई-ड्राइव के तहत 14,000 ई-बसों और 1.1 लाख ई-रिक्शा की उपलब्धता सुनिश्चित कराई जा रही है, कई शहरों में इसके लिए उपयुक्त बुनियादी ढाँचे की कमी है।
  • स्मार्ट सिटी मोबिलिटी योजनाओं का कमज़ोर क्रियान्वयन: स्मार्ट सिटी मॉडल के खराब क्रियान्वयन के कारण नए शहरी केंद्र निष्क्रिय हो जाते हैं। 
    • उदाहरण के लिए, चीन के एकीकृत शहरी मॉडल के विपरीत, अधिकांश भारतीय स्मार्ट शहर लास्ट-माइल आवागमन के बोझ को कम करने में विफल रहे।
  • वहनीयता संबंधी बाधाएँ: उच्च सार्वजनिक परिवहन किराया और अनियमित लास्ट-माइल सेवाएं, यात्रा को महंगा बना देती हैं।
  • ट्राम और ट्रॉलीबस के प्रति नीतिगत अंधापन: सिद्ध व्यवहार्यता के बावजूद, ट्राम (Tram) जैसे कुशल विकल्पों को नजरअंदाज किया जाता है। 
    • उदाहरण के लिए, जबकि जीवन-चक्र के मामले में ट्राम 45% अधिक प्रभावी हैं फिर भी उन्हें प्रमुख शहरी परिवहन नीतियों से बाहर रखा गया है।
  • निजी क्षेत्र की कम भागीदारी: निवेशक कम रिटर्न की निश्चितता के कारण फीडर परिवहन से बचते हैं । 
    • उदाहरणार्थ: लंबी निर्माण अवधि और सीमित सब्सिडी के कारण निजी ई-रिक्शा और मिनी बस सेवाएं शहरी क्षेत्रों में अविकसित रह जाती हैं।

नवीन एवं संधारणीय समाधान

  • मल्टी-मॉडल शहरी एकीकरण को मजबूत करना: मेट्रो, बसों, पैदल मार्गों और कम उत्सर्जन वाले साधनों को मिलाकर एक एकीकृत परिवहन नेटवर्क शहरी क्षेत्रों में निर्बाध आवागमन सुनिश्चित करता है। 
    • उदाहरणार्थ: कोच्चि के वर्ष 2024 ट्राम पायलट का उद्देश्य केंद्रीय क्षेत्रों को स्थायी रूप से जोड़ना है, तथा कोलकाता जैसी भारत की ट्राम विरासत को पुनर्जीवित करना है
  • पीएम ई-ड्राइव के तहत ई-रिक्शा पारिस्थितिकी तंत्र का विस्तार: सरकारी खरीद के अंतर्गत मलिन बस्तियों और कम आय वाले क्षेत्रों में इन रिक्शों की व्यापक तैनाती सुनिश्चित करनी चाहिए।
  • गैर-मोटर चालित परिवहन कॉरिडोर को बढ़ावा देना: सभी प्रमुख परिवहन केंद्रों के पास पैदल मार्ग और साइकिल ट्रैक अनिवार्य होना चाहिए। 
    • उदाहरणार्थ: स्मार्ट सिटी ऑडिट से पता चलता है कि 10% से भी कम सड़कों पर सुरक्षित NMT अवसंरचना है, जिससे पैदल चलने वालों के लिए पहुँच खराब हो रही है।
  • जीवन-चक्र आधारित पारगमन निवेश अपनाना: परिवहन वित्तपोषण मॉडल में ट्राम और ट्रॉलीबस को शामिल करना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए, ई-बसों के विपरीत, जो 82% शुद्ध जीवन-चक्र घाटे से पीड़ित हैं, ट्राम बेहतर दीर्घकालिक जलवायु और राजकोषीय संरेखण प्रदान करते हैं
  • एकीकृत ऐप और भुगतान के माध्यम से पारगमन प्रणालियों को एकीकृत करना: कॉमन मोबिलिटी कार्ड और ऐप, स्विचिंग की परेशानियों को कम कर सकते हैं। 
    • उदाहरण के लिए, अहमदाबाद जैसे शहरों में नेशनल कॉमन मोबिलिटी कार्ड (NCMC) के उपयोग से इंटरमॉडल पहुँच और वहनीयता में सुधार होता है।

भारत का शहरी भविष्य, गतिशीलता में लास्ट माइल की कमी को दूर करने पर आधारित है। विखंडित नियोजन से जीवन-चक्र-आधारित, समावेशी और बहु-मोडल दृष्टिकोणों, जैसे ट्राम, ई-रिक्शा और पैदल चलने योग्य क्षेत्रों में बदलाव करके भारत यह सुनिश्चित कर सकता है कि इसकी परिवहन प्रणाली तेजी से शहरीकृत होती आबादी की आवश्यकताओं के अनुरूप हो।

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